दिल्ली से 9 घंटे पेरिस और फिर 16 घंटे का उबाऊ वक्त चार्ल्स डी गॉल एयरपोर्ट पर बिताने के बाद 11.30 घंटे तक साओ पाउलो का सफर अत्यंत थका देने वाला था, पर ब्राजील के इस बेहद बड़े शहर में उतरकर नीरसता जैसे गायब हो गई। एयरपोर्ट पर एक्यूप्रेशर मसाज करने वाले काउन्टर है और मैंने यह सोचा, मुझे भी यह काम करवा लेना चाहिए क्योंकि इसके अभाव में मेरी कमर का बुरा हाल हो जायेगा और यहां भी 7 घंटे का आराम और कम से कम 4 घंटे की आगे की यात्रा थी। एक्यूप्रेशर करने वाली महिलाऐं बहुत बेहतरीन तरीके से काम करती हैं और आप अगले 7-8 घंटे के लिए लगभग फिट और थकान गायब।
एयरोसुर एयरलाइन्स का नाम पहली बार सुना था। पता चला कि यह बोलिविया की प्राइवेट एयरलाइन्स है। 3 बजे पता चला, फ्लाइट लेट है। बोर्डिंग कार्ड हाथ से बनाकर दिये जाते हैं तो एयरलाइन्स की आर्थिक दयनीयता का पता चल जाता है।
करीब 4 बजे एयरोसुर का एक पुराना जहाज दिखाई देता है और हमलोग बोर्डिंग करते हैं। जहाज में लगभग 50 लोग हैं और यह पूरा खाली दिखाई देता है। इसमें लगभग 4 एयर होस्टेस हैं जिनके चेहरे से उनकी युवावस्था का अंदाज लग जाता है। लगभग 16-17 वर्ष की इन ‘लकड़ी’ एयर होस्टेस को अत्यन्त टाइट कपड़े पहनाये गये हैं और मिनी स्कर्ट के साथ, ऐसा लगता है कि एयर लाइन्स इनकी सेक्सुएल्टी को बेचकर अपना धंधा करना चाहती है। हालांकि आज के युग में ऐसा संभव नहीं है। सारा एनाउन्समेंट एस्पीयोनल में होता है। न इनको अंग्रेजी आती है। न ये कोशिश करती हैं। ये आपस में खूब मजाक करती हैं और लोगों से भी खूब बातें करती हैं। खाने के नाम पर पैक्ट फूड थमाकर इनका काम पूरा हो जाता है। पता चलता है कि कम्पीटिशन बहुत है। करीब 3 और प्राइवेट एयर लाइन्स बोलिविया में हैं जो यात्रियों की तलाश में हैं।
हम साढ़े पाँच बजे सांताक्रूज पहुंचते हैं और हवाई अड्डे पर हमें लेने के लिए कोई साथी पहुंचा है।
साताक्रूंज हवाई अड्डे से हमारे होटल कॉटेज तक का सफर करीब 1 घंटे का है। सांताक्रूज बोलिविया के सबसे बड़े शहरों में है जिसकी आबादी करीब 20 लाख बताई जाती है। लापाज बोलिविया की राजधानी है जो, यहां से करीब 550 किलोमीटर दूर है। यहां का तीसरा बड़ा शहर कोचाबाम्बा है जो करीब 450 किमी दूर है। जहां सांताक्रूज का मौसम बेहद गर्म है वहीं लापाज में बर्फ गिरी हुई है।
सांताक्रूज बोलिविया के सबसे सशक्त इलाकों में है। यहां लोगों के पास पैसा है और बड़े किसानों के पास 5000 से 10000 हेक्टेयर तक जमीन है। ये लोग ही बोलिविया की राजनीति और व्यापार को नियंत्रित करते हैं। बड़े किसान खेत में खाद और पेस्ट के लिए निजी हैलीकाप्टरों का इस्तेमाल करते हैं। लेकिन इन बड़ी-बड़ी बातों के पीछे छिपी है कड़वी हकीकत। बोलिविया के भारतीय आदिवासी और मूल निवासियों की हालत खराब है। न खाने को अन्न, न पहनने को वस्त्र और न रहने की जगह।
सांताक्रूज शहर एक आधुनिक शहर है जहां नाइट क्लब है, मॉल है, बार है और छोटे कपड़ों वाली लड़कियां भी हैं। कपड़ों के मामले में लातिनी अमेरिका यूरोप से भी आगे है। शायद कम कपड़े पहनना यहां लड़कियों की मजबूरी है अन्यथा वे मार्केटिंग नहीं कर सकती हैं, क्योंकि मैं उसे स्वच्छंदता और स्वतंत्रता से जोड़कर नहीं देखता।
सांताक्रूज की गलियों में भीड़ होती है। भाषा स्पानी है और सड़कें सीमेन्टेड हैं। यहां बहुमंजिली इमारतें बहुत ही कम हैं और शहर में मिनी बसें चलती हैं। बाकी टैक्सियों की भरमार है। सांताक्रूज की हैण्डीकाफ्ट वस्तुएं बहुत प्रसिद्ध हैं।
बोलिविया में अमेरिकी डॉलर की धमाल है। यहां हर स्थान पर लोग स्थानीय बोलिवियनों की जगह डॉलर लेना पसंद करते हैं। दुकानों में अधिकांश माल अमेरिका, ब्राजील और अर्जेन्टीना का है। डॉलर इकॉनमी ने बोलिवियनों को कहीं का नहीं छोड़ा। हालांकि 1 डॉलर महज 8 बोलिवियनों के बराबर है।
बहुत से देशों के लोग सांताक्रूज आकर बस गये। मेरी मुलाकात ‘अलीबाबा’ नामक रेस्टोरेंट में एक मुस्लिम महिला से हुई जो ईरान से थी और उसके मां बाप लॉस ऐंजिल्स में बस गये। करीब 1-1/2 वर्ष पूर्व उसके पिता ने रेस्टोरेन्ट सांताक्रूज में खोला और आज उनकी बेटी इसको चला रही है।
खूबसूरत-सी यह महिला अमेरिकन अंग्रेजी में धाराप्रवाह बात कर रही है। हालांकि यहां के लिए पैदल अंग्रेजी चाहिए क्योंकि अंग्रेजी भाषी यहां न के बराबर आते हैं। वह लगातार अपने कर्मचारियों को डांटती और खुलकर धूम्रपान करती हमें यह बताती है कि यह जगह अच्छी नहीं है। अपनी जेब में 50 बोलिवियनों से ज्यादा मत रखना। अपनी सभी चीजें जैसे कैश, मोबाइल, पासपोर्ट इत्यादि संभाल कर रखो, यहां बहुत लुटेरे हैं। सांताक्रूज के विषय में यह विख्यात है कि यहां सैलानियों के साथ दिन में भी लूट-पाट हो जाती है। इस महिला के सुझावों का मैं धन्यवाद करता हूं और पूछता हूं कि वह ईरान से यहां कैसे तो वह बताती है कि मुझे स्टेट्स ही अच्छा लगता है। मैंने उसके रहन-सहन से अंदाज लगा लिया कि कैद महिलाओं को जब आजाद हवा में साँस लेने का मौका मिलता है तो उनको आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता।
दूसरे दिन हम आगे बढ़े
आज सुबह उठकर 8 बजे हमलोग क्वात्रोकन्यादास नामक कस्बे में जा रहे हैं। यहां ग्रामीण समुदाय के बीच में रेडियो प्रोग्राम के जरिए उनकी समस्याओं पर बात होनी है। लगभग 4 घंटे में 150 किमी का सफर तय होता है। रास्ते में पता चलता है बोलिविया के लैण्डस्कैप और कैक्टस के 7-8 फीट ऊंचे पेड़ भी आश्चर्य से भर देने वाले हैं। मौसम में गर्मी है। एशियाई लोगों की भांति लातिन अमेरिकी लोग भी बहुत बातूनी होते हैं। दस मिनट के लिए माइक हाथ में दे दो तो आधे घंटे से पहले खत्म नहीं होते। शायद ये हमारी समस्या है कि सारी बातें एक ही साँस में खत्म कर देना चाहते हैं।
लगभग 70 लोग एक टैंट के नीचे बैठे हैं। जमीन के सवाल पर बात होती है। क्वात्रो के मेयर, सांसद और पत्रकार लोग आम जनता से मुखातिब हैं। पुरुष लोग विदेशी बैंकों की बात कर रहे हैं तो महिलायें जमीन पर अपनी आजादी की। एक किसान महिला ने तो यहाँ तक कह दिया कि यह राष्ट्रपति बेकार का आदमी है जो विदेशी बैंकों और कम्पनियों के इशारे पर चल रहा है। स्थानीय मेयर बायोडायवर्सिटी और जंगलों की बात करते हैं। बोलिविया के वन मंत्री कहते हैं कि हमें जंगलों को बचाना होगा। किसी भी कृषि सुधार से पहले हमें जंगलों की सुरक्षा करनी होगी। वनमंत्री के इस बयान से वहां की महिलाएं गुस्सा करने लगीं। वनों का विनाश छोटे किसान नहीं, बड़ी-बड़ी कंपनियां कर रही हैं। उन्होंने कहा ये बातें विश्वबैंक और अन्य अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों के इशारे पर हो रही है।
लेवेडेज ईशाबेल बोलिविया में पैदा हुईं और लॉं करने के बाद उन्हें विश्वबैंक में काम मिल गया। आज वह दक्षिण एशिया में विश्वबैंक भूमि नीति की प्रमुख हैं। वह कहती हैं कि हर बात के लिए विश्वबैंक को घसीटना टीक नहीं ‘मैं भी समाजवाद की प्रशंसक हूं और चे की चाहने वाली, लेकिन यह कहना कि बैंक केवल आज जनविरोधी नीतियों को बढ़ा रहा है, गलत है।’
क्वात्रो कन्यादास का यह कार्यक्रम कुछ बोर भी हो गया है क्योंकि बहुत लंबा खिंच गया है। इसका स्थानीय समुदाय में सीधा प्रसारण हो रहा है। हमलोग भी मेयर और सांसदों का लंबा बयान सुनते-सुनते उकता गये हैं। ऊपर से अनुवादकों का बेहूदा अंग्रेजी से यह अंदाजा लगाना आसान है कि हमारी तरह यहां भी अंग्रेजी का स्थानीयकरण हो गया।
रास्ते में आते वक्त किसानों के हजारों एकड़ खेतों के बीच हेलीकाफ्टरों का प्रयोग देखा। दूर करीब 2 किमी पर गाड़ियों का काफिला रुक गया। खोमचेवाले, पानी बेचनेवाले, फलवाले सभी अपना सामान आपके मुँह से लगा रहे हैं। गर्मी बहुत है और ट्रैफिक जाम। खबर आती है कि ट्रेन पुल से गुजर रही है, इसलिए रास्ता रोका गया है। छोटा-सा पुल, जिसके ऊपर केवल एक गाड़ी पास हो सकती है, ट्रेन के लिए भी प्रयुक्त होता है और पुल को पार करने में भारी मशक्कत करनी पड़ती है। कई बार 45 मिनट तक का इंतजार करना पड़ता है, क्योंकि जब एक तरफ का ट्रेफिक क्लीयर होता है तभी दूसरी गाड़ियों को इजाजत मिलती है। पुलिस के लिए यहां कमाई का अच्छा साधन है। वे हर जगह पर गाड़ियां रोकते हैं। लाइसेंस देखते हैं और पूरे नखरों में होते हैं।
सांताक्रूज के बाजार छोटी गलियों वाले हैं, परन्तु कूल मिलाकर बहुत बुरी हालत में नहीं हैं। यह कहा जा सकता है कि भारत के कई बड़े शहरों से अच्छे बाजार हैं। यहां के बाजारों पर अमेरिकी कंपनियों का पूर्ण वर्चस्व है। लोग पानी की जगह पेप्सी पीते हैं। टेलिविजन पर अमेरिकी प्रोग्राम हैं और कोई सेन्सरशिप नहीं। अतः सेक्स बिकता है। बोलिविया अन्य ऐशियाई और लैटिन अमेरिकी देशों की तरह अपवाद नहीं है, क्योंकि टेलिविजन की सांस्कृतिक नंगई ने यहां के युवाओं को लगभग द्विग्भ्रमित कर दिया है। बाजारों पर लड़कियों का कब्जा है। वे मार्केटिंग में माहिर हैं और आपको कपड़े और अन्य सामानों को खरीदवाने के लिए पूर्णतया रिझाने को तैयार हैं। पुरुष लगभग नदारद। मार्केट में इम्पोर्टेड आइटम की भरमार है। हालांकि शहर के सेन्ट्रल स्क्वेयर में हैण्डीक्राफ्ट्स का आइटम है, क्योंकि सांताक्रूज का लकड़ी और जानवरों की खाल का सामान बहुत प्रसिद्ध है।
बोलीविया में संगठनों, राजनीतिक प्रतिनिधियों तथा महिलाओं को सुनता हूं तो ऐसा लगता है कि वे विदेशी निवेश चाहते हैं। थोड़ा-सा पढ़-लिख लेने के बाद वे अमेरिका या इगलैंड जाना चाहते हैं। कहीं पर भी चाहे वह यहां के राष्ट्रपति हों या अन्य नेतागण, देश में लोकतंत्र की बातें तो करते हैं लेकिन सैनिक शासन के विरुद्ध विद्रोह के नायक ‘चे’ को याद करने का वक्त किसी के पास नहीं है। मुझे अफसोस होता है कि बोलीविया अभी अपना एक नया संविधान बना रहा है, परंतु इसको बनाते वक्त 1966-67 के इतिहास को शायद याद नहीं करना चाहता। जब अमेरिका समर्थित फौजी तानाशाही ने ‘चे’ और उनके साथियों को दगाबाज किसानों के कारण पकड़ लिया और एक अनफेयर ट्रायल की भांति स्कूल के एक कमरे में रात को उन्हें भून दिया गया था। यह लोकतंत्र और समाजवाद के लिए संघर्षरत एक ऐसे व्यक्ति का खून था जिसने अन्तर्राष्ट्रीयवाद को बढ़ाया। जिसने क्यूबा से अपनी सत्ता को छोड़कर कांगो और फिर बोलिविया के घने जंगलों को चुना। हालांकि जंगलों में धक्का खाने से कुछ नहीं मिलता, परंतु जिन लोगों में जुनून होता है उनके लिए आराम और सत्ता बहुत छोटी चीजें हैं।
मेरा अफसोस बढ़ रहा था कि अचानक सिसेल से बात हुई। पता चला वह कोचाबाम्बा की रहने वाली है। मैनें उससे ‘चे’ का जिक्र छेड़ दिया तो उसने अपने हाथ में पहनी अपनी अंगूठी दिखाई। मैं खुशी से दंग था। अंगूठी में चे की तस्वीर थी और वह खुश थी कि मैं चे के विषय में उससे बात कर रहा था। उसने कहा कि बोलीविया की आजादी का जो सपना चे ने देखा था वह अधूरा है। उसने कहा हमें पूर्ण क्रांति की जरूरत है। बोलीविया बिना क्रांति के आजाद नहीं हो सकता। सिसेल और मैं ड्रिंक्स में बैठे करीब दो घंटे बातें करते रहे। एक सहयोगी अनुवादक के सहयोग से। वह लगातार कहती रही कि यहां औरतों को कोई अधिकार नहीं है और सरकारें लोकतंत्र लाना नहीं चाहती। यहां वेश्यावृत्ति बढ़ रहीं है और लूटपाट भी, क्योंकि लोगों के पास काम नहीं है।
जब आप बाहर किसी मुल्क में जाते हैं तभी जान पाते हैं कि आप घूमने गए हैं या ख़रीदारी करने
आज मैं, रोहिणी और उल्फा ने एक कार किराये पर लिया और समयपत की 150 किमी पहाड़ी यात्रा पर निकल पड़े। समयपत एक छोटा-सा कस्बा है। हालांकि यहां का जिला केन्द्र है लेकिन अपनी खूबसूरत पहाड़ियों के लिए मशहूर है। रास्ते में बड़े-बड़े पहाड़ हैं, जिनके टूटने के चेतावनी भरे संदेश भी यहाँ लिखे मिलते हैं। हमारी मित्र रोहिणी हर वक्त को कैमरे में कैद करने के लिए बेताब हैं। वह बैंगलोर से आईं हैं और और भारतीय संस्कृति की चेतनावाहक भी हैं। उनकी बिंदी और साड़ी लोगों के लिए कौतूहल है। कई लोग उन्हें कहते हैं बहुत सुंदर दिखाई दे रही हो। हमारी दूसरी मित्र उल्फा इण्डोनेशिया के बोगोर शहर से हैं। उनका पूरा शरीर ढका है और सर पर स्कार्फ है। इन दोनों महिलाओं की स्थिति का अंदाजा लगाने में दिक्कत नहीं होती। इस्लाम के नाम पर यहां महिलाओं में पर्दे और दयनीयता का ही ज्ञान है।
समयपत की चोटियों पर 2000 वर्ष ईसापूर्व की पुरानी संस्कृतियों के निशान हैं। इन खण्डहरों में एक सभ्यता दिखाई देती है और दूर-दूर से लोग इसे देखने आते हैं। यहां पर इन पहाड़ों से पत्थरों की विभिन्न आकृतियां निकालकर हाथ का काम किया जाता है। मैं एक दूकान में हूं जहां ऐसे पत्थर बिक रहे हैं। वह कहता है – यह पत्थर ’पाजिटिव है, आपको ठंढक प्रदान करते हैं। ‘सूर्य घड़ी है जो पत्थर पर बनाई गई है और जिससे सूरज के डाइरेक्शन का पता चलता है। पत्थर की मालायें हैं जिनके बारे में दूकान वाले अपनी-अपनी कहानियाँ या ज्योतिष बताते हैं।
यहां पर गाय के चमड़े का बहुत सामान मिलता है, बैग, हैण्डबैग। गाय, बैल और बछड़ों की खाल के अंदर बोतलें और अन्य कई प्रकार के वस्तुएँ बनाई गई हैं।
थोड़ी देर में हम एक छोटे-से प्राइवेट जंगल में जाते हैं। पक्षियों और झरनों का मजा लेते हुए वापस पहुंचते हैं। रोहिणी हर जगह फोटो खींच रही हैं और साथ में खूब शापिंग कर रही हैं। उनका इरादा कम समय में अधिक चीजें कवर करने का है। और अपने बच्चे और पोते के लिए खूब खरीदारी करने का भी है।
लेकिन क्या पर्यटन केवल वस्तुएँ खरीदने और फोटो खींचने तक सीमित है। क्या हम उस जगह की आबोहवा और लोगों से बात नहीं कर सकते!
क्या भारतीय अपनी संस्कृति के गुलाम या गंदे राजदूत हैं? मुझे यह बात बहुत दुखी करती है। हमलोग इतनी दूर आकर अपनी नैतिकता और महानता का गुणगान करते हैं। हमारे एक बुजुर्ग मित्र बहुत घूमते हैं और शायद भारत में कम और विदेशों में अधिक रहते हैं परंतु जितनी बार मैंने उनको देखा है निराशा और अफसोस होता है। ये मित्र खाने में कुछ भी नहीं छोड़ते। यदि पचास किस्म के आइटम है तो वे आराम से पचासों खाएंगे और फिर ब्लड प्रेशर और सुगर की गोलियां भी खा लेंगे। वे शराब या चाय नहीं पीते। बस जूस, दूध, कार्नफ्लेक्स खाते हैं। मतलब इनको खाते देख ऐसा लगता है कि इनके लिए कल नहीं है। यह आज और अभी सबकुछ समाप्त कर देना चाहते हैं।
एक दिन शाम का खाना हमें साथ में खाना था। अब वे सज्जन परेशान हो गये। मैंने पूछा ‘भाई साहब, खाना खाने चलना है? तो बोले, नहीं मैनें काफी खाना खाया है, आज नहीं।’ मतलब अपने जेब से एक चवन्नी भी खर्च नहीं करना है। खैर, वे झेंपकर मेरे साथ आये और हर होटल, रेस्टोरेंट में उन्होनें मुझे शर्मसार कर दिया। ‘नहीं, यह बहुत मंहगा है।’ बार-बार हर एक कीमत को रुपयों में तौलते और अपने शहर के ढाबों से तुलना करते। अन्ततः मैं उन्हें एक अरेबियन रेस्टोरेंट में ले गया यह कहते हुए कि आप चिंता न करें, लेकिन उन्होंने एक छोटा-सा सीक कबाब लिया और कोक पीकर अपना काम निपटा दिया। मतलब साफ था कि वे भारतीय समाजवाद और साम्यवाद के चैंपियन हैं जो ग्लोबलाइजेशन को गरियायेंगे और अमेरिकी साम्राज्यवाद की चर्चा करते नहीं थकते और भारतीय संस्कृति के वाहक हैं। ऐसा समाजवाद जो फ्री में मिले तो खूब खाओ और जेब से खर्च करना हो तो पानी पीकर सो जाओ। शायद ऐसे बेड़ा गर्क समाजवाद ने हमारी संस्कृति का भी नाश कर दिया है, जो निन्दनीय है।
ऐसे लोग भारत के बारे में दुनिया के सामने ऐसी छवि प्रस्तुत करते हैं कि यह एक पुरातनपंथी और भिखमंगा देश है। मुझे इसमें कोई शक नहीं कि हम लाख खामियों के बावजूद एक महान राष्ट्र हैं। हमारे यहां आत्मसात करने की ताकत है, क्योंकि हमारा युवा बदल रहा है। हम लोग भी खर्च कर सकते हैं, केवल दिखाने के लिए नहीं, अपितु दूसरों के खातिर भी।
शाम को मैं क्यूबन बार में गया। इरादा था खूब शराब पीने का और नाचने-गाने का। इतने दिन के आफिशियल बिजनेस के बाद शरीर को हिलाने की भी जरूरत महसूस हुई। क्यूबा पर अमेरिका ने भले ही 1960 में प्रतिबंध लगा दिया हो और भले ही हमारा बेइमान मीडिया उसको नकारता हो लेकिन हकीकत ये है कि पूँजिपतियों के गुलाम भी क्यूबा की शराब, वहां के नृत्य और सिगार के गुलाम हैं। यूरोप, अमेरिका और लातीनी अमेरिका में सभी जगह क्यूबा की अपनी शान है। फिदेल और चे का गुणगान करनेवालों की कोई कमी नहीं।
बार में डांस चल रहा है और सारे लोग रिदम में नाच कर रहे हैं। मैं एक 45 वर्षीय व्यक्ति को, जो अफ्रिका से है देखकर आश्चर्य में हूं कि किस प्रकार वह नाच टीम का नेतृत्व कर रहा है। आज मेरा इरादा मैक्सिको का ‘टकीला’ पीने का है। मेरे साथी यहां बहुत से हैं लेकिन दुखद यह है कि कोई एशियन यहां नहीं है क्योंकि हमलोग अपनी ‘अस्मिता’ के गुलाम हैं। खैर, मैं यहां के नृत्य का पूरा मजा लेता हूं। स्टावरी आज बहुत खुश है और वह मुझे कई पैग पिला चुका है। टकीला को पीने से पहले हर बार हमें नीबूं और नमक लेना होता है। यह स्थानीय परंपरा है। मेरी बगल में कोचाबाम्बा की सिसिला बैठी है। वह भी लगातार बीयर पिये जा रही है। सिसिला एक एक्टिविस्ट है। उसके पिता पत्रकार हैं। वह पढ़ाई के बाद अमेरिका जाना चाहती है। हम दोनों बहुत देर तक बातें करते हैं। अंत में वह मुझे डांस के लिए आमंत्रित करती है। मुझे नाचना नहीं आता परंतु वह कहती है ‘तुम अच्छा नाचते हो।’ मैं उससे कहता हूं –‘तुम लातीनी लोग कमाल के हो। कितने खूबसूरत और क्या नाच। जैसे पूरा शरीर जिमनास्ट का हो।’ मैं पूछता हूं सिसेल क्या तुम मुझे एक महीने में डांस सिखा सकती हो? वह बहुत हँसती है और वह कहती है ‘तुम यहां रहोगे तो अपने आप उस्ताद बन जाओगे। कई बार मुझे अफसोस होता है कि हम लोग क्यों नहीं अपने आम जीवन में इतने संगीत और नृत्यप्रिय बन पाये? क्यों हमें डांस सीखने के लिए एक बिरजू महाराज या संगीत स्कूल की आवश्यकता होती है? क्या हम एक बेहद नीरस और उबाऊ जिंदगी नहीं जीते हैं? जो सास-बहू और चाचा-चाची तक सिमट कर रह गई है।
लातिन अमेरिका के जीवन में नाच-गाने का बड़ा महत्व है और वाकई इनका डांस देखकर आप अंदाजा लगा सकते हैं कि हर चीज पैसे से खरीदी नहीं जा सकती। ये लोग नृत्य में वो आनंद ढूंढते हैं कि अपनी सारी समस्याओं को कुछ क्षण के लिए मानो भूल जाते हैं।
एक महिला है रूथ, जिनका 17 वर्ष का जीवन तमिलनाडु के कोडईकनाल में गुजरा। वह एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन की निदेशक हैं और अपनी बनावटी अमेरिकन अंग्रेजी के लिए मशहूर। कहीं पर भी किसी भारतीय को देखकर उनके चेहरे की प्रतिक्रिया का पता लगाना आसान हैं कि वे यह हम सभी को अत्यंत निम्न दृष्टि से देखती हैं। आजकल यह संयुक्त अधिकारों की बात करती हैं और पुरानी परंपराओं का गुणगान। इनका कहना है कि धार्मिक संगठनों को लोगों को जमीन देने का अधिकार होना चाहिए। इनका धर्म हमारे अधर्म के ऊपर नहीं चल सका क्योंकि संयुक्त परिवार संयुक्त जमीन या सभी संयुक्तों के पीछे भी आदमी होता है। व्यक्ति को मारकर संयुक्त नहीं बन सकता। संयुक्त मूलतः कबीलाई संस्कृति है जहां मतभेदों की गुंजाइश नहीं होती क्योंकि मतभेद तक की नौबत नहीं आती। मतभेद वालों को मौत दी जाती है। इन संयुक्त परंपराओं में औरत कहाँ है? इसका उत्तर रूथ नहीं दे पातीं।
हमारे साथी इन सभी संस्कृतियों को, जिनमें खुलापन है, नकारात्मक दृष्टि से देखते हैं। वे पश्चिम पर ‘सैक्स’ संस्कृति का आरोप मढ़ते हैं। लेकिन यह भूल जाते हैं कि कामसूत्र की जड़ हमारे ही देश में है। और यह भी कि यदि हम इतने ब्रह्मचारी हैं तो ‘चीन’ को भी पार करने का सपना कैसे पाल लेते।
वैसे जब भी भारतीय महिलाऐं ऐसे कार्यक्रमों में होती हैं तो संस्कृति का पूरा ठेका लेती हैं। फिर वह दूसरों के कपड़ों पर कमेन्ट करती हैं। किसी का नाम देखेंगी, उनके खान-पान, धूम्रपान, शराब, नाच, चरित्र सभी पर लंबे-चौड़े व्याख्यान दे देंगी परंतु यह मानने को तैयार नहीं होंगी कि खोट हमारे यहां कुछ ज्यादा है। अगर हम औरतों को इतना महान मानते हैं तो उन्हें देखकर स्टोव क्यों फट जाता है? पूरे कपड़ों में भी बालात्कार और छेड़-छाड़ होती है और बेमेल विवाहों की यहां कोई कमी नहीं।
यहाँ के ड्राइवर भी गानों के शौकीन हैं क्योंकि सड़कें दयनीय हैं
सांताक्रूज से वैलेग्रान्डे का सफर साढ़े छःघंटे का है। मैनें 2 बजे एक स्थानीय टूरिस्ट बस में 35 बोलिवियनों का टिकट लिया और अपनी यात्रा शुरू की।
दक्षिणी अमेरिका के इस देश की प्राकृतिक छटा दर्शनीय है। पूरी यात्रा घने जंगलों से होती हुई छोटे-मोटे गांवों में रुकती है। भारत की तरह यहां भी ड्राइवर गाना सुनना पसंद करते हैं। रास्ते में जहां पर बस रुकती है, संतरे, मक्का, साफ्ट ड्रिंक बेचने वाले आपका अच्छा मनोरंजन करते हैं। हमारी तरह यहां भी बसों में सिगरेट पीने वालों की कमी नहीं है। करीब चार घंटे के बाद ड्राइवर एक छोटी-सी जगह पर बस रोकता है। पता चलता है चाय नाश्ते का समय है। 15 मिनट बाद हम फिर चल पड़ते हैं। घनघोर अंधेरा है और कहीं भी दूर-दूर तक लाइट नहीं है। यहां जनसंख्या घनत्व बहुत कम है अर्थात दूर-दूर तक लोग नहीं दिखाई नहीं देते। लगभग 7.30 बजे शाम हम बैलेग्रान्डे पहुंचते हैं। बस में कोई भी अंग्रेजीभाषी नहीं है अतः उतरकर मैं एक टैक्सी लेता हूं और पाँच मिनट में हम हॉस्टल जुआनितों पहंचते हैं, जहां मेरे लिए रहने की व्यवस्था की गई है। मैं अपना परिचय देता हूं और कमरे में दाखिल होता हूँ।
पास में कई लोग आते हैं। मुझसे ढेर सारी बात करना चाहते हैं लेकिन भाषाई दिक्कत है। फिर भी मैं उन्हें भारत में स्वागत करने की परंपरा के बारे में बताता हूं। मुझे भूख लगी है और मैं अकेले खाने नहीं जाना चाहता, अतः यहां पर एक परिवार मेरे लिए किचन में व्यवस्था करता है। बीफ, आलू चिप्स, सलाद और उबली हुई मक्का। यहां पर भी अन्य देशों की भांति कोई पानी के लिए नहीं पूछता।
सिन्थिया 20 वर्ष की एक लड़की है, जिसके माँ-बाप अमेरिका में बसे हैं। वह अंग्रेजी भाषा सीख रही है। हालांकि उसकी दिक्कतें बहुत हैं। उसके भाई-भाभी, भतीजे-भतीजी यहां पर हैं। वह अमेरिका या इग्लैंड जाना चाहती है। वह खूबसूरत है और थोड़ा भिन्न भी। एक मायने में बोलिविया की दूसरी लड़कियों से भिन्न है। उसके हाव-भाव और बातचीत से पता चलता है कि वह कैरियर की ओर महत्वांकांक्षी है और बोलिविया में औरतों के बाजारीकरण पर उसे अफसोस है। वह मुझसे पूछती है ‘बोलीविया की लड़कियां तुम्हें कैसी लगी? क्या तुम्हारे देश में लड़कियां छोटे कपड़े पहनती हैं? वैसे वह जानती है कि भारत एक पारंपरिक देश है। हालांकि मैं उसे बताता हूं कि ब्लाउज का साइज हमारे यहां उनके मुकाबले बहुत कम है तो वह आश्चर्य से मुस्कुरा देती है। उसके भाई-भाभी भारत के बारे में बहुत कुछ जानना चाहते हैं। मेरी बातें सुनकर वो जोर-जोर से हँसते हैं। वैसे ही जैसे हमारे बीच में कोई स्पानी या फ्रेंच आ जाये और बातचीत में दिक्कत हो।
चे की याद हर कोने में दिखाई देती है
हुआनीता ने मेरे लिए नाश्ता तैयार किया और किचन में मुझे बुलाया। हुआनीता के परिवार का यह हॉस्टल शांत है। कमरे साफ हैं और टी.वी.की व्यवस्था नहीं है। अतः लेखन में आसानी है। चर्च की घंटियां सुनाई दे रही हैं। आज ईस्टर की रात्रि है और पटाखे फूट रहे हैं। हमलोग आज एक महत्वपूर्ण तीर्थाटन कर रहे हैं।
सुबह उठने पर सूर्य के दर्शन होते हैं। आसमान में बादल है परन्तु बिल्कुल नीला भी है। सामने पहाड़ी पर सूर्य की किरणें दर्शनीय हैं। मैं कुछ फोटोग्राफ लेता हूं। सुबह एक अन्य परिवार से मुलाकात होती है। वे सांताक्रुज से आये हैं। परिवार के सदस्य अंग्रेजी से वाकिफ हैं। बातचीत से पता चलता है कि वह भी ला-हिग्वारा जा रहे हैं। 9 अक्टूवर 1967 को अमेरिकी सेनाओं की देखरेख में बोलीविया की मिलिट्री हुकूमत ने चे गुवेरा तथा उनके अन्य कई साथियों को इसी स्थान पर बंदी बनाकर मार दिया था। आज वैलेग्राण्डे से लेकर ला-हिग्वारा तक चे की याद हर कोने में दिखाई देती है।
मेरे साथ में अनुवादक मिल्का और टूर गाइड जेनेट हैं। मिल्का 21 वर्षीय हैं जो अभी अंग्रेजी सीख रही हैं और शक्ल में पर्वतीय क्षेत्र या उत्तर पूर्व की लड़कियों-सी दिखती हैं। सर्वप्रथम हम स्थानीय म्यूजियम में जाते हैं चे की पूरी जिंदगी की चुनिन्दा फोटोग्राफ मौजूद है। फिर कार से हमारी यात्रा शुरू होती है ला-हिग्वारा की तरफ। रास्ता जंगलों से गुजरता है और बोलिविया के अनगिनत पहाड़िंया,खूबसुरत वादियां मन को मोह रही हैं इच्छा होती है कि हर एक जगह पर तस्वीर ले लूं। ध्यान आता है कि सन् 66-67 में किस प्रकार चे ने यहां पर लोगों को इकट्ठा किया होगा। जब यहां अभी ऐसी स्थिति है कि करीब 60 किलोमीटर का क्षेत्र पार करने में कार से 2.30 घंटे से उपर का समय लगता है तो उस समय का अंदाज लगाना और भी मुश्किल है।
हम लोग करीब 12 बजे ल हिग्वारा पहुंचते हैं। दूर से ही घरों में चे के बडे-बडे, क्रांति के झंडे देखकर लगता है कि हम ऐसी जगह पर हैं जो वाकई एक तीर्थस्थल है। एक ऐसा तीर्थस्थल जिसे सत्तारूढ़ शक्तियां बन्द करना चाहती हैं परंतु लोगों की असीम श्रद्धा और विश्वास ने बचा के रखा है। यहां पर दो प्राइवेट म्यूजियम हैं, जहां चे के जीवन की महत्वपूर्ण घटनाएँ प्रदर्शित हैं। पहला म्यूजियम एक छोटा-सा स्कूल था जहां चे और उनके साथियों को कैद किया गया था और बाद में हत्या कर दी गई थी। छोटे-से इस कमरे में समाजवाद के विषय में चे के विचार हैं और क्यूबा से लेकर कांगो तक के संघर्षो में उनकी भागीदारी की कहानी है। म्यूजियम की हालत खस्ता है। अर्जेन्टीना के कलाकारों ने आकर यहां चे और उनके संघर्षों को अपने चित्रों में ढाला है। सामने एक ग्रॅासरी की दुकान है और उसमें चे की बहुत सारी पेन्टिंग्स और पोस्टर देखकर अच्छा लगता है। इस गाँव में अब केवल 15 परिवार बचे हैं और हर एक की दीवार पर चे की कोई तस्वीर या पेन्टिंग नजर आती है। गाँव के चौक में चे की एक मूर्ति है और उसे पार्क का स्वरूप दिया गया है। उसी के पास में चे की एक और मूर्ति एक टीले पर बनी है और बगल में एक क्रॉस भी है। पता चलता है कि गांव वाले चे को भगवान मानते हैं। हर साल 8 अक्टूबर को यहां मेला होता है, लोग पार्टी देते हैं, संगीत होता है चे की याद में। क्रांतिकारियों की बातें लोग अक्सर भूल जाते हैं और उनके नाम पर जाप शुरू कर देते हैं। वर्षों बाद शायद इस गांव के लोग ‘चे’ को एक मिशनरी के नाम से जानें।
ला हिग्वारा में गरीबी का आलम है। सब तरफ कच्चे घर हैं, पीने की पानी की सुविधा है लेकिन अस्पताल, स्कूल जैसी सुविधाएँ नाममात्र की हैं। गांव के लोग यह मानते हैं कि यदि ‘चे’ अपनी लड़ाई जीत लेते तो गाँव की यह दशा नहीं होती। यहां की सरकारों ने चे के नाम को हटाने की भरसक कोशिश की है। मैं इरमा रोसो से मिलता हूँ जो अपने भाई के साथ रहती है और सैलानियों के लिए खाना बनाती है। बेहद गरीबी में रहने वाली 76 वर्षीय इरमा ‘चे’ के दिनों की गवाह है। वह ‘चे’ को खाना खिलाती थी और कॉफी पिलाती थी। वह कहती है कि पहले यहां 80 परिवार थे परंतु गुरिल्ला युद्ध का यह एक केन्द्र बनने से लोग यहां से निकल गये और अब ले-देकर पुकारा समुदाय के मात्र 15 परिवार यहां हैं। वह बताती है कि फौजियों ने ‘चे’ को रात में मारा, उस समय बहुत शोर हुआ था लेकिन किसी को बाहर जाने की हिम्मत नहीं थी। करीब 20 वर्ष तक तो ‘चे’ का यहां नाम लेना भी अपराध था, आप जेल में बंद होते। फिर भी लोगों ने ‘चे’ की यादों को संजो कर रखा है।
एक छोटे से घर में म्यूजियम बनाया गया है, जहां जाने का शुल्क 5 बोलियिवनो है। मैं अंदर जाता हूँ तो देखता हूँ ‘चे’ की कुर्सी, बंदूक, कैप व अन्य सामान रखा है। कुछ पुरानी पुस्तकें हैं चे, फिदेल कास्त्रो व अन्य लोगों की।
गरीबी का आलम यह है कि इरमा मुझसे मदद की गुहार कर रही हैं। मैं अपने टूर गाइड, ड्राइवर व अनुवादक के लिए विशेष खाने की प्रबंध करता हूँ तो वह बहुत खुश होती हैं। कहती हैं बमुश्किल 60 बोलिवियानों ही कमा पाती हूं, मतलब लगभग 300 रूपये महीना।
10 किलोमीटर दूर रास्ते में पुकारा समुदाय में जश्न का माहौल है। मैं देख रहा हूं कि एक बड़ी गाय को काटा जा रहा है। पूरा गांव इकट्ठा है, अब बैंड बज रहा है, पता चलता है पास्कुंआ की धूम है। यहां ईस्टर को पास्कुंआ कहा जाता है। सामने एक घर में पार्टी चल रही है, संगीत है और लोग स्थानीय शराब पी रहे हैं। मेरे साथी मुझे वहां ले चलते हैं। लोग मुझे वहाँ की शराब का स्वाद चखने को कहते हैं। एक दो साथी साथ में डांस भी करते हैं।
वैलेग्राण्डे शहर में प्रवेश करते ही एक हॉस्पिटल है जहां ‘चे’ के शरीर को पोस्टमार्टम के लिए लाया गया व बाद में आम जनता के दर्शनों के लिए रखा गया। अस्पताल के अंदर अर्जेन्टीना के दो कलाकारों ने चे की बेहतरीन पेन्टिंग बनायी है। जिस मोरचरी या लेवेंडियर में चे और उनके साथियों को रखा गया था, वे आज दयनीय स्थिति में है। वहाँ दुनियां भर से ‘चे’ के चाहने वाले आते हैं और दीवारों पर अपना नाम खोदकर चले जाते हैं।
शहर के एक कोने में चे और उनके 6 साथियों को एक ही कब्र में दफनाया गया। तीस वर्ष तक कोई खोज-खबर लेने वाला नहीं था। बोलिविया के पुरातत्व व इतिहास, संस्कृति मंत्रालय ने अपना बोर्ड लगाकर उस स्थान पर ‘फोसा डे चे गुवारा’ लिखवा दिया है, परंतु इस स्थल की हालत देखकर अब तरस आता है कि ‘चे’ जिस देश के लिए अपनी सरकार छोड़कर आये थे, क्या उसने उनको याद किया?
लगता तो यही है कि वैलेग्राण्डे व ला-हिग्वारा को चे से संबंधों की सज़ा मिली है। न कोई विकास का काम, न सड़कों का आधुनिकीकरण। लेकिन 27000 की आबादी वाला वैलेग्राण्डे एक खूबसूरत कस्बा है। यहां लोग एक दूसरे को जानते हैं, बाजारों में भारत के गाँवों जैसी रौनक होती है। शहर के मध्य स्थित सेन्ट्रल प्लाजा में में खूबसूरत पार्क है, जहां शाम के वक्त लोगों की भीड़ होती है। युवाओं में रात में घूमने का शौक है। बच्चे सड़कों पर खेलते हैं, ट्रैफिक कम है। शाम के समय परिवारों के लोग अपने दरवाजे पर बाहर बैठते हैं, गप्पे लगाते हैं।
मार्केट में वैलेग्राण्डे का पेय और स्थानीय भोजन, जिसे वो टिपिकल वैलेग्राण्डे फूड कहते हैं, मिलता है। यह चावल, आलू फ्राइड और हाफ फ्राइ अण्डा। मेरे साथ जेनेट अब स्थानीय मेले में चल रही है जो साल में एक बार होता है और यहां पर वैलेग्राण्डे का धमाकेदार संगीत बज रहा है। लोग नाच रहे हैं और खाने-पीने का मजा ले रहे हैं। स्थानीय शराब खूब बिकती है। आश्चर्य की बात है कि यहां दूध की भी शराब बनती है। हमलोग वारबेक्यू का मजा लेते हैं और पोर्की (पोर्क) का मीट खाते हैं। वाकई यह लाजवाब है। बड़े शहरों में ज्यादा देने से लाख अच्छा छोटे शहर में ढाबों पर खाना है। खाने के बाद हम थोड़ी देर डांस करते हैं, जेनेट मेरे साथ नाच रही है, वह अंग्रेजी नहीं बोल पाती है परंतु थोड़े से इशारों से पता चलता है कि जो संगीत बज रहा है वह यहां का विशेष संगीत है और रोमांटिक है। शाम में 7.30 बज चुके हैं, पैदल घूमते में जेनेट से विदा लेता हूँ।
रात में 9.30 बजे जेनेट के एक साथी लुइस ने वादा किया कि डांस क्लब में चलना है। मैं तैयार हूँ, ठंढा है इसलिए सेंटियागो मुझे अपनी जैकेट दे देते हैं। रैन बहुत खुश है और मुझसे खूब बातें करती है। वो स्पेन, अर्जेन्टीना, ब्राजील आदि देश घूम चुकी है। मुझसे कहती है देर से लौटना, मैं उससे कहता हूँ कि मैं 10.30 बजे तक वापस आ जाऊँगा तो वह हँसती है और कहती है तुम 1.30 बजे से पहले कभी नहीं लौटोगे, क्योंकि ये पार्टियां तो लेट नाइट की होती है।
लुइस 9.30 बजे मेरे होटल में है और अब हम नाइट क्लब में जा रहे हैं। सामने यहां का सबसे ऊँचा पत्थर का चर्च है जहाँ खूब भीड़ है। लोग रात की सर्विस के लिए वहाँ पहुंच रहे हैं। शहर में धूम है, पटाखे भी फूटते हैं। हम बार ट्रेडिशनल में पहुंचते है, जहां एण्ट्री फीस 5 बोलिवियानों है। बाहर भारी भीड़ है खासकर लड़के-लड़कियों की। लुइस के युनिर्वसिटी के दोस्त यहां मौजूद हैं। साफ जाहिर है कि बार डेटिंग का अच्छा मौका है क्योंकि यहां पर आने वाले ज्यादातर लोग समूहों में या जोड़ों में होते हैं और अकेले आदमी का काम यहां लफंगई का ही हो सकता है। दूसरी खास बात यह है कि यहां केवल बीयर सर्व होती है, वाइन नहीं। अंदर बहुत बड़ा हॉल है और टेनिस कोर्ट की भांति, बीच में म्यूजिक चल रहा है। लोग अपने-अपने समूहों में बातचीत कर रहे हैं। हमलोगों का सेशन शुरू होता है और लगातार 1.30 बजे तक चलता है। नाच गाने की मस्ती के बाद थकान होती है और लुइस मुझे होटल छोड़ने आता है और विदा लेता है।
रात्रि में हुआनीता दरवाजा खोलती है और गर्मजोशी से मेरा स्वागत करती है, ‘आपको मजा आया, क्या आपने डांस किया?’ उसके ऐसे सवाल और अपनेपन ने मुझे यहां पर परिवार जैसा माहौल दे दिया जिसे मैं कभी नहीं भूल सकता।
सुबह 8 बजे हुआनीता और रइन ने मुझे नाश्ता दिया। हल्का सा शास्त्रीय संगीत सुनाया और फिर पूछा ‘मुझे कैसा लगा? क्या मैनें डांस किया?’ मैंने कहा ‘पार्टनर’ नहीं था, इसलिए मैं केवल देखता रहा तो उन्हें काफी बुरा लगा। ‘क्या लुइस ने तुम्हारे साथ डांस नहीं किया?’ वह बोली। लुइस बहुत अच्छा साथी था और उसने अपने सहयोगी रोका को मेरे साथ डांस के लिए आमंत्रित किया लेकिन परंपरावादी और छोटे शहर का होने के कारण यहां लडकियां आसानी से अनजाने के साथ डांस नहीं करती।
मिल्का ने तो डांस बार में आने से साफ मना कर दिया था, क्योंकि उसके पिता काफी सख्त हैं और अपनी बेटी को शाम के समय कहीं जाने से मना करते हैं। जेनेट भी 8 भाई-बहनों में एक है, और वह भी साथ नहीं आई। बदले में अपने भाई को भेज दिया। जेनेट कहती हैं कि ‘बोलिविया के पुरुष घर का काम करने में अपनी तौहीन समझते हैं। वे पूरे माचोमैन हैं जो आवारागर्दी करते हैं, परंतु घर पर कोई मदद नहीं करते।’
9 बजे रइन ने मुझे बस तक चलने को कहा। हुआनीता ने मुझको रइन के साथ फोटो खींचने को कहा। फिर मैंने हुआनीता को ‘ग्रेसीयस’ कहा। उनकी खातिरदारी के लिए हुआनीता और रईन दोनों ने मुझे बहुत सम्मान दिया। हुआनीता का प्यार एक माँ की तरह था जो भाषाई दिक्कत के बावजूद प्यार की बोली को मजबूती देता है। यह भी कि गरीब देश अपनी संस्कृति के कारण नहीं, दूसरों की क्रूरता के कारण गरीब हैं। यह भी कि जैसा ‘चे’ ने कहा हमें समाज के प्रति अपनी जिम्मेवारियों को समझना होगा। रइन, उनके पति सेंटियागो और उनकी माँ हुआनीता ने यह अच्छा सा हॉस्टल चलाकर साबित कर दिया।
9.30 बजे वैलेग्राण्डे से बस चल दी। बहुत भीड़ भरी बस थी और बस की गैलरी के बीच में बैठने के लिए छोटे-छोटे फोल्डिंग स्टूलों की व्यवस्था की गई थी। बस सामान व यात्रियों से भरी थी। धूल भरी घुमावदार सड़कों पर चलते बच्चों के सब्र का बांध टूट रहा था। कइयों ने बस के अंदर ही उलटना शुरू कर दिया। बस मालिकों ने गाडी रुकवाने की बजाय नई तकनीक ईजाद कर ली थी। उन्होनें हर एक यात्री को जो उचक रहा था एक-एक पॉलीथिन पकड़ा दी। वाह पॉलीथिन क्या इस्तेमाल है तेरा! बोलिविया में भी लोग पॉलीथिन में चाय और शर्बत लेते हैं। गैर स्पानी भाषियों पर लोग यहाँ लोग खूब हँसते हैं और मुझ पर भी बहुत हँसते थे। जैसे मेरी किसी बात पर इनको मजा आ रहा हो। भीड़ भरी बस में एक बुजुर्ग चढ़ा। शक्ल से वह आदिवासी भारतीय नजर आया। उम्र करीब 70 की, कद काठी अच्छी, सर पर विशेष बोलिवियन हैट, हाथ में एक घड़ी। वह देखने में असमर्थ था। करीब 20 किलो की गठरी लेकर वह बस में चढ़ा तो कोई उसे रास्ता देने को तैयार नहीं। बस के झोंको में वह इधर-उधर झूलता रहा।
एक स्थान पर बस खान-पान के लिए रुकी तो यह सज्जन भी उतरे। कुछ देर बाद वह धूप में बैठ गए। मैंने सोचा शायद इसी शहर में उतरना चाहते हों। थोड़ी देर बाद वह खड़े हुए और बस के पीछे जाकर खड़े होकर पेशाब करने लगे। ठीक किसी सामान्य भारतीय की तरह। फिर कुछ लोगों ने उन्हें खाना दिया और बस में बिठाया।
7 घंटे का बस का सफर बहुत थका देने वाला था। आधे रास्ते तक ठंढा मौसम था और फिर सांताक्रूज की तरफ बढ़ते ही गरमी शुरू होने लगी। अब इच्छा हो रही थी कि बस अपने अंतिम मुकाम तक पहुँचे और मैं आराम के लिए क्रिस्टीन के घर जांऊ।
अंततः साढ़े तीन बजे बस अपने गंतव्य तक पहुँच गई और मैं होटेल कॉटेज की ओर चल पड़ा, जहां से मैंने अपना सामान लिया और क्रिस्टीन को फोन किया कि मैं पहुँच चुका हूँ।
जिंदगी के अर्थ हर कोई तलाश लेता है
आज शाम 4 बजे क्रिस्टीन मुझे लेने आयी। साथ में थी उनकी बेटी डेनियला, बेटे-बहू और पोता। हम सभी शापिंग करने गये। क्रिस्टीन महिलावादी है और इस उम्र के बावजूद कोई नहीं कह सकता कि वह दादी बन चुकी है। उसका अपने पति से तलाक हो गया था और वह स्वछंद जिंदगी जीती है। उसके पास एक बहुत बड़ा घर है। पास में ही उसके सारे रिश्तेदारों के मकान हैं, जैसे माँ, पिता, बहिन आदि और सभी मुसीबत में एक दूसरे की मदद करते हैं। भारत के बारे में क्रिस्टीन के ख्याल ये हैं कि वहां औरतों की स्थिति खराब है। उनको अपने सजने-सँवरने की आजादी नहीं है। मैं उसका यह प्रभाव गलत साबित करने का कोशिश करता हूँ, लेकिन आजादी के मायने उसके लिए दैनिक जीवन में बेरोक-टोक रहन-सहन है और जब उसका तलाक हुआ तो उसके बाद से वह आराम और सुकून की जिंदगी जी रही है। उसका कहना है कि अब मैं शाम को ऑफिस से आकर घर में चैन से रह सकती हूं। थोड़ा वक्त मेरे पास अपने लिए भी है, जहां मैं बगीचे में बैठकर प्रकृति से बात कर सकूँ और अपने में ही खोई रहूँ।
क्रिस्टीन की बेटी डेनियला 17 वर्ष की है। अपनी मां की तरह बेटी भी बिन्दास है। एक खास बात यह कि मां, बेटी को हमारी तरह नैतिकता का पाठ नहीं पढ़ाती। मैं ल्यूसिया को जानता हूँ इटली से है और आज उसका बेटा भी यहां आया हुआ है। डेनियला और एलैक्जैण्डर एक दूसरे के साथ रह रहे हैं। दोनों की मांएँ जानती हैं लेकिन वे कुछ नहीं कहती। वे यही कहती हैं कि बेटे-बेटी जवान हैं। उनकी अपनी जरूरतें हैं और जिम्मेवारी और समझदारी से उनको काम करना है।
आज शाम को लापाज से डेनियला को फोन आता है और उसका झगड़ा होता है। वह गुस्से में अपने कमरे से निकलकर बाहर चली जाती है। क्रिस्टीन को भरोसा है कि उसकी बेटी एक वर्ष के लिए बेल्जियम जायेगी तो समझदारी बढ़ायेगी।
शाम को क्रिस्टीन मेरे लिए मच्छी बनाती है और मैं उसे वैलेग्राण्डे से लाई एक विशेष शराब पिलाता हूँ। हम लोग उसके लॉंन में बैठे हैं। मच्छी के साथ उसने आलू भी उबाले हैं। वह मुझे बताती है कि थोड़ी देर बाद उसका छोटा बेटा आनेवाला है। तलाक के बाद छोटा बेटा बाप और माँ को थोड़ा-थोड़ा समय देता है। माँ खुश है कि अब कुछ दिन के लिए वह अपने बेटे के साथ रहेगी। नौ बज रहे हैं और क्रिस्टीन का बेटा पहुँच चुका है। वह अपनी माँ को गले लगाता है और चिल्लाता है माँ मैं तुम्हारे लिए तुम्हारी पसंद का प्लांट लाया हूँ। उसकी माँ खुश होती है अपने बेटे की बातों से।
वापसी में उम्मीद है कि इतने प्यारे लोगों से फिर मुलाक़ात होगी
सुबह पौने छः पर उठता हूँ और नहाने के बाद इन सभी लोगों से विदा लेता हूं उम्मीद करते हुए कि फिर कभी मुलाकात होगी। करीब 40 मिनट बाद सांताक्रूज वीरूवील हवाई अड्डे पर हूं। एयरो सुर से चेक इन के बाद इमीग्रेसन काउन्टर पर यहां वही सवाल होते हैं ‘कहां से आये हो?’ ‘क्या हो……?’ फिर पूरी चैकिंग…….। तीसरी दुनिया में सैनिक और तानाशाही सरकारों ने पुलिस राज कायम किया है जिसकी स्वतंत्रता और बराबरी में कोई भागीदारी नहीं है।
सामने एयरो सुर की हरे कपड़ों में परिचारिकायें दिखाई दे रही हैं। लापाज से जहाज आ चुका है और अगले 30 मिनट में उड़ने की तैयारी है। बोलिविया की खूबसूरत वादियों का सफर अपने अंतिम चरण में है। आज बोलिविया के पास सबकुछ है। 80 लाख लोग और 1 करोड़ स्क्वायर किमी की जमीन, लेकिन फिर भी लोग गरीब हैं। इस सवाल का उत्तर आसानी से मिल सकता है यदि यहां का यूवक ‘चे’ की उस बात को जान ले कि वाकई साम्राज्यवाद क्या बला है……दिमाग और सूचना तंत्र पर कब्जा…….क्या बोलिविया के लोग इस बात को समझेंगे कि अब भी समय है उठकर खड़े होने का। शायद नहीं। जबतक बौद्धिक ईमानदारी से लोग आम जीवन में दखल न दें, ये आजादी नहीं, युवा दिमागों का दिवालियापन है, जिसे स्वतंत्रता का नाम देना, शायद बेईमानी होगी।
लौटते वक्त फिर से फाइनैंशियल टाइम्स में बोलिविया के ऊपर लेख देखता हूं। चे और ओसामा को एक तराजू में तौलने के पश्चिमी बेहुदेपन से बहुत निराशा होती है, लेकिन उससे ज्यादा निराशा बोलिवियानों से होती है जो ऐसा सोचने की जुर्रत भी करते हैं। बोलिविया में कैथोलिकों कब्जा है, अतः चे को भी भगवान बनाकर चर्च का हिस्सा बनाने की तैयारी है। शायद उसके लिए उसके लिए किसी नमे द ला विंशी की जरूरत पड़ेगी!
राम जी , आपका बहुत आभार. ये यात्रा २००५ की है और उस दौर की है जब बोलीविया में अमेरिकी पसंद सरकारे थे और सारा काम वर्ल्ड बैंक की मर्जी से होता था. लोगो में उस समय की सत्ताधारी दल के प्रति आक्रोश था क्योंकि वहा के आदिवासियों और मूल निवासियों का सरकारों में कोई असर नहीं था. लेकिन २००७ आते आते बोलीविया ने पूरे लातिनी अमेरका में एक नया तूफ़ान खड़ा कर दिया जब आदिवासी समाज के इवान मोरेलिस भारी बहुमत से वहा के राष्ट्रपति बने. मोरालिस ने फिदेल कास्त्रो को अपना गुरु माना और उसके बाद से विश्व वैंक और अमेरिकी परस्त नीतियों पर रोक लगी. बोलिविया, क्यूबा और वेनुजुएला उस क्षेत्र में सभी को प्रभावित किया. मोर्रेलिस की नितीयो का ही नतीजा था के मेक्डोनाल्ड जैसी कंपनियों का बहिष्कार हो गया और उन्हें देश छोड़ जाना पडा. हालांकि ये छोटे देश है जहा की राजनीती को अमेरिका बहुत प्रभावित करता है लेकिन फिदेल कास्त्रो पूरे लातिनी अमेरिकी समाजो के लिए एक बहुत सम्मानित नाम है और उनके कारण से इस क्षेत्र में लोगो में अभी भी साम्राज्यवाद के प्रति गुस्सा है और वाम शक्तिया लोकतान्त्रिक तरीको से सत्ता में आ रही है या प्रमुख विपक्ष है.