Sunday, July 7, 2024
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‘हिंदू’ और ‘हिंदुत्व’ के जाल में न फंसें बहुजन 

पिछले 10-15 साल से देश की सियासत में बड़ा राजनीतिक बदलाव होता दिख रहा है। बीजेपी लंबे समय से हार्ड हिंदुत्व की पॉलिटिक्स करती रही है, उसे इस राह पर चलने का सियासी फायदा भी मिला है। यही वजह है कि बीजेपी के हार्ड हिंदुत्व को काउंटर करने के लिए कांग्रेस ने सॉफ्ट हिंदुत्व की […]

पिछले 10-15 साल से देश की सियासत में बड़ा राजनीतिक बदलाव होता दिख रहा है। बीजेपी लंबे समय से हार्ड हिंदुत्व की पॉलिटिक्स करती रही है, उसे इस राह पर चलने का सियासी फायदा भी मिला है। यही वजह है कि बीजेपी के हार्ड हिंदुत्व को काउंटर करने के लिए कांग्रेस ने सॉफ्ट हिंदुत्व की तरफ कदम बढ़ा दिए हैं। 2024 का चुनाव हिंदुत्व के एजेंडे पर ही होने की उम्मीद है, लेकिन फर्क सॉफ्ट और हार्ड हिंदुत्व के बीच है।

देश की राजनीति में सत्तापक्ष से लेकर विपक्ष के तकरीबन सभी दल हिंदुत्व के एजेंडे पर अपने कदम बढ़ाते नजर आ रहे हैं। बस एक फर्क इतना है कि कोई हार्ड हिंदुत्व पर चल रहा तो कोई सॉफ्ट हिंदुत्व पर। वैचारिक दृष्टिकोण से कांग्रेस अपने हिंदू और हिंदुत्व को, भाजपा के हिंदू और हिंदुत्व से अलग बताती है, जबकि बीजेपी दोनों को एक ही मानती है। ऐसे में अब जैसे-जैसे 2024 के लिए सियासी तस्वीर साफ हो रही है, वैसे-वैसे तमाम दल हिंदुत्व को लेकर अपना-अपना एजेंडा सामने रख रहे हैं। बीजेपी अयोध्या में जहाँ राम मंदिर के उद्घाटन से उम्मीदें पाले हुए हैं तो वहीं राजस्थान से लेकर मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ तक हिंदुत्व को लेकर अलग-अलग रणनीति अपना रही है। ऐसे में सवाल उठता है कि ‘सॉफ्ट बनाम-हार्ड हिंदुत्व’ की सियासत में आखिर क्या फर्क है?

मोटे तौर पर हिंदू और हिंदुत्व में शाब्दिक समानता के चलते पर्यायवाची होने का बोध होता है, लेकिन दोनों शब्दों को अलग-अलग तरह से परिभाषित किया जाता है। कुछ लोग मानते हैं कि ‘हिंदू’ एक फारसी शब्द है, जो सिंधु से बना है। ईरानियों ने सिन्धु नदी के पूर्व में रहने वालों को ‘हिन्दू’ नाम दिया। सिंधु नदी के आसपास और उससे आगे भारतीय उपमहाद्वीप में रहने वाले लोगों को हिंदू मानते हैं। आर्य सिद्धांत और धर्म का अनुयायी हिंदू हैं । किंतु हिंदू और हिंदुत्व शब्दों के अर्थ अलग-अलग से लेते हैं। आज भी यह विवाद का विषय बना हुआ है।

यहाँ हिंदू और हिंदुत्व के बीच का अंतर समझने के लिए यह बात जरूरी है। यदि हिंदू को धर्म के नजर से देखें तो यह भारत का प्राचीन धर्म है, जिसमें बहुत सारे संप्रदाय हैं। संप्रदायों को मानने वाले व्यक्ति अपने को हिंदू कहते हैं। हिंदुत्वह शब्द, हिंदुओं के आचार-विचार, हिंदू होने के गुण, हिंदू धर्म के भाव से जुड़ा है, लेकिन हिंदुत्व क्या है? कुछ लोग तर्क देते हैं कि हिंदू एक जीवनशैली है, जो समावेशी है और वसुधैव कुटुंबकम पर आधारित है। हिंदू एक पहचान है, जीने का तरीका है।

वरिष्ठ पत्रकार विजय त्रिवेदी कहते हैं कि हिंदू को भौगोलिक नजरिए से देखा जाता है। हिमालय और हिंद महासागर के बीच की जमीन पर रह रहे लोगों को हिंदू कहा जाता है। यह एक भौगोलिक पहचान है और यह हिंदुस्तान में चलता है। यह किसी धर्म के बारे में नहीं बल्कि जमीन के बारे में है। आरएसएस भी मानता है कि हिंदुस्तान में रहने वाले सभी हिंदू हैं, जिनमें ईसाई, मुस्लिम, हिंदू, बौद्ध और सिख सभी शामिल हैं, लेकिन ऐसा है नहीं। विजय त्रिवेदी कहते हैं कि सावरकर की हिंदू परिभाषा के मुताबिक, हिन्दू वह हैं, जो भारत को अपनी पितृभूमि एवं पुण्यभूमि मानते हैं। इसका अर्थ यह है कि प्रत्येक व्यक्ति जो सिन्धु से समुद्र तक फैली भारत भूमि को साधिकार अपनी पितृभूमि और पुण्यभूमि मानता है, वह हिन्दू है। सावरकर की इस थ्योरी से मुस्लिम और ईसाई हिन्दू के दायरे से बाहर हो जाते हैं, क्योंकि उनका विश्वास हिंदू धर्म में नहीं है।

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आगे वह कहते हैं कि हिंदू, हिंदुत्व और हिंदुइज्म एक दूसरे के जुड़े हैं, लेकिन हिंदुत्व को जिस तरह राजनीति का एक औजार और सत्ता पाने का जरिया माना गया है, उसके चलते हिंदू और हिंदुत्व को अलग-अलग तरह से देखा जाता है। किंतु हिंदुत्व को लेकर संघ कुछ अलग ही मानता है। आरएसएस के सह-सरकार्यवाहक मनमोहन वैद्य ने इसी संबंध में 2019 में एक लेख में लिखा था कि ‘हिंदू या हिंदुत्व’ होना सभी भारतीयों की पहचान बन गया है। आरएसएस के संस्थापक हेडगेवार ने इस हिंदुत्व को सभी भारतीयों के बीच एकता की भावना को जगाने के लिए एक माध्यम बनाया। उन्हें उनकी जाति, क्षेत्र, धर्म और भाषा से ऊपर उठाकर एक-दूसरे से जोड़ा। संघ विचारक राकेश सिन्हा अपने एक लेख में कहते हैं कि हिंदू अस्तित्व की पहचान है कि आप अपनी आस्था से, जन्म से, मन से हिंदू हैं। लेकिन अपनी पहचान के प्रति सजग होना और उसके प्रति चेतना का विकास होना ‘हिंदुत्व’ है। इसके विपरीत भाजपा सिर्फ हिंदू धर्म से जुड़े प्रतीकों को लेकर नहीं चलती, बल्कि आक्रामक तरीके से हिंदुत्व के मुद्दे पर खड़ी नजर आती है। राम मंदिर के मुद्दे से लेकर मथुरा और काशी तक का बीजेपी न सिर्फ अपने भाषणों में जिक्र नहीं करती, बल्कि अपने घोषणा पत्र में भी शामिल करती है। विजय त्रिवेदी बताते हैं कि बीजेपी को दूसरी पार्टियों से अपने आपको अलग दिखाने के लिए हिंदुत्व के एजेंडे पर आक्रामक चलना उनकी मजबूरी थी, क्योंकि उस समय सभी दल मुस्लिम वोटों के लिए सेकुलर पालिटिक्स कर रहे थे। ऐसे में बीजेपी ने हिंदुत्व को एक राजनीतिक टूल के तौर पर इस्तेमाल किया, इसके लिए चाहे नार्थ में अयोध्या, मथुरा, काशी हो या फिर दक्षिण में राम सेतु।

कांग्रेस के हिंदुत्व को एक सॉफ्ट हिंदुत्व के रूप में जाना जा रहा है। कांग्रेस कई राज्यों में सॉफ्ट हिंदुत्व पर फोकस कर बीजेपी के सामने राजनीतिक चुनौतियां खड़ी कर रही है। गुजरात से कांग्रेस का शुरू हुआ सॉफ्ट हिंदुत्व का कारवां राज्य-दर-राज्य आगे बढ़ता जा रहा है। उदाहरणार्थ कांग्रेस 2017 के गुजरात विधानसभा चुनाव में सॉफ्ट हिंदुत्व का प्रयोग कर चुकी, जहां राहुल गांधी मंदिर-मंदिर जाकर माथा टेक रहे थे और पूजा-अर्चना कर रहे थे। यही नहीं खुद को जनेऊधारी ब्राह्मण भी बता रहे थे। राहुल गांधी से लेकर प्रियंका गांधी तक देश के अलग-अलग शहरों के मंदिर में पूजा-अर्चना करते नजर आते हैं। यूपी में प्रियंका गांधी ने प्रयागराज के हनुमान मंदिर से लेकर काशी विश्वनाथ मंदिर में दर्जन करती हुईं दिखीं। इस तरह बीजेपी से ज्यादा कांग्रेस हिंदुत्व की पैरौकार बनी हुई है। राहुल गांधी के सॉफ्ट हिंदुत्व की दिशा में कदम बढ़ाए जाने के बाद मध्य प्रदेश में कमलनाथ और छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल उसे और भी आगे बढ़ाते नजर आ रहे हैं। कमलनाथ ने पिछली बार हर गांव में गौशाला बनाने से लेकर राम गमन पथ बनवाने का काम किया। इस बार कमलनाथ ने रामनवमी पर भगवान राम का कथा वाचन, रामलीला व उनकी पूजा-अर्चना के साथ हनुमान जयंती पर सुंदरकांड, हनुमान चालीसा का पाठ कराने का काम किया। कमलनाथ गाहे-बगाहे खुद को हनुमान भक्त कहते हैं। उन्होंने हनुमान की मंदिर भी बनवाई है। मध्य प्रदेश का कांग्रेस दफ्तर भगवा रंग में रंगा भी नजर आता है। कर्नाटक में कांग्रेस का हिंदुत्व दांव सफल भी रहा है।

वरिष्ठ पत्रकार विजय त्रिवेदी कहते हैं कि हिंदुत्व की सियासत पर कांग्रेस और बीजेपी के बीच काफी अंतर है। बीजेपी खुलकर हिंदुत्व की सियासत करती है, तो कांग्रेस हिंदुत्व की राह पर चलती है, लेकिन उसे जाहिर करने से बचती है। बीजेपी हिंदुत्व के प्रतीक, मुद्दे और एजेंडे को लेकर सिर्फ चलती ही नहीं बल्कि आक्रामक तरीके से उठाती भी है। बीजेपी की पूरी सियासत हिंदुत्व के इर्द-गिर्द सिमटी हुई है। वो हिंदुत्व के एजेंडे पर कितना कामय रहती है, उस पर बहस हो सकती है, लेकिन उस तरह से कोई दूसरी पार्टी राजनीति नहीं करती है।

विजय त्रिवेदी कहते हैं कि कांग्रेस की मुस्लिम वोटों की मजबूरी है। यही वजह है कि कांग्रेस यह कहने का हिम्मत नहीं जुटा पाती है कि अयोध्या में बाबरी मस्जिद का ताला राजीव गांधी ने खुलवाया था। बीजेपी अयोध्या में बन रहे राम मंदिर का श्रेय लेने से भी गुरेज नहीं करती है, जबकि फैसला सु्प्रीम कोर्ट से आया है। बीजेपी के एजेंडे में मुस्लिम वोटर नहीं हैं, जबकि कांग्रेस मुस्लिमों के साथ भले ही न खड़ी हो, लेकिन उससे दूर भी नहीं जाना चाहती है। इसीलिए बीजेपी हार्ड और कांग्रेस सॉफ्ट हिंदुत्व की राजनीति करती है।

हालांकि, कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने जयपुर में हिंदू और हिंदुत्व पर बयान देते हुए कहा था महात्मा गांधी ‘हिंदू’ थे और नाथूराम गोडसे ‘हिंदुत्ववादी’ थे। यही हिंदू और हिंदुत्व के बीच का अंतर है। हिंदुत्व का हिंदू से कोई लेना-देना नहीं है। हिंदू सत्य को ढूंढता है और सबको साथ लेकर चलने की बात करता है। हिंदू मर जाए, कट जाए, पिस जाए, लेकिन सच के मार्ग से अलग नहीं होता। उसका रास्ता सत्याग्रह है। वे इन्हीं रीति-नीति, सामाजिक व्यवस्था, धर्म पर विश्वास और उसका पालन करता है। हिंदू धर्म इसी पर इतनी सदियों से टिका और प्रखर रहा, लेकिन हिंदुत्व सिर्फ राजनीतिक औजार और सत्ता पाने का जरिया है।

यहाँ यह भी सोचने की जरूरत है कि कांग्रेस को क्यों सॉफ्ट हिंदुत्व की ओर झुकने की जरूरत क्यों पड़ी? वरिष्ठ पत्रकारों का मानना है कि 2014 लोकसभा चुनाव के बाद से देश का राजनीतिक पैटर्न पूरी तरह से बदल गया है। देश में अब बहुसंख्यक (हिंदू) समाज केंद्रित राजनीति हो गई है और इस फॉर्मूले के जरिए बीजेपी लगातार चुनाव जीत रही है। कांग्रेस लंबे समय तक 15 फीसदी मुस्लिम वोटों पर फोकस राजनीति करती रही है और 20 से 25 फीसदी बहुसंख्यक समुदाय के वोटों को लेकर सत्ता में आती रही है, लेकिन नरेंद्र मोदी के आने के बाद यह नेरेटिव बदल गया है। यह भी कि बीजेपी ने कांग्रेस को मुस्लिम परस्त पार्टी के तौर पर स्थापित कर दिया है। इसी टैग को हटाने और अपनी छवि को बदलने के लिए कांग्रेस ने सॉफ्ट हिंदुत्व की राजनीति की तरफ कदम बढ़ाया है, ताकि बहुसंख्यक यानी हिंदू वोटों के बीच अपनी पैठ जमा सके। मुस्लिम वोट 2014 के बाद से अप्रासंगिक हो गया है। यही वजह है कि देश में कोई भी पार्टी मुस्लिमों के साथ उनके मुद्दों पर भी खड़े होने से परहेज कर रही है।

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यह बात अलग है कि देश में सिर्फ मुस्लिम वोटों के सहारे कुछ सीटें तो जीती जा सकती हैं, लेकिन सत्ता नहीं पाई जा सकती है। इस कारण बीजेपी खुलकर हिंदुत्व कार्ड खेल रही है और विपक्षी दलों पर मुस्लिम तुष्टीकरण का आरोप लगाती रही है। बीजेपी का हार्ड हिंदुत्व का उदाहरण देखें तो अयोध्या में राम मंदिर यानी हिंदू धार्मिक स्थल को सजाने और संवारने का श्रेय ले रही है। लव जिहाद करने वालों के खिलाफ सख्त कानून बना रखा है तो गोहत्या के लिए भी कड़ा कानून बीजेपी शासित राज्यों में है। बीजेपी नेता मुस्लिम प्रतीकों से दूरी बनाकर रखते हैं, न तो जालीदार टोपी लगाए नजर आते हैं और न ही दरगाहों पर माथा टेकते हुए दिखते हैं। बीजेपी अयोध्या, मथुरा और काशी के एजेंडे पर खुलकर अपनी बात रखती है।

यथोक्त के आलोक में यह कहना अतिश्योक्ति न होगा कि हिंदू और हिंदुत्व की बहस में पड़ने से पहले न तो भाजपा और न ही कांग्रेस ने ‘हिंदू’ शब्द के सच को जानने का प्रयास किया। यदि हिंदू शब्द के सच को ये राजनीतिक दल जानते हैं तो ये सब हिंदू और हिंदुत्व के बहाने आम जनता को मूर्ख बनाने का काम कर रहे हैं। अत: यहाँ इसकी नितांत आवश्यकता है कि पहले हिंदू शब्द के सच को जान लिया जाय।

हिंदू और हिंदुत्व पर बहस करना एक नकारात्मक बहस है, क्योंकि ‘इलाहाबाद हाई कोर्ट (March 20, 2018) के अनुसार ‘हिंदू’ नाम का कोई धर्म नही है… हिन्दू फ़ारसी का शब्द है। हिन्दू शब्द न तो वेद में है, न पुराण में, न उपनिषद में, न आरण्यक में, न रामायण में, न ही महाभारत में। स्वयं दयानन्द सरस्वती कबूल करते हैं कि यह मुगलों द्वारा दी गई गाली है। 1875 में ब्राह्मण दयानन्द सरस्वती ने आर्य समाज की स्थापना की, हिन्दू समाज की नहीं। अनपढ़ ब्राह्मण भी यह बात जानता है। ब्राह्मणों ने स्वयं को हिन्दू कभीं नहीं कहा। आज भी वे स्वयं को ब्राह्मण कहते हैं, लेकिन सभी शूद्रों को हिन्दू कहते हैं। जब शिवाजी हिन्दू थे और मुगलों के विरोध में लड़ रहे थे, तथाकथित हिन्दू धर्म के रक्षक थे, तब भी पूना के ब्राह्मणों ने उन्हें शूद्र कह राजतिलक से इंकार कर दिया था। घूस का लालच देकर ब्राह्मण गागाभट्ट को बनारस से बुलाया गया। हिंदू का सच, गगाभट्ट ने गागाभट्टी लिखा, उसमें उन्हें विदेशी राजपूतों का वंशज बताया तो गया लेकिन, राजतिलक के दौरान मंत्र पुराणों के ही पढ़े गए, वेदों के नहीं। शिवाजी को हिन्दू तब नहीं माना गया। ब्राह्मणों ने मुगलों से कहा, हम हिन्दू नहीं हैं, बल्कि तुम्हारी तरह ही विदेशी हैं, परिणामतः सारे हिंदुओं पर जज़िया लगाया गया, लेकिन ब्राह्मणों को मुक्त रखा गया। इसलिए बहुजनों को हिंदू और हिंदुत्व के जाल में फंसने की आवश्कता कतई नहीं है।

 

 

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