अकादमिक गतिविधियों में सरकार का हस्तक्षेप कितना महत्वपूर्ण है? क्या यह हस्तक्षेप होना चाहिए? या फिर परिभाषाओं को अकादमिक जगत के विद्वानों के हवाले ही कर दिया जाना चाहिए? ये सारे सवाल महत्वपूर्ण हैं। वजह यह कि हस्तक्षेप ना होने से हुक्मरानों सी निरंकुशता अकादमिक जगत के विद्वानों में भी आ जाएगी। ठीक वैसे ही जैसे नामवर सिंह एक समय के बाद निरंकुश हो गए थे। कांग्रेसी हुक्मरान ने उन्हें पूरी आजादी दे रखी थी। वे अपने जाति व वर्ग के हिसाब से चीजों को देखते थे और व्याख्यायित करते थे
भारतीय परिप्रेक्ष्य में फासीवाद की परिभाषा और क्या हो सकती है जब हिंदुत्व के अवैज्ञानिक और अमानवीय मूल्यों को बरकरार रखने के लिए दिनदहाड़े मॉब लिंचिंग की जा रही है? क्या यह काफी नहीं है यह बताने के लिए कि जिस तरह जर्मनी में हिटलर ने खास समुदाय के लोगों के हित में मारकाट किया था, और जिसे फासीवाद कहा गया, वैसे ही हालात भारत में हैं।

नवल किशोर कुमार फ़ॉरवर्ड प्रेस में संपादक हैं।
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