मिर्जापुर। मड़िहान के किसानों ने हर साल की भांति इस वर्ष भी सरसों की खेती की। चूंकि मौसम ने किसानों का साथ दिया जिसके कारण अच्छी पैदावार हुई। लेकिन किसानों के लिए सरसों को बेचने का कोई केंद्र सरकारी स्तर के साथ-साथ स्थानीय स्तर पर भी नहीं है। न ही सरकार की तरफ से सरसों की खरीदी ही की जा रही है। जिसके कारण किसान बनियों की ठगी का शिकार हो रहे हैं। वे औने पौने दाम पर सरसों को बेचने को मजबूर हो रहे हैं।
किसानों का कहना है कि मोदी सरकार के तमाम प्रकार के प्रलोभनों में आकर उन्होंने सरसों की खेती की। सरकार और उनके नेताओं की ओर से सरसों की सरकारी स्वीकृत खरीद 57 रूपए तय है, जिसके झांसे में आकर आज किसान स्वयं को ठगा महसूस कर रहा क्योंकि ब्लाॅक स्तर की तो बात ही छोड़ दीजिए तहसील स्तर पर भी सरसों क्रय केन्द्र नहीं है।
अब जब सरसों की पैदावार हो गई और उसे खरीदने की बात आई तो सरकार से लेकर प्रशासन तक सभी चुप्पी साधे हुए हैं। लाचार किसान 40 रूपए प्रति किलो सरसों बेचने को मजबूर है। बनिया गांव-गांव घूमकर चालीस रूपए खरीद का रेट खोल दिए हैं। इससे ऊपर की खरीदने की बात पर आनाकानी करने लग रहे हैं। गांव में घूम-घूमकर किसानों से फसल खरीदने वाले एक बनिया ने नाम न छापने की शर्त पर बताया हम लोग चालीस में सरसो की खरीद कर रहे हैं। हमारा भी अपना परिवार है। जब हम दो पैसा इन किसानों से नहीं कमाएंगे तो परिवार कैसे चलाएंगे। हम तो चाहते हैं कि सरकारी खरीद पूरी तरह से बंद हो जाए। केन्द्र सरकार पाम आॅयल दूसरे देशों से मंगा रही है जिससे सरसों का दाम चालीस रूपए से भी नीचे आ सकता है। ऐसे में हमें नुकसान भी उठाना पड़ सकता है।
किसानों की माने तो इस बार खरीफ की फसल में धान की रोपाई पानी की कमी के चलते नहीं हो पाई । जिन किसानों ने रोपाई की थी,पानी की कमी के कारण उनकी फसल भी खड़ी-खड़ी सूख गई।
तेलहन की खेती में कम पानी लगता हैए इसलिए किसानों ने सरसो की खेती की। लेकिन उन किसानों को फसल का वाजिब मूल्य ही नहीं मिल पा रहा है, जिससे उनके अन्दर काफी निराशा है ।
क्या कहते हैं किसान
पड़रिया खुर्द के किसान रामविलास मौर्य कहते हैं जब तक सरसो का सरकारी खरीद केन्द्र ब्लाॅक स्तर पर नहीं खुलेगा तब तक इस क्षेत्र का किसान खुशहाल नहीं होगा। इतनी बड़ी संख्या में यहां के जनप्रतिनिधि सरकार में है उसके बावजूद भी खरीद केन्द्र ब्लाॅक स्तर पर न हो तो इससे अधिक शर्म की बात और क्या हो सकती है। सरकार को इस चुनाव में किसानों का जवाब नहीं देते बनेगा। समय रहते सरसों का सरकारी खरीद क्रय केन्द्र खोला जाना किसान और सरकार दोनों के हित में होगा।
मिर्जापुर जिले का ही एक किसान लालजी ने बताया कि यह सरकार किसान हितैषी है ही नहीं तो किसानों के हित में काम कहां से करेगी। किसानों कब से अपनी फसलों के लिए एमएसपी का मांग कर रहा है और उसके ऊपर गोलियां, आंसू गैस के गोले, रबर की गोलियां दागी जा रही है। जब किसान अपनी बात कहने के लिए दिल्ली कूच कर रहा है तो उसके राह में कीलें गाड़ी जा रही हैं। इस सरकार में 7 सौ से अधिक किसान अपने अधिकार की मांग करते हुए अपनी जान गंवा चुके हैं। फिर भी यह सरकार अपनी जिद पर अड़ी हुई है।
देखा जाय तो सरकार 23 फसलों पर एमएसपी दे रही है और उन फसलों में गेहूं, धान, मक्का, बाजरा, ज्वार, रागी, जौ, सोयाबीन, सरसो, सूरजमुखी, मूंगफली, तिल, काला तिल, अरहर, चना, मूंग, उड़द, मसूर, गन्ना,कपास, नारियल, और जूट उसके बावजूद भी किसानों को इतने कम दामों पर सरकारी खरीद न होने के चलते अपनी फसल को बेचना पड़ रहा है ।
सरकार को सीख देने वाले अंदाज मे पथरौर के किसान राम सकल सिंह पटेल कहते हैं कि सरकार को किसान हित में ब्लाॅक स्तर पर सरसों खरीद केन्द्र खोलकर सरकारी दर पर किसानों की उपज खरीद लेनी चाहिए। बनिया तो औने-पौने दाम पर खरीद कर मालामाल हो जाता है और किसान बदहाल का बदहाल ही रह जाता है। उसके जीवन में कोई सुधार नहीं आ पाता ।
इस बारे में सहायक क्षेत्रीय विपणन अधिकारी धनंजय सिंह कहते हैं शासन स्तर से जनपद में कोई भी सरसो खरीद के लिए केन्द्र स्वीकृत नहीं है।सरसों खरीद का अगर कोई आदेश शासन या प्रशासन से प्राप्त होगा तो उसके मुताबिक काम किया जाएगा।
सरसों का प्रतिवर्ष उत्पादन
भारत में सरसों का उत्पादन 6.9 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्रफल में होता है। साल 2021-22 में सरसों का उत्पादन 117.46 लाख टन रहा. साल 2018-19 में सरसों का उत्पादन 92.56 लाख टन था। साल 2020-21 में सरसों का उत्पादन 102.10 लाख टन था। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की एक रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2014-15 में सरसों की उत्पादकता प्रति हेक्टेयर 1083 किलोग्राम थी. साल 2021-22 में यह बढ़कर 1511 किलोग्राम हो गई।
फसल वर्ष 2022-23 (जुलाई-जून) में सरसों का उत्पादन 12.5 मिलियन टन को पार करने की संभावना है। यह पिछले साल की तुलना में 7% अधिक है।
सरसों की खेती मिश्रित रूप से या बहुफ़सली फ़सल चक्र में की जा सकती है। सरसों की पूसा अग्रणी किस्म से औसत 13.5 क्विंटल प्रति हेक्टेयर पैदावार मिलती है। इस किस्म में तेल की 40 प्रतिशत तक मात्रा पाई जाती है। यह किस्म दिल्ली, हरियाणा, पंजाब और राजस्थान के लिए अधिक उपयुक्त पाई गई है.
साल जब 2018-19 में 92.56 लाख टन उत्पादन हुआ। इसके बाद सरसों का थोड़ा अच्छा दाम मिलना शुरू हो गया और 2020-21 में उत्पादन 102.10 लाख टन हो गया. उस साल एमएसपी से 50 फीसदी अधिक दाम पर ओपन मार्केट में सरसों बिका है। फिर 2021-22 में यह बढ़कर 117.46 लाख टन की रिकार्ड ऊंचाई पर पहुंच गया।
बहरहाल, जो भी हो किसान आज जहां उधारी लेकर जैसे तैसे फसलों को पैदा कर रहा है इस आस से कि उसका वाजिब मूल्य मिलने से उसकी जिंदगी में बदलाव आएगा और उसका परिवार भी खुशहाल होगा। लेकिन सरकार का रवैया किसानों के हित में नहीं दिख रहा है। किसान है कि सरकार और उनके मंत्रियों, नेताओं के बहकावे में आकर फसलों की बुआई करके उन्हें पैदा तो कर दे रहा है, लेकिन उसे निराशा तब हाथ लगती है जब उसकी फसल का उचित मूल्य नहीं मिलता ।