वाराणसी। विकास के नाम पर वाराणसी में एक बार फिर किसान अपनी जमीन को सरकार के चंगुल से बचाने के लिए संघर्ष की राह चुनते दिख रहे हैं। वर्ल्ड एक्सपो आवास योजना हरहुआ की प्लानिंग के तहत चिन्हित किए गए गाँवों के जिन किसानों को नोटिस दिया गया है, उन्होंने रामसिंह पुर हरहुआ के डीहबाबा मंदिर पर भारी संख्या में एकत्रित होकर विरोध प्रदर्शन किया। किसान सरकार द्वारा भेजी गई नोटिस को लेकर नाराज है और आंदोलन में शामिल लगभग दस गाँव के किसान लंबे आंदोलन के लिए तैयार हैं। प्रदर्शन स्थल पर किसानों ने आंदोलन के आगे की रूप-रेखा भी तय करते हुये मोर्चे का गठन किया और गाँववार जिम्मेवारी भी सौंपी।
किसान सभा की अध्यक्षता कर रहे रामसिंह पुर के प्रधान अमित सिंह ने कहा कि कृषि ही हम किसानों की जीविका का आधार है, यदि सरकार हमसे हमारी जमीन ही छीन लेगी तो हम खाएँगे क्या?उन्होंने बताया कि रामसिंहपुर, सिंहापुर, वाजिदपुर और देवनाथपुर के 100 प्रतिशत और अन्य गाँव के 80 प्रतिशत किसानों ने वाराणसी विकास प्राधिकरण के समक्ष अपना आपत्ति पत्र दाखिल कर दिया है। किसान हित के लिए किसान हाईकोर्ट तक लड़ाई लड़ने को तैयार हैं। उन्होंने कहा कि सरकार की मनमानी नहीं चलने दी जाएगी।
इसी तरह से हरहुआ प्रधान संघ के अध्यक्ष लालमन यादव ने कहा कि सरकार ने किसानों के साथ किसी तरह की वार्त्ता भी नहीं की और उनकी तरफ से मुवाबजे को लेकर भी कोई स्पष्टता नहीं दिख रही है। सरकार अमीरों को बसाने, किसानों को उजाड़ने के लिए लगी हुई है। यह तानाशाही हम लोग नहीं चलने देंगे।
ज्ञात हो कि रिंग रोड पर हरहुआ के पास दस गांवों की जमीन को समाहित करते हुए वर्ल्ड़ एक्सपो सिटी बनाने की योजना प्रस्तावित है। इसके लिए सरकार को 457 एकड़ जमीन की जरूरत है। कथित तौर पर परिषद ने काश्तकारों से सहमति के आधार पर जमीन लेने की योजना बनाई है और किसी प्रकार की अड़चन आने की स्थिति में सकारात्मक समाधान की बात काही है पर जिस तरह से सरकार और किसान पहली नोटिस के साथ आमने सामने आ गए हैं उससे यह तो तय है कि यह जमीन हासिल करना सरकार के लिए आसान नहीं होगा।
हरहुआ ही नहीं बल्कि विकास के नाम पर वाराणसी के कई और क्षेत्रों में जमीन अधिग्रहण को लेकर किसान आमने–सामने हैं। नगरीय विस्तार योजना के तहत शहर से लगे हुये कई क्षेत्रों के किसान परेशान हैं। हाईवे और रिंग रोड के किनारे पांच नई टाउनशिप बसाने को लेकर आवास विकास परिषद ने प्रयास तेज कर दिया है। प्रस्तावित पांच टाउनशिप की जद में आने वाले 1129 खसरे में 5000 से अधिक काश्तकारों को नोटिस थमाया जा रहा है। जिसमें पांचों योजनाओं के तहत काशी द्वार (पिंडरा तिराहे के पास) चकइंदर, जद्दूपुर, पिंडरा, पिंडराई, बहुतरा, बसनी, बेलवां, पुरारघुनाथपुर, कैथौली, समोगरा। वैदिक सिटी सारनाथ के हसनपुर, पतरेवा, सिंहपुर, सथवां और ह्दृयपुर। वर्ल्ड सिटी बझियां, विशुनपुर, देवनाथपुर, हरहुआ, इदिलपुर, मिर्जापुर, प्रतापट्टी, रामसिंहपुर, सिंहापुर, वाजिदपुर। वरुणा विहार एक और दो (रिंग रोड फेज-दो के दोनों तरफ) कैलहट, भगतूपुर, कोईराजपुर, गोसाईपुर अठगांवा, लोहरापुर, गोसाईपुर, वीरसिंहपुर, सरवनपुर, वाजिदपुर, सहाबुद्दीनपुर, रामसिंहपुर, सिंगापुर, देवनाथपुर, प्रताप पट्टी आदि गाँव शामिल हैं।
वाराणसी में कई और योजनाओं के तहत भी जमीन अधिग्रहण का प्रयास करते हुये सरकार और नागरिक आमने सामने आ चुके हैं और कई मामले में अभी भी आंदोलन जारी है।
वाराणसी एयपोर्ट से सटे सात गांवों की भूमि की रजिस्ट्री पर रोक लगा दी गई है। चिन्हित किए गए गांवों में भूमि की रजिस्ट्री करने के लिए उप जिलाधिकारी पिंडरा से परमीशन लेने की आवश्यकता पड़ेगी। ऐसे में एयरपोर्ट से सटे गांव में रहने वाले किसान भी आंदोलन का रुख अख़्तियार कर चुके हैं।
ट्रांसपोर्ट नगर बनाने के लिए मोहनसराय, बैरवन में प्रशासन ने जिस तरह की दबंगई दिखाई उसने जमीन मालिकों को आजादी के अमृतकाल में ब्रितानिया हुकूमत की याद दिला दी। इसी तरह से जाल्हूपुर में तो सरकार ने जमीन कब्जियाने के लिए चकित करने वाला खेल रच दिया है। मोहनसराय,बैरवन और जाल्हूपुर के बारे में गाँव के लोग की कार्यकारी संपादक अपर्णा ने विस्तृत रिपोर्टिंग की थी जिसका लिंक आप देख सकते हैं –
मोहनसराय की रिपोर्ट
दीनदयाल उपाध्याय की भव्य प्रतिमा वाले शहर में पूर्व प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री की उपेक्षा
जाल्हूपुर की रिपोर्ट
वंचना और गरीबी के दुष्चक्र में जी रहे दस्तकार बेलवंशी समाज के लोग
किसान के लिए उसकी जमीन ही सब कुछ होती है और अपनी बनी-बनाई खेती से उजड़ना असहनीय दर्द देता है पर सरकार तो जैसे पूरे वाराणसी शहर के चेहरे पर चांदी का मुखौटा लगाने के लिए परेशान है। यह अलग बात है कि सरकार को भी पता है कि शहर के अंदर आज भी टूटी सड़कें और बजबजाती नालियाँ भरी पड़ी हैं। इस शहर की अर्थव्यवस्था में कभी बड़ी हिस्सेदारी करने वाला बुनकर समाज पलायन को मजबूर हो चुका है। मध्यवर्ग के पास रोजगार के विकल्प नहीं हैं। सरकार गरीबी को कनात से छुपाने के उपकें में लगी हुई है। फिलहाल लोकसभा का चुनाव करीब है और वाराणसी की जनता परेशान है और चुनाव से पूर्व ही जनता ने जमीन के नाम पर सरकार के खिलाफ मोर्चा बांधना शुरू कर दिया है।