Saturday, July 27, 2024
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ताजमहल और विघटनकारी राजनीति के खेल

भारत, प्राकृतिक सुंदरता से भरपूर तो है ही, यहां मानव-निर्मित चमत्कारों की संख्या भी कम नहीं है। ये न केवल भारत वरन पूरी दुनिया से पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करते रहे हैं। अचम्भित कर देने वाली ऐसी ही इमारतों में शामिल है ताजमहल, जिसका निर्माण मुगल बादशाह शाहजहां ने अपनी प्रिय पत्नी मुमताज़ महल की याद में […]

भारत, प्राकृतिक सुंदरता से भरपूर तो है ही, यहां मानव-निर्मित चमत्कारों की संख्या भी कम नहीं है। ये न केवल भारत वरन पूरी दुनिया से पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करते रहे हैं। अचम्भित कर देने वाली ऐसी ही इमारतों में शामिल है ताजमहल, जिसका निर्माण मुगल बादशाह शाहजहां ने अपनी प्रिय पत्नी मुमताज़ महल की याद में करवाया था। ताज को दुनिया के सात आश्चर्यों में गिना जाता है और इसे यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल का दर्जा दिया गया है।

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कवि गुरुदेव रबीन्द्रनाथ टैगोर ने ताजमहल को काल के कपोल पर रूकी हुई अश्रु की एक बूंद’ बताया था। ताजमहल देखने दुनिया भर से पर्यटक आते रहे हैं और इसमें कोई संदेह नहीं है कि ये भारत का सबसे बड़ा आकर्षण है। परंतु उत्तर प्रदेश की योगी सरकार को इस सबसे कोई लेनादेना नहीं है। कुछ हफ्तों पहले, सत्ता में अपने छह माह पूरे होने के मौके पर योगी सरकार ने राज्य में पर्यटन के संबंध में एक पुस्तिका प्रकाशित की। पुस्तिका का शीर्षक था उत्तर प्रदेश पर्यटन-अपार संभावनाएं। इसमें जिन पर्यटन स्थलों की चर्चा की गई थी, उनमें गोरखनाथ पीठ, जिसके मुखिया स्वयं आदित्यनाथ हैं, सहित कई स्थल शामिल थे। इस पुस्तिका का फोकस धार्मिक पर्यटन पर था। सबसे आश्चर्यजनक बात यह थी कि उत्तर प्रदेश का सबसे प्रसिद्ध पर्यटन स्थल ताजमहल इस पुस्तिका से गायब था।

मुख्यमंत्री बनने के बाद योगी ने कहा था कि ताजमहल, भारतीय संस्कृति का हिस्सा नहीं है और विदेशी अतिथियों को ताजमहल की प्रतिकृति भेंट करने की परंपरा समाप्त होनी चाहिए। उसकी जगह गणमान्य विदेशी अतिथियों को गीता या रामायण की प्रतियां भेंट की जानी चाहिए। योगी के अनुसार ये दोनों पुस्तकें भारतीय संस्कृति की प्रतीक हैं। ताजमहल पर इस विवाद ने योगी सरकार के साम्प्रदायिक चेहरे का पर्दाफाश कर दिया। जब इस मुद्दे पर सरकार को मीडिया में आलोचना का सामना करना पड़ा तब एक मंत्री ने कहा कि ताजमहल भारतीय विरासत का हिस्सा है परंतु पुस्तिका में इसकी चर्चा इसलिए नहीं की गई है क्योंकि उसमें केवल ऐसे पर्यटन स्थल शामिल किए गए हैं, जिनका प्रचार-प्रसार किए जाने की आवश्यकता है। उन्होंने यह भी कहा कि ताजमहल के लिए सरकार ने अलग से धन आबंटित किया है और आगरा में अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा बनाए जाने का प्रस्ताव है।

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इस मामले में भाजपा के शिविर से कई अलग-अलग तरह की बातें कही जा रही हैं। कुछ लोग कह रहे हैं कि ताज एक हिन्दू मंदिर है। कुछ अन्य का कहना है कि वह कोई बहुत महत्वपूर्ण स्मारक नहीं है तो कुछ लोग यह भी कह रहे हैं कि वह भारत की गुलामी का प्रतीक है। भाजपा नेता संगीत सोम ने इस मुद्दे पर जो कहा वह मुस्लिम बादशाहों द्वारा बनाई गई इमारतों के संबंध में भाजपा के दृष्टिकोण को प्रतिबिम्बित करता है। उन्होंने कहा, ‘‘कई लोगों ने इस बात पर दुःख व्यक्त किया कि राज्य सरकार की पर्यटन संबंधी पुस्तिका में से ताजमहल का नाम हटा दिया गया। हम किस इतिहास की बात कर रहे हैं? क्या उस इतिहास की, जिसमें ताजमहल के निर्माता ने अपने पिता को जेल में डाल दिया था?…क्या हम उस इतिहास की बात कर रहे हैं जिसमें इस स्मारक के निर्माता ने उत्तर प्रदेश और भारत से हिन्दुओं का सफाया कर दिया था। यह दुखद और दुर्भाग्यपूर्ण है कि इस तरह के आततायी शासक अब भी हमारे इतिहास का हिस्सा हैं।’’ यहां यह महत्वपूर्ण है कि ताजमहल देखने आने वाले पर्यटकों की संख्या में पिछले कुछ वर्षों से कमी आ रही है और ताजमहल को एक पर्यटक स्थल के रूप में बढ़ावा दिए जाने की आवश्यकता है।

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प्रश्न यह है कि ताजमहल का नाम सरकारी पुस्तिका में से क्यों हटाया गया। योगी, ताज के बारे में जो कुछ कहते आए हैं उससे ऐसा लगता है कि वे ताजमहल को नापसंद करते हैं। ताज का निर्माण एक ऐसे व्यक्ति ने करवाया था जिसे हिन्दुत्व की विचारधारा हमलावर मानती है। भारतीय संस्कृति की गांधी जैसे राष्ट्रवादियों द्वारा प्रस्तुत परिभाषा, योगी और हिन्दुत्व की विचारधारा के बिलकुल विपरीत है। भाजपा और हिन्दुत्ववादियों के लिए हिन्दू संस्कृति ही भारतीय संस्कृति है।

इससे भी आगे बढ़कर, कुछ संघी और हिन्दुत्ववादी कह रहे हैं कि ताजमहल एक हिन्दू मंदिर है और इसका नाम तेजो महालय था! यह दावा इतिहास और तथ्यों की कसौटी पर खरा नहीं उतरता। शाहजहां के बादशाहनामा से यह साफ है कि ताज का निर्माण शाहजहां ने ही करवाया था। उन दिनों भारत आए एक यूरोपीय प्रवासी पीटर मुंडी ने लिखा कि बादशाह शाहजहां अपनी प्रिय पत्नी की मृत्यु से दुख के सागर में डूबे हुए हैं और उनकी याद में एक शानदार मकबरा बनवा रहे हैं। फ्रांसिसी जौहरी टेवरनियर, जो उस समय भारत में थे, ने भी यही बात कही। शाहजहां की हिसाब-किताब की बहियों में ताजमहल के निर्माण में होने वाले खर्च की चर्चा है, जिसमें संगमरमर खरीदने और मजदूरी आदि पर व्यय शामिल है। ताज को शिवमंदिर बताए जाने के दावे का एकमात्र आधार यह है कि ताज जिस ज़मीन पर बना है उसे शाहजहां ने राजा जयसिंह से खरीदा था। यहां यह महत्वपूर्ण है कि जयसिंह एक वैष्णव थे और किसी वैष्णव राजा से यह उम्मीद नहीं की जा सकती कि वह शिव का मंदिर बनाएगा।

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दरअसल, ताजमहल की महत्ता को कम करने का प्रयास, भारतीय इतिहास के पुनर्लेखन की हिन्दुत्ववादी परियोजना का हिस्सा है। इस परियोजना के अंतर्गत इतिहास की सांप्रदायिक व्याख्या की जा रही है और तथ्यों को तोड़ा-मरोड़ा जा रहा है। दावा तो यहां तक किया जा रहा है कि राणा प्रताप और अकबर के बीच हुए हल्दी घाटी के युद्ध में राणा प्रताप की विजय हुई थी। हल्दी घाटी का युद्ध, सत्ता के लिए लड़ा गया था, धर्म की खातिर नहीं। हम सबको पता है कि अकबर और राणा प्रताप के सहयोगियों में हिन्दू और मुसलमान दोनों शामिल थे। न तो अकबर इस्लाम के रक्षक थे और ना ही राणा प्रताप हिन्दू धर्म की ध्वजा उठाए हुए थे। वे दोनों अपने-अपने साम्राज्यों का विस्तार करना चाहते थे।

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ऐसा लगता है कि ताजमहल और मुस्लिम राजाओं द्वारा बनाई गईं अन्य इमारतें, सांप्रदायिक शक्तियों की आंखों में खटक रही हैं। अबतक ताज को हिन्दू मंदिर बताए जाने का प्रयास किया जा रहा था। अब, जबकि इस विचारधारा में रचे-बसे लोग सत्ता में हैं, ताजमहल को भारतीय इतिहास से मिटाने का प्रयास किया जा रहा है और भारत की संस्कृति में उसे कोई स्थान न दिया जाए, ऐसी कोशिश हो रही है। जिस तरह हिन्दुत्ववादियों ने ताजमहल को उत्तर प्रदेश पर्यटन की पुस्तिका से गायब कर दिया उसी तरह वे शायद मुसलमानों को भी समाज के हाशिए पर धकेल देना चाहते हैं। क्या इन लोगों का अगला निशाना लाल किला होगा जहां से भारत के प्रधानमंत्री स्वतंत्रता दिवस पर भाषण देते आए हैं?

ताजमहल और इस तरह की दूसरी ऐतिहासिक और पुरातात्विक इमारतें व ढांचे, भारतीय संस्कृति का हिस्सा हैं। इनका संरक्षण और संवर्धन आवश्यक है ताकि भारत की मिली-जुली संस्कृति को बढ़ावा दिया जा सके।

(अंग्रेजी से रूपांतरण अमरीश हरदेनिया) 

लेखक आईआईटी मुंबई में पढ़ाते थे और सन् 2007 के नेशनल कम्यूनल हार्माेनी अवार्ड से सम्मानित हैं।

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  1. आप जैसे लोग अपनी वामपंथी विचारधारा के कारण बुरा देखते और बुरा कहते हैं, आरएसएस जब बाढ़ या कोरॉना पीड़ितो के लिए काम करता है तो नहीं दिखता जैसे वे मुस्लिम नहीं दिखते जो उपद्रव करते हैं। आपके लिए जनसत्ता जैसा पेपर भी बिक चुका है, आप जैसे लोगो के मुंह से पत्थरबाज़ी और आगजनी करते लोगो के लिए कुछ नहीं निकलता पर बुलडोजर के लिए श्यापा करते हैं,आज भी काश्मीर में गिन गिन कर हिंदू मारे जा रहे हैं पर चुप रहते हैं, जावेद बेग या यासीन मलिक कह दे कि हमने मारा या मारते हुए देखा फिर भी काश्मीर फाइल झूठी है, कभी अपनी नफरत में शीशा भी देखें वर्ना कुढ़कर मर जायेंगे

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