Sunday, September 8, 2024
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विचार

जाति विवाद के मसले पर आरएसएस का घालमेल

लोकसभा चुनाव 2024 में सबसे बड़ा मुद्दा जातिगत जनगणना कराने का था जिसे इण्डिया गठबंधन ने बहुत मजबूती से आगे बढ़ाया है। जाति का मुद्दा आर एस एस के लिए टेढ़ी खीर बन गया है। क्योंकि उसे पता हैं कि जातिया अपना अधिकार मांगने लगी तो उनका हिंदुत्व बिखर जायेगा। जिसे बचाने के लिए वह तमाम संदर्भ दे रहे हैं। इसी को लेकर राम पुनियानी की रिपोर्ट।

ए जी नूरानी : सांप्रदायिकता के खिलाफ एक साहसी और कद्दावर वकील

देश के प्रसिद्ध संविधान विशेषज्ञ और न्यायविद ए जी नूरानी का निधन मुम्बई स्थित उनके आवास पर हो गया। वह विभिन्न समाचार पत्रों और पत्रिकाओं में प्रकाशित कानूनी और राजनीतिक घटनाक्रमों पर अपने लेखों के लिए जाने जाते हैं। हमारे देश ने आज मानवाधिकारों के एक महान वकील को खो दिया है। मैं व्यक्तिगत रूप से अपनी विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ।

अपराधों का सेलेक्टिव विरोध और समर्थन भाजपा की रणनीति है                

बंगाल, बिहार, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश और अब महाराष्ट्र में एक हफ्ते में हुई रेप की घटनाओं के बाद यदि विश्लेषण करें तो मालूम होगा कि त्वरित कार्रवाई वहीं हुई जहां जनता ने दबाव बनाया। बंगाल को छोड़कर सभी प्रदेश भाजपा शासित हैं या फिर वहाँ भाजपा समर्थित सरकारें हैं। जब-जब भाजपा शासित प्रदेशों में घटनाएं हुईं, वहाँ सरकार किसी तरह का कोई कार्रवाई न कर अपराधी को संरक्षित किया है। सवाल यह उठता है कि क्या भाजपा की मानसिकता अपराधी या गुनहगार को बचाकर ऐसे अपराधों को सीधे-सीधे बढ़ावा देना नहीं है?

बुद्धदेव भट्टाचार्य : मैंने उन्हें हरदम सर्वहारा की कसौटी पर जीते देखा

पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य के नहीं रहने पर मीडिया में लोग अपने-अपने तरीके श्रद्धांजलि दे रहे हैं। वे पक्के कम्युनिस्ट थे, विचार से भी और कर्म से भी। उनके कुछ संस्मरण यहाँ साझा कर रहे हैं लेखक डॉ सुरेश खैरनार

आरएसएस का इतिहास देशप्रेम का नहीं है सभापति महोदय..

राज्यसभा संसद में सभापति जगदीप धनखड़ ने सांसद रामजीलाल सुमन द्वारा आरएसएस का नाम लेने पर आपत्ति दर्ज कराते हुए आरएसएस को देशसेवा करने वाली ईकाई कहा। चूंकि धनखड़ महोदय खुद आरएसएस से तैयार हुए हैं, ऐसे में उसकी तारीफ करना उनका फर्ज बनता है जबकि महात्मा गांधी की हत्या से लेकर देश में हुए अनेक दंगों में उसकी क्या भूमिका रही है सभी जानते हैं।

काँख ढँकने के फेरे में पड़े तो इंकलाब ज़िंदाबाद कैसे कहोगे पार्टनर !

दरअसल विरोध जब चिढ़ौनी बन जाए या बना दिया जाए तो विकल्प की तलाश भटक रही आत्मा बन जाती है। सत्ता की क्षमता का...

टॉवर ट्री

जनार्दन नासपिटा टॉवर जो करावे सो कम। बेटा नौ बजे से ही टॉवर ट्री पर जमा हुआ है। इंजीनियरिंग की पढ़ाई न हुई, तपस्या हो...

झूठे देवत्व को फेंककर मनुष्यता का अधिकार लेना ही पिछड़ा साहित्य का आधार होगा !

मुझे बहुत सी चीजें विचलित करती हैं । इधर बीच जब पिछड़ों के साहित्य की सोच आगे बढ़ी तो रेशमा-चूहरमल की कहानी ने विचलित...

प्रेमचंद की तरह ओमप्रकाश वाल्मीकि भी अंत में चमार-विरोधी हो गए थे

ओमप्रकाश वाल्मीकि की ‘शवयात्रा’ कहानी की आलोचना ‘शवयात्रा’ ओमप्रकाश वाल्मीकि की विवादास्पद कहानी है। अधिकांश दलित आलोचक इस कहानी को प्रेमचन्द की ‘कफन’ कहानी की...

इस दौर के हिसाब से संघर्ष का तरीका विकसित करना होगा

मीडिया के वर्चस्व ने विरोध की राजनीति में एक दूसरे को बेनकाब करने के माहौल को जरूर पैदा कर दिया है लेकिन फिर भी लोग इस बात को नहीं पकड़ पा रहे हैं कि चैनल झूठ बोल रहे हैं या लफ्फाजी कर रहे हैं. दूसरे, नेता तो दिखाई पड़ते हैं लेकिन वे जिन सरमायेदारों के लिए काम कर रहे हैं या लड़ रहे हैं, वे नहीं दिखते.

आज का युवा संस्कृताइजेशन का शिकार है

देखिये, यह स्थिति हमारे देश में सन 1947 के बाद बहुत तेजी से विकसित हुई. ऐसा नहीं है कि आज का यूथ केवल आज...