रामचंद्र माँझी बिहार की नाच परंपरा, जिसे लौंडा नाच भी कहा जाता है, के जीवित किंवदंती लेकिन गुमनाम कलाकार रहे थे। कल उन्होंने इस संसार को अलविदा कहा। भिखारी ठाकुर से प्रशिक्षित एवं उनके साथ काम कर चुके जीवित बचे कलाकारों में से रामचंद्र माँझी सबसे वरिष्ठ ऐसे कलाकार थे जो उम्र के 93वें वर्ष में भी लगातार भिखारी ठाकुर की नाच मंडली (अब भिखारी ठाकुर रंगमंडल) में भिखारी ठाकुर कृत हर नाटकों में मुख्य भूमिका निभाते रहे। वे रंगमंडल में स्त्री भूमिका करने के लिए प्रसिद्ध थे।
माँझी ने बिदेसिया नाटक में रखेलिन के किरदार को अपनी अभिनय, गायकी एवं नृत्य से एक ऐसी ऊँचाई प्रदान की जिसके आस-पास फटकना भी आज के रंगकर्मियों के लिए चुनौती है।
छपरा (बिहार) के एक छोटे से गाँव तज़ारपुर में जन्मे रामचन्द्र माँझी दलित समुदाय की दुसाध जाति से थे। रामचंद्र माँझी का जन्म का कोई लिखित प्रमाण नहीं है परंतु चुनाव पहचान पत्र के अनुसार उनका जन्म 1930 में हुआ था जबकि रामचंद्र माँझी अपनी यादों की गिनती से ख़ुद को 93 वर्ष का बताते थे। श्री माँझी 12 वर्ष की उम्र में भिखारी ठाकुर के नाच दल से जुड़े थे। परंतु वे बताते थे कि भिखारी ठाकुर से पहले उन्होंने गाँव के ही दीनानाथ माँझी की नाच मंडली में नाच का प्रशिक्षण लेना एवं नाचना-गाना शुरू कर दिया था।
बाद में उन्हें भिखारी ठाकुर की नाच पार्टी में शामिल होने का ऑफ़र मिला, जहाँ उन्होंने आंगिक-वाचिक अभिनय सहित धोबिया नाच, नेटुआ नाच, गज़ल, कव्वाली, निर्गुण, भजन, दादरा, खेमटा, कजरी, ठुमरी, पूर्वी, चइता गायन का गहन प्रशिक्षण प्राप्त किया। प्रशिक्षण के पश्चात भिखारी ठाकुर कृत सभी नाटकों में मुख्य कलाकार के रूप में भूमिका की। रामचंद्र माँझी जीवनपर्यंत भिखारी ठाकुर के नाटकों की देश-विदेश के विभिन्न समारोहों एवं गाँव के शादी-विवाह तथा त्योहारों में कई हज़ार प्रस्तुतियाँ कर चुके थे। उन्होंने मोतीलाल नेहरू, जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, जगजीवन राम, जयप्रकाश नारायण, लालू प्रसाद यादव, नितीश कुमार, राबड़ी देवी, शरद यादव, रामविलास पासवान तथा दारोगा राय जैसे देश के बड़े राजनेताओं के समक्ष भी अपनी प्रस्तुतियाँ दी थीं।
भिखारी ठाकुर के नाटकों में रामचंद्र माँझी की भूमिका
बिदेसिया: रखेलिन/प्यारी सुंदरी
गबरघिचोर: गलीज बहु
बेटी-बेचवा: हजामिन
पिया निसइल: रखेलिन
गंगा-स्नान: मलेछू बहु
पुत्र-बध: छोटकी
भाई-बिरोध: छोटकी
कृष्णलीला: यशोदा
ननद-भउजाई: भउजाई
बिधवा-बिलाप: बिधवा स्त्री
रामचंद्र माँझी को मिले सम्मान और पुरस्कार
रामचंद्र माँझी को लाइफ़ टाइम एचीवमेंट कला पुरस्कार (कला संस्कृति एवं युवा विभाग, बिहार सरकार) 2021 में, संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार 2017 में एवं पद्मश्री 2021में मिला। रामचंद्र माँझी भिखारी ठाकुर के साथ लम्बे समय तक काम कर चुके कलाकार थे। उन्होंने अपनी नाट्यकला से लगभग अस्सी वर्ष तक समाज की सेवा की।
जैनेन्द्र दोस्त जाने-माने संस्कृतिकर्मी और प्राध्यापक हैं।
इस लेख में आपने भिखरी ठाकुर के रंग मंच नाट्य अभिनय क्रिया को सिर्फ नाच में देखने की कोशिश की है। जिसके लिए एक अमर्यादित शब्द लौंडा नाच का प्रयोग किया है। जबकि आप जानते हैं कि लौंडा नाच कहने से किसी कलाकार की छवि धूमिल होती है। यह भिखारी ठाकुर और उनके कलाकारों का अपमान है। भारतेंदु युग में भी रंगशाला में स्त्रियों का रोल पुरुष ही अदा करते थे। क्या आप उसे भी लौंडा नाच कहने का साहस करेंगे? शकुंतला नाटक खेलने के लिए प्रताप नारायण मिश्र ने अपने पिता से आज्ञा लेकर अपनी मुझे मुड़वा ली थी। क्या आप उसे भी लौंडा नाच कहेंगे? सांस्कृतिक कार्यक्रमों में लड़कियां कृष्ण का रोल अदा करती हैं, आप इसे क्या कहेंगे? क्या रखैलिन, प्यारी सुंदर, गलीज बहू, छोटकी आदि का किरदार सिर्फ लौंडा नाच नाच देने नाटक हिट हो जाता था? नाटक हिट होता है, पात्र के अभिनय, संवाद, क्रियाशीलता, अंतर्वस्तु से। मूझे लगता है कि आपको जल्द लौंडा नाच की जगह एक दूसरा साफ-सुथरा मर्यादित शब्द खोज लेना चाहिए। बहरहाल माँझी जी ने भिखारी के नाट्यमंडली में से एक कलाकार थे। उनका जाना दु:खद है। विनम्र श्रद्धांजलि!