Friday, December 27, 2024
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विचार

लोकतंत्र को बचाने की लड़ाई संसद से ज्यादा सड़क पर लड़नी पड़ेगी

आजादी के बाद की पीढिय़ां इस दायित्व का निर्वाह ईमानदारी से नहीं कर पाई हैं। इसीलिए संविधान विरोधी और देश विरोधी विचार और राजनीति आज संवैधानिक सत्ता पर काबिज है। उसका मुकाबला तभी हो सकता है जब हम संविधान की भाषा को जनता के मुहावरे और जनता के सरोकार से जोड़ें।

मौलाना आजाद : अखंड भारत के प्रबल पैरोकार, जिन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में विशेष काम किया

मक्का में पारंपरिक मुस्लिम तौर-तरीकों से तालीम होने के बाद भी मौलाना अबुल कलाम आज़ाद ने भारत में आईआईटी, यूजीसी , बंगलोर की विश्व स्तरीय विज्ञान संस्थान के लिए पर्याप्त मात्रा में संसाधनों की व्यवस्था करने का ऐतिहासिक काम किया। ये आज़ाद भारत के पहले शिक्षा मंत्री बने और दस वर्ष तक इस पद पर रहे। शिक्षा के क्षेत्र में विशेष काम करने के कारण, हर वर्ष 11 नवम्बर उनके जन्मदिन को ‘राष्ट्रीय शिक्षा दिवस’ के रूप में मनाया जाता है।

लोकप्रियता के नाम पर साम्प्रदायिक हिंसा फैलाने में दक्षिणपंथी कवियों और गायकों की भूमिका

अभी तक यही बात मानी जाती थी कि कि कविता, गाने और संगीत लोगों के मनोरंजन के लिए होता है लेकिन यह देखा जा रहा है कि कविता और गीतों का उपयोग देश में साम्प्रदायिक ज़हर फ़ैलाने के लिए भी किया जा रहा है। हिन्दू त्योहारों और जुलूसों के दौरान अल्पसंख्यक समुदाय को डराने और हिंसा करने के लिए लगातार भड़काऊ गाने बजाये जा रहे हैं। यह बात निर्भीक पत्रकार कुणाल पुरोहित ने अपनी विचारोत्तेजक पुस्तक ‘एच-पॉप’ में लिखी है। जिसमें स्पष्ट लिखा है कि हिन्दुत्वादी कवि, लेखक और पॉप गायकों की रचनाएं देश में विशेषकर हिन्दुभाषी प्रदेशों में गाई,बजाई और पढ़ी जा रही हैं, जिसका असर साम्प्रदायिक उन्माद और दंगों के रूप में सामने आ रहे हैं।

बोलिए, आपको क्या चाहिए मोहब्बत या नफरत?

पिछले 70 वर्षों तक हिन्दू कभी खतरे में नहीं थे, न ही उन्हें कभी मारे जाने का डर था लेकिन जैसे ही केंद्र में भाजपा का शासन आया, वैसे ही बहुसंख्यक हिन्दू के लिए अल्पसंख्यक मुस्लिम खतरा बन गए और उनकी जान पर बन आई। असल में असली खतरा उन्हें आरएसएस से है, हिंदुतव के नाम पर वही ऐसा माहौल तैयार कर रहे हैं, वही घिनौनी सोच लोगों के दिमाग में घुसा रहे हैं और सबसे ज्यादा बेवकूफ हिंदुत्व के पीछे भागने वाले अंधभक्त है। योगी आदित्यनाथ, जो बुलडोजर (अ)न्याय के प्रणेता ने भी ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ का नारा बुलंद किया है, वहीं आरएसएस ने इस नारे का खुलकर समर्थन किया। धर्म के मुखौटा पहने राष्ट्रवादी होने का दावा करने वाली शक्तियां न केवल उपनिवेश विरोधी संघर्ष में शामिल नहीं हुईं वरन् उन्होंने घृणा और विभाजन के बीज बोए और उन्हें खाद-पानी दिया। आने वाला समय सांप्रदायिकता के लिए चुनौती भरा रहेगा।

मोहन भागवत ने फिर से हिन्दू राष्ट्र का राग अलापा

अपेक्षाकृत कम प्रचलित शब्द ‘वोकिज्म’ का इस्तेमाल अधिकांशतः दक्षिणपंथियों द्वारा 'सामाजिक और राजनैतिक अन्यायों के प्रति संवेदनशील रवैया रखने वाले लोगों को अपमानित करने के लिए किया जाता है।' यह भागवत के भाषण का केन्द्रीय मुद्दा था। इस समय हिंदू दक्षिणपंथी देश के सामाजिक-राजनैतिक परिदृश्य पर हावी है। 

रेणु, प्रेमचंद और आज हम सभी के गांव ( 12 जुलाई, 2021 की डायरी )

एक दौर था जब साहित्य और फिल्मों के केंद्र में गांव होते थे। गंगा को भी खास सम्मान हासिल था। राजकपूर पर फिल्माया गाया...

जातिवाद के फांस से मुक्ति का प्रश्न

जैसे बाज़ार और बाज़ारवाद अलग- अलग चीज है, उसी तरह ब्राह्मण और ब्राह्मणवाद में भी फर्क है। कोई ब्राह्मण भी ब्राह्मणवाद का विरोधी हो...

क्या कविता का मतलब बाल की खाल निकालना है ?

सिर्फ प्रतिभा नहीं, कविता एक क्राफ्ट भी है जिसका ताल्लुक सीखने और अभ्यास से है और जिसके सहारे ही कविता आस्वाद से जुड़ती है।...

आम और आदमी या आम आदमी या फिर कोई और? (11 जुलाई, 2021 की डायरी)

दो शब्द हैं - आम आदमी। दोनों शब्दों के बीच कोई मेल नहीं। मतलब यह कि आम एक फल है और आदमी आदमी। लेकिन...

सामान्य और असामान्य की कौन-सी परिभाषा है आपके पास? (10 जुलाई, 2021 की डायरी )

घटना मध्य प्रदेश के इंदौर जिले की है। इस घटना को देखने और समझने के कई तरीके हो सकते हैं जो कि सामान्य तौर...

बीज, बाजार और किसान (9 जुलाई, 2021 की डायरी)

समाज कैसे बदलता है? यह एक सवाल हो सकता है। खासकर उनके लिए जो समाज के बदलने की प्रक्रिया से परिचित नहीं हैं। वैसे...