Friday, November 22, 2024
Friday, November 22, 2024




Basic Horizontal Scrolling



पूर्वांचल का चेहरा - पूर्वांचल की आवाज़

होमविविधG-20 शिखर सम्मेलन क्रूर बुलडोजर-राज का बहाना नहीं हो सकता

इधर बीच

ग्राउंड रिपोर्ट

G-20 शिखर सम्मेलन क्रूर बुलडोजर-राज का बहाना नहीं हो सकता

नई दिल्ली। जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय (एनएपीएम) ने तुग़लकाबाद और नई दिल्ली की कुछ अन्य बस्तियों के उन हज़ारों पीड़ित निवासियों के साथ पूरी एकजुटता व्यक्त की है, जिनके घरों को पहले भी और अभी G-20 शिखर सम्मेलन के संदर्भ में तबाह कर दिया गया है। उनके न्यूनतम कल्याण की अवहेलना और उनके अधिकारों […]

नई दिल्ली। जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय (एनएपीएम) ने तुग़लकाबाद और नई दिल्ली की कुछ अन्य बस्तियों के उन हज़ारों पीड़ित निवासियों के साथ पूरी एकजुटता व्यक्त की है, जिनके घरों को पहले भी और अभी G-20 शिखर सम्मेलन के संदर्भ में तबाह कर दिया गया है। उनके न्यूनतम कल्याण की अवहेलना और उनके अधिकारों का घोर उल्लंघन बेहद निराशाजनक है और हम इस पर तत्काल ध्यान देने और निवारण की मांग करते हैं। यह निंदा करते हुए जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय ने आगे कहा कि कि वह भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण (एएसआई) की कार्रवाइयों की निंदा करते हैं, जिसने हाल ही में एक बड़े पैमाने पर बेदखली अभियान चलाया, जिसमें लगभग 1,000 घर नष्ट हो गए। साथ ही अन्य बस्तियों में भी सैकड़ों घर तोड़े गए हैं। कुछ स्थानों पर क़ानून का उल्लंघन करते हुए फेरीवालों को भी क्रूर तरीके से बेदख़ली का भी सामना करना पड़ा है।

गौरतलब है कि अधिकारियों द्वारा किए गए जबरन विस्थापन और विध्वंस ने न केवल 2.6 लाख निवासियों सहित लगभग 1,600 परिवारों को बेघर कर दिया है, बल्कि उनकी सम्पत्ति और आजीविका का भी नुकसान हुआ है। ‘बेदख़ली’ करने के किसी भी कदम से पहले उचित पुनर्वास और न्यायोचित सहायता के अभाव से हाशिए पर जी रहे समुदायों की दुर्बल स्थिति और विकट हो गई है। नागरिकों को उनके घरों से बार-बार विस्थापित करने में केंद्र सरकार और दिल्ली सरकार की भूमिका निंदनीय है।

जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय ने अपने बयान में आगे कहा है कि विध्वंस अभियान के दौरान कानूनों और नियमों का घोर उल्लंघन भी भयावह है। ये कार्रवाइयां सार्वजनिक परिसर (अनधिकृत क़ब्ज़ाधारियों की बेदख़ली) अधिनियम, 1971, नई दिल्ली नगरपालिका परिषद अधिनियम, 1994, और संयुक्त राष्ट्र के बुनियादी सिद्धांतों और विकास-आधारित बेदख़ली पर दिशा-निर्देशों में उल्लिखित सिद्धांतों सहित, कानूनी सुरक्षा उपायों और उचित प्रक्रिया की अवहेलना करती हैं। जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय ने कहा है कि वह क़ानून व्यवस्था की इस कदर अवहेलना की कड़ी निंदा करते हैं और सभी श्रमिक समुदायों के प्रति राज्य की जवाबदेही का आग्रह करते हैं। साथ ही अधिकारियों से तत्काल विध्वंस को रोकने, इन उल्लंघनों की जांच करने और तुग़लकाबाद और अन्य इलाकों के बेघर निवासियों के लिए कानूनन सहायता और निवारण सुनिश्चित करने का आग्रह करते हैं।

[bs-quote quote=”जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय ने अपने बयान में आगे कहा है कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्रत्येक व्यक्ति को एक सुरक्षित घर का अधिकार अंतर्निहित है। लोगों के आश्रय के मौलिक अधिकार पर जी-20 शिखर सम्मेलन की तैयारियों को प्राथमिकता देते देखना निराशाजनक है।” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]

कश्मीरी गेट, यमुना बाढ़ के मैदान, धौला कुआं, महरौली, मूलचंद बस्ती और हाल ही में तुग़लकाबाद जैसे वंचित समुदायों के इलाकों में बेदख़ली पहले से धर्म, जाति, लिंग के कारण हाशिए पर रहने वाले लोगों का जीवन और जटिल कर देता हैं। यह न केवल उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हैं, बल्कि सबसे कमज़ोर वर्गों के हक़ को सुनिश्चित करने में राज्य की व्यवस्थागत विफलताओं को दर्शाता है।

मजदूर आवास संघर्ष समिति के कार्यक्रम को संबोधित करते हुए

जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय की सरकार से प्रमुख मांगें हैं-

  • सरकार सभी विध्वंस और ज़बरन बेदख़ली तुरंत रोक देना चाहिए।
  • सरकार को सभी प्रभावित व्यक्तियों और परिवारों को संपत्ति के नुकसान और आजीविका के नुकसान सहित, हर नुकसान के लिए पूरा और न्यायपूर्ण रूप से मुआवज़ा देना चाहिए।
  • सरकार से आग्रह है कि G-20 शिखर सम्मेलन के दौरान मकानों के क्रूर विध्वंस की घटनाओं, पुलिस प्रशासन की ज़्यादतियों की एक विस्तृत और निष्पक्ष जांच करें, तथा जिम्मेदार अधिकारियों और कार्यालयों को जवाबदेह ठहराते हुए, इन पर उचित कानूनी कार्रवाई की जाए।
  • केंद्र सरकार और दिल्ली सरकार अपने दमनकारी रवैए को बंद करे और प्रभावित समुदायों के साथ सार्थक बातचीत करे, क्योंकि यह राज्य की ज़िम्मेदारी है कि वह अपने नागरिकों की रक्षा करे और उनके अधिकारों को सुनिश्चित करे, ख़ासकर जी-20 जैसे महाकाय आयोजनों के समय, जिसके परिणाम स्वरूप, श्रमिकों के जीवन पर गंभीर असर पड़ता हैं। ऐसा न करने से ‘सबका साथ सबका विकास’ जैसे बड़े-बड़े नारे खोखली बयानबाजी बनकर रह जाते हैं।

यह भी पढ़ें-

पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित होने के बावजूद नष्ट हो रही हैं दुर्लभ मूर्तियाँ

दिल्ली की कच्ची बस्तियों से बेदख़ल किए गए हजारों परिवार पुनर्वास की मांग को लेकर जंतर मंतर पहुंचे

मज़दूर आवास संघर्ष समिति के आह्वान पर दिल्ली के कच्ची बस्तियों से जबरन बेदखल किए गए हजारों परिवार पुनर्वास की मांग को लेकर जंतर मंतर पहुंचे हैं। जहां पिछले नौ दिन से पुनर्वास की मांग को लेकर तुग़लकाबाद की महिलाएं भूख हड़ताल पर हैं। महिलाओं के साथ छोटे छोटे बच्चे भी हैं। भूपेंद्र कुमार कहते हैं कि तुग़लकाबाद की रीना देवी पिछले नौ दिन से पुनर्वास की मांग को लेकर भूख हड़ताल पर है, जिसकी सरकार ने सुध तक नहीं ली और किसी भी समय रीना को कुछ भी हो सकता है। उसका स्वास्थ्य खराब होता जा रहा है। अगर रीना के साथ कोई हादसा होता है तो जिम्मेदार सरकार होगी।

[bs-quote quote=”मज़दूर आवास संघर्ष समिति के कन्वेनर निर्मल गोराना अग्नि बताते हैं कि पिछले दो माह में तुग़लकाबाद, यमुना खादर, बेला स्टेट मेहरौली, धौला कुआं, जावेद नगर, शाहीन बाग, सुभाष कैंप, सांसी कैंप से लगभग 2 लाख से ज्यादा लोग सरकार द्वारा घर से बेघर कर दिए गए, जिन्हे आज तक पुनर्वास नही मिला। वे अब मलबे के ढेर पर रात गुजार रहे है। इस प्रकार की जबरन तोडफोड़ का आंकड़ा G20 के चलते पांच लाख से ऊपर जाने की आशंका है।” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]

निर्मल गोराना ने आगे बताया की इस देश में आवास की गारंटी देने वाला कोई क़ानून नहीं है, जिस कारण कोई भी सरकार अपनी मर्जी से जब चाहे मुंह उठाकर बुल्डोजर लेकर आ जाती है और पुलिस गरीब लोगो को पीट-पीटकर घर से धक्के देकर निकाल देती है। यहां तक घर से सामान निकालने का वक्त तक नहीं देती है। उल्टे झूठे केस दर्ज़ कर देती है, ताकि ग़रीब मज़दूर सालों साल कोर्ट के चक्कर लगाते रहे और लोग डरकर संघर्ष का रास्ता छोड़ दें। किंतु पुनर्वास की मांग को लेकर संघर्ष मजबूत होगा और सरकार को पुनर्वास देना होगा। मज़दूर आवास संघर्ष समिति के कन्वेनर निर्मल गोराना बताते हैं कि पुनर्वास का एक संघर्ष शकरपुर स्लम यूनियन के नाम से सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है, जहां दिल्ली सरकार की पुनर्वास की पॉलिसी को ही चैलेंज किया गया है।

राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में पिछले कुछ वर्षों से ग़रीब मज़दूर परिवारों के घरों को तोड़ने का काम बड़ी तीव्र गति से सरकारें कर रही है। सरकार आज मानवीयता को भूलकर बुल्डोजर संस्कृति अपना रही है। अपने आपको कल्याणकारी राज्य का दर्ज़ा देकर सरकारें मज़दूर परिवारों के घरों को बिना पुनर्वास के तोड़ दे रही है। अब पुनर्वास केवल काग़जों में दबकर रह गया है। दिल्ली जैसे राज्य में प्रगतिशील योजना एवं जीरो इरेक्शन पॉलिसी होने के बावजूद भी प्रतिदिन बुल्डोजर से सरकार के आदेश पर गरीब लोगों के घरों को तोड़ा जा रहा है। यह बात बेला स्टेट यमुना खादर की रेखा कुमारी ने धरना प्रदर्शन के दौरान रखी।

धरना-प्रदर्शन में महिलाओं ने बढ़-चढ़कर लिया हिस्सा

भाट कैंप के लाल चंद रॉय ने बताया कि जिस प्रकार से सरकारें आती जाती रहती हैं, उसी प्रकार से योजनाएं भी बनती और खत्म होती रहती हैं। किंतु जो योजना आवास की बात करती है वह विस्थापित हुए इतने परिवारों को कितना घर दे पा रही है और कितने बेघर लोगों को आवास प्रदान करके उनको सम्मान के साथ जीने का अधिकार दिला पाई हैं, यह एक महत्त्वपूर्ण सवाल है। यही सवाल सरकार से पूछने के लिए हम सब जंतर मंतर आए हैं।

एक्टू मजदूर यूनियन की कॉमरेड श्वेता ने पुनर्वास के मुद्दे पर अपने विचार व्यक्त किए तथा बताया की जिस एड्रेस के बल पर लोगो ने वोट दिया, आज वो ही एड्रेस गैर कानूनी कैसे हो सकता है। कॉमरेड नेहा ने धरने पर बैठे तमाम लोगो को संघर्ष और संगठन को मजबूत करने की बात की।

यह भी पढ़ें-

एक दिहाड़ी मजदूर का जीवन

वाल्मीकि सोसाइटी के माणिक कुमार ने एक ज्ञापन पत्र समस्त धरना प्रदर्शनकारियों एवं मजदूर आवास संघर्ष समिति की ओर से प्रधानमंत्री कार्यालय को सौंपा। इस कार्यक्रम में दिल्ली के तुगलकाबाद, जनता कैंप प्रगति मैदान, यमुना खादर, बेला स्टेट, मेहरौली, सोनिया गांधी कैंप, सुभाष कैंप, नजफगढ़, मानसरोवर पार्क, सांसी कैंप, कालका स्टोन, कालका जी, भूमिहीन कैंप सहित कई बस्तियों के मजदूर परिवारों एवं जन संगठन के प्रतिनिधियों ने भाग लिया।

इससे पहले 3 मई को सरकारी दमन के ख़िलाफ़ तुग़लकाबाद गांव के हजारों लोग विरोध का झंडा उठाये जंतर मंतर पहुंचे थे। जहां हर मज़दूर की आंखे आंसुओं से नम थी। सविता देवी तो चक्कर खाकर गिर पड़ी। भयंकर बारिश में भी धरना चलता रहा। धरने पर बैठे मजदूर नारे लगाते रहे और सरकार को पुनर्वास के लिए पुकारते रहे। धरने के अंत में पुनर्वास की मांग को लेकर एक ज्ञापन पत्र प्रधानमंत्री कार्यालय को सौंपा गया। गौरतलब है कि भारी बारिश के बीच 30 अप्रैल और 1 मई को रातों-दिन चले 18 बुलडोज़रों ने तुग़लकाबाद गांव में लगभग 2 हज़ार घरों को ज़मींदोज़ कर दिया था।

सुशील मानव स्वतंत्र पत्रकार हैं।

गाँव के लोग
गाँव के लोग
पत्रकारिता में जनसरोकारों और सामाजिक न्याय के विज़न के साथ काम कर रही वेबसाइट। इसकी ग्राउंड रिपोर्टिंग और कहानियाँ देश की सच्ची तस्वीर दिखाती हैं। प्रतिदिन पढ़ें देश की हलचलों के बारे में । वेबसाइट को सब्सक्राइब और फॉरवर्ड करें।
1 COMMENT

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here