
मेरे लिए बिहार का मतलब फिलहाल भूखा, नंगा और बीमार बिहार। रही बात यह कि इसे बिहार बनाया किसने तो निश्चित तौर पर यह काम ब्राह्मणों का होगा। वही नहीं चाहते हैं कि इस प्रदेश में बौद्ध धर्म का अस्तित्व रहे। इतिहास गवाह है कि कैसे पुष्यमित्र शुंग ने मौर्यों का अंत करने के बाद बौद्धों का नरसंहार कराया था। बाद में तो ब्राह्मणों ने नालंदा अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय को भी तहस-नहस कर दिया और इसका सारा आरोप बख्तियार खिलजी पर मढ़ दिया

कल ही खबर मिली कि छपरा में एक राजपूत किसान रामबाबू सिंह की मौत हो गई। मरने से पहले वह अमनौर में यूरिया खाद खरीदने के लिए चार बजे भोर से लाइन में खड़े थे। मेरी जानकारी के अनुसार रामबाबू सिंह ने तीन बीघे में गेहूं की फसल लगा रखी है, जिसके लिए उन्हें यूरिया खाद की आवश्यकता थी। लेकिन खाद बिहार के किसानाें को बड़ी मुश्किल से मिल रहा है।
नवल किशोर कुमार फॉरवर्ड प्रेस में संपादक हैं।
[…] बिहार से एक नयी कहानी : डायरी (6 फरवरी, 2022) […]