Tuesday, November 11, 2025
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पूर्वांचल का चेहरा - पूर्वांचल की आवाज़

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ग्राउंड रिपोर्ट

बिहार : ईंटों के बीच दबे भट्ठा मजदूरों की व्यथा

ईंट भट्ठों में काम करने वाले मजदूर हमारी सभ्यता की नींव हैं। वे हमारी इमारतें बनाते हैं, हमारे घरों को खड़ा करते हैं, लेकिन उनके अपने घर रहने लायक नहीं होते। अगर हमें एक विकसित समाज बनाना है, तो हमें इन मजदूरों की स्थिति सुधारने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे। वरना उनकी गरीबी की ये ईंटें हमेशा उनकी तरक्की का रास्ता रोकती रहेंगी।

रामपुर गांव : ‘क्राफ्ट हैंडलूम विलेज’ में बुनकरों का अधूरा सपना और टूटती उम्मीदें

रामपुर गांव की कहानी सिर्फ एक गांव की नहीं है, बल्कि यह उन लाखों कारीगरों और बुनकरों की कहानी है, जो सरकारी योजनाओं के अधूरे वादों और बाजार की बेरुखी के बीच फंसे हुए हैं। यह समय है कि सरकार और समाज मिलकर इनके सपनों को साकार करने के लिए कदम उठाए। अगर समय रहते इनकी मदद नहीं की गई, तो यह अद्वितीय कला और कौशल हमेशा के लिए खो जाएगा। पढ़िए नाजिश महताब की ग्राउंड रिपोर्ट।

बिहार में ‘हर घर नल का जल’ की हकीकत : बरमा गांव की प्यास

पिछले कई वर्षों से हर घर नल जल योजना की धूम मची हुई है और इसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट के रूप में प्रचारित किया जा रहा है लेकिन वास्तविकता प्रचार के बिलकुल उलट है। लगातार बढ़ते साफ पानी के संकट के मद्देनज़र यह योजना एक मज़ाक बनकर रह गई है। बिहार के लाखों ग्रामीण गंदे और ज़हरीले पानी का इस्तेमाल करने को विवश हैं। गया जिले के बरमा गांव में पानी का कैसा संकट है और सरकार की योजना किस हालत में है इस पर नाज़िश मेहताब की रिपोर्ट।

अवधी में गानेवाली यूट्यूबर महिलाएं : कहीं गरीबी से रस्साकसी कहीं वायरल हो जाने की चाह

पिछले कुछ ही वर्षों में अवधी भाषी महिलाओं ने बड़ी संख्या में यूट्यूब पर अपनी धमाकेदार उपस्थिति दर्ज कराई है। यह ऐसी महिलाओं की कतार है जो निम्न मध्यवर्गीय और खेतिहर परिवारों से ताल्लुक रखती हैं और घर-गृहस्थी की व्यस्त दिनचर्या के बावजूद अपने गीतों से एक बड़े दर्शक समूह को प्रभावित किया है। इनमें से कई अब पूर्णकालिक और स्टार यूट्यूबर बन चुकी हैं। अपने बचपन में सीखे गीतों को वे बिना साज-बाज के गाती हैं और लाखों की संख्या में देखी-सुनी जाती हैं। यू ट्यूब पर गाना उनके लिए न केवल अपनी आत्माभिव्यक्ति है बल्कि आर्थिक आत्मनिर्भरता भी है। इसके लिए उन्होंने कठिन मेहनत किया है। परिवार के भीतर संघर्ष किया है। जौनपुर, आजमगढ़ और अंबेडकर नगर जिलों के सुदूर गांवों की इन महिलाओं पर अपर्णा की यह रिपोर्ट।

पॉल्ट्री उद्योग : अपने ही फॉर्म पर मजदूर बनकर रह गए मुर्गी के किसान

भारत में पॉल्ट्री फ़ार्मिंग का तेजी से फैलता कारोबार है। अब इसमें अनेक बड़ी कंपनियाँ शामिल हैं जिनका हजारों करोड़ का सालाना टर्नओवर है लेकिन मुर्गी उत्पादक अब उनके बंधुआ होकर रह गए हैं। बाज़ार में डेढ़-दो सौ रुपये बिकनेवाला चिकन पॉल्ट्री फार्म से मात्र आठ रुपये किलो लिया जाता है। अब मुर्गी उत्पादक स्वतंत्र इकाई नहीं हैं। कड़े अनुबंध शर्तों पर वे कंपनियों के चूजे और चारे लेकर अपनी मेहनत से उन्हें पालते हैं और कंपनी तैयार माल उठा लेती है। मुर्गी उत्पादक राज्य और केंद्र सरकार से यह उम्मीद कर रहे हैं कि सरकारी नीतियाँ हमारे अनुकूल हों और हमें अपना उद्योग चलाने के लिए जरूरी सहयोग मिले। लेकिन क्या यह संभव हो पाएगा? पूर्वांचल के पॉल्ट्री उद्योग पर अपर्णा की रिपोर्ट।

पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित होने के बावजूद नष्ट हो रही हैं दुर्लभ मूर्तियाँ

जब हम इटियाथोक ब्लॉक के पास खरगूपुर गाँव पहुंचे, तब दोपहर बीत चुकी थी और अधिकतर चीजें उनींदी थीं। मंदिर से पहले एक लहलहाता तालाब था, जिसे देखकर अच्छा लगा। हम जैसे ही मंदिर की ओर चले वैसे ही लोटा, फूल और प्रसाद वाले कुछ दुकानदार पास आए और इन सब चीजों को लेने का आग्रह करने लगे, लेकिन हमने उनको उपेक्षित करते हुये आगे का रास्ता लिया। मंदिर के मुख्य द्वार पर दो नगाड़ची बैठे थे। हमको जजमान समझकर उन्होंने अपने-अपने नगाड़ों को ठोंका। लेकिन यह काफी नहीं था।

चांद और मंगल पर जाने के दौर में धरती पर फ़ैल रहा अंधविश्वास का अंधेरा

जागरुकता के अभाव में गांव में निरक्षर लोग चिकित्सकीय उपचार से ज्यादा जादू-टोना, झांड़-फूंक, ताबीज और टोटकों में विश्वास करते हैं। इसकी दूसरी वजह गांव के चंद शिक्षित लोगों का भी जादू-टोना, झांड़-फूंक आदि में विश्वास करना है। हालांकि यह जरूर है कि शिक्षा और जागरुकता की वजह से नई पीढ़ियों की मानसिकता बदली है। वे अंधविश्वास व रूढ़ियों में तर्क खोजते हैं। यह इस बात को भी साबित करता है कि जब तक समाज के प्रबुद्धजनों व शिक्षित लोगों की मनःस्थिति नहीं बदलेगी, तब तक समाज से रूढ़ियां और अंधविश्वास जैसी चीजे़ं अपनी जड़े जमाई रहेगी।

गांव को शहर बनाती सड़क

जबसे पक्की सड़क बनी है, तब से कई समस्याएं सुलझ गई हैं। अब गांव की किशोरियां भी आराम से स्कूल और कॉलेज आना-जाना कर लेती हैं। यदि किसी कारणवश कॉलेज से आने में लेट भी हो जाती है तो सड़क से गुजरने में जहां हमें कोई डर नहीं रहता है, वहीं अभिभावक भी हमारी सुरक्षा को लेकर कम चिंतित होते हैं। अब कोई भी, किसी भी समय इस सड़क से गुज़र सकता है।

लोहे को जीवन का आकार देती गड़िया लोहार महिलाएं

कड़ी मेहनत के बावजूद, इन महिलाओं के पास दैनिक आय नहीं है। हालांकि ये लोहार अब एक जगह बस गए हैं, लेकिन इनका जीवन और कठिन हो गया है। बड़े पैमाने पर मशीनीकरण ने उन्हें पहले की तुलना में लाभ से वंचित कर दिया है। पहले सब कुछ हाथ से किया जाता था। अब मशीन से बने आधुनिक उत्पाद मौजूद हैं जो बहुत सस्ते दामों पर उपलब्ध हो जाते हैं।

निकाय चुनाव में उसे ही वोट देंगे जो संपर्क मार्ग बनवाएगा

प्रयागराज के कई क्षेत्रों में कहीं पेयजल, कहीं ड्रेनेज तो कहीं संपर्क मार्ग बना मुद्दा लखनऊ। प्रयागराज समेत 37 जिलों में पहले चरण के तहत होने...

क्या महत्वहीन हो रहा है आंगनबाड़ी का लक्ष्य

अभिभावकों का भी यही आरोप था कि इस आंगनबाड़ी सेंटर से जुड़ी कोई भी सूचना ग्रामीणों या अभिभावकों के साथ साझा नहीं की जाती है। नाम नहीं बताने की शर्त पर एक अभिभावक ने आरोप लगाया कि यहां बच्चों के अभिभावकों को कभी कोई सूचना नहीं दी जाती है। केंद्र पर बच्चों की संख्या बहुत कम है। कभी कभार 4-5 बच्चें केंद्र पर आते हैं। जब आहार वितरण का समय आता है तो कुछ बच्चों को बांट कर फोटो खींच लिया जाता है।
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