माँ/एक बोझा लकड़ी के लिए/क्यों दिन भर जंगल छानती/पहाड़ लाँघती/देर शाम घर लौटती हो?/माँ कहती है :/जंगल छानती/ पहाड़ लाँघती/ दिन भर भटकती हूँ/ सिर्फ सूखी लकड़ियों के लिए/कहीं काट न दूँ कोई जिंदा पेड़!
स्वतंत्र पत्रकार एवं कवियत्री जसिंता केरकेट्टा की यह कविता आदिवासियों के जंगल के प्रति प्रेम की एक शाश्वत अभिव्यक्ति है। बीते सप्ताह से हसदेव के जंगलों में पेड़ों की कटाई जारी है। लगभग 30,000 से अधिक पेड़ काटे जा चुके हैं। स्थानीय आदिवासी जंगल में पेड़ों की कटाई के विरोध में पिछले 600 दिनों से आंदोलन कर रहे हैं। आदिवासियों एवं पर्यावरणीय चिंताओं की अनदेखी कर कोयला खदानों के लिए हसदेव के जंगलों को साफ किया जा रहा है। आदिवासियों समेत वनों में रहने वाले जीव-जंतुओं से उनका आवास छीना जा रहा है। सोशल मीडिया पर वायरल भालू के दो नवजातों की तस्वीर आपने देखी होगी। हसदेव में पेड़ों की कटाई के चलते 2 नवजात भालू अपनी माँ से बिछड़ गए हैं। हसदेव अरण्य के आदिवासी “अडानी कंपनी वापस जाव” के नारों के साथ जंगल में पेड़ों की कटाई का विरोध कर रहे हैं।
भालू के ये दो नवजात अपनी माँ से बिछड़ गए.
इनमें एक काला है और एक पूरी तरह से सफ़ेद,जो दुर्लभ है.
ये दोनों उसी सरगुजा के जंगल में मिले हैं, जिसके हसदेव अरण्य को ख़त्म किया जा रहा है.
जैव विविधता से भरपूर हसदेव जैसे जंगल को नष्ट करने का दूसरा कोई उदाहरण इतिहास में नहीं मिलेगा. pic.twitter.com/5NXObqo3gq
— Alok Putul (@thealokputul) December 28, 2023
भारत के फेफड़ा कहलाते हैं हसदेव के जंगल
हसदेव अरण्य मध्य भारत में स्थित एक विशाल वन है। हसदेव अरण्य को भारत का फेफड़ा भी कहा जाता है। यह छत्तीसगढ़ राज्य के कोरबा, सरगुजा एवं सूरजपुर जिले के बीच में स्थित है। सरगुजा जिले की पहाड़ियों से निकलने वाली हसदेव नदी यहां बहती है। यह सम्पूर्ण वन क्षेत्र 1,70,000 हेक्टेयर क्षेत्र में फैला है। जैव-विविधता की दृष्टि से हसदेव अरण्य भारत का महत्वपूर्ण वन क्षेत्र है। भारतीय वन्यजीवन संस्थान की रिपोर्ट के मुताबिक हसदेव अरण्य गोंड, लोहार, ओरांव, पहाड़ी कोरवा आदिवासी जातियों के 10000 लोगों का घर है। यहां 92 प्रजाति के पक्षी, दुर्लभ प्रजाति की तितलियाँ और 167 प्रकार की वनस्पतियाँ पाई जाती हैं। हसदेव अरण्य छत्तीसगढ़ के हाथियों का आवास भी है। प्राकृतिक संसाधनों एवं खनिजों से संपन्न हसदेव पर देश के पूंजीपतियों की नजरें गड़ी हुई हैं।
हसदेव वन क्षेत्र में कुल ज्ञात 23 कोयला भंडार हैं। 2015 में केंद्र की भाजपा सरकार ने छत्तीसगढ़ की 5 कोयला खदानों का आवंटन किया था। जिसमें हसदेव की तीन कोयला खदान-परसा ईस्ट केते बासन, परसा तथा केंते एक्सटेंशन का आवंटन राजस्थान में बिजली का निर्माण करने वाली कंपनी राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड को किया गया है। इन तीनों ही खदानों के एमडीओ अदाणी समूह के पास हैं। अदाणी की कंपनी इन कोयला खदानों को तैयार एवं संचालित करेगी। छत्तीसगढ़ की कुल सात कोयला खदानों का एमडीओ समझौता अदाणी समूह के पास है ।
हसदेव जंगल की कटाई मामले में कांग्रेस एवं भाजपा दोनों ने आदिवासियों को छला
सर्वप्रथम कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने बिजली उत्पादन हेतु हसदेव अरण्य के परसा ईस्ट केते बासन कोयला खदान का आबंटन किया था। रमन सिंह के नेतृत्व वाली छत्तीसगढ़ की भाजपा सरकार ने राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड को कोयले के खनन हेतु वन क्षेत्र के गैरवानिकी उपयोग की अंतिम अनुमति एवं वन स्वीकृति जारी की थी। सरकार के इस कदम से ही हसदेव अरण्य के विनाश की शुरुआत हुई।
इस कोयला खदान की मंजूरी एवं आबंटन हेतु प्रस्तावित अन्य कोयला खदानों का स्थानीय आदिवासियों ने विरोध किया। आदिवासियों के इस विरोध को पर्यावरणविदों एवं सामाजिक कार्यकर्ताओं का भी साथ मिला। पिछले 11 वर्षों से हसदेव के आदिवासी अपने जल-जंगल-जमीन को बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं। वर्ष 2015 में केंद्र सरकार ने हसदेव अरण्य में परसा कोल ब्लॉक एवं केंते एक्सटेंशन कोल ब्लॉक का आवंटन भी कर दिया। जिसका आदिवासियों ने पुरजोर विरोध किया। वर्ष 2015 में कांग्रेस नेता राहुल गांधी हसदेव क्षेत्र में आदिवासियों के आंदोलन में पहुँचे थे। उन्होंने वायदा किया था कि वे हसदेव के जंगल नहीं कटने देंगे।
ये तस्वीर हसदेव अरण्य जंगल को बचाने के लिए आंदोलन कर रही आदिवासी महिलाओं के साथ राहुल गांधी और भूपेश बघेल की है.
कोंग्रेस की सरकार ने वादा किया था हसदेव का जंगल बचेगा!हो इसके उल्टा रहा है! भूपेश बघेल और अशोक गहलोत कोयला खदान खोलने के लिए रात दिन एक कर रहे हैं!
धोखेबाज़ कहीं के pic.twitter.com/D7t8cKfpAC
— Avinash Chanchal (@avinashchanchl) March 8, 2022
2018 के विधानसभा चुनाव में छत्तीसगढ़ में सत्ता परिवर्तन हुआ। कांग्रेस ने भारी बहुमत से छत्तीसगढ़ में अपनी सरकार बनाई। राजस्थान की गहलोत सरकार ने बिजली उत्पादन हेतु हसदेव में आबंटित कोयला खदानों से कोयला निकालने के लिए छत्तीसगढ़ सरकार से वन स्वीकृति मांगी।
25 मार्च 2022 को राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने रायपुर पहुंचकर छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से मुलाकत की। अशोक गहलोत ने परसा ईस्ट केते बासन कोयला खदान के दूसरे चरण (पीईकेबी-2) के कोयला खनन के लिए अनुमति देने का अनुरोध किया। इसी दिन छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा पीकेईबी-2 की वन स्वीकृति का आदेश जारी कर दिया गया।
6 अप्रैल 2022 को छत्तीसगढ़ सरकार के वन विभाग ने अडानी के एमडीओ वाली एक और खदान- परसा कोयला खदान में खनन की अनुमति भी जारी कर दी।
परसा ईस्ट केते बासन फेज-2 के तहत कुल 1136 हेक्टेयर वन भूमि के गैर वानिकी उपयोग की अनुमति दे दी गई। इसके तहत खनन गतिविधियों के लिए प्रति वर्ष 134 हेक्टेयर वन की कटाई की जानी है। पिछले वर्ष आदिवासियों के आंदोलन के बावजूद 41 हेक्टेयर जंगल को काटकर साफ कर दिया गया। लगभग 2000 से अधिक पेड़ों की कटाई हुई।
छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार के इस फैसले के खिलाफ काफी विरोध प्रदर्शन हुए। राहुल गांधी को उनका 2015 का वायदा याद दिलाया गया। तत्कालीन छत्तीसगढ़ सरकार में कैबिनेट मंत्री एवं अंबिकापुर से विधायक रहे टीएस सिंहदेव ने भी सरकार के इस फैसले का कड़ा विरोध किया। हसदेव के जंगलों को बचाने के लिए आदिवासियों का आंदोलन काफी तेज हो गया।
व्यापक विरोध प्रदर्शन के बाद हसदेव जंगल की कटाई पर राज्य सरकार ने रोक लगा दी। 26 जुलाई 2022 को छत्तीसगढ़ विधानसभा में सर्वसम्मति से संकल्प पारित किया गया। जिसके तहत केंद्र सरकार से हसदेव अरण्य में आबंटित कोयला खदानों को रद्द करने की मांग की गई।
दिलचस्प तथ्य ये है कि जब कांग्रेस के समय हसदेव में पेड़ों को काटा जा रहा था तब भाजपा ने पेड़ों की कटाई के विरोध में प्रदर्शन किया था। भाजपा ने हसदेव में पेड़ों की कटाई पर रोक लगाने की मांग की थी। देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी झारखंड की धरती से सार्वजनिक रूप से आदिवासियों से उनके जल, जंगल, जमीन पर आंच नहीं आने देने के वायदे कर चुके हैं। छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव 2023 के दौरान भाजपा ने अपने घोषणापत्र में हसदेव अरण्य में पेड़ों की कटाई कराने के लिए कांग्रेस को धोखेबाज बताया था।
आदिवासियों, पिछड़ों और दलितों को डराने का काम आज भी कांग्रेस, JMM और RJD वाले पहले की तरह ही कर रहे हैं।
मैं पूरे जनजातीय समाज और आदिवासी साथियों को आश्वस्त करता हूं, आपके जल, जंगल और ज़मीन पर कोई आंच नहीं आएगी।
आपके साथ और विश्वास से ही, यहां का विकास होगा: पीएम #नमोमय_झारखंड pic.twitter.com/UIavfjWvai
— BJP (@BJP4India) December 17, 2019
बीते माह में छत्तीसगढ़ में संपन्न हुए विधानसभा चुनाव 2023 में भाजपा को बहुमत मिलता है। मतगणना के बाद 3 दिसंबर को भूपेश बघेल ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। भाजपा की तरफ से 10 दिसंबर को विष्णु देव साय के नाम की घोषणा छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री के रूप में कर दी जाती है। 12 दिसंबर को सरगुजा कलेक्टर कुंदन कुमार को हसदेव में कटाई की अनुमति मिलती है। 13 दिसंबर को विष्णु देव साय मुख्यमंत्री पद की शपथ लेते हैं। 21 दिसंबर से सरगुजा के उदयपुर ब्लॉक में भारी पुलिस बल की तैनाती में पेड़ों की कटाई शुरू हो जाती है। पेड़ों की कटाई का विरोध करने वाले स्थानीय आदिवासियों को हिरासत में ले लिया जाता है।
छत्तीसगढ़ बचाओ अभियान के संयोजक एवं हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति के सदस्य आलोक शुक्ला कहते हैं – जब भाजपा विपक्ष में थी तब हसदेव जंगल की कटाई एवं खनन गतिविधियों का विरोध कर रही थी और सत्ता में आते ही जंगल की कटाई चालू कर दी। भाजपा से यही अपेक्षित था। अदाणी और भाजपा एक हैं।
आदिवासियों के उत्थान एवं अधिकारों के लिए कार्य करने वाले प्रसिद्ध गाँधीवादी हिमांशु कुमार कहते हैं – सत्ता के बदलने से कोई फर्क नहीं पड़ता है। जनता के मुद्दे जस के तस बने रहते हैं। छत्तीसगढ़ में कांग्रेस और भाजपा दोनों ने ही जनता को निराश किया है।
बिजली उत्पादन के नाम पर प्राकृतिक संसाधनों की लूट-
1 मई 2023 को छत्तीसगढ़ सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक शपथ-पत्र दिया था। इसमें कहा गया था – “परसा ईस्ट केते बासन कोयला खदान के दूसरे चरण में उपलब्ध 350 मिलियन टन कोयला राजस्थान के 4340 मेगावाट क्षमता के बिजली संयंत्रों की सम्पूर्ण कोयले की माँग को अगले 20 वर्षों तक पूरा करने के लिए पर्याप्त है। अतः हसदेव में किसी भी नए कोयला खदान के आवंटन एवं उपयोग की आवश्यकता नहीं है।”
आलोक शुक्ला बताते हैं – “हसदेव में पेड़ों की कटाई पाँचवी अनुसूची, पेसा अधिनियम 1996 एवं वनाधिकार मान्यता कानून का खुला उल्लंघन है। क्योंकि प्रभावित ग्राम सभाओं ने खनन के विरोध में प्रस्ताव पारित किए हैं।”
छतीसगढ़ के कुल कोयला भंडार का सिर्फ 8-10% कोयला ही हसदेव अरण्य में है। सिर्फ इतने कोयले के लिए भारत के फेफड़े कहलाने वाले हसदेव अरण्य की बर्बादी एवं पारिस्थतिकी तंत्र का विनाश किसी भी तरह से उचित नहीं ठहराया जा सकता है।
इस मामले पर गाँधीवादी कार्यकर्ता हिमांशु कुमार कहते हैं – “सरकार को बिजली बनाने के लिए जितने कोयले की जरूरत है, उद्योगपति उससे कई गुना ज्यादा कोयला चोरी से निकालते हैं। सरकार को बताया जा रहा है कि कोयले का उत्पादन कम है जबकि उस अतिरिक्त कोयले को अडानी अलग से बेच रहा है एवं अपने निजी बिजली प्लांट को भेज रहा है। जनता के संसाधनों की लूट चल रही है। इस लूट में पूंजीपतियों के साथ-साथ सिस्टम की मिलीभगत भी है।”
हसदेव में कोयला खदान के एमडीओ अदाणी के पास हैं। फाइनेंशियल टाइम्स नामक दैनिक बिजनेस अखबार की एक विस्तृत रिपोर्ट में अदाणी ग्रुप पर कोयले के आयात के संबंध में अनियमितता के आरोप लगे थे। फाइनेंशियल टाइम्स की रिपोर्ट “अदाणी के कोयला आयात का रहस्य, जिसका मूल्य खामोशी से दोगुना हो गया” में दावा किया गया है कि भारत के सबसे बड़े निजी कोयला आयातक अदाणी समूह ने बाजार मूल्य से अधिक कीमत पर कोयले का आयात किया। जिस कारण ईंधन की लागत बढ़ी एवं लाखों भारतीय उपभोक्ताओं और व्यवसायियों को बिजली के लिए अधिक भुगतान करना पड़ रहा है। हालांकि अडानी ग्रुप ने इस रिपोर्ट को एक दुर्भावनापूर्ण अभियान बताकर खारिज कर दिया था।
हसदेव अरण्य में कटाई एवं कोयला खदानों का विरोध क्यों ?
परसा ईस्ट केते बासन कोयला खदान के दूसरे चरण के लिए 134 हेक्टेयर वन क्षेत्र में हुई कटाई में अनुमानतः 30000 से 50000 पेड़ काटे जा चुके हैं। हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति के सदस्य आलोक शुक्ला बताते हैं – पीईकेबी-2 खदान के कारण पूरे घाटबर्रा गाँव को विस्थापित होना पड़ेगा।
आलोक शुक्ला आशंका व्यक्त करते हैं – ‘पीईकेबी-2 के लिए पेड़ों की कटाई के बाद परसा कोयला खदान के लिए पेड़ों की कटाई शुरू की जा सकती है। यदि ऐसा होता है तो हसदेव अरण्य के 841.5 हेक्टेयर जंगल को नष्ट किया जाएगा। परसा कोयला खदान के लिए वन मंजूरी ग्रामसभा के फर्जी प्रस्ताव के आधार पर ली गई थी। इस कोयला खदान से सरगुजा के साल्ही, हरिहरपुर, फतेहपुर, घाटबर्रा एवं सूरजपुर जिले के जनार्दनपुर, तारा गाँव सीधे तौर पर प्रभावित होंगे।’
इन खदान विस्तार परियोजनाओं से 6-7 गांव सीधे तौर पर एवं 15-20 गांव आंशिक तौर पर प्रभावित होंगे। लगभग 10 हजार आदिवासियों को अपना घर गंवाना पड़ सकता है।
गाँधीवादी कार्यकर्ता हिमांशु कुमार बताते हैं – ‘आदिवासियों का सम्पूर्ण जीवन जंगल पर आधारित है। वहां की वर्षा, खेती, पानी, आजीविका, आवो-हवा सब कुछ जंगल पर आधारित है। इन कोयला परियोजनाओं का लक्ष्य जंगल को मिटाना होता है। सबसे पहले जंगल को काटा जाता है। सबसे साफ हवा वाले ये जंगल कोयला खदानों के खुलने के बाद खनन एवं परिवहन गतिविधियों के कारण प्रदूषित हवा वाले क्षेत्र बन जाते हैं।’
भारतीय वन्यजीव संस्थान की जैव विविधता मूल्यांकन संबंधी रिपोर्ट के अनुसार – हसदेव अरण्य के स्थानीय आदिवासियों की कुल वार्षिक आय का 60-70 फीसदी वनों पर आधारित है। आदिवासियों की हर महीने की आय में 46 फीसदी योगदान तो सिर्फ लघु वनोपज का ही होता है।
भारत में जैव-विविधता की दृष्टि से भी हसदेव अरण्य अत्यधिक महत्वपूर्ण है। भारतीय वन्यजीव संस्थान की रिपोर्ट के अनुसार- इस क्षेत्र में पक्षियों की 92 प्रजातियाँ मिली है। इनमें से कई प्रजातियाँ गंभीर रूप से संकटग्रस्त और लुप्तप्राय हैं। रिपोर्ट में इलाके में बाघों की मौजूदगी का जिक्र भी किया गया है। क्षेत्र में 23 प्रजाति के सरीसृप और 43 प्रजाति की तितलियाँ मिलती हैं। क्षेत्र में 31 प्रजाति के स्तनपायी जीव मिले हैं, जिनमें से 8 प्रजातियाँ विलुप्ति की कगार पर हैं।
हसदेव जंगल में पेड़ों की कटाई का मतलब है- इन वन्य जीवों से आवास छीनकर उन्हें बेघर कर देना। जिसकी अंतिम परिणति उनकी विलुप्ति ही होगी।
रिपोर्ट के अनुसार यहाँ 74 प्रजाति के वृक्ष, 41 प्रजाति के छोटे वृक्ष एवं 32 प्रजातियों के औषधीय पौधे एवं घास, 11 प्रजाति की लताएं एवं 11 काष्ठ लताओं की प्रजाति मिलती है ।
रिपोर्ट में चेताया गया है – ‘यदि हसदेव में खनन का कार्य शुरू हुआ तब मानव और हाथियों के बीच संघर्ष इतना विकराल हो जाएगा कि उसे रोक पाना असंभव होगा।’
हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति के सदस्य आलोक शुक्ला बताते हैं – ‘यह जंगल हसदेव नदी और उस पर बने मिनीमाता बांगों बांध का कैचमेंट है। जिससे जांजगीर, रायगढ़, कोरबा और बिलासपुर जिले की 4 लाख हेक्टेयर जमीन सिंचित होती है।’
समझा जा सकता है कि हसदेव अरण्य के साथ कितना कुछ दांव पर लगा है। इसीलिए भारतीय वन्यजीव संस्थान ने अपनी रिपोर्ट में हसदेव इलाके में कोयला खदानों को मंजूरी नहीं देने की अनुशंसा की थी। भारतीय वन्यजीव संस्थान ने हसदेव अरण्य को ‘नो गो’ इलाका घोषित करने की मांग की थी।
भारत में पर्यावरणीय दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण वन हसदेव अरण्य में पेड़ों की कटाई एवं कोयला खदानों का संचालन विनाशकारी कदम है। कोयले के नाम पर उद्योगपतियों के इस लालच की बहुत बड़ी कीमत स्थानीय पारिस्थतिकी तंत्र के विनाश के रूप में अंततः देश की जनता को ही चुकानी होगी।
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