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मान्यवर कांशीराम ने कैसे मेरे जीवन की धारा मोड़ दी

मान्यवर कांशीराम के विचारों और प्रयासों से लाखों-करोड़ों शूद्रों को मानसिक गुलामी से आजादी मिली। आज उनकी जयंती है तो इस बात को बताना जरूरी समझता हूँ कि किस प्रकार लोगों के जीवन में परिवर्तन शुरू हुआ। इस अवसर पर मैं एक ऐसा ही अनुभव साझा करना उचित समझता हूं। अक्टूबर 1982 में मैं सरकारी […]

मान्यवर कांशीराम के विचारों और प्रयासों से लाखों-करोड़ों शूद्रों को मानसिक गुलामी से आजादी मिली। आज उनकी जयंती है तो इस बात को बताना जरूरी समझता हूँ कि किस प्रकार लोगों के जीवन में परिवर्तन शुरू हुआ। इस अवसर पर मैं एक ऐसा ही अनुभव साझा करना उचित समझता हूं।

अक्टूबर 1982 में मैं सरकारी काम से ITI नैनी (इलाहाबाद) गया हुआ था। अचानक एक दिन बस द्वारा ITI नैनी से इलाहाबाद तक सफर करते समय नैनी जेल की दीवार पर लिखा हुआ एक नारा पढ़ने को मिला।

कांशीराम को सुनते बहुजन

ब्राह्मण, क्षत्रिय, बनिया छोर। और बाकी सब डी-एस-फोर।।

यह मेरे लिए बिल्कुल नया नारा था। बस के अंदर ही मेरे दिमाग में उथल-पुथल मच गई कि आखिर यह डी-एस-फोर क्या है? इसी की तलाश करते-करते मैं बड़े नाटकीय ढंग से मान्यवर कांशीराम के नजदीक आया। उनके विचारों से प्रेरित होकर शोषित समाज के प्रति समर्पण की भावना जागृत हुई। फिर बाबा साहब अम्बेडकर के साहित्य और उनके विचारों को जानने का मौका मिला। विज्ञान का विद्यार्थी और इंजीनियर होने के कारण अभी तक मैं साहित्यिक और सामाजिक ज्ञान कोसों दूर था।

बाबा साहेब के विचारों से ज्ञान मिलने के बाद ही लगा कि मैं अब कुछ पढ़ा लिखा हूं। परिणाम यह निकला कि जो उस समय तक हनुमान की पूजा करता था, अपने घर के मंदिर को कचरे के डब्बे मे फेंक दिया और उसी दिन से भगवान की मानसिक गुलामी से मुक्त हो गया। तर्क किया कि तथाकथित भगवान क्यों चाहिए? नहीं चाहिए, क्या बिगड़ जाएगा? क्या बिगाड़ लेगा? जीने के लिए मान-सम्मान, रोटी-कपड़ा और मकान चाहिए।

बस! एक आत्मबल मिला, अपने-आप में एक ताकत महसूस हुई, अपने कर्म पर  100% भरोसा हुआ। अछे परिणाम भी मिलने लगे।

बहुजन का प्रहार पत्रिका में शूद्र शिवशंकर सिंह यादव के लेख

कांशीरामजी के त्याग, बलिदान और बहुजन समाज के प्रति समर्पण की भावना से प्रभावित होकर मुम्बई में उतर भारतीय बहुजनों को एक मंच पर लाने के लिए और उनमें अंबेडकरवादी सोच पैदा करने के लिए उत्तर भारतीय बहुजन परिषद संस्था का निर्माण किया। इसी संस्था के सौजन्य से 1989 में बहुजन चेतना पुस्तक भी प्रकाशित की गई, जो उस समय उत्तर भारत में बहुत ही प्रचलित हुई थी। मान्यवर कांशीरामजी ने 25 अक्टूबर, 1996 (शुक्रवार) को दिल्ली में आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में एक सवर्ण पत्रकार द्वारा आपत्तिजनक सवाल पूछने पर, उसको ओपन मैदान में दौड़ा-दौड़ा कर मारा था, उसे हमने टेलीविजन न्यूज पर देखा, उस दिन खुशी का ठिकाना नहीं था। उसी से प्रभावित होकर संस्था के माध्यम से 1998 में एक मासिक पत्रिका बहुजन का प्रहार शुरू की गई, जिसके संपादक दिनेश राजभर थे और इसी बैनर तले 2001 में अंधेरी मुम्बई में कांशीरामजी की अध्यक्षता में पूरे दिन के लिए आज की राजनीतिक दशा और दिशा पर एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया था, जो सुबह 10 बजे से रात के 10 बजे तक चली। सभी उत्तर भारतीय बहुजन जातियों के प्रतिनिधियों को बुलाया गया था। कांशीराम साहब इस संगोष्ठी से बहुत ही प्रभावित थे और उन्होंने सलाह भी दी कि ऐसी संगोष्ठी बराबर चलती रहनी चाहिए, करीब ढाई-तीन घंटे तक सभी जातियों के प्रतिनिधियों से विचार-विमर्श भी किया।

कार्यक्रम के दौरान

सन 2006 में सामाजिक जीवन से विदा होने के बाद भी अपनी अटूट वंचितों के प्रति समर्पण की भावना की छाप छोड़कर चले गए। लेकिन कुछ विचारों की असहमति के चलते बामसेफ और बसपा से मोहभंग हो गया।

 सन 2015 में मानवीय चेतना और अब उन्हीं के विचारों से प्रभावित होकर 5 सितंबर, 2015 को मिशन – गर्व से कहो हम शूद्र हैं  शुरू किया और इसी नाम से 2018 में एक किताब भी प्रकाशित की।

उन्हीं के विचारों से प्रेरित होकर, नये जोश और नये सोच के साथ, बहुजन समाज में आपस में भी गहराई से मौजूद, जातीय ऊंच-नीच की भावना, छुआछूत, अछूत, नीच, दुष्ट, पापी आदि घृणित मानसिकता से निजात पाने की कोशिश की जा रही है। इसके लिए इस मिशन के माध्यम से माथे पर लगे इस कलंक को छिपाने के लिए नहीं, अब सदा के लिए मिटाने की कोशिश हो रही है। ताकि इस कलंक से संक्रमित होने से आने वाली अगली पीढ़ियों को बचाया जा सके।

बैठक में उपस्थित बहुजन

मैंने आज की सामाजिक परिस्थितियों के अनुभव से नये अंदाज और तेवर में अभी अपनी चार पुस्तकें  मानवीय चेतना, गर्व से कहो हम शूद्र हैं, ब्राह्मणवाद का विकल्प शूद्रवाद और यादगार लम्हें प्रकाशित की है, जो आनलाइन amazon और filpkart पर उपलब्ध हैं।

स्वतंत्रता के 75 साल बाद, समता, समानता और बंधुत्व आधारित संविधान लागू होते हुए भी, यदि आप के दिमाग से यह कचरा नहीं निकलता है तो, इसके लिए सिर्फ ब्राह्मण दोषी नहीं है। कहीं न कही, उच्च बनने की अहंकारी मानसिकता से ग्रसित खुद आप भी ब्राह्मणवादी हैं और इसी बुराई को छिपाने में सभी जाति की संस्थाएं और दूसरे बहुत से सामाजिक संगठन व्यस्त हैं।

यदि मैं सिर्फ एक स्लोगन से बदल सकता हूं तो वाट्सएप पर मौजूद हजारों ज्ञान से आप क्यों नहीं? यदि नहीं! तो ऐसा लगता है कि या तो आप इस बीमारी के पोशाक हैं या फिर महाबुजदिल हैं। मेरी उम्र 72 की पूरी हो गई है। इसी महापुरुष की देन है कि मैं धर्मविहीन, जातिविहीन, भगवानविहीन, राजाविहीन, भयविहीन, रोगविहीन सन्तुष्ट पूर्ण और खुशहाल जिंदगी अभी तक जी रहा हूं।

बामसेफ, DS-4 व बहुजन समाज पार्टी के जन्मदाता, हम बहुजनों के भाग्य विधाता, युग परुष मान्यवर कांशीराम साहब के जन्मोत्सव पर सभी साथियों से मेरा अनुरोध है कि एक बार अपने मन के भीतर शिद्दत से झाँकें कि कहाँ से हमारे ऊपर मनुवाद का आक्रमण हो रहा है और कैसे उसको उखाड़ कर फेंका जा सकता है। क्योंकि बिना इससे मुक्त हुए न मानवीय चेतन का विकास होगा और न ही कोई विकल्प खड़ा हो सकेगा।

 

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