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ग्राउंड रिपोर्ट

मिर्ज़ापुर में ग्रामीण सड़क : तमाम दावे फेल, सड़क के गड्ढे डरावने हो चुके हैं

पूरे उत्तर प्रदेश को आपस में जोड़ने के लिए एक्स्प्रेस वे, हाई वे, रिंग रोड बनाये गए हैं और अभी बन भी रहे हैं। गाड़ियों से चलने वाले खुश हैं और 'विकास हुआ' का दावा भी कर रहे हैं लेकिन उप्र के गांवों में जाने पर विकास की असलियत सामने आती है, जहां सड़क के नाम पर दशकों पहले बनी हुई सड़कों के निशान बाकी हैं। असल में सरकार दिखावे वाले विकास पर काम करती है। पढ़िये मिर्ज़ापुर के विशुनपुरा गांव से संतोष देवगिरि की ग्राउंड रिपोर्ट 

उत्तर भारत में सड़कों की बदहाली यहाँ रहने वालों के लिए एक बड़ी समस्या है। विकास के नाम पर शहरों के मुख्य मार्गों के साथ, बाहर निकलने वाले हाईवे व गाँव की तरफ जाने वाली सड़कें ठीक-ठाक दिखाई देती हैं, तो ऐसा लगता है कि सड़कें गाँव के अंदर तक पहुँच गई हैं। लेकिन वास्तव में स्थिति बहुत ही भयानक है। जबकि विकास का पहला मापदंड मजबूत और चौड़ी सड़कें होती हैं।

मिर्ज़ापुर के राजगढ़ क्षेत्र का विशनपुरा गांव जो सोनभद्र जनपद की सीमा से सटा हुआ। यहाँ का अंतिम गांव है। विकास की किरणों से दूर अपनी बदहाली पर सिसकियां भर रहा है। गांव में आने जाने वाले मार्ग का हाल बुरा बना हुआ है। यहां पर सड़क गड्ढों में तब्दील हो चुके हैं। गड्ढेमयी सड़कों पर ग्रामीणों को चलना मुश्किल हो रहा है। हल्की बारिश में ही स्थिति गंभीर रूप धारण कर लेती है। रात के अंधेरे में गांव की सड़क पर चलना मतलब दुर्घटना को आमंत्रण देना है।

ग्रामीण कहते हैं कि ‘सड़क मरम्मत के लिए आवाज उठाई गई लेकिन कोई सुनवाई नहीं हो रही है। सांसद विधायक इधर झांकने भी नहीं आते हैं। चुनाव बीत जाने पर कोई भला जनता की समस्याओं से उनके क्या सरोकार होंगे?’

इलाके के पत्रकार रविन्द्र सिंह पटेल गांव की बदहाल सड़क की दुर्दशा को बयां करते हुए कहते हैं कि ‘गांवों के विकास के लिए आने वाले भारी भरकम बजट में जबरदस्त खेला होता है। कार्यदायी संस्था से लेकर संबंधित विभाग और अधिकारी इस बजट से अपने को लगातार मजबूत करते हुए आए हैं। इलाके की बदहाली बताते हुए कहते हैं कि विकास के बाकी दावे तो छोड़ दीजिये एक सही सड़क भी नहीं है इस इलाके में।’ एक बार कोई जनप्रतिनिधि बन जाये उसके बाद उसे राजनीति कैसे करना है और जनता को कैसे छलना है अच्छे से आ जाता है।

राजगढ़ विकास खंड क्षेत्र की सड़कों को देख यह कहा जा सकता है कि सड़कें चमक नहीं रही हैं बल्कि सिसक रही हैं। कई गांवों में सड़कों की बदहाली को देखकर यह कह पाना मुश्किल होता है कि ‘सड़क में गड्ढे हैं या गड्ढे में सड़क।’

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राहगीरों को चलने के लिए सड़क खोजना मुश्किल

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ऐसा नहीं है कि सड़क निर्माण का बजट नहीं आता

सड़कों के निर्माण के लिए देश में सड़क परिवहन मंत्रालय है, जो शहरी और ग्रामीण सड़कों के निर्माण के लिए बजट पास कर योजनाओं का निर्माण करता है।

सड़क परिवहन मंत्रालय द्वारा ग्रामीण इलाकों में प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (विधायक चुने गए मड़िहान विधायक रमाशंकर सिंह के अंतर्गत सड़क बनाने की परियोजना की शुरुआत वर्ष 2000 में की गई थी।

इसके पहले वर्ष 2000 से वर्ष 2021 तक कुल 6,80,040 किलोमीटर लंबी  सड़कें बनीं, लेकिन सवाल यह उठता है कि लाखों लंबी सड़क बनने के बाद भी, आज भी हजारों गाँव सड़क सुविधा से दूर हैं।

वर्ष 2024 के जुलाई माह से प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (पीएमजीएसवाई) का चौथा चरण शुरू हो चुका है, जिसमें 25 हजार किलोमीटर तक की बनाई जाएंगी। जिसमें दो हजार नई सड़कें बनाने की योजना है।

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने ग्रामीण सड़कों के रखरखाव के लिए सड़क के नवीनीकरण के चक्र को आठ वर्ष से घटाकर पाँच वर्ष कर दिया है, लेकिन इसके बाद भी सड़कों की मरम्मत और देखभाल का काम नहीं हो रहा है।

विकास का दावा करने वाली उत्तर प्रदेश सरकार की पोल हर बारिश में खुलती है, इस बारिश में ही अनेक सड़कों के धँसने और पानी में बह जाने की खबरें आईं, जिससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि उन्हें बनाने वाले विभाग और ठेकेदार कितना घटिया सामान लगाते हैं।

आवंटित बजट का एक हिस्सा कमीशनखोरी में बांट दिये जाते हैं ताकि आगे भी उन्हें ही ठेका मिले। इस वजह से घटिया निर्माण किए जाते हैं और इसके दुष्परिणाम आए दिन देखने मिलते हैं। जैसे  नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी के मुख्य मार्ग सिगरा थाना इलाके में सड़क बीचों-बीच धंस गई और छह फ़ीट का गड्ढा हो गया।

अभी अगस्त में चंदौली चकिया क्षेत्र के गांधीनगर-लतीफ शाह सड़क बीचों-बीच धंसकर 15 फीट गड्ढा हो गया।

लखनऊ विश्वविद्यालय के पास पॉश इलाके में सड़क धँसने से एक बड़ा गड्ढा बन गया।

अगस्त 4 को सहारनपुर के विनोद विहार इलाके में एक साल पहले बनी सड़क अचानक धंस गई थी। सड़क का करीब 20 फ़ीट हिस्सा 8-10 फ़ीट तक धंस गया था। इस घटना में भाजपा पार्षद सुधीर पंवार समेत पांच लोग घायल हो गए थे।

जनवरी में अयोध्या में राम मंदिर का ज़ोर-शोर से उदघाटन हुआ, लेकिन 24 जून को रामपथ  पहली बारिश में बह गया।

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विकास के दावे की पोल खोलती सड़कें

इन घटनाओं की जानकारी इसलिए जरूरी है कि विकास मॉडल के नाम पर सरकार जहां काम करवा रही है उसका स्तर कितना घटिया है। साथ ही प्रदेश के अनेक ऐसे ग्रामीण इलाके हैं, जहां सड़क के नाम पर केवल गड्ढे हैं।

लेकिन यह देखा गया है कि जिन गांवों में बड़े-बड़े पूँजीपतियों के उद्योग स्थापित हैं या जहां से इन्हें प्राकृतिक संसाधनों का दोहन करना होता है, वहाँ की सड़कें चकाचक बन हैं क्योंकि संसाधनों के दोहन के लिए बड़ी-बड़ी गाड़ियों का आवागमन होता है। यह सरकार विकास के नाम केवल पूँजीपतियों का विकास कर रही है।

पिछड़े इलाके की बनी हुई है पहचान

मिर्ज़ापुर जिला मुख्यालय से तकरीबन 70 किमी एवं राजगढ़ ब्लाक मुख्यालय से 13 किमी दूर पूरब दिशा में स्थित विशुनपुरा गांव है। यह सोनभद्र से लगा हुआ है। राजगढ़ विकास खंड में कुल 83 ग्राम पंचायतें तथा 161 ग्रामसभाएं हैं, जिनकी कुल आबादी 213573 तथा क्षेत्रफल 73218 वर्ग किलोमीटर मीटर बताई जाती है। इस विकास खंड में सभी जातियों की मिश्रित आबादी है। जिनमें पिछड़े और अनुसूचित जाति की बहुलता बताई जाती है। घने जंगलों-पहाड़ों से घिरा राजगढ़ विकास खंड अति पिछड़े क्षेत्रों में भी शुमार है।

इस इलाके में विकास की किरणें कई गांवों में पहुंच से दूर बनी हुई हैं, इन्हीं गांवों में से एक गांव विशुनपुरा गांव भी है। जिले के बिल्कुल अंतिम छोर पर स्थित सोनभद्र जनपद की सीमा से सटा हुआ यह गांव सड़क जैसी बुनियादी जरूरतों से वंचित है।

ग्रामीणों की माने तो एक दशक से ज्यादा समय से मुख्य मार्ग से गांव को जोड़ने वाली सड़कें गड्ढे में तब्दील हो चुकी है, जिसे देख अंदाजा लगा पाना मुश्किल हो जाता है कि ‘सड़क पर गड्ढे हैं या गड्ढे में सड़क’

बरसात के दिनों में सड़क पर बने गड्ढों में पानी जमा होने से आवागमन कठिन हो जाता है तो वहीं संक्रामक बीमारियां को भी बढ़ावा मिलने की संभावना बढ़ जाती है।

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बिशनपुर के ग्रामीण अपनी बात कहते हुए

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कोरे आश्वासन के सिवा कुछ भी नहीं हुआ हासिल

विशुनपुरा गांव के किसान राम निरंजन, अखिलेश्वर, विजय बहादुर सिंह, गोपाल सिंह, दिलीप सिंह, गोविंद सिंह, अरुण सिंह, विजय सिंह ने एक साथ इकट्ठे होकर अपनी परेशानी साझा की, उन्होंने बताया कि यह सड़क 12 साल पहले समाजवादी पार्टी की पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष प्रभावती देवी ने बनवाया था। इसके बाद इस सड़क पर आज तक किसी ने ध्यान नहीं दिया है। जिससे धीरे-धीरे यह सड़कें गड्ढे में तब्दील होती चली गई।

जबकि नियम यह कहता है कि सड़क बनाने वाली कंपनियाँ पाँच वर्ष तक उसके देखभाल का काम करेंगी और चौथे वर्ष से सड़क की मरम्मत का काम शुरू हो जाना चाहिए। लेकिन विशुनपुरा गांव में एक बार सड़क बनाकर इतिश्री कर ली  गई।

जिसका खामियाजा हुआ कि सड़कें गड्ढों में तब्दील हो गईं और उसके बाद सरकार के विधायक, सांसद या ग्राम पंचायत  सरपंच ने कभी इस तरफ काम करने की पहल नहीं की। रोजाना लोग गिरते-पड़ते हुए आवागमन करने को मजबूर हैं।

सड़क की बदहाली का दंश झेलने को अभिशप्त ग्रामीणों को केवल आश्वासन के सिवा कुछ नहीं मिला है। ग्रामीणों ने पीडब्ल्यूडी के अधिकारियों से अपनी परेशानी कही लेकिन उन्होंने भी ध्यान नहीं दिया।

ग्रामीण बताते हैं कि मड़िहान के विधायक रमाशंकर सिंह पटेल को भी इस सड़क के बारे में अवगत कराया गया लेकिन उन्होंने भी उस पर कोई ध्यान नहीं दिया। वहाँ रहने वाले लोग गड्ढों वाली सड़क पर चलने को मजबूर हो गए हैं।

गांव के बड़े-बुजुर्गों का कहना है कि ‘सरकार वरिष्ठ नागरिकों के लिए अनेक सुविधाएं प्रदान कर रही है, लेकिन गाँव के वरिष्ठ नागरिक सड़क पर निकलने से डरते हैं। कुछ बुजुर्ग इन गड्ढों वाली सड़क पर चलने को मजबूर हो गए हैं। इन गड्ढे वाली सड़कों पर चलने से इनके गिरने या दुर्घटना होने की आशंका बढ़ जाती है।  इसके बाद भी जिम्मेदार मुलाजिम एवं जनप्रतिनिधि मसलन सांसद विधायक का ध्यान नहीं जा रहा है।’

सड़क मात्र 2 किलोमीटर लंबी है, जो आसानी से बनवाई जा सकती है। पिछले 7-8 वर्ष पहले से सड़क टूटनी शुरू हुई और अब सड़क पूरी तरह से गड्ढों में तब्दील हो चुकी है। सड़क की गिट्टियां उखड़ कर बड़े-बड़े गड्ढे में बदल गई हैं। अब इसे सड़क कहे या फिर गड्ढा कहें।

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बिशनपुर गाँव के बुजुर्ग

किसी गंभीर परिस्थिति की सूचना के बाद भी गांव में एंबुलेंस चालक यहाँ आने से कतराते हैं। घर वाले जैसे-तैसे मरीजों को अस्पताल पहुंचा पाते हैं। गर्भवती महिलाओं के लिए स्थिति और कठिन हो जाती है।

रोजी-रोजगार के सिलसिले में महानगरों में गए लोग जब गांव आते हैं, तो देर सबेर होने पर कोई वाहन चालक जल्दी गांव में अपना वाहन लेकर नहीं आता है। वह गांव के मुख्य मार्ग पर ही उतार कर आगे जाने की बजाए हाथ जोड़कर खड़े हो जाते हैं। ऐसे में उन्हें अपने सामान के साथ गाँव तक पैदल जाना पड़ता है।

 सांसद की उदासीनता, गांववासियों की कोई सुनवाई नहीं 

मिर्जापुर जिले से तीसरी बार की सांसद अनुप्रिया पटेल और दूसरी बार विधायक चुने गए मड़िहान विधायक रमाशंकर सिंह पटेल की भी नजरें इस ओर नहीं फिर रही हैं। जबकि सांसद की एक मजबूत छवि है लेकिन जनता के जरूरतों पर उनका ध्यान नहीं है।

ऐसे में गाँव वालों का कहना है कि जब उन्हें इस तरफ आने की जरूरत ही नहीं है तो क्यों गाँव के विकास की तरफ उनका ध्यान जाएगा? हमारे द्वारा चुने हुए प्रतिनिधि केवल वोट लेना जानते हैं।

सरकार की योजना है कि सभी गांवों में पक्की सड़क हो, मुख्य सड़कों की भांति गांव की सड़कों को भी गड्ढा मुक्त किया जाए लेकिन कागज पर ही किया जाता है।

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मिर्जापुर की सांसद अनुप्रिया पटेल और मड़िहान विधायक रमाशंकर सिंह

ग्रामीणों ने कहते हैं कि ‘इस गांव की सड़क की शिकायत हर जगह की गई, लेकिन कोई भी इसके लिए आगे नहीं आया।

मिर्जापुर-सोनभद्र मुख्य मार्ग से लगे हुए विशनपुरा ग्राम पंचायत से निकली सड़क कारकोली, सिरसिया ठकुरई, महुआरिया, सीताबाहर, सरगां सोनभद्र को जोड़ती है। सड़क की दुर्दशा को लेकर ग्रामीण विरोध-प्रदर्शन कर चुके हैं, बावजूद इसके इस ओर कोई भी झांकने नहीं आया है। हमारी आवाज को लगातार अनसुना किया जा रहा है।

ग्रामीणों का कहना है कि ‘यदि यही रवैया रहा तो सड़क की बदहाली को लेकर हमें आंदोलन करने को विवश होना पड़ेगा। उसके बाद जो होगा उसकी पूरी जिम्मेदारी संबंधित विभाग और जनप्रतिनिधियों की होगी।’

वर्तमान जिला पंचायत अध्यक्ष राजू कन्नौजिया ने इस मुद्दे पर चुप्पी साध रखी है। इनके द्वारा किसी भी तरह की पहल न किए जाने पर इस पर ग्रामीण नाराज हैं।

दूसरी ओर इस संबंध में जब मड़िहान भाजपा विधायक रमाशंकर सिंह पटेल से जब इस समस्या को लेकर बात की गई तब उन्होंने बताया कि ‘विशनपुरा गांव की सड़क को स्वीकृति मिल चुकी है। बरसात के बाद इस सड़क पर काम शुरू हो जाएगा।’

बहरहाल, देखना अब यह है कि बरसात बीतने के बाद सड़क निर्माण शुरू होगा या एक फिर यह कोरा आश्वासन होगा।

 

संतोष देव गिरि
संतोष देव गिरि
स्वतंत्र पत्रकार हैं और मिर्जापुर में रहते हैं।

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