वे केरल के चमकदार सूर्य हैं, उसके सामाजिक-राजनीतिक वायुमंडल में सदियों के बाद आकाश में चमकने वाला ऐसा तारा देखने को मिला है।
इन शब्दों के साथ इंडियन एक्सप्रेस ने यह सूचित किया है कि केरल के लाडले सपूत वेलिक्ककतु शंकर अच्युतानंदन 100 वर्ष के हो गए हैं। हृदयाघात के बाद पांच साल पहले उन्होंने केरल की राजनीति से सन्यास ले लिया है परंतु केरल के लाखों निवासियों की नजरों में आज भी पूरी तरह फिट हैं। अपनी जोरदार वाणी और गतिविधियों से उन्होंने केरल की राजनीति और सीपीएम समेत सभी राजनैतिक दलों को चौकन्ना रखा है। वे 2006 से 2011 तक केरल के मुख्यमंत्री रहे और 1991 से 1996 तक और दोबारा 2011 से 2016 तक केरल विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता रहे।
सन् 2016 के विधानसभा चुनाव में वामपंथी मोर्चे ने उनके नेतृत्व में चुनाव लड़ा और जीता भी। उस समय वे 93 वर्ष के थे लेकिन शारीरिक और मानसिक रूप से पूरी तरह फिट थे। उनकी शारीरिक स्थिति को देखते हुए उन्हें केरल का फिडिल केस्ट्रो कहा जाता था। उन्हें 2016 से 2021 तक प्रशासनिक सुधार आयोग का अध्यक्ष बनाया गया। इस समय तक सीपीएम का नेतृत्व पिनाराई विजयन के हाथों में चला गया था।
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केरल के ‘कॉमरेड वीएस’ 100 वर्ष के हुए
वर्ष 1923 में एक पिछड़ी जाति के परिवार में अच्युतानंदन का जन्म हुआ। उन्होंने 11 वर्ष की आयु में अपने माता-पिता को खो दिया। 12 वर्ष की आयु में उन्होंने स्कूल छोड़ दिया और अपने भाई की टेलरिंग के काम में उनकी मदद करना प्रारंभ कर दिया। उस समय अनेक कम्युनिस्टों की तरह वे भी 15 वर्ष की आयु में कांग्रेस में भर्ती हो गए। परंतु दो वर्ष के बाद वे सीपीआई में शामिल हो गए और मछुआरों, और नारियल तोड़ने वालों के बीच काम करने लगे।
इस दौरान अपनी भाषण कला के कारण वे मजदूरों में लोकप्रिय हो गए। अपनी कार्यक्षमता के कारण सीपीआई में उन्हें एक के बाद एक जिम्मेदारियां मिलने लगीं। सन् 1957 में वे राज्य सचिवालय के सदस्य बन गए। यह वह वर्ष था जब सीपीआई के हाथ में केरल की सत्ता आ गई। सन् 1964 में वे सीपीआई के 32 प्रमुख सदस्यों में से थे जिन्होंने सीपीआई छोड़कर सीपीएम की स्थापना की। जिन 32 सदस्यों ने सीपीएम की स्थापना की थी, उनमें से अच्युतानंदन समेत दो सदस्य ही अब जीवित हैं।
वे पहली बार 1967 में विधानसभा के लिए चुने गए और सन् 1991 से 1996 तक केरल विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष रहे और अंततः 2006 से 2011 तक केरल के मुख्यमंत्री रहे। 2011 से 2016 तक वे दुबारा नेता प्रतिपक्ष रहे।
इन पंक्तियों के लेखक को उनसे मिलने का सौभाग्य मिला। जब मैं उनसे मिला उस समय वे प्रतिपक्ष के नेता थे। उनके बंगले में बहुत ही सादा फर्नीचर था। मेरी उनसे लंबी बातचीत हुई। बातचीत के दौरान मैंने उनसे कहा कि क्या वे मुझे कॉफी नहीं पिलाएंगे। उनका उत्तर था ‘नहीं’। उन्होंने कहा कि यदि मैं प्रत्येक आगंतुक को कॉफी पिलाता रहूंगा तो मेरा दिवाला निकल जाएगा। आखिर मुझे अपने वेतन से ही अपना खर्च चलाना पड़ता है। वेतन का एक हिस्सा मुझे पार्टी को देना पड़ता है। मुझे उनके स्टाफ ने बताया कि वे वर्षों से फर्श पर ही सोते हैं। वे सादगी के भरपूर प्रतीक हैं और इसलिए भी वे केरल में भारी लोकप्रिय हैं।