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प्रेम, दया, करुणा, बंधुत्व और समता की झलक दिखा रही ‘ढाई आखर प्रेम की सांस्कृतिक यात्रा’

2022 के आरम्भिक महीनों में पाँच राज्यों के चुनाव के बाद समूचे देश में मूल मुद्दों से जनता का ध्यान भटकाने और साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण के दुश्चक्र में जनता को फँसाकर दीर्घ काल तक सत्ता पर काबिज रहने का इरादा लिये हुए सत्ताधारी पार्टी ने अपने सभी कार्ड बेशर्मी से खोल दिये हैं। संयोग से आज़ादी […]

2022 के आरम्भिक महीनों में पाँच राज्यों के चुनाव के बाद समूचे देश में मूल मुद्दों से जनता का ध्यान भटकाने और साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण के दुश्चक्र में जनता को फँसाकर दीर्घ काल तक सत्ता पर काबिज रहने का इरादा लिये हुए सत्ताधारी पार्टी ने अपने सभी कार्ड बेशर्मी से खोल दिये हैं। संयोग से आज़ादी की 75वीं वर्षगाँठ का भी यह वर्ष है, जिसे अमृत वर्ष घोषित किया गया है। इस आपाधापी के मद्देनज़र इप्टा की राष्ट्रीय समिति द्वारा हस्तक्षेप के रूप में जन-जागरण के लिए 09 अप्रैल से 22 मई, 2022 तक ढाई आखर प्रेम शीर्षक के अंतर्गत सांस्कृतिक यात्रा शुरु की गई है। प्रथम चरण में यह यात्रा छत्तीसगढ़, झारखंड, बिहार, उत्तर प्रदेश तथा मध्य प्रदेश – इन पाँच हिंदीभाषी राज्यों में सम्पन्न की जा रही है।

कार्यक्रम को संबोधित करते झारखण्ड इप्टा के साथी शैलेन्द्र कुमार

इस सांस्कृतिक यात्रा में प्रगतिशील लेखक संघ, जनवादी लेखक संघ, जन संस्कृति मंच, दलित लेखक संघ, जन नाट्य मंच के अलावा दसियों समानविचारी स्थानीय व प्रादेशिक संगठनों का साथ मिला है। इप्टा के राष्ट्रीय महासचिव साथी राकेश ने यात्रा का उद्देश्य स्पष्ट करते हुए लिखा, ‘आज़ादी के 75 साल के मौके पर निकलने वाली ढाई आखर प्रेम की सांस्कृतिक यात्रा असल में स्वतंत्रता संग्राम के गर्भ से निकले स्वतंत्रता-समानता-न्याय और बंधुत्व के उन मूल्यों के तलाश की कोशिश है, जो आजकल नफरत, वर्चस्व और दंभ के तुमुल कोलाहल में डूब से गए हैं। हालाँकि वो हमारे घोषित संवैधानिक आदर्शों में झिलमिलाते हुए हर्फों के रूप में, गांधी की प्रार्थनाओं और आंबेडकर की प्रतिज्ञाओं के रूप में हमारी आशाओं में अभी भी चमक रहे हैं। इन्हीं का दामन पकड़कर हमारे किसान, मजदूर, लेखक, कलाकार, मानवाधिकार कार्यकर्ता गांधी की अहिंसा और भगत  सिंह के अदम्य शौर्य के सहारे अपनी कुर्बानी देते हुए संवैधानिक मूल्यों की रक्षा में डटे हुए हैं। यह यात्रा उन तमाम शहीदों, समाज सुधारकों एवं भक्ति आंदोलन और सूफीवाद के पुरोधाओं का सादर स्मरण है, जिन्होंने भाषा, जाति, लिंग और धार्मिक पहचान से इतर मानव-मुक्ति एवं लोगों से प्रेम को अपना एकमात्र आदर्श घोषित किया। प्रेम, जो उम्मीद जगाता है; प्रेम, जो बंधुत्व, समता और न्याय की पैरोकारी करता है; प्रेम, जो कबीर बनकर पाखंड पर प्रहार करता है; प्रेम, जो भाषा, धर्म, जाति नहीं देखता और इन पहचानों से मुक्त होकर धर्मनिरपेक्षता का आदर्श बन जाता है। आइये…, ढाई आखर प्रेम की इस यात्रा के बहाने बापू के पास चलें, भगत, अशफाक, बिस्मिल और अनेकानेक शहीदों के पास चलें। उस हिंदुस्तान में चलें, जो आंबेडकर और नेहरू के ख्वाब में पल रहा था, जो विवेकानंद के नव वेदांत और रवीन्द्रनाथ टैगोर के उद्दात मानवतावादी आदर्शों में व्यक्त हो रहा था। मानवतावाद, जो अंधराष्ट्रवादी-मानवताद्रोही विचार को चुनौती देते हुए टैगोर के शब्दों में उन्नत भाल और भय से मुक्त विचार में मुखरित हो रहा था। जहाँ ज्योतिबा फुले, सावित्रीबाई फुले, फातिमा शेख और पंडिता रमाबाई जैसे लोग ज्ञान के सार्वभौम अधिकार के लिए लड़ रहे थे। जो आज तक भी हासिल नहीं किया जा सका है। वहीं अंधविश्वास और रूढ़िवाद के खिलाफ ईश्वरचंद्र विद्यासागर, राम मोहन राय, पेरियार ईवी रामासामी सरीखे लोग तर्क, बुद्धि और विवेक का दामन पकड़कर एक तर्कशील हिंदुस्तान के रास्ते चल रहे थे। वह रास्ता प्रेम के ज्ञान का रास्ता है।

छतीसगढ़ के लोक कलाकार नाचा-गम्मत प्रस्तुत करते हुए

इन्हीं सूत्रों को पकड़कर एक तरफ प्रेमचंद और सज्जाद ज़हीर के नेतृत्व में 09 अप्रैल, 1936 को प्रगतिशील लेखक संघ की स्थापना हुई, जिसे राहुल सांकृत्यायन, यशपाल आदि ने आगे बढ़ाया। 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन और दूसरी ओर बंगाल के अकाल पीड़ितों की सहायता के लिए देश भर के कलाकार एकजुट हुए और ‘नवान्न’ नाटक के साथ इप्टा की यात्रा शुरु हुई। हमारी यह यात्रा उसी सिलसिले को आगे बढ़ाने वाली और नफरत के बरक्स प्रेम, दया, करुणा, बंधुत्व, समता और न्याय से परिपूर्ण हिंदुस्तान के स्वप्न को समर्पित है। जिसे हम और आप मिलकर बनाएंगे। जो बनेगा ज़रूर!

वो सुबह कभी तो आएगी…!

वे सुबह हमी से आएगी…!!’’

ढाई आखर प्रेम की सांस्कृतिक यात्रा रायगढ़ छतीसगढ़ पहुँचने के बाद इप्टा के राष्ट्रीय महासचिव राकेश वेदा संबोधित करते हुए

उपर्युक्त उद्देश्य को केन्द्र में रखकर ढाई आखर प्रेम की सांस्कृतिक यात्रा का आरम्भ 09 अप्रैल, 2022 को छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से किया गया। सुप्रसिद्ध कबीर-गायक प्रह्लाद टिपानिया एवं साथियों ने अपने अनूठे गायन से संस्कृति विभाग के मुक्ताकाशी मंच से प्रेम का संदेश प्रसारित कर यात्रा का उद्घाटन किया। इसके पूर्व निगम गार्डन में जनगीतों सहित अनेक सांस्कृतिक कार्यक्रम सम्पन्न किये गए। इप्टा के राष्ट्रीय महासचिव राकेश, सचिव शैलेन्द्र कुमार तथा रायपुर के राजेश अवस्थी ने यात्रा के उद्देश्य एवं देश के नाजुक हालात पर प्रकाश डाला। छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध गम्मत की प्रभावशाली प्रस्तुति रायपुर इप्टा के साथी निसार अली एवं साथियों द्वारा की गई। साथी अरूण काठोटे द्वारा निर्मित कविता पोस्टर्स की प्रदर्शनी भी लगाई गई थी। इस अवसर पर शहर के बुद्धिजीवी, कलाकार एवं अनेक संगठनों के लोग इकट्ठा हुए थे, जो सांस्कृतिक रैली की शक्ल में संस्कृति विभाग स्थित मुक्ताकाशी मंच की ओर रवाना हुए।

इस औपचारिक उद्घाटन के एक दिन पूर्व 08 अप्रैल को राष्ट्रीय सचिव राजेश श्रीवास्तव तथा छत्तीसगढ़ इप्टा के अध्यक्ष मणिमय मुखर्जी द्वारा गजानन माधव मुक्तिबोध की कर्मस्थली दिग्विजय महाविद्यालय राजनाँदगाँव जाकर वहाँ की मिट्टी ‘साझी शहादत-साझी विरासत’ के प्रतीक एक पात्र में इकट्ठा की। इस अवसर पर महाविद्यालय के प्राचार्य, प्राध्यापक एवं विद्यार्थियों ने भी सांस्कृतिक यात्रा के प्रति एकजुटता प्रदर्शित की। इसीतरह रायपुर में मुक्तिबोध के परिवारजनों रमेश, दिवाकर एवं दिलीप मुक्तिबोध से सौजन्य भेंट कर उन्हें भी सांस्कृतिक यात्रा की जानकारी दी।

‘ढाई आखर प्रेम की सांस्कृतिक यात्रा’ की जानकारी देते हुए

रायपुर में रात्रि-विश्राम के उपरांत निर्धारित बस में यात्रा के लिए राष्ट्रीय महासचिव राकेश लखनऊ से, सचिव शैलेन्द्र कुमार झारखंड, दिल्ली से वर्षा तथा विनोद कोष्ठी, मध्य प्रदेश से वरिष्ठ साथी हरनाम सिंह, विजय दलाल, प्रणय, देव, मृगेन्द्र सिंह तथा कुश के साथ छत्तीसगढ़ से राजेश श्रीवास्तव, मणिमय मुखर्जी, निसार अली, ईश्वर सिंह दोस्त, के अलावा नाचा थियेटर रायपुर के लोक कलाकार देवनारायण साहू, अवधराम पटेल, गंगाराम बघेल, पुराणिक साहू, परमानंद साहू तथा गौतम बिलासपुर के लिए रवाना हुए।

10 अप्रैल 2022 को रायपुर-बिलासपुर मार्ग के मध्य दो पड़ावों पर यात्रा प्रेम का संदेश देने और जन-सम्पर्क के लिए रूकी। पहला पड़ाव दामाखेड़ा था, जहाँ कबीर के शिष्य धर्मदास ने आकर कबीरवाणी का प्रचार-प्रसार किया। कहते हैं कि धर्मदास का कबीर के जीवन-काल में ही यहाँ आना-जाना लगा रहता था। आज यह कबीरपंथियों का महत्वपूर्ण केन्द्र है। यहाँ इप्टा के साथियों ने जनगीत एवं नाचा थियेटर के साथियों ने छत्तीसगढ़ी लोकगीत एवं नृत्य प्रस्तुत किये। अगला पड़ाव था सरगाँव; मुंगेली तहसील का यह गाँव बिलासपुर से 40-50 कि.मी. पहले पड़ता है। बिलासपुर इप्टा के साथी मधुकर गोरख और अरूण दाभड़कर ने यहाँ यात्रा का स्वागत किया तथा बस स्टैण्ड पर ग्रामवासियों द्वारा आयोजित कार्यक्रम में साथी शैलेन्द्र कुमार ने उपस्थित लोगों को यात्रा के उद्देश्य से परिचित कराते हुए बताया कि किस तरह एक सुंदर दुनिया के निर्माण में प्रेम के रास्ते पर चलना ज़रूरी है। निसार अली एवं नाचा के साथियों ने नाटक-नृत्य-गायन के माध्यम से एकता और भाईचारे की ज़रूरत पर बल दिया। साथी राकेश ने समाज में बढ़ रहे भरोसे में कमी और नफरत को लेकर कहा कि हम कबीर के संदेश के माध्यम से समाज में भाईचारा व सद्भाव कायम करने के लिए निकले हैं। आयोजन समिति में क्षेत्रीय कांग्रेस कार्यकर्ताओं के साथ कुछ युवा साथी भी थे, जिन्होंने काफी दिलचस्पी से यात्रा के संदेश को सुना।

रायगढ़ में साझा मंच द्वारा स्वागत करने के बाद

शाम को बिलासपुर में सिम्स के आडिटोरियम में पच्चीस स्वतंत्रता सेनानियों के परिवारों को सम्मानित किया गया। उन्होंने बहुत भावुक होकर कहा कि, हमारे पूर्वजों ने आज़ादी की लड़ाई में अपना जीवन न्यौछावर किया मगर उन्हें भुला दिया गया था। इप्टा ने उनकी याद करके हमें अभिभूत कर दिया। स्थानीय अनिल टाह जी के सौजन्य से सभी परिवारजनों का स्मृतिचिन्ह प्रदान कर सम्मान किया गया। इस अवसर पर शैलेन्द्र कुमार और राकेश ने देश की चिंताजनक परिस्थितियों के बरअक्स प्रेम, सद्भाव, भाईचारे का संदेश दिया। इप्टा बिलासपुर द्वारा पचीस स्वतंत्रता सेनानियों की संघर्षशील गाथा का संकलन और प्रकाशन भविष्य में किया जाएगा। इप्टा बिलासपुर की पहली अध्यक्ष साथी मंगला देवरस से भी यात्रियों ने बातचीत की। कार्यक्रम-स्थल पर पुस्तक-प्रदर्शनी भी आयोजित की गई थी। कार्यक्रम का संचालन बिलासपुर इप्टा के सचिव सचिन शर्मा ने किया।

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यात्रा के तीसरे दिन 11 अप्रैल, 2022 को सुबह 9 से 10 बजे तक बिलासपुर के आधारशिला स्कूल में छात्र-संवाद आयोजित था। साथी राकेश और शैलेन्द्र कुमार ने दिलचस्प तरीके से बच्चों से बातचीत की। पिछले दिन सरगाँव के कार्यक्रम में उपस्थित कुछ युवाओं ने शैलेन्द्र कुमार के वक्तव्य से बेहद प्रभावित होकर उनको फिर एक बार युवाओं के बीच ले जाकर संवाद का आग्रह किया, जिसे पूरा किया गया।

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इंदौर से पूरी यात्रा के लिए आई हुई बस में कुछ तकनीकी खराबी की वजह से बिलासपुर से आगे की यात्रा के लिए तीन इनोवा गाड़ियों का इंतज़ाम किया गया। इसलिए बिलासपुर से लगभग दोपहर एक बजे निकलकर यात्रा के साथी जांजगीर के कचहरी चैक पहुँचे, जहाँ चाँपा इकाई के साथियों ने जनगीत एवं एक नुक्कड़ नाटक प्रस्तुत किया। अगला पड़ाव चाँपा का छत्रपति शिवाजी इंडोर आॅडिटोरियम था, जहाँ जनगीत-गायन के अलावा स्थानीय कलाकार राघव दीक्षित का बाँसुरी वादन, नरेन्द्र पाल का सूफी भजन तथा रेखा देवार द्वारा लोकगायन की प्रस्तुति दी गई। यात्रा में साथ चल रहे नाचा थियेटर के साथियों ने नाचा प्रस्तुत किया। साथी राकेश और शैलेन्द्र कुमार के उद्बोधन के बाद भोजन कर यात्रा चाँपा से रायगढ़ की ओर रवाना हुईं।

11 अप्रैल की शाम रायगढ़ के छातामुरा चौक पर इप्टा रायगढ़ के साथियों के अलावा प्रगतिशील लेखक संघ के हर्ष सिंह, रायगढ़ संघर्ष मोर्चा के वासुदेव शर्मा तथा ट्रेड यूनियन काउंसिल के गणेश कछवाहा ने यात्रियों का स्वागत किया। साथी निसार अली के जनगीत के बाद यात्रा-दल गांधी चैक पहुँचा जहाँ इप्टा के राष्ट्रीय महासचिव राकेश ने गांधीजी की मूर्ति पर माल्यार्पण किया। जनगीत की प्रस्तुति के उपरांत मुख्य कार्यक्रम स्थल आंबेडकर चैक पर सभी लोग पहुँचे। 11 अप्रेल ज्योतिबा फुले जयंती के उपलक्ष्य में मंच पर ज्योतिबा फुले, सावित्रीबाई फुले, फातिमा शेख, बाबासाहेब आंबेडकर तथा बिरसा मुंडा की तस्वीरों पर माल्यार्पण किया गया। इस अवसर पर अनेक दलित-आदिवासी संगठनों की उपस्थिति उल्लेखनीय रही। साथी राकेश ने अपने उद्बोधन में कहा, ज्योतिबा फुले न केवल भेदभाव और पाखंड के खिलाफ आवाज़ उठाने वाले समाज सुधारक थे, बल्कि लेखक और नाटककार भी थे।

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सामाजिक सुधार एवं शिक्षा को लेकर उनके लिखे नाटक ‘तृतीय रत्न’ को आदि नाटक कहा जाता है। इस नाटक को सभी को न केवल पढ़ना चाहिए, बल्कि उसका मंचन भी करना चाहिए। उन्होंने इप्टा की सांस्कृतिक यात्रा का उद्देश्य स्पष्ट किया। शैलेन्द्र कुमार ने महात्मा फुले से लेकर आंबेडकर तक की विचार-यात्रा पर प्रकाश डालते हुए कहा कि इनके विचार एवं उद्देश्य समस्त मानव जाति को समानता की ओर ले जाने वाले हैं। हमारी यात्रा भी प्रेम और अमन का संदेश देने के साथ भारत के महान सपूतों को याद करते हुए आगे बढ़ रही है। हमें ज्योतिबा फुले, आंबेडकर, गांधी, कबीर के रास्ते पर चलना है और नफरत को मिटाना है। इस दौरान रायगढ़ इप्टा के साथियों ने क्रांतिकारी गीतों के साथ कार्यक्रम की शुरुआत की। इसमें से एक गीत रायगढ़ के स्वतंत्रता सेनानी बंदे अली फातमी का लिखा हुआ था ‘‘यंत्रणा तुम्हारी कर सकती कब मुझको विचलित’’। यात्रा में साथ चल रहीं जेएनयू इप्टा की वर्षा ने ध्रुव गुप्त की कविता का पाठ किया। अंत में नाचा थियेटर के निसार अली ने अपने साथियों के साथ लोकगीत, लोकनृत्य और गम्मत प्रस्तुत किया। कार्यक्रम का संचालन अपर्णा ने किया। यात्रा में अनिल करमेले, अरुण काठोटे और पंकज दीक्षित के बनाए 24 कविता-पोस्टर हर जगह प्रदर्शित किये जा रहे थे।

12 अप्रैल, 2022 की सुबह चाय-नाश्ते के बाद नाचा थियेटर के छै साथियों को साथी राकेश ने स्मृतिचिह्न प्रदान कर भारी मन से रायपुर के लिए विदा किया। साथी ईश्वर दोस्त ने भी विदा ली। इप्टा रायगढ़ ने गीतों के साथ रायगढ़ के बिछुड़ गए साथी अजय आठले को याद करते हुए यात्रा को अंबिकापुर के लिए रवाना किया। दस यात्री दो गाड़ियों में अपेक्षाकृत लम्बे रास्ते पर निकल पड़े। ऊबड़खाबड़ धूलभरे रास्तों पर चलते और हिचकोले खाते हुए ढाई आखर प्रेम का काफिला शाम को अंबिकापुर पहुँचा। यात्रा में चल रहे सभी साथियों का दरिमा चैक पर क्षेत्रीय इप्टा और प्रगतिशील लेखक संघ की इकाई द्वारा पुष्पगुच्छ भेंट कर स्वागत किया गया। शाम को खुले मंच पर कार्यक्रम प्रारम्भ हुआ। अंबिकापुर इप्टा के वरिष्ठ साथी प्रितपालसिंह ने इकाई की गतिविधियों को प्रोजेक्टर पर प्रस्तुत किया। उसके बाद स्थानीय इकाई ने कबीर के दो गीत ‘हाशियार रहना रे नगर में चोर आएगा’ तथा ‘झीनी झीनी बीनी रे चदरिया’, ‘मैं इंकलाब हूँ’ तथा ‘कौन आज़ाद हुआ किसके माथे से स्याही छूटी’ जनगीत गाए। निसार अली ने ‘दमादम मस्त कलंदर’ डफली के साथ गाकर समाँ बाँधा।

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उल्लेखनीय बात यह रही कि इप्टा के राष्ट्रीय महासचिव राकेश को अंबिकापुर इप्टा के वरिष्ठ साथी प्रितपाल सिंह ने भगतसिंह की डायरी के पृष्ठ क्र. 61 की प्रतिलिपि भेंट की, जिसमें एंगेल्स और लेनिन की किताबों से डिक्टेटरशिप पर लिखे गये भगतसिंह के नोट्स हैं। महासचिव साथी राकेश ने यात्रा का मकसद स्पष्ट करते हुए सफदर हाशमी को याद किया, जिनका उसी दिन 12 अप्रैल को जन्मदिन था। सफदर हाशमी ने अपना समूचा जीवन जन-चेतना पैदा करने वाले नाटकों को समर्पित किया था। सफदर के साहस और निडरता से प्रेरणा लेकर इप्टा के साथी भी जन-जागरण में जुटे हुए हैं। हमारा उद्देश्य है कि आज इंसानों को जो आपस में बाँटा जा रहा है, उसे जोड़ने, आपस में भाईचारा स्थापित करने का प्रयास करना है। यात्रा में सम्मिलित साथियों ने तथा अंबिकापुर इप्टा के साथियों ने जनगीत प्रस्तुत किये।

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कार्यक्रम के मध्य में लॉकडाउन के दौरान अंबिकापुर से झारखंड, बिहार, मध्यप्रदेश तथा उत्तरप्रदेश की ओर जाने वाले प्रवासी मज़दूर साथियों की बुरी हालत में स्वास्थ्य, भोजन, वस्त्र, जूते-चप्पल तथा आवागमन की सुविधा निरंतर मुहैया करने वाले प्रधान आरक्षक श्री देवनारायण नेताम को उनकी इंसानियत की भावना एवं कार्य के लिए सम्मानित किया गया। इसीतरह शहर को स्वच्छता के क्षेत्र में देश में अग्रणी बनाने वाली स्वच्छता दीदियों को भी मंच पर महासचिव साथी राकेश ने सम्मानित किया। झारखंड इप्टा के महासचिव तथा राष्ट्रीय सचिव प्रखर वक्ता शैलेन्द्र कुमार ने अपने उद्बोधन में प्रेम को अचूक अस्त्र बताते हुए कहा कि प्रेम से सारी समस्याओं का हल हो जाता है। प्रेम समाज में बंधुता को जन्म देता है। इप्टा इसी लक्ष्य को लेकर आगे बढ़ रही है। इस अवसर पर अंबिकापुर के अनेक सहयोगी संगठनों के लोग काफी बड़ी संख्या में सम्मिलित हुए थे।

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रात्रि विश्राम के बाद छत्तीसगढ़ से निकलकर सांस्कृतिक यात्रा ने दोपहर को झारखंड में प्रवेश किया। डाल्टनगंज पहुँचकर छत्तीसगढ़ इप्टा के अध्यक्ष मणिमय मुखर्जी ने झारखंड इप्टा के अध्यक्ष डाॅ. अरूण शुक्ला को इप्टा का झंडा तथा ‘साझी शहादत-साझी विरासत’ के प्रतीक पात्र को छत्तीसगढ़ के विभिन्न स्थानों की मिट्टी सहित सौंपा।

छत्तीसगढ़ में ढाई आखर प्रेम की यात्रा ने हिंदी के महत्वपूर्ण साहित्यकार गजानन माधव मुक्तिबोध की कर्मस्थली से मिट्टी इकट्ठी करते हुए रायपुर-बिलासपुर-रायगढ़ के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को सम्मानित एवं याद करते हुए कबीर, ज्योतिबा फुले, डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर, महात्मा गांधी से लेकर सफदर हाशमी से साहस और प्रेरणा लेते हुए आदिवासी विद्रोह की कर्मभूमि झारखंड में प्रवेश किया। छत्तीसगढ़ में सम्पन्न हुई इस यात्रा की विशेषता यह भी रही कि इसमें नाचा-गम्मत के छै लोक कलाकार, युवा पत्रकार साथी मृगेन्द्र सिंह तथा युवा चित्रकार कुश शामिल रहे। मृगेन्द्र एवं कुश पूरी सवा महीने की यात्रा के दौरान प्रतिदिन के अवलोकन और गतिविधियों की ताज़ा रिपोर्टिंग तथा स्केचेस बनाकर सोशल मीडिया पर पोस्ट कर रहे हैं। इप्टा की सांस्कृतिक यात्रा न केवल प्रेम और सद्भाव का संदेश फैलाने वाली यात्रा है, बल्कि अलग-अलग प्रदेशों की लोक-परम्परा, साहित्यिक परम्परा तथा ऐतिहासिक व्यक्तित्वों और घटनाओं को समझने, आत्मसात करने की भी यात्रा है।

 

मृगेन्द्र अशोकनगर इप्टा के युवा साथी हैं और  9 अप्रैल से 22 मई तक यात्रा के साथ हैं।

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