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हिंदुत्व का अर्थशास्त्र और संघ का संविधान विरोध

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह-कार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले द्वारा संविधान बदलने के सियासी बयान को लेकर भारत की राजनीति में एक बार फिर उबाल आ गया है। गुरुवार को दिल्ली में एक कार्यक्रम के दौरान दत्तात्रेय होसबाले ने कहा था कि 1976 में आपातकाल के दौरान 'समाजवादी' और 'धर्मनिरपेक्ष' शब्दों को जबरन संविधान में जोड़ा गया था और अब वक्त आ गया है कि इन्हें हटाया जाए। उन्होंने कहा, बाबा साहेब आंबेडकर ने जो संविधान बनाया, उसकी प्रस्तावना में ये शब्द नहीं थे। आपातकाल में जब मौलिक अधिकार निलंबित कर दिए गए, न्याय पालिका पंगु हो गई थी, तब ये शब्द जोड़े गए। इस पर विचार होना चाहिए कि क्या इन्हें प्रस्तावना में रहना चाहिए?

 

होसबोले के इस बयान के बाद कांग्रेस ने भी संघ-भाजपा पर हमला करते हुए आरोप लगाया कि ‘यह बाबा साहेब के संविधान को नष्ट करने की साजिश है, जिसे आरएसएस-बीजेपी  लंबे समय से रच रहे हैं।’ कांग्रेस ने दावा किया कि जब संविधान लागू हुआ था, तब आरएसएस ने इसका विरोध किया था और इसकी प्रतियां जलाई थीं। कांग्रेस ने आगे कहा कि लोकसभा चुनाव के दौरान भी भाजपा नेता खुलकर कह रहे थे कि उन्हें संविधान बदलने के लिए 400 सीटों की जरूरत है और अब वे फिर अपनी साजिश में लग गए हैं।

लोकसभा में नेता विपक्ष राहुल गांधी और कांग्रेस समेत कई विपक्षी दलों ने आरएसएस नेता के बयान पर तगड़ा हमला बोलते हुए कहा कि संविधान को नष्ट करना आरएसएस का एकमात्र लक्ष्य है, जिसने संविधान को कभी स्वीकार नहीं किया है। कांग्रेस के अनुसार, संघ नेता का यह आह्वान बाबा साहेब आंबेडकर के न्यायपूर्ण, समावेशी और लोकतांत्रिक भारत के दृष्टिकोण को नष्ट करने की एक लंबे समय से चली आ रही साजिश का हिस्सा है। एक्स पर एक पोस्ट में राहुल गांधी ने कहा, आरएसएस का नकाब फिर से उतर गया। संविधान इन्हें चुभता है, क्योंकि वह समानता, धर्मनिरपेक्षता और न्याय की बात करता है। आरएसएस-भाजपा को संविधान नहीं, मनुस्मृति चाहिए। ये बहुजनों और गरीबों से उनके अधिकार छीनकर उन्हें दोबारा गुलाम बनाना चाहते हैं। उन्होंने आगे लिखा कि संविधान जैसा ताकतवर हथियार उनसे छीनना इनका असली एजेंडा है। आरएसएस यह सपना देखना बंद करे। हम उसे कभी सफल नहीं होने देंगे। हर देशभक्त भारतीय आखिरी दम तक संविधान की रक्षा करेगा।

कांग्रेस के संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल ने कहा कि ‘सुप्रीम कोर्ट ने समाजवाद और धर्मनिरपेक्षता को संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा घोषित किया है, फिर भी यह रुख अपनाना संविधान का स्पष्ट अपमान, इसके मूल्यों की अस्वीकृति और सर्वोच्च न्यायालय पर भी सीधा हमला है।’ वहीं वामपंथी दल माकपा की सर्वोच्च राजनीतिक इकाई पोलित ब्यूरो ने होसबाले के बयान की निंदा करते हुए कहा कि ‘संविधान की प्रस्तावना में ‘समाजवादी’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्दों को शामिल करना मनमाना नहीं था। ये शब्द उन मूल मूल्यों को दर्शाते हैं, जिनके लिए स्वतंत्रता सेनानियों ने अपने प्राणों की आहुति दी।’ साथ ही आरोप लगाया कि आरएसएस नेता का यह आह्वान संविधान को नष्ट करने के आरएसएस के लंबे समय से चले आ रहे हिंदुत्व प्रोजेक्ट के तहत भारत को हिंदू राष्ट्र में बदलने की उसकी मंशा को उजागर करता है।

वास्तव में होसबोले ने आपातकाल को याद करने के बहाने ‘समाजवादी’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्दों को संविधान से हटाने का जो आह्वान किया है, उससे उसका खतरनाक चरित्र एक बार फिर उजागर हो गया है। दुनिया का कोई भी संगठन ऐसी मांग नहीं उठाता, जैसा कि संघ की ओर से उठा दिया गया है। बहरहाल, संघ ने ‘समाजवादी’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्दों को संविधान से हटाने की जो कुत्सित मांग उठाई है, विपक्ष ने उसके पीछे की मंशा स्पष्ट तौर से जाहिर की है। राहुल गांधी का यह कहना बिलकुल सही है कि संविधान इन्हें चुभता है, क्योंकि वह समानता, धर्मनिरपेक्षता और न्याय की बात करता है।  आरएसएस-भाजपा को संविधान नहीं, मनुस्मृति चाहिए। ये बहुजनों और गरीबों से उनके अधिकार छीनकर उन्हें दोबारा गुलाम बनाना चाहते हैं। संविधान जैसा ताकतवर हथियार उनसे छीनना ही इनका असली एजेंडा है।

माकपा का यह कहना भी बिलकुल दुरस्त है कि आरएसएस नेता का यह आह्वान संविधान को नष्ट करने के आरएसएस के लंबे समय से चले आ रहे हिंदुत्व प्रोजेक्ट के तहत भारत को हिंदू राष्ट्र में बदलने की उसकी मंशा को उजागर करता है। बहरहाल संघ के लोग संविधान से ‘समाजवादी’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’ हटाने की जितनी भी युक्ति खड़ी करें अवाम, विशेषकर बहुजनों को विपक्ष की बात सही लग रही है। कारण, बहुजनों में यह बात पूरी तरह से घर कर गई कि संघ का लक्ष्य हिन्दू राष्ट्र की स्थापना रहा है, इसलिए वह बाबा साहेब के संविधान को इसके लागू करने के समय से ही नष्ट करने की साजिश में लिप्त रहा। ऐसा इसलिए कि भारतीय संविधान संघ के हिन्दू राष्ट्र निर्माण में सबसे बड़ी बाधा रहा। बाधा इसलिए रहा आंबेडकर का संविधान  उस हिंदुत्व के अर्थशास्त्र को ध्वस्त करता है, जिसके लिए ही संघ देश को हिन्दू राष्ट्र घोषित करना चाहता है।

वास्तव में अब यह साफ-साफ समझ लेने और अपनी धारणा को कठोर बना लेने की जरूरत है कि संघ का अर्थशास्त्र क्या है? वह इस अर्थशास्त्र को कैसे फलीभूत करना चाहता है। संघ हिंदुत्व अर्थात वर्ण व्यवस्था के अर्थशास्त्र को लागू करने के लिए अपने जन्मकाल से ही हिन्दू राष्ट्र निर्माण के लिए प्रयत्नशील रहा है। उसे पता है हिन्दू राष्ट्र घोषित होने पर देश उन धर्मशास्त्रों द्वारा चलेगा जिसमे शक्ति के समस्त  स्रोत–आर्थिक, राजनीतिक, शैक्षिक, धार्मिक–सिर्फ ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्यों के लिए निर्दिष्ट है। यह सारा कुछ वर्ण-व्यवस्था के अर्थशास्त्र के तहत किया गया।

जिस हिन्दू धर्म का ठेकेदार आज संघ बना हुआ है, उसका प्राणाधार वह वर्ण व्यवस्था ही रही है, जिसके तहत सदियों से ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्यों और शुद्रातिशूद्रों से युक्त हिन्दू समाज परिचालित होता रहा है। जिस वर्ण व्यवस्था के द्वारा हिन्दू समाज परिचालित होता रहा, उसे विदेशी मूल के आर्य प्रवर्तकों द्वारा ईश्वर- सृष्ट प्रचारित किया गया। ऐसी वर्ण व्यवस्था द्वारा अर्थोपार्जन की समस्त गतिविधियाँ, राजसत्ता की सभी संस्थाओं के साथ शैक्षिक और धार्मिक गतिविधियाँ चिरकाल के लिए ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्यों के लिए आरक्षित की गई और विदेशी मूल के उच्च वर्ण के लोग खुद को शक्ति के स्रोतों के भोग का दैवीय-अधिकारी समझने की मानसिकता से पुष्ट हो गए। विपरीत उन्हीं धर्मशास्त्रों द्वारा शुद्रातिशूद्रों के लिए शक्ति के स्रोतों का भोग अधर्म घोषित करने के कारण वे चिरकाल के लिए दैवीय सर्वहारा में तब्दील हो गए।

बाद में आंबेडकर प्रवर्तित आरक्षण के कारण जब हिन्दू धर्म के सर्वस्वहारा सांसद, विधायक,सीएम-डीएम, डॉक्टर- इंजीनियर-प्रोफ़ेसर, लेखक-पत्रकार बनने लगे, हिंदुत्व का रक्षक संघ दो कारणों संविधान को व्यर्थ करने में जुट गया पहला, जिस संविधान के कारण शुद्रातिशूद्र उन पेशों को अपनाने का अधिकारी बन गए जो हिन्दू धर्मशास्त्रों द्वारा सिर्फ कथित हिन्दू ईश्वर के उत्तमांग से जन्मे लोगों के लिए बताए गए। ऐसा होने पर हिन्दू धर्मशास्त्रों की हैसियत सवालों के घेरे में आ गई। दूसरा, हिन्दू राष्ट्र की घोषणा के जरिये शक्ति के समस्त स्रोत सवर्णों के हाथों में देने की जो योजना थी, वह भी खटाई में पड़ गई। इससे संघ और शिद्दत के साथ संविधान को व्यर्थ करने में सक्रिय हुआ। इस काम में 2014 में केन्द्रीय सत्ता पर कबित हुए मोदी सबसे ज्यादा मुस्तैद रहे।

एक अंतराल के बाद मोदी भी इस नतीजे पर पहुंचे बिना नहीं रह सके कि संविधान के चलते हिन्दू राष्ट्र का सपना पूरा नहीं हो सकता। यदि संसद में सांसदों की विशाल संख्या की ताकत के जोर से हिन्दू राष्ट्र की घोषणा कर भी दी जाय तो भी हिंदुत्व अर्थात वर्ण-व्यवस्था का अर्थशास्त्र लागू नहीं हो सकता, जिसमें शक्ति के स्रोतों के भोग का अधिकार सिर्फ सवर्णों के लिए तय किया गया है। लेकिन संविधान के रहते हुए भी हिन्दू राष्ट्र का चरम लक्ष्य पूरा हो सकता है यदि समस्त क्षेत्र  निजी घरानों के अधिकार में दिया जाय।

इस सोच के तहत ही मोदी उपरी तौर आंबेडकर के संविधान के प्रति अतिशय आदर प्रकट करते हुए भी निजीकरण के जरिये इसको कमजोर और निष्प्रभावी करने में जुटे रहे। उनके प्रयास से संविधान की उद्देश्यिका में उल्लिखित तीन न्याय- सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक – वंचितों के लिए काफी हद तक सपना बनकर रह गए हैं। इसलिए देश की प्रायः 92 प्रतिशत आबादी के लिए संघ के मंसूबों पर पानी फेरना जीवन-मरण का सवाल बनकर रह गया है। ऐसे दुर्दिन में राहुल गांधी का उदय एक वास्तविक जननेता के रूप में हुआ है, जो मल्लिकार्जुन खड्गे, डॉ अनिल जयहिंद, राजेन्द्र पाल गौतम, डॉ. जगदीश प्रसाद, अली अनवर इत्यादि जैसे ढेरों सामाजिक न्यायवादी लोगों को साथ लेकर संविधान बचाने की निर्णायक लड़ाई लड़ रहे हैं।

अगर संघ के खिलाफ ऐतिहासिक संघर्ष चला रहे राहुल गांधी का साथ नहीं दिया जाता है तो डॉ.अनिल जयहिंद के शब्दों में संघ के लोग ‘समाजवादी’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्दों की भांति कल संविधान से ‘सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक’ न्याय भी हटाने की मांग कर सकते हैं। फिर एक दिन संविधान में चुपके से ‘मनुवाद’ सरका देंगे!’

 

एच एल दुसाध
एच एल दुसाध
लेखक बहुजन डाइवर्सिटी मिशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं.

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