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ग्राउंड रिपोर्ट

मुकेश चंद्राकर : एक और युवा पत्रकार भ्रष्ट तंत्र की पोल खोलने पर मारा गया

गोदी मीडिया काल में ग्रामीण पत्रकारिता के मजबूत स्तंभ मुकेश चंद्राकर की हत्या सचमुच कष्टप्रद और चिंताजनक है। वर्ष 2014 के बाद अभिव्यक्ति को लेकर जिस तरह से पत्रकारों पर हमले बढ़े  हैं, वह सभी के सामने है। पत्रकारों पर हमले करवाना और उनकी हत्या करवा देना सत्ताधीशों के लिए बहुत सामान्य बात है। बस्तर जंक्शन के मुकेश चंद्राकर की हत्या निडर पत्रकारिता करने वालों की सुरक्षा को लेकर सवाल खड़ा करती है। इस देश में अब विधायिका, कार्यपालिका न्यायपालिका और चौथा स्तंभ कहे जाने वाले मीडिया पूरी तरह से फासीवाद के चपेट में है और इनका अस्तित्व नाममात्र का रह गया है। 

एक जनवरी की शाम से लापता मुकेश चंद्राकर की 3 जनवरी शाम शव सेप्टिक टैंक में पाया गया। मौके से यह खबर वरिष्ठ कमल शुक्ला ने रुंधे गले से यह खबर सुनाई।

 नए  साल की शाम लैपटॉप पर बैठने से पहले कुछ ताज़ी हवा लेने सिर्फ टी-शर्ट और शॉर्ट्स में जॉगिंग के लिए निकले थे, शहर के एक ठेकेदार ने उन्हें उठा लिया और मार कर अपने फार्म हाउस के सेप्टिक टैंक में डाल कर उसे सीमेंट से बंद कर दिया। तीन दिन तक उनके परिवारजनों और शुभचिंतकों द्वारा खोजे जाने के बाद 3 जनवरी की शाम उनका शव बरामद हुआ।

बस्तर जंक्शन के संपादक व रिपोर्टर मुकेश चंद्राकर साहसी, उर्जावान और सिस्टम की सच्चाई को सामने लाने वाले पत्रकार रहे हैं।

 युवा और अत्यंत धुनी, मुकेश खबरों को बनाने के लिए वे दूरदराज के इलाकों में जाकर खबरें लाते थे और छत्तीसगढ़ के एक जिला मुख्यालय, बीजापुर के एक कमरे में बैठकर उसे तैयार करते थे। उनकी खबरें सचमुच की खबरें हुआ  करती थीं।

आज की पत्रकारिता से हटकर, जैसा कि आज अधिकतर खबरें टेबल पर बैठकर कट पेस्ट कर बनाई जाती हैं। वे इधर-उधर की क्लिप्स उठाकर खबरें नहीं बनाते थे बल्कि मौके पर जाकर शूट करते और संबंधितों से सीधे बात करके संकलित और एकदम चुस्त संपादित कैप्सूल होती थी। वे बस्तर के घने जंगल में जाकर वहाँ रहने वाले आदिवासियों से सीधे इंटरव्यूज और बाइट लेते थे, जिनके बीच एसपीजी और ब्लैककैट सुरक्षा वाले नेता या अफसर जाने की सोच भी नहीं सकते। उतनी ही बेबाकी से प्रशासन से भी उसका पक्ष जानते थे। इस ताजगी की वजह उनकी प्रामाणिकता और स्वीकार्यता थी।

हत्या के पीछे का कारण 

जिस ठेकेदार के फार्म हाउस के सेप्टिक टैंक से यह लाश मिली है वह कोई 132 करोड़ रूपये का मालिक बताया जा रहा है और सबसे बड़ा ठेकेदार है। इनके पैसे की अय्याशी इस बात से सामने आई, जब इस ठेकेदार के भाई सुरेश और रीतेश चंद्राकर ने दारिद्रय बहुल बस्तर में अपने यहाँ की शादी में बारात घोड़ी या बीएमडब्लू से न लाकर हैलीकोप्टर लाई। निडर पत्रकार मुकेश चन्द्राकर ने इस शादी की खबर कुछ साल पहले कवर कर उस पर सवाल उठाए थे। यह खबर उनके पोर्टल बस्तर जंक्शन पर मिल जाएगी।

मुकेश चंद्राकर का वेब पोर्टल सचमुच में एक जंक्शन बना हुआ है। एक ऐसा जंक्शन जहां के सारे मार्ग बंद हैं।  माओवाद का हौवा दिखाकर लोकतंत्र की तरफ जाने वाला रास्ता ब्लॉक किया जा चुका है। कानून के राज की तरफ जाने वाली पटरियां उखाड़ी जा चुकी हैं। संविधान नाम की चिड़िया बस्तर से खदेड़ी जा चुकी है। अब सिर्फ एक तरफ की लाइन चालू है। ऐसे समय में आदिवासियों की लूट, उन पर अत्याचार, सरकारी संपदा की लूट और उसके खिलाफ आवाज उठाने का काम लगातार मुकेश चंद्राकर कर रहे थे। यही बात उन लोगों को नागवार गुजरी, जिनके खिलाफ डटकर यह लिख और बोल रहे थे।

जिस ठेकेदार के फ़ार्म हाउस से मुकेश चन्द्राकर मिले हैं, वह ऐसी ही फर्जी दमनकारी असंवैधानिक गुंडा वाहिनी सलवा जुडम का एसपीओ विशेष पुलिस अधिकारी रह चुका था और यह गिरोह क्या करता रहा होगा, इसकी जीती जागती मिसाल है, इसकी कमाई और बर्बरता। इस हत्यारे को आज भी पुलिस सुरक्षा मिली हुई है। यहाँ का एसपी इसके अस्तबल में बंधा है। खबर मिली है कि जिसके यहाँ मुकेश की लाश मिली वह #भाजपा का नेता था, पहले कांग्रेस का नेता भी रहा। वह एक बड़ा ठेकेदार है, जिस के फार्म हाउस के सेप्टिक टैंक से यह लाश मिली है।

दिल्ली, रायपुर में कितनी भी नूरा कुश्ती हो ले, बस्तर में मलाई में साझेदारी पूरी है। पत्रकार असुरक्षित हैं, ‘लोकजतन’ सम्मान से सम्मानित वरिष्ठ पत्रकार कमल शुक्ला जैसे पत्रकारों को शारीरिक हमलों का निशाना बनाया जाता रहा है, बाकी पत्रकार भी समय-समय पर विभीषिका झेलते रहे हैं। निहित स्वार्थ इतने गाढ़े हैं कि तिरंगी हो या दोरंगी, न पत्रकारों की सुरक्षा का क़ानून बनता है, न अडानी-अम्बानी के लिए आदिवासियों को रौंदा जाना रुक रहा है।

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