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गया : उचला गाँव में पहुँचा पीने का साफ़ पानी, महिलाओं को राहत

जिला मुख्यालय से करीब 55 किमी दूर रौशनगंज पंचायत स्थित इस गांव के लगभग हर घर में नल जल योजना के तहत लोगों को पीने का साफ़ पानी उपलब्ध हो रहा है। अनुसूचित जाति बहुल इस गांव में लगभग 350 परिवार रहते हैं, जिन्हें प्रतिदिन पीने का साफ़ पानी उपलब्ध हो रहा है। इसका सबसे सकारात्मक प्रभाव महिलाओं और बच्चों के जीवन पर पड़ रहा है।

देश के ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों के बेहतर स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए केंद्र सरकार ने वर्ष 2019 में ‘हर घर नल जल योजना’ की शुरुआत की थी। इस योजना ने पिछले पांच वर्षों में ग्रामीण क्षेत्रों की तस्वीर बदल दी है। इसका सबसे सकारात्मक प्रभाव लोगों के स्वास्थ्य पर पड़ा है, जो पहले से काफी बेहतर होने लगी है।

वर्तमान में, देश के कई ज़िले ऐसे हैं, जहां के ग्रामीण क्षेत्रों में यह योजना शत-प्रतिशत सफल हो चुकी है यानी वहां के हर घर में नल के माध्यम से पीने का साफ़ पानी पहुंच रहा है। इन्हीं में एक बिहार भी है। अप्रैल 2022 की रिपोर्ट के अनुसार बिहार के 38 में से 14 ज़िलों के 99 प्रतिशत घरों में इस योजना के तहत पीने का साफ़ पानी उपलब्ध हो रहा है। छोटी आबादी वाले ज़िलों में जहां अरवल प्रथम है वहीं बड़ी आबादी वाले ज़िलों में गया इस दिशा में तेज़ी से प्रगति कर रहा है।

इन्हीं में एक गया ज़िले का उचला गांव भी है। जिला मुख्यालय से करीब 55 किमी दूर रौशनगंज पंचायत स्थित इस गांव के लगभग हर घर में नल जल योजना के तहत लोगों को पीने का साफ़ पानी उपलब्ध हो रहा है। अनुसूचित जाति बहुल इस गांव में लगभग 350 परिवार रहते हैं, जिन्हें प्रतिदिन पीने का साफ़ पानी उपलब्ध हो रहा है। इसका सबसे सकारात्मक प्रभाव महिलाओं और बच्चों के जीवन पर पड़ रहा है। जिन्हें न केवल हैंडपंप के दूषित पानी से छुटकारा मिल गया है, बल्कि पहले की अपेक्षा स्वास्थ्य भी बेहतर रहने लगा है।

इस संबंध में गांव की एक 22 वर्षीय महिला मीरा देवी कहती हैं कि पिछले वर्ष उनका इस गांव में विवाह हुआ है। यहां नल के माध्यम से पीने का पानी देख कर उन्हें बहुत ख़ुशी हो रही है। वह बताती हैं कि उनके पीहर में लोग हैंडपंप का पानी पीते हैं, जिससे हमेशा उनका स्वास्थ्य ख़राब रहता है, बच्चे बीमार रहते हैं, लेकिन यहां उसके विपरीत परिस्थिति देखने को मिली है। नल से स्वच्छ जल की वजह से बच्चे बहुत कम बीमार नज़र आते हैं। उन्होंने बताया कि प्रतिदिन सुबह, दोपहर और शाम दो घंटे के लिए पानी आता है, जो सभी के पीने और जमा करने के लिए पर्याप्त होता है।

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वहीं अनुसूचित जाति से संबंधित 45 वर्षीय एक महिला मनोरमा कहती हैं कि नल से पीने का पानी प्राप्त करना हमारे लिए किसी स्वप्न से कम नहीं है। हमें विश्वास नहीं होता है कि सरकार हम गरीबों के घर तक नल लगा देगी। इसके लिए हमें कोई पैसा भी नहीं देना पड़ता है।

वहीं 35 वर्षीय मंजू देवी कहती हैं कि पहले हम सभी हैंडपंप का पानी पीते थे, जिससे अक्सर बीमार रहते थे। बच्चों की तबीयत लगातार ख़राब रहती थी, लेकिन पिछले साल योजना के तहत जबसे हमारे घर में नल लगा है, हमारे स्वास्थ्य पर अच्छा प्रभाव पड़ा है। अब घर में कोई बीमार नहीं रहता है। बच्चों की सेहत भी अच्छी रहने लगी है। यह इस योजना की बदौलत संभव हुआ है। वह कहती हैं कि कभी कभी जब लंबे समय के लिए गांव में बिजली चली जाती है तो नल से पानी भी नहीं आता है। ऐसे में हमें मज़बूरी में हैंडपंप का इस्तेमाल करना पड़ता है।

मंजू देवी कहती हैं कि उन्होंने 12वीं तक पढ़ाई की है, ऐसे में उन्हें सरकार के द्वारा किए जाने वाले प्रयासों की काफी जानकारी है। वह हर घर नल जल योजना के लाभों और सरकार के प्रयासों से बखूबी परिचित हैं. मंजू की पड़ोसी ललिता देवी कहती हैं कि गया में अन्य ज़िलों की अपेक्षा गर्मी अधिक पड़ती है, ऐसे समय हैंडपंप का पानी भी काफी नीचे चला जाता था, जिससे हम सभी को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता था। लेकिन अब जब से नल लगा है किसी भी मौसम में पीने के पानी की कोई समस्या नहीं होती है।

वहीं 36 वर्षीय संजू देवी कहती हैं कि गांव में उच्च जाति के लोगों के कुछ ही घर हैं, जो सभी सुविधाओं से लैस हैं। उनके घर नल के माध्यम से पीने के पानी सुविधा भी थी। लेकिन हम अनुसूचित जाति के लोगों को पहले पीने के साफ़ पानी के लिए या तो हैंडपंप का सहारा था या फिर उच्च जाति के लोगों के सामने पानी के लिए गिड़गिड़ाना पड़ता था। लेकिन अब ऐसी कोई समस्या नहीं है। हमें भी उनकी तरह (उच्च जाति के लोगों) नल के माध्यम से पीने का साफ़ पानी मिलता है।

55 वर्षीय मनवा देवी कहती हैं कि नल जल योजना ने उचला गांव के गरीबों की किस्मत बदल दी है। अब लोग बहुत कम बीमार पड़ते है। गंदा पानी पीने की वजह से बीमार पड़ने वालों की संख्या अब नाममात्र की रह गई है। सबसे अच्छा लगता है कि अब हमारे बच्चे स्वस्थ रहने लगे हैं। उनके इलाज पर होने वाला खर्च बचने लगा है।

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गांव के एक व्यक्ति 55 वर्षीय ललन पासवान कहते हैं कि उन्हें पहली बार लगा कि सरकार ऐसी कोई योजना शुरू की है जिसका सीधा प्रभाव हमारे जीवन पर पड़ा है और इसका असर पहले दिन से नज़र आने लगा है। वह कहते हैं कि गांव में अनुसूचित जाति के अभी भी कुछ परिवार ऐसे हैं जिनके घर इस योजना के तहत नल नहीं पहुंचा है, लेकिन इसमें अधिकारियों की गलती नहीं है, बल्कि कुछ घर योजना के समय संयुक्त परिवार थे, लेकिन अब उनमें बंटवारा हो गया है, जबकि कुछ घर योजना के दौरान टूट का नए बन रहे थे। लेकिन जल्द ही इन सभी घरों में भी योजना के तहत नल लग जायेगा।

केंद्र की जल शक्ति मंत्रालय की वेबसाइट के अनुसार वर्ष 2019 में जहां बिहार के केवल एक प्रतिशत ग्रामीण क्षेत्रों में नल के माध्यम से जल उपलब्ध हो रहा था, वहीं मात्र पांच वर्षों में राज्य के 96.42 प्रतिशत ग्रामीण घरों में नल के माध्यम से पीने का साफ़ पानी लोगों को उपलब्ध हो रहा है। इसमें जहां केंद्र की योजना कारगर साबित हुई है वहीं बिहार सरकार द्वारा भी राज्य स्तर पर इसी प्रकार की संचालित योजना ने बिहार के ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों को आर्सेनिक जल के सेवन से निजात दिला दी है। दरअसल, कोई भी योजना देश के ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों की आवश्यकता को देख कर ही बनाई जाती है। लेकिन जिस प्रकार ‘हर घर नल जल योजना’ ने लोगों के जीवन को बदला है, वह इसकी कामयाबी की सबसे बड़ी मिसाल है। यक़ीनन यह राज्य सरकार की प्रतिबद्धता और सहयोग के बिना संभव नहीं था।

(सौजन्य से चरखा फीचर)

 

 

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