Saturday, July 27, 2024
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अयोध्या में ‘प्राण प्रतिष्ठा’ के बहाने भाजपा ने फूंका चुनावी बिगुल

लोकसभा 2024 के आम चुनावों के तारीख का ऐलान होने वाला ही है और उधर अयोध्या से भारतीय जनता पार्टी ने राम मंदिर में राम की मूर्ति में ‘प्राण प्रतिष्ठा’ कर चुनाव का बिगुल फूंक दिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्राण प्रतिष्ठा के उपरांत अपने भाषण में यह संकेत दिया कि यह आयोजन अंतिम […]

लोकसभा 2024 के आम चुनावों के तारीख का ऐलान होने वाला ही है और उधर अयोध्या से भारतीय जनता पार्टी ने राम मंदिर में राम की मूर्ति में ‘प्राण प्रतिष्ठा’ कर चुनाव का बिगुल फूंक दिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्राण प्रतिष्ठा के उपरांत अपने भाषण में यह संकेत दिया कि यह आयोजन अंतिम नहीं बल्कि अभी शुरुआत है।

फूलों से सजी अयोध्या, सांगीतिक प्रस्तुतियों से सराबोर अयोध्या, अपने आदि राजा राम के मंदिर में उनकी बालछवि प्रतिमा में ‘प्राण प्रतिष्ठा’ का इंतजार कर रही थी। उसका यह इंतजार 22 जनवरी को पूरा तो हुआ, लेकिन इस प्राण प्रतिष्ठा समारोह में अयोध्या के बाशिंदों की लगभग नामौजूदगी थी।

20 और 21 जनवरी की रात अयोध्या की ओर जाने वाली लगभग हर छोटी बड़ी सड़कों पर एक सन्नाटा सा पसरा था, जगह-जगह नाके थे, पहरेदारी थी, अवध के तमाम जिलों के लिए उनकी ‘अवधपुरी मम पुरी सुहावन’ तो थी, पर वो उसे देख न सके और अगर देख सके तो अपनी टीवी और मोबाइल स्क्रीन पर।

हमने इसी बीच अयोध्या की यात्रा की, इस दौरान हमने जो कुछ अयोध्या में देखा वह लंबे समय तक चले राम मंदिर आंदोलन की परिणति थी। भारत सरकार और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ व उसके आनुसांगिक संगठनों का एक साझा और विशाल आयोजन संपन्न तो हो गया लेकिन यह आयोजन अपने पीछे कई तरह के सवाल भी छोड़ गया।

सरकारी योजनाओं का प्रचार।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अयोध्या में 22 जनवरी को श्रीरामजन्मभूमि ट्रस्ट की ओर से राम मंदिर उद्घाटन में मुख्य अतिथि थे लेकिन प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से वे इस कार्यक्रम के आयोजक की भूमिका में देखे गए।

प्राण प्रतिष्ठा की तैयारियों में लगी सरकारी मशीनरी को देख कर साफ तौर पर कहा जा सकता है कि यह आयोजन सरकार द्वारा आयोजित था। इतना ही नहीं पीएम मोदी ने अपने भाषण में उद्घाटन समारोह में न शामिल होने वाले विपक्ष पर हमला बोल कर स्पष्ट कर दिया कि वे अतिथि नहीं, बल्कि आयोजक की भूमिका में मौजूद थे।

पीएम मोदी ने कहा, ‘मैं आज प्रभु श्रीराम से क्षमा याचना भी करता हूं। हमारे पुरुषार्थ, त्याग, तपस्या में कुछ तो कमी रह गई होगी कि हम इतनी सदियों तक यह कार्य कर नहीं पाए। आज वह कमी पूरी हुई है। मुझे विश्वास है कि प्रभु श्री राम आज हमें अवश्य क्षमा करेंगे।’

आगामी चुनाव का ख्याल, धर्मनिरपेक्षता का मखौल!

अयोध्या में राम मंदिर उद्घाटन की तैयारियां साल भर पहले से ही शुरू हो चुकी थीं। राम मंदिर निर्माण के साथ-साथ अयोध्या में सड़क चौड़ीकरण और कई विकास परियोजनाओं को शुरू किया गया। राम मंदिर तक जाने वाली मुख्य सड़कें भक्ति पथ, राम पथ, पंच कोसी और चौदह कोसी परिक्रमा मार्ग का चौड़ीकरण किया गया, जिसमें सैकड़ों घर और मंदिरों को तोड़ा गया। सड़कों के चौड़ीकरण से कई परिवार विस्थापित हो गए और कई मंदिरों का अस्तित्व मिट गया।

प्रधानमंत्री मोदी ने 05 अगस्त, 2020 में राम मंदिर का भूमिपूजन किया था, तभी से यह सवाल उठ रहा है कि बतौर प्रधानमंत्री किसी धार्मिक अनुष्ठान या पूजन में सम्मिलित होने की इजाजत भारतीय संविधान और सुप्रीम कोर्ट नहीं देता है लेकिन नरेंद्र मोदी, भूमि पूजन के बाद राम मंदिर के ‘प्राण प्रतिष्ठा’ कार्यक्रम में भी शामिल हुए। हालांकि, सनातन धर्म के चारों प्रमुख शंकराचार्यों समेत विपक्षी दलों के नेताओं ने प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम में आने से इनकार कर दिया।

शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानन्द सरस्वती ने यह कहते हुए आने से इनकार कर दिया कि ‘आधे-अधूरे मंदिर में भगवान की स्थापना न्यायोचित और धर्मसम्मत नहीं है।’

एक तरफ जहां शंकराचार्यों ने अधूरे राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा करने पर सवाल उठाया वहीं विपक्षी दलों के नेताओं ने इस धार्मिक आयोजन को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भाजपा का राजनीतिक कार्यक्रम कह कर आयोजन में शामिल होने से इनकार कर दिया। जबकि भाजपा विपक्ष पर राम विरोधी और धर्म विरोधी होने का आरोप लगाती रही।

प्राण प्रतिष्ठा समारोह में अनिल अंबानी, सचिन तेंदुलकर, अमिताभ बच्चन, शिल्पा शेट्टी, आलिया भट्ट, रणबीर कपूर और रजनीकांत जैसे बड़े कलाकार, उद्योगपति और संत शामिल हुए। वहीं सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस आदर्श गोयल भी इस समारोह में शामिल हुए। सन् 1992 में जब बाबरी मस्जिद गिराई गई थी, तब आदर्श गोयल ने बतौर वकील यूपी सरकार की तरफ़ से केस भी लड़ा था। गोयल के अलावा जस्टिस वी रामासुब्रमण्यम, अनिल दवे, विनीत सरन, ज्ञान सुधा मिश्रा भी मौजूद थीं।

प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में न्यायपालिका का आभार व्यक्त करते हुए कहा, ‘संविधान के अस्तित्व में आने के बाद भी दशकों बाद तक प्रभु श्रीराम के अस्तित्व को लेकर कानूनी लड़ाई चली। मैं आभार व्यक्त करूंगा भारत के न्यायपालिका का जिसने न्याय की लाज रख ली।’

अयोध्या के रास्तों पर बैरिकेट

वरिष्ठ पत्रकार कृष्ण प्रताप सिंह इस आयोजन को धर्मसत्ता और राजसत्ता के गठजोड़ के रूप में देखते हैं। वे कहते हैं, ‘ये लोग इसे सिर्फ हिंदुओं का नहीं बल्कि इस राष्ट्र का सबसे बड़ा त्योहार बनाना चाहते हैं। 26 जनवरी की कोई खबर किसी अखबार में नहीं छप रही है, ऐसे में यदि भाजपा आगामी लोकसभा जीत कर आती है तो 22 जनवरी ‘हिंदू राष्ट्र’ का सबसे बड़ा त्योहार होगा। अबतक भारतीय राजनीति में यह था कि धार्मिक स्थलों पर प्रधानमंत्री तिरंगा उतार कर जाते थे लेकिन अब भेड़िया खोल से बाहर आ चुका है। अब दबे-ढके वाली लड़ाई नहीं है। यह राजसत्ता और धर्म सत्ता का एक होना है और इसका अनर्थ बहुत दिन तक देश झेलेगा। यह कोई एक दो पीढ़ी का मामला नहीं है।’

वे आगे कहते हैं, ‘यदि ये 2024 का चुनाव जीत कर आते हैं, 26 जनवरी, 22 जनवरी हो जाएगा और 15 अगस्त, 05 अगस्त हो जाएगा। वरना क्यों आधे अधूरे मंदिर में मूर्ति स्थापित की जाती?’

राजनीतिक जानकारों की मानें तो 2024 लोकसभा चुनाव से पहले राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम भाजपा के प्लान का हिस्सा था और भाजपा ने अयोध्या से चुनाव का बिगुल फूंक दिया है।

विभिन्न राज्यों से अयोध्या पहुँचे तीर्थयात्री।

जनमोर्चा अखबार की संपादक सुमन गुप्ता कहती हैं, ‘आज की तारीख में देखा जाय तो 2024 चुनाव पर इस कार्यक्रम का पूरा का पूरा प्रभाव पड़ेगा। लोगों ने पूरी तरह मान लिया है कि भाजपा एक हिंदू धार्मिक पार्टी है और उसने मंदिर बना दिया है। अभी फिलहाल सबकुछ एक तरफा है, दूसरी तरफ कोई सक्रियता नहीं है।’

अयोध्यावासियों को कार्यक्रम में शामिल न करने के सवाल पर सुमन गुप्ता कहती हैं, ‘अयोध्या के आम लोग कार्यक्रम में शामिल नहीं हो सके यह कोई बड़ा मुद्दा नहीं है क्योंकि वे रोज मंदिर नहीं जाते हैं बल्कि जो बाहर से आते हैं उन्हें वे लोग दर्शन कराते हैं। आम लोगों के लिए एक अवसर मिल रहा है। उन्हें लग रहा है बाहर से लोग आएंगे उनका व्यापार फले-फूलेगा। उन्हें कार्यक्रम में बतौर अतिथि नहीं शामिल किया गया यह बस कुछ समय की ही बात थी।’

आर्टिफिशियल त्योहार गढ़ने की कोशिश

अयोध्या में प्राण प्रतिष्ठा समारोह को भव्य और अद्वितीय बनाने के लिए सरकार और हिंदुत्ववादी संगठनों की ओर से अनेकों प्रयास किए गए। आम लोगों से अयोध्या न आने की अपील पीएम मोदी पहले ही कर चुके थे और 20 तारीख से अयोध्या की सीमाओं को सील कर दिया गया था। इसके अलावा अयोध्यावासियों को सूचना जारी कर घरों में रहने के लिए निर्देशित कर दिया गया था। इस आयोजन की तैयारी ही इस आयोजन का भाजपा और आरएसएस के लिए क्या महत्व है इसका संदेश दे रहे थे। 22 जनवरी को अयोध्या में हिंदुत्ववादी संगठन के कार्यकर्ता, फोर्स, वीआईपी और पत्रकार नजर आ रहे थे। इसके अलावा सैकड़ों टन फूल, हजारों बड़ी होर्डिंग्स, कलरफुल लाइट्स, चमचमाती सड़कें, चारों तरफ नृत्य और गीत-संगीत सुनाई पड़ रहे थे।

भारतीय जनता पार्टी और हिंदुत्ववादी संगठन प्राण प्रतिष्ठा आयोजन की महीने भर पहले से ही तैयारियों में लग गए थे। प्राण प्रतिष्ठा समारोह से पहले उत्तर प्रदेश के कई जिलों में आरएसएस, विश्व हिंदू परिषद, बजरंग दल और भाजपा के कार्यकर्ता ‘पूजित अक्षत’ घर-घर बांट कर 22 जनवरी का निमंत्रण लोगों को दे रहे थे और उस दिन घर को साफ कर दीया जलाने की अपील कर रहे थे। वहीं प्राण प्रतिष्ठा से पहले आरएसएस कार्यकर्ताओं ने चित्रकूट से अयोध्या तक एक चरण पादुका लेकर रथ यात्रा निकाली जिसमें रथ कई जगह रुका और जिस रास्ते से यह यात्रा गुजर रही थी वहां भारी भीड़ जुट रही थी। लगभग बाजारों और शहरों में लोग सांप्रदायिक नारे लगा रहे थे। महिलायें पैसा चढ़ा रही थीं, सुरक्षा के लिए रथ पर बैठी महिला पुलिस अधिकारी लोगों को फूल वितरित कर रही थीं।

इसी तरह हिंदुत्ववादी संगठनों ने प्राण प्रतिष्ठा आयोजन का बाजारों में LED लगा कर लाइव दिखाया। उसके बाद अयोध्या से बाहर जगह-जगह डीजे पर सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने वाले गाने बजाते हुए आरएसएस व भाजपा के कार्यकर्ता अक्रामक छवि वाले बजरंग बली का चटक भगवा झंडा लहराते हुए रैलियां निकाली। इसी तरह घरों पर भगवा झंडे लगाए गए, शाम होते ही घरों के बाहर दिए जलाए गए। बाजारों में मुस्लिमों ने अपनी दुकानें बंद रखीं और कुछ जगहों से झड़प की खबरें भी आईं। लखनऊ में मुख्यमंत्री आवास से कुछ दूर डीजे पर अभद्र गाना बजाया जा रहा था, सोशल मीडिया पर वीडियो वायरल होने के बाद तीन लोगों को पुलिस ने गिरफ्तार कर जेल भेज दिया।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 30 दिसंबर को अपील करते हुए कहा कि जिन्हें निमंत्रण मिला है वही अयोध्या आएं। लोग अपने घरों में दीप जलाएं और दिवाली मनाएं। पीएम मोदी ने राम मंदिर पर दिए अपने भाषण में कहा, ‘साथियों आज गांव-गांव में एक साथ कीर्तन हो रहे हैं। आज मंदिरों में उत्सव हो रहे हैं। स्वच्छता अभियान चलाए जा रहे हैं। पूरा देश आज दीपावली मना रहा है। आज शाम घर-घर राम ज्योति प्रज्वलित करने की तैयारी है।’

प्राण प्रतिष्ठा से पहले सफाई करती महिला कर्मी।

माना जाता है 14 वर्ष के वनवास के बाद भगवान राम के अयोध्या लौटने पर दीपावली मनाई जाती है। पीएम मोदी और हिंदुत्ववादी संगठनों ने 22 जनवरी के आयोजन को एक त्योहार के उत्सव में बदलने की कोशिश की। संभावना जताई जा रही है कि आने वाले दिनों में भाजपा और आरएसएस की ओर से 22 जनवरी को आयोजन किया जाएगा। ताकि इस उपलब्धि को जनता के बीच लंबे समय तक कायम रखा जा सके।

समाजवादी पार्टी से जुड़े एक वरिष्ठ नेता और पूर्व विधायक जय शंकर पांडे कहते हैं कि ‘शुरुआती लोकसभा चुनावों में मंदिर मुद्दा जनसंघ के एजेंडे में शामिल नहीं था और नब्बे के दशक के आसपास जब मंदिर निर्माण के लिए आम सहमति बन रही थी तो आरएसएस और विश्व हिन्दू परिषद ने अपने बड़े राजनीतिक एजेंडे हेतु समझौते को मानने से इंकार कर दिया था।’

इतिहासकार हेरंब चतुर्वेदी अयोध्या में हुए आयोजन को संविधान का उल्लंघन मानते हैं। वे कहते हैं, ‘हमारा राम हमारे साथ त्रेता से है। घनघोर दक्षिणपंथी लेखक पंडित श्रीनारायण चतुर्वेदी की एक पुस्तक है ‘नागर शैली के हिंदू मंदिर’ उसमें भी स्पष्ट होता है कि बिना शिखर के कोई मंदिर पूर्ण नहीं होता है गर्भ गृह से शिखर तक एक एलाइनमेंट होता है। उस एलाइनमेंट के पूरे हुए बिना न प्राण प्रतिष्ठा संभव है न ही पूजा संभव है। 90 डिग्री के कोण पर कौन पूजा करता है लेकिन मोदी ने किया।’

वे आगे कहते हैं, ‘राजसत्ता को धर्म सत्ता से कभी कोई समझौता नहीं करना चाहिए। पूरे मध्य काल में चाहे वे दिल्ली के सुल्तान हों या बाद के मुगल बादशाह हों उन्होंने कभी उलेमा या धर्माधिकारी वर्ग को प्रश्रय नहीं दिया। क्या वे मूर्ख थे? क्या वो धर्म का राज्य था? इस समय तो धर्म का राज्य है। बाजपेयी ने कहा था ‘गाँधीवादी सोशलिज़्म’, आज आप (नरेंद्र मोदी) कहां ले गए? क्या प्रधानमंत्री का काम ग्यारह दिन उपवास करना और मंदिर-मंदिर भटकना है? तो धर्माचार्य या शंकराचार्य हो जाएं तब हमें कोई दिक्कत नहीं है। अगर आधुनिक काल में संविधान के अनुरूप नहीं चल रहे हैं उसके प्रावधानों का सुनिश्चित उल्लंघन कर रहे हैं तो संविधान में आपकी आस्था नहीं है। संविधान में आस्था से अभिप्राय मेरा यह है कि आपकी डेमोक्रेसी में आस्था नहीं है।’

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