इन दिनों मैं पटना अपने गांव ब्रह्मपुर में अपने घर पर हूं। यह मौका बहुत खास है। मेरी बड़ी भतीजी निधि और बड़े भतीजे रौशन की शादियां हैं। करीब 18 साल बाद मेरे घर में यह मौका आया है। हालांकि अभी यह नहीं कह सकता कि पटना कितने दिन तक रूकूंगा। निधि की शादी 5 दिसंबर को तथा रौशन की शादी 13 दिसंबर को है। फिलहाल योजना यह है कि निधि की शादी तक तो रहूंगा ही। हालांकि ब्राह्मणवादी कर्मकांडों के कारण मेरी खुशियाें में कमी आयी है। जिस तरह से ब्राह्मणवाद मेरे घर और समाज में फैलता जा रहा है, उसे सोचकर मैं हैरान हूं। इसके अलावा बेवजह धन का प्रदर्शन भी मुझे सकते में डाल रहा है। मैं यह सोच रहा हूं कि जितनी धनराशि निधि की शादी में खर्च की जा रही है, उसकी आधी भी यदि उसकी पढ़ाई में खर्च की जाती तो मुमकिन था कि वह अपनी सफलता की राह स्वयं बना लेती।
खैर, मैं कुछ नहीं कर सकता। इसलिए मैंने यह तय किया है कि जहां तक संभव हो, कुरीतियों का विरोध करूं। लेकिन किसी का दिल दुखाकर नहीं। बस अपना विरोध जताना है और लोगों को समझाने की कोशिशें करनी है। वह भी बिना इसकी परवाह किए कि कौन कितना समझता है और नहीं समझता है।
[bs-quote quote=”मैं महेंद्र मांझी की गिरफ्तारी के दूसरे दिन उनके घर गया था। उनकी पत्नी गर्भवती थीं और अहाते में दो बच्चे खेल रहे थे। घर का चूल्हा ठंडा था। उनके घर को पुलिस ने घेर रखा था। थोड़ी ही दूरी पर एक जेसीबी खड़ी थी। मालूम चला कि सरकार महेंद्र मांझी के घर को जेसीबी से ढाह देगी। इसके लिए पटना के सीनियर एसपी तक वहां मौजूद थे। महेंद्र मांझी की पत्नी के गले से आवाज नहीं निकल रही थी। तब भी वह रिरिया रही थी कि उसके पति ने शराब नहीं पी और ना ही बेची। कोई उसके पति को पुलिस से छुड़वा दे।” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]
अपने आपको कर्मकांडों के कारण होनेवाली बोरियत को ध्यान में रखते हुए ही मैंने तय किया था कि मैं अपना काम नियमित रूप से करता रहूंगा। इसका फायदा मुझे मिल रहा है। परिजनों ने भी मान लिया है कि मैं समझनेवाला नहीं हूं और मुझे मेरे हाल पर छोड़ दिया है। यह मेरे लिए बेहतर ही है। वैसे भी एक पत्रकार के लिए खबरों से महत्वपूर्ण कुछ भी नहीं।
अब एक खबर कल की है। विधान सभा में पार्किंग स्थल पर शराब की खाली बोतलें मिलीं। कल इसे लेकर विधानसभा के अंदर जमकर हंगामा हुआ। विपक्ष के नेता तेजस्वी प्रसाद यादव ने सरकार को आड़े हाथों लिया। वहीं सत्ताधारी दल जदयू और भाजपा ने इसे राजद की ओर से की गयी साजिश करार दिया। हालांकि उन्होंने राजद पर आरोप नहीं लगाए, लेकिन उनकी बौखलाहट देखने लायक थी। तेजस्वी यादव ने हालांकि संसदीय मर्यादा का पालन करते हुए ‘बिलो द बेल्ट’ प्रहार नहीं किया, लेकिन जो किया, वह 65-66 साल के वृद्ध नीतीश कुमार के लिए असहनीय था।
भारत की साहसी न्यायपालिका और जोतीराव फुले का स्मरण (डायरी 28 नवंबर, 2021)
तो इस मामले में विधानसभा अध्यक्ष ने भी टिप्पणी की और पूरे मामले को गंभीर बताया। मुख्यमंत्री के आदेश पर राज्य के मुख्य सचिव और डीजीपी स्वयं शराब की बोतलों का मुआयना करने गए। यह दृश्य तो वाकई लाजवाब था। पहले तो मुझे लगा कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इस घटना के लिए नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए कुछ शब्द कहेंगे। परंतु, उन्होंने नैतिकता को दूर रखते हुए केवल इतना ही कहा कि शराबबंदी को लेकर उनकी सरकार सख्त है।
मैं पटना के ही महेंद्र मांझी को याद कर रहा हूं। मुझे लगता है कि वह बिहार के संभवत: पहले व्यक्ति रहे, जिनके घर से शराब की बोतलें मिली थीं और उनके घर को बिहार सरकार ने ढाह दिया था। महेंद्र मांझी का घर एक नहर के किनारे था। उनके पास बासगीत का कागज तक नहीं था। वह गैरमजरूआ जमीन पर एक झोपड़ी बनाकर रहते थे (अब वे कहां हैं और उनका परिवार कहां रहता है, जानकारी नहीं है)। अपनी झोपड़ी के आगे ही उन्होंने मिट्टी की दीवार बनाकर अपने लिए अहाता का इंतजाम कर रखा था। उनकी झोपड़ी एकदम सड़क के किनारे थी। मुमकिन है किसी दूसरे ने उनके अहाते में शराब की बाेतलें फेंक दी हो।
[bs-quote quote=”विधान सभा में पार्किंग स्थल पर शराब की खाली बोतलें मिलीं। कल इसे लेकर विधानसभा के अंदर जमकर हंगामा हुआ। विपक्ष के नेता तेजस्वी प्रसाद यादव ने सरकार को आड़े हाथों लिया। वहीं सत्ताधारी दल जदयू और भाजपा ने इसे राजद की ओर से की गयी साजिश करार दिया। हालांकि उन्होंने राजद पर आरोप नहीं लगाए, लेकिन उनकी बौखलाहट देखने लायक थी। तेजस्वी यादव ने हालांकि संसदीय मर्यादा का पालन करते हुए ‘बिलो द बेल्ट’ प्रहार नहीं किया, लेकिन जो किया, वह 65-66 साल के वृद्ध नीतीश कुमार के लिए असहनीय था।” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]
मैं महेंद्र मांझी की गिरफ्तारी के दूसरे दिन उनके घर गया था। उनकी पत्नी गर्भवती थीं और अहाते में दो बच्चे खेल रहे थे। घर का चूल्हा ठंडा था। उनके घर को पुलिस ने घेर रखा था। थोड़ी ही दूरी पर एक जेसीबी खड़ी थी। मालूम चला कि सरकार महेंद्र मांझी के घर को जेसीबी से ढाह देगी। इसके लिए पटना के सीनियर एसपी तक वहां मौजूद थे। महेंद्र मांझी की पत्नी के गले से आवाज नहीं निकल रही थी। तब भी वह रिरिया रही थी कि उसके पति ने शराब नहीं पी और ना ही बेची। कोई उसके पति को पुलिस से छुड़वा दे। वह इसके लिए भी गुहार लगा रही थी कि कोई उसके घर को ढाहे जाने से बचा ले। उसकी गुहार की ध्वनि अब भी मेरे कानों में गूंज रही है। तब मैं पत्थरवत खड़ा था। कुछ करना मुमकिन नहीं था। तब मेरी जेहन में एक बात आयी थी कि यदि मैं सामाजिक कार्यकर्ता होता और मेरे साथ लोग होते तो शायद मैं उस महिला का घर ढाहे जाने से रोक सकता था। वह घर जिसे उसने और उसके पति ने कितनी मेहनत से बनाया होगा। दोनों चौर से मिट्टी लाए होंगे। फिर मिट्टी की दीवार को बनाना आसान नहीं होता। इसके लिए पहले मिट्टी को खूब मिलाना होता है। और इसमें समय की बड़ी आवश्यकता होती है। मिट्टी सीमेंट तो होता नहीं है कि एक दिन में उसकी पकड़ मजबूत हो जाय। तो महेंद्र मांझी और उसकी पत्नी को अपना घर बनाने में कम से कम दो महीने का समय तो लगा ही होगा। या हो सकता है कि इससे अधिक भी। वजह यह कि उसके घर में तीन छोटे-छोटे कमरे थे और एक चुल्हानी। घर में शौचालय नहीं था। पीने के पानीे का इंतजाम उन्होंने सरकारी चापाकल से कर रखा था।
तो हुआ यह कि करीब दस मिनट के बाद जेसीबी को लाया गया और एक मिनट के अंदर ही महेंद्र मांझी और उनकी पत्नी का घर ढाह दिया गया। महेंद्र मांझी की पत्नी ने गुहार लगाना छोड़ मलबे से अपने लिए आवश्यक चीजों को निकालना शुरू कर दिया। उसकी आंखों से आंसुओं का निकलना बंद हो गया था। लेकिन मेरी आंखें नम थीं।
खैर, पटना जिला प्रशासन ने उपरोक्त कार्रवाई शराबबंदी कानून के एक प्रावधान के अनुसार किया था। इसमें प्रावधान है कि यदि किसी के घर से शराब की खाली बोतल मिली उसके घर को सरकार जब्त कर लेगी। चूंकि महेंद्र मांझी के पास तो जमीन ही नहीं थी। वह भूमिहीन था और नहर के किनारे गैरमजरूआ जमीन पर झोपड़ी बनाकर रह रहा था। तो उसकी झोपड़ी पर कब्जा करने का कोई मतलब नहीं था।
मैं सोच रहा हूं कि बिहार विधानसभा के अहाते में भी कल शराब की बाेतलें मिली हैं और यह भी कि तकनीकी दृष्टिकोण से महेंद्र मांझी की झोपड़ी और बिहार विधानसभा में क्या कोई अंतर है?
कल ही एक कविता जेहन में आयी थी–
यह जो मुल्क रहता है
मेरे आगे हर पहर
हमेशा एक-सा नहीं रहता।
बाजदफा यह मुल्क
वह मुल्क नहीं होता है
जिसकी चर्चा संसद में होती है
और मेजें थपथपायी जाती हैं।
कई बार तो यह मुल्क
वह मुल्क नहीं होता है
जो अखबारों में
रोज-रोज छापा जाता है।
अनेक बार यह मुल्क
वह मुल्क नहीं होता है
जो धरती के एक निचले हिस्से में
लटकता नजर आता है।
अक्सर यह मुल्क
वह मुल्क नहीं होता है
जिसका दावा हुक्मरान
गाहे-बेगाहे रोज करता है।
हां, हर बार जब गुजरता हूं
राजपथ के फुटपाथ की बस्तियों से
यह मुल्क मुल्क नहीं
कोई श्मशान-कब्रिस्तान लगता है।
नवल किशोर कुमार फॉरवर्ड प्रेस में संपादक हैं।
[…] दलित की झोपड़ी बनाम बिहार विधानसभा का … […]