पुण्यतिथि पर याद करते हुये
आज माउंटेन मैन कहे जाने वाले दशरथ माँझी की पुण्यतिथि है। यदि मुझसे पूछा जाय कि आप उन पाँच महान हस्तियों के नाम बताइए जिन्होंने आपको अभिभूत कर रखा है तो उनमें दशरथ माँझी का नाम अवश्य होगा। गाँधी जी के बाद सर्वाधिक प्रभावित करने वाली शख़्सियतों में मेरे लिए दशरथ माँझी का ही नाम है। हालाँकि, दशरथ माँझी के कर्म की लोक व्यापकता गाँधी जी की तुलना में सीमित है। लेकिन असंभव को संभव करने की क्षमता और संघर्ष अपने-अपने वृत्तों में दोनों की असाधारण कही जाएगी।
दोनों अपने व्यक्तिगत क्षोभ की दिशा को सार्वजनिक कल्याणार्थ एक निश्चित लक्ष्य की ओर मोड़ते हैं और वह कर गुज़रते हैं जो मानव-महिमा का दृष्टांत बन जाता है। दोनों के कार्यों में एक अद्भुत सादगी और रचनात्मकता है। मनुष्य के हृदय में बसे प्रेम में वह महान शक्ति है जो संसार में चमत्कार रच देती है। गाँधी जी का देश- प्रेम और दशरथ माँझी का पत्नी-प्रेम अपने त्याग और समर्पण के नाते मूल्यवान रूप से प्रेरक और आदर्श हैं।
“दशरथ माँझी का जज़्बा धनशक्तिविहीन एक अलग जज़्बा है जो ख़ुद के बूते का है और जिसे कहीं से कोई सहारा नहीं है। बल्कि आजीविका के दारुण संघर्षों के साथ पहाड़ काटने की चुनौती है और हृदय बेधने के लिए समुदाय की हतोत्साहित करने वाले बाणों की वर्षा भी झेलने की विवशता है। इतनी नकारात्मक परिस्थितयों में सपने को साकार करना दाँतों तले उँगली दबाने को मजबूर करता है। तभी तो आज हैरत से लोग दशरथ माँझी की बनाई चट्टानी सड़क को देखते हैं।”
अपनी पत्नी के प्रेम और फिर विरह में डूबे दशरथ माँझी ने अपनी पत्नी के नाम अपनी सामान्य-सी छेनी-हथौड़ी के द्वारा पहाड़ की चट्टानें काटकर 110 मीटर लम्बा, 9 मीटर चौड़ा और 8 मीटर गहरा रास्ता बनाने का जो कमाल किया है वह हम लैला-मजनूं की कथाओं में ही हम पढ़ते रहे हैं। बा-कमाल शिल्प में अपने प्रेम को ढालकर अमर बना देने का दशरथ माँझी का जज़्बा शाहजहां के जज़्बे से कम नहीं है।
बल्कि कहें कि दशरथ माँझी का जज़्बा धनशक्तिविहीन एक अलग जज़्बा है जो ख़ुद के बूते का है और जिसे कहीं से कोई सहारा नहीं है। बल्कि आजीविका के दारुण संघर्षों के साथ पहाड़ काटने की चुनौती है और हृदय बेधने के लिए समुदाय की हतोत्साहित करने वाले बाणों की वर्षा भी झेलने की विवशता है। इतनी नकारात्मक परिस्थितयों में सपने को साकार करना दाँतों तले उँगली दबाने को मजबूर करता है। तभी तो आज हैरत से लोग दशरथ माँझी की बनाई चट्टानी सड़क को देखते हैं।
दशरथ माँझी का जन्म 14 जनवरी 1929 को बिहार में गया के निकट गहलौर गाँव में हुआ था। जैसा कि उस समय रस्म थी उनकी शादी बचपन में ही फाल्गुनी देवी के साथ हो गई थी। दशरथ माँझी को अपनी पत्नी से बेहद प्यार था जो रोज़ उन्हें खाना पहुँचाने गहलौर पहाड़ की रपटीली पगडंडियों से होकर जाती थी। एक दिन ऐसा हुआ कि पहाड़ के रपटीले रास्ते से दशरथ माँझी को खाना पहुँचाने जाते वक़्त फाल्गुनी देवी लड़खड़ाकर गहरी खाईं में गिर जाती हैं और उनकी मृत्यु हो जाती है। दशरथ माँझी अत्यंत वेदना और ग्लानि से भर जाते हैं और उसी दम प्रण करते हैं कि जिस पहाड़ ने रास्ते के कारण उनकी पत्नी की जान ली है वे उसे काटकर रास्ता बना देंगे जिसके बाद कोई गिरकर अपनी जान नहीं देगा।
“दशरथ माँझी के अमर प्रेम में दशरथ माँझी की पत्नी जीवित रहीं और उनके लिए वे पहाड़ काटकर रास्ता बनाते रहे। इस काम में उन्हें बाइस साल लग गए और आख़िर में एक दिन रास्ता तैयार था एक असंभव सपने की तरह। अक्सर चाँदनी रातों में दशरथ माँझी उस रास्ते को उसी तरह निहारते रहते थे जिस तरह बादशाह शाहजहां अपने ताजमहल को निहारता रहता था।”
पहाड़ काटकर रास्ता बनाने का उनका जनून और पत्नी के प्रति उनकी दीवानगी देखकर लोग उन्हें समझाते कि इस असंभव काम को छोड़ो ! तुम रास्ता बना भी लोगे तो तुम्हारी पत्नी जीवित नहीं हैं कि उस पर वह चलेंगी। दशरथ माँझी को यह बात तीर-सी चुभती और वे तड़प उठते, चिल्ला उठते कि बकवास बंद करो ! तुम्हारे लिए मेरी पत्नी मरी है मेरे लिए नहीं।
सचमुच दशरथ माँझी के लिए उनकी पत्नी मरी नहीं थीं बस वे अशरीरी या दुनिया के लिए अदृश्य हो गई थीं। दशरथ माँझी के अमर प्रेम में दशरथ माँझी की पत्नी जीवित रहीं और उनके लिए वे पहाड़ काटकर रास्ता बनाते रहे। इस काम में उन्हें बाइस साल लग गए और आख़िर में एक दिन रास्ता तैयार था एक असंभव सपने की तरह। अक्सर चाँदनी रातों में दशरथ माँझी उस रास्ते को उसी तरह निहारते रहते थे जिस तरह बादशाह शाहजहां अपने ताजमहल को निहारता रहता था।
दशरथ माँझी का अनन्य प्रेम और जीवटतम परिश्रम जनकल्याण का वह काम शून्य लागत पर कर गया जो सरकार करती कि नहीं करती और करती तो जनता का धन पानी की तरह कितना बहाती, कहा नहीं जा सकता है। इस रास्ते ने उस क्षेत्र की आबादी के लिए चालीस किलोमीटर की दूरी कम कर दी। दशरथ माँझी को सलाम !
दशरथ माँझी 2007 में दुनिया से विदा हो गये लेकिन दशरथ माँझी का पहाड़ काटकर बनाया हुआ रास्ता आज जनता के काम आ रहा है और हमें पुलकित कर रहा है अपने बनने की मार्मिक कहानी से जिसमें प्रेम, संघर्ष और त्याग पराकाष्ठा पर हैं। इस कहानी पर कई फ़िल्में बन चुकी हैं और न जाने कितनी कविताएँ लिखी जा चुकी हैं !
आज के दिन दशरथ माँझी को शिद्दत से याद करते हुए मैं भी अपनी एक कविता उन्हें समर्पित करता हूँ।
पाँच सौ मीटर की दूरी
पांच सौ मीटर की दूरी
पांच किलोमीटर की हो जाती है
या उससे भी पार
जब कोई पहाड़ आ जाता है
जब कोई नदी आ जाती है
जब कोई पहाड़ काट देता है
जब कोई नदी के दोनों पाट बांध देता है
पांच सौ मीटर की दूरी
पांच सौ मीटर ही रह जाती है
इसके लिए
देखना है कि
विशुद्ध वणिक सरकार आती है
या सच्चा प्यार
किसी का
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति।