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द्वारिका में कांग्रेस का चिंतन शिविर !

एक तरफ पांच राज्यों के विधानसभा के चुनाव चल रहे हैं, केंद्र में सत्ताधारी पार्टी भाजपा उत्तर प्रदेश चुनाव में सत्ता बचाने के लिए जी जान से कोशिश कर रही है,  वहीँ दूसरी तरफ कांग्रेस, गुजरात में दिसंबर 2022 में कांग्रेस की सरकार कैसे बने इसके लिए चिंतन शिविर का आयोजन कर रही है। 25 […]

एक तरफ पांच राज्यों के विधानसभा के चुनाव चल रहे हैं, केंद्र में सत्ताधारी पार्टी भाजपा उत्तर प्रदेश चुनाव में सत्ता बचाने के लिए जी जान से कोशिश कर रही है,  वहीँ दूसरी तरफ कांग्रेस, गुजरात में दिसंबर 2022 में कांग्रेस की सरकार कैसे बने इसके लिए चिंतन शिविर का आयोजन कर रही है।

25 से 27 फरवरी को आयोजित कांग्रेस के चिंतन शिविर में कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने शिरकत की और, गुजरात में कांग्रेस भाजपा से सत्ता कैसे ले सकती है इस पर मंथन किया।

लेकिन कांग्रेस के चिंतन शिविर से एक खास बात निकल कर आई है जिसकी चर्चा अक्सर देश के राजनीतिक गलियारों में सुनाई देती रही है। देश की सबसे पुरानी पार्टी देश की सत्ता पर सबसे अधिक राज करने वाली पार्टी, आखिर क्यों खत्म होती जा रही है?सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस के कमजोर होने पर, राजनीतिक गलियारों से ही आवाज नहीं सुनाई देती है बल्कि कांग्रेस के भीतर से भी कांग्रेस के वरिष्ठ नेता यह आवाज उठाते हुए अक्सर सुनाई देते हैं।

जब कांग्रेस के भीतर से वरिष्ठ नेताओं की तरफ से, कांग्रेस के कमजोर होने की आवाज आती है तब राजनीतिक गलियारों और मुख्यधारा के मीडिया में, सबसे पहला शक कांग्रेस हाईकमान पर जाता है और राजनीतिक गलियारों में और मीडिया में नेतृत्व की कमजोरी को लेकर बहस और चर्चा होने लगती है।

[bs-quote quote=”कांग्रेस कमजोर क्यों हुई। राहुल गांधी ने कांग्रेस कार्यकर्ताओं को दो भागों में बांटा। एक भाग उन कार्यकर्ताओं का है जो कांग्रेस के लिए सड़क पर मेहनत करते हैं भाजपा से टक्कर लेते हैं और कांग्रेस को मजबूत करते हैं। कांग्रेस को जीत दिलाते हैं। दूसरा भाग उन नेताओं का है जो वातानुकूलित कमरों में बैठकर केवल ज्ञान बांटते हैं और बड़े-बड़े भाषण देते हैं।” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]

कांग्रेस के नेतृत्व का मतलब सीधा-सीधा सोनिया गांधी और राहुल गांधी पर हमला करना होता है। चर्चा और बहस में यह बताया और जताया जाता है कि कांग्रेस के कमजोर होने का कारण गांधी परिवार है।

द्वारिका के चिंतन शिविर में राहुल गांधी ने बेबाकी और सलीके से अपने ही अंदाज में राजनीतिक विश्लेषकों पंडितों और मीडिया को जवाब दिया। उन्होंने बताया कि कांग्रेस कमजोर क्यों हुई। राहुल गांधी ने कांग्रेस कार्यकर्ताओं को दो भागों में बांटा। एक भाग उन कार्यकर्ताओं का है जो कांग्रेस के लिए सड़क पर मेहनत करते हैं भाजपा से टक्कर लेते हैं और कांग्रेस को मजबूत करते हैं। कांग्रेस को जीत दिलाते हैं। दूसरा भाग उन नेताओं का है जो वातानुकूलित कमरों में बैठकर केवल ज्ञान बांटते हैं और बड़े-बड़े भाषण देते हैं। राहुल गांधी ने 2017 के गुजरात विधानसभा चुनाव का उदाहरण देते हुए ज्ञान वीर नेताओं पर कटाक्ष करते हुए कहा कि मैं 2017 में गुजरात विधानसभा चुनाव को लेकर रणनीति की बात कर रहा था तब इन नेताओं ने मुझे सलाह दी थी कि गुजरात में कांग्रेस के पास कुछ भी नहीं है, गुजरात में कांग्रेस खत्म है। मैं उनकी बात सुनकर फिर भी गुजरात आया और 2017 के विधानसभा चुनाव में जो नेता मुझे 40 सीट जीतने की बात कर रहे थे। नेताओं को गुजरात के कार्यकर्ताओं ने कांग्रेस को सत्ता के करीब पहुंचा कर दिखाया कांग्रेस केवल 7 सीटों के कारण गुजरात में अपनी सरकार नहीं बना पाई थी।

राहुल गांधी की इस बात से यह सवाल खड़ा होता है कि क्या वातानुकूलित कमरों में बैठकर ज्ञान बांटने वाले नेता ही गांधी परिवार के सदस्यों को गुमराह करते रहे? सोनिया गांधी और राहुल गांधी ज्ञानवीर नेताओं के ज्ञान के जाल में उलझ कर अपना और अपने कार्यकर्ताओं का नुकसान होता देखते रहे और ज्ञानवीर नेता सत्ता का मजा उठाते रहे।

[bs-quote quote=”देश की जनता और कांग्रेस के आम कार्यकर्ताओं के साथ सीधे जुड़ाव और संवाद का एक माध्यम गांधी परिवार के पास, दिल्ली स्थित अपने निवास स्थान पर जनता दरबार लगाने का था। इंदिरा गांधी और राजीव गांधी प्रधानमंत्री रहते हुए प्रतिदिन अपने दिल्ली स्थित निवास पर जनता दरबार लगाया करते थे, कुछ समय तक इस परिपाटी को सोनिया गांधी ने भी जारी रखा मगर 2004 में कांग्रेस की एक बार फिर से सरकार बनने के बाद जनता दरबार वाली परंपरा को दरकिनार कर दिया गया। जनता दरबार के नहीं लगने का कारण क्या ज्ञानवीर नेताओं का ज्ञान ही तो नहीं था? क्योंकि देश भर से आम जनता और कांग्रेस का आम कार्यकर्ता कांग्रेस के नेतृत्व से सीधे आकर मिलता था संवाद करता था और अपनी समस्या बताता था, जनता दरबार के कारण पार्टी हाईकमान को जनता और कार्यकर्ताओं से फीडबैक भी मिलता था।” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]

चिंतन शिविर में राहुल गांधी की भावनात्मक गंभीरता और बेबाकी की झलक दिखाई दी, और यह सवाल भी खड़ा हुआ की क्या इसी साल कांग्रेस के संपन्न होने वाले आंतरिक चुनाव में, राहुल गांधी यह संदेश दे रहे हैं कि कांग्रेस को पूरी तरह से बदला जाएगा। क्योंकि राहुल गांधी ने बेबाकी से स्पष्ट कहा है कि वातानुकूलित कमरों में बैठकर ज्ञान बांटने वाले नेता यदि भाजपा में शामिल होना चाहते हैं तो वह शामिल हो सकते हैं।

चिंतन शिविर से एक बात और निकल कर दिखाई दे रही है कि राहुल गांधी और प्रियंका गांधी भविष्य की राजनीति के लिए यह समझ चुके हैं कि उन्हें कांग्रेस के आम कार्यकर्ताओं से सीधा जुड़ाव रखना पड़ेगा और कार्यकर्ताओं से सीधा संवाद करना पड़ेगा, तभी कांग्रेस मजबूत होगी और भाजपा सरकार के सामने खड़ी हो पाएगी। देश की जनता और कांग्रेस के आम कार्यकर्ताओं के साथ सीधे जुड़ाव और संवाद का एक माध्यम गांधी परिवार के पास, दिल्ली स्थित अपने निवास स्थान पर जनता दरबार लगाने का था। इंदिरा गांधी और राजीव गांधी प्रधानमंत्री रहते हुए प्रतिदिन अपने दिल्ली स्थित निवास पर जनता दरबार लगाया करते थे, कुछ समय तक इस परिपाटी को सोनिया गांधी ने भी जारी रखा मगर 2004 में कांग्रेस की एक बार फिर से सरकार बनने के बाद जनता दरबार वाली परंपरा को दरकिनार कर दिया गया। जनता दरबार के नहीं लगने का कारण क्या ज्ञानवीर नेताओं का ज्ञान ही तो नहीं था? क्योंकि देश भर से आम जनता और कांग्रेस का आम कार्यकर्ता कांग्रेस के नेतृत्व से सीधे आकर मिलता था संवाद करता था और अपनी समस्या बताता था, जनता दरबार के कारण पार्टी हाईकमान को जनता और कार्यकर्ताओं से फीडबैक भी मिलता था। लेकिन इस परंपरा की समाप्ति के बाद लगने लगा कि पार्टी हाईकमान का जनता और आम कार्यकर्ताओं से सीधा संवाद नहीं होने के कारण वास्तविक सच्चाई का पता नहीं चल पा रहा है और वास्तविक सच्चाई के अभाव के कारण ही कांग्रेस आज कमजोर नजर आ रही है। क्या राहुल गांधी इसी और इशारा कर रहे हैं कि वह अब जनता और कांग्रेस कार्यकर्ताओं से सीधा संवाद और संबंध रखेंगे ज्ञानवीर नेताओं से कुछ हद तक दूर रहेंगे।

पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के बाद सितंबर महीने में कांग्रेस को अपना नया राष्ट्रीय अध्यक्ष मिलेगा या नहीं ? इसका अभी इंतजार करना होगा लेकिन चिंतन शिविर से यह बात साफ तौर से दिखाई दे रही है कि गुजरात विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस को राष्ट्रीय अध्यक्ष मिल जाएगा और संभावना ऐसी भी है कि नया अध्यक्ष अपनी नई टीम के साथ पूरे जोश के साथ देश के 2024 में संपन्न होने वाले लोकसभा के चुनाव में पूरी ताकत के साथ उतरेगा।

देवेंद्र यादव कोटा स्थित वरिष्ठ पत्रकार हैं।

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