मूर्तियां लोगों को मूर्ख बनाकर उनके अधिकारों को छीनने का तरीका है जबकि सरकार में उनकी जनसंख्या के हिसाब से उनका प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने से उस वर्ग का सशक्तिकरण होता है!
सुहेलदेव/शिवजी/पटेल/राम जी इत्यादि की मूर्तियां लगाने से मूर्तियां लगवाने वाली पार्टी को राजनैतिक लाभ मिलेगा, जबकि उनके जनसंख्या के हिसाब से उनका सरकार में हिस्सेदारी सुनिश्चित करने से उस समाज का भला होगा!
आमलोगों की प्रार्थमिकताएँ हैं- रोटी, कपड़ा, मकान, स्वास्थ, शिक्षा, सुरक्षा, न्याय और रोजगार जबकि सरकार की प्रार्थमिकताएँ हैं- धर्म, दंगे, भीड़ हत्या, गाय, गोबर, लवजिहाद, रक्षा दलाली, भ्रष्टाचार, पूंजीवादी लूट और देश बेचकर गुलाम बनाना!
अपने आपको हिन्दू तथा हिन्दू धर्म का ठेकेदार साबित करने वाली जो संगठनें मंदिर निर्माण (जो उनके हाथ में न होकर न्यायालय के अधीन है) के नाम पर हर चुनाव से पहले झूठ फैलती हैं वही वर्ण और जाति व्यवस्था खत्म करने के लिए कोई आंदोलन क्यों नहीं करती हैं?
मात्र 71 साल पहले हज़ारों लोगों द्वारा मिलकर बनाये गए संविधान में अब तक 100 से ज्यादा संसोधन हो चुके हैं परंतु आज से हज़ारों साल पहले कुछ लोगों द्वारा बनाये भेदभावपूर्ण जन्म-आधारित वर्ण और जाति व्यवस्था को क्यों नहीं खत्म किया जा रहा है? इससे किसको जन्मजात आरक्षण/लाभ मिल रहा?
धर्म समाज को तोड़ता है जबकि संविधान समाज को जोड़ता है!
धर्म समाज में गैरबराबरी स्थापित करता है जबकि संविधान समानता लाता है ।
धर्म और मानव विकास का उल्टा संबंध होता है! जब-जब धर्म की विजय होगी और फले-फूलेगा, तब-तब बहुसंख्यकों को अपने मौलिक अधिकार, अल्पसंख्यक धूर्तों के हाथों गवानी पड़ेगी और उसके शोषण का शिकार होना पड़ेगा!
उल्टी खोपड़ी
महिलाओं को पूजा का अधिकार तो होना चाहिए परंतु मंदिरों को अपवित्र करने का अधिकार नहीं! अर्थात उनके मुताबिक भी महिलाओं का पीरियड्स के दौरान मंदिर जाने से मंदिर अपवित्र हो जाता तथा पुरुष अगर मंदिरों में चोरी करे, महिलाओं संग अभद्रता करे,लोगों को ठगे तथा उसे मूर्ख बनाकर पैसे ऐंठे तो इससे भगवान खुश तथा मंदिर पवित्र हो जाता है!
डॉ. ओमशंकर सर सुन्दरलाल अस्पताल के मशहूर हृदय रोग विभाग के विभागध्यक्ष और सामाजिक कार्यकर्ता हैं।