25 सितंबर को उत्तर प्रदेश के प्रगतिशील भोजपुरी समाज ने भोजपुरी भाषा से लगाव रखने वाले मिर्जापुर के साथ सभी 26 जिला मुख्यालयों में भोजपुरी भाषा को भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने के लिए एक दिवसीय धरना आयोजित हुआ और समाप्त भी हो गया। लंबे समय से भोजपुरी भाषा को संवैधानिक दर्जा दिये जाने की मांग की जा रही है।
आज मिर्जापुर, पश्चिमी बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश के 27 जिलों के 14-15 करोड़ भोजपुरिया लोगों को भोजपुरी भाषा के संवैधानिक मान्यता न होने के कारण भाषायी अवदमन का शिकार होना पड़ रहा है।
दुनिया के 16 देशों में लगभग 25 करोड़ लोगों की मातृभाषा भोजपुरी है। नेपाल और मॉरीशस में भोजपुरी को संवैधानिक मान्यता प्राप्त है।
भोजपुरी की सांस्कृतिक विरासत बहुत समृद्ध और पुरानी है। हिन्दी सिनेमा में सबसे ज्यादा जिस लोक भाषा का उपयोग हुआ है, वह है भोजपुरी। हिन्दी सिनेमा में भोजपुरी भाषा को गाँव-देहात व कॉमेडी की भाषा के रूप में प्रस्तुत कर इसका दायरा भले ही संकुचित कर दिया गया हो लेकिन यह वैभवशाली और समृद्ध भाषा है।
पूरे देश में बोली जा रही क्षेत्रीय भाषाओं में भोजपुरी के गाने, लोकगीत और साहित्य दूर-दूर तक पहुंचा है, लोग इस भाषा के गानों और लोकगीतों के दीवाने हैं। भोजपुरी फिल्म उद्योग एक बड़ा फिल्म उद्योग हैं, जहां से हजारों लोगों की रोजी-रोटी चलती है।
क्षेत्रीय स्तर पर प्राथमिक शिक्षा यदि वहीं की भाषा में दी जाये तब शैक्षिक स्तर में निश्चित ही सुधार आएगा क्योंकि मनुष्य को शैशव से युवावस्था तक मातृभाषा के साथ सांस्कृतिक धरोहर विरासत के रूप में प्राप्त होती है। हम सभी की मातृभाषा ही हमारे भावनात्मक और वैचारिक अभिव्यक्ति का सहज, सुगम और सुस्पष्ट माध्यम है।
भोजपुरी भाषा में किसी भी उन्नत भाषा के सभी गुण और लक्षण मौजूद है। भोजपुरी व्याकरण, शब्दोकोश, लोक संस्कृति एवं लिखित साहित्य अत्यन्त समृद्ध है। भारत के प्रथम राष्ट्रपति डा. राजेन्द्र प्रसाद एवं दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जैसे श्रेष्ठ राजनेता, संत कबीर, गुरु गोरखनाथ, संत रविदास जैस महान संत, मुंशी प्रेमचन्द, राहुल सांकृत्यायन जैसे महान लेखक एवं उपन्यासकार,
बाबू वीर कुंवर सिंह, भिखारी ठाकुर आदि इसी भोजपुरी इलाके बड़े लेखक और कवि हुए। इसके बावजूद 14-15 करोड़ की मातृभाषा भोजपुरी को अभी तक भारती संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल नहीं किया गया है
भोजपुरी को आठवीं अनुसूची में शामिल होने की शुरुआत
भोजपुरी को आठवें अनुसूची में शामिल करने की यह मांग पहली बार नहीं हुई है बल्कि 1971 में सीपीआई सांसद भोगेंद्र झा ने पहली बार संसद में इस बिल को पेश किया था जिसे नामंज़ूर कर दिया गया।
वर्ष 2009 और 2016 में योगी आदित्यनाथ ने भी लोकसभा में इस मुद्दे को उठाया था। वर्ष 2013 में भाजपा के पूर्व उप मुख्यमंत्री रहे सुशील मोदी ने भी वादा किया था भाजपा सरकार बनने के बाद भोजपुरी को आठवीं अनुसूची में शामिल किया जाएगा।
इस क्षेत्र में कोई बड़े कल कारखाने नहीं है जो यहां के किसानों मजदूरों को रोजगार प्रदान कर सके। देश के हर प्रदेशों में बिहार और उत्तर प्रदेश के प्रवासी मजदूर कमाने-खाने जाते हैं, तब यहाँ की भाषा भी यहाँ से प्रवास करता है।
वैसे तो भोजपुरी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करके इसे संवैधानिक मान्यता देने के सम्बन्ध में अर्से से लड़ाई लड़ी जा रही है, लेकिन समाधान अभी नहीं निकला है। समय-समय पर आंदोलन धरना प्रदर्शन भी होते आएं हैं। सत्ता शीर्ष से जुड़े हुए लोगों से भी मांग की गई, लेकिन कोरे आश्वासनों के सिवाय अभी तक कुछ हासिल नहीं हो पाया है।
भोजपुरी ने दिलाई शोहरत, पर इन्होंने भी साध ली है चुप्पी
70 प्रतिशत लोगों की सामाजिक, सांस्कृतिक एवं आर्थिक स्थिति अति दयनीय है। मातृभाषायी अवदमन के कारण भोजपुरी भाषा-भाषी लोग आज हीन भावना से ग्रसित है।
सरकार और गैर सरकारी कार्यालयों एवं प्रतिष्ठानों में, न्यायालयों में, शैक्षणिक संस्थानों में भोजपुरी भाषा का व्यवहार न होने के कारण आम भोजपुरिया लोग अपने भावों और विचारों को ठीक से व्यक्त नहीं कर पा रहे है। परिणामस्वरूप उन्हें कर्मचारियों एवं अधिकारियों द्वारा प्रताड़ना और शोषण का शिकार होना पड़ता है।
आज बहुत से कलाकार भोजपुरी भाषा से कमा-खा रहे हैं। लेकिन उनके द्वारा इस पक्ष में कोई ठोस कदम नहीं उठाया जा रहा है।
भोजपुरी मातृभाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने हेतु प्रगतिशील भोजपुरी समाज पिछले कई वर्षों से प्रयासरत है। इस क्षेत्र के कई सांसदों द्वारा भी इसके लिए संसद में आवाज उठाई गई है। गोरखपुर के सांसद रवि किशन, दिल्ली के सांसद मनोज तिवारी एवं आजमगढ़ के सांसद दिनेश लाल यादव उर्फ निरहुआ ने संसद में भोजपुरी भाषा को संवैधानिक मान्यता प्रदान करने के लिए संसद में आवाज उठाई थी, किन्तु अभी तक भोजपुरी भाषा को संवैधानिक मान्यता नहीं प्राप्त हो सकी।
प्रगतिशील भोजपुरी समाज ने प्रधानमंत्री के वाराणसी स्थित कैम्प कार्यालय के माध्यम से भी इस मांग को भिजवाया है, लेकिन इस मांग पर अब तक कोई ध्यान नहीं दिया गया।
प्रगतिशील भोजपुरी समाज मिर्ज़ापुर के जिलाध्यक्ष रामकेश पाल एडवोकेट कहते हैं कि यूपी से बिहार तक भोजपुरी भाषा का अपना प्रभाव है, बावजूद इसकी अनदेखी होती आई हैं। भोजपुरिया समाज के अनेक लोगों लंबा संघर्ष कर अपने को स्थापित किया। लेकिन उनमें से अधिकतर लोग भोजपुरी भाषा के उत्थान के लिए आवाज उठाना तो दूर साथ खड़े होने में भी हिचकते हैं। उनका कहना है कि ‘आशा अऊर विश्वास बा कि हमनी के ई महत्वपूर्ण मांग पर जरूर ध्यान दिहल जाई।‘
जहां भोजपुरी समाज और भाषा को संवैधानिक दर्जा दिए जाने की पुरजोर वकालत हुई, वहीं महामहिम राष्ट्रपति भारत सरकार को संबंधित जिलों के जिलाधिकारी के माध्यम से ज्ञापन सौंपा गया। राष्ट्रपति को भेजें गए ज्ञापन में ऐसे महत्वपूर्ण विषय पर ध्यान देकर अपने स्तर से आवश्यक कार्यवाही पूरी कर मातृभाषा भोजपुरी को संवैधानिक दर्जा प्रदान करने की मांग की गई।