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चौथे चरण में सपा गठबंधन के सोशल इंजीनियरिंग की होगी असली अग्निपरीक्षा

सम्पूर्ण भारत के राजनीतिक गलियारे में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव की चर्चा जोरों पर है, क्योंकि इस चुनाव को भाजपा के लिए सेमीफाईनल माना जा रहा है। राजनीतिक विश्लेषकों द्वारा अक्सर यह बात दोहराई जाती है कि दिल्ली का गलियारा यूपी से होकर गुजरता है। यदि हम यूपी में चुनावी माहौल की बात करें तो […]

सम्पूर्ण भारत के राजनीतिक गलियारे में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव की चर्चा जोरों पर है, क्योंकि इस चुनाव को भाजपा के लिए सेमीफाईनल माना जा रहा है। राजनीतिक विश्लेषकों द्वारा अक्सर यह बात दोहराई जाती है कि दिल्ली का गलियारा यूपी से होकर गुजरता है। यदि हम यूपी में चुनावी माहौल की बात करें तो पाते हैं कि प्रथम और द्वितीय चरण में किसान आंदोलन और कैराना की चर्चा जोरों पर थी तथा तीसरा चरण आते ही चुनावी माहौल को ‘आतंकवाद’, ‘परिवारवाद’, ‘यादववाद’ तथा ‘तमंचावाद’ कहकर भाजपा ने मुख्य विपक्षी दल की एक निगेटिव इमेज प्रस्तुत करने की कोशिश की गई।

हालांकि, विपक्षी दल के नेताओं ने भी पलटवार करने हुए ‘बुलडोजर मुख्यमंत्री’, ‘बाबा मुख्यमंत्री’, ‘घर से धुंवा’, जैसे अनेक शब्द गढ़ डाले। चौथे चरण आते ही अवध क्षेत्र तथा रोहिलखंड (तराई बेल्ट) में राजनीतिक सरगर्मी बढ़ गई है, क्योंकि इस चरणमें पीलीभीत, लखीमपुर खीरी, सीतापुर, हरदोई, लखनऊ, उन्नाव, रायबरेली, फतेहपुर और बांदा में 23 फरवरी को मतदान होना है, जहां से 624 प्रत्याशी चुनावी मैदान ने अपनी किस्मत अजमा रहे हैं।

[bs-quote quote=”इस बार सपा और बसपा ने सबसे ‘सबको सम्मान’ तथा सामाजिक भागीदारी की नीति पर चलते हुए शोसल इंजीनियरिंग का पूरा ख्याल रखा है। वहीं कांग्रेस ने पिछड़े वर्गों के प्रत्याशियों पर ज्यादा भरोसा नही किया तथा मात्र 6 सीटें देकर इतिश्री कर ली। शायद इसलिए आज पिछड़ा वर्ग कांग्रेस ने उम्मीद लगाना बंद कर चुका है और अपना रुख भाजपा और समाजवादी पार्टी की तरफ़ इख़्तियार कर लिया है। चौथे चरण में 16 सीटें अनुसूचित जाति के प्रत्याशियों के लिए आरक्षित की गई हैं। सपा और कांग्रेस को छोड़कर किसी दल ने अनुसूचित जाति के उम्मीदवारों के लिए अतिरिक्त सीटें नही दी हैं।” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]

लखनऊ, रायबरेली और लखीमपुर खीरी

जहां एक तरफ़ प्रदेश की राजधानी लखनऊ पर सबकी नजर बनी हुई है। वहीं दूसरी तरफ़, लखीमपुर खीरी में किसानों को रौंदने  की घटना के बाद इस चुनाव में मीडिया का प्रमुख केंद्रबिंदु बना हुआ है। क्योंकि संयुक्त किसान मोर्चा का आरोप है कि केंद्रीय गृह राज्यमंत्री अजय मिश्र टेनी के पुत्र आशीष मिश्र की गाड़ियों के काफिले ने रौंद डाला, जिसमें चार किसान कुचल कर मर गए और लगभग एक दर्जन प्रदर्शनकारी घायल हो गए थे। हाल ही में आशीष मिश्र को कोर्ट से जमानत भी मिल गई है। ऐसे में किसानों में काफ़ी रोष व्याप्त है। इस चुनाव में प्रियंका गाँधी की इंट्री होने से लोग कांग्रेस की तरफ़ भी देखना शुरू कर चुके हैं। महिलाओं के मुद्दे पर कांग्रेस चुनावी नैया पार लगाना चाहती है। रायबरेली कांग्रेस का गढ़ माना जाता है, ऐसे में प्रियंका गाँधी के लिए अपनी साख बचाने का मुद्दा हो गया है।

चौथे चरण में सामाजिक प्रतिनिधित्व का गुणा-गणित

दल सवर्ण पिछड़ा वर्ग मुस्लिम दलित सिख योग
भाजपा 25 18 0 16 0 59
सपा (गठबंधन) 14 22 5 17 1 59
बसपा 12 14 17 16 0 59
कांग्रेस 24 6 9 18 2 59
योग 75 60 31 67 3

 

इस चरण में भाजपा तथा कांग्रेस ने सवर्ण जातियों को सबसे ज्यादा टिकट दिया है। जहां एक तरफ़, बसपा ने मुस्लिम उम्मीदवारों पर सबसे ज्यादा भरोसा जताया है. वहीं भाजपा ने हिन्दू तुष्टिकरण के पथ पर चलते हुए एक भी मुस्लिम उम्मीदवार को टिकट नही दिया। उपरोक्त चार्ट से स्पष्ट है कि इस बार सपा और बसपा ने सबसे ‘सबको सम्मान’ तथा सामाजिक भागीदारी की नीति पर चलते हुए शोसल इंजीनियरिंग का पूरा ख्याल रखा है। वहीं कांग्रेस ने पिछड़े वर्गों के प्रत्याशियों पर ज्यादा भरोसा नही किया तथा मात्र 6 सीटें देकर इतिश्री कर ली। शायद इसलिए आज पिछड़ा वर्ग कांग्रेस ने उम्मीद लगाना बंद कर चुका है और अपना रुख भाजपा और समाजवादी पार्टी की तरफ़ इख़्तियार कर लिया है। चौथे चरण में 16 सीटें अनुसूचित जाति के प्रत्याशियों के लिए आरक्षित की गई हैं। सपा और कांग्रेस को छोड़कर किसी दल ने अनुसूचित जाति के उम्मीदवारों के लिए अतिरिक्त सीटें नही दी हैं।

अगर पक्ष और विपक्ष के नेताओं द्वारा सार्वजानिक मंचों से दिए गए संबोधनों का विश्लेषण करें, तो पाएंगे कि कि सुशासन, भ्रष्टाचार, स्वास्थ्य सुविधा, मंहगाई, नौकरी, फ्लाईओवर, आवारा पशुओं से मुक्ति, रोजगार, मंहगी बिजली, मंहगी गैस, महिलाओं को सुरक्षा, माफियागीरी, आरक्षण घोटाला, गड्ढा-मुक्त सड़कें, आदि मुद्दे प्रमुखता से उठाये जा रहे हैं।

[bs-quote quote=”सुल्तानपुर जिले के टंडवा गाँव के रहने वाले रामनारायण (उम्र 30 वर्ष) का मानना है कि ‘कोरोना महामारी के दौरान हुई कालाबाजारी से सुशासन की पोल खुल चुकी है। 15-20 रूपये में मिलने वाली बुखार की दवा (पैरासीटामाल) 100 से 150 रूपये में बिक रही थी। एक हजार से दो हजार रूपये में मिलने वाला आक्सीजन का सिलेंडर 20 से 25 हजार रूपये में बेचा जा रहा था। गैस, डीजल, पेट्रोल के आसमान छूते हुए दामों तथा अकूत मंहगाई के साथ बेरोजगारी के आलम से जनमानस का भाजपा के प्रति माया-मोह अब भंग हो चुका है’।” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]

हालाँकि आम जनता के बीच सामाजिक न्याय तथा रोजगार का मुद्दे पर प्रमुख जोर है। राम मंदिर, हिन्दू-मुस्लिम तुष्टिकरण, आदि मुद्दों की चर्चा इस बार ना के बराबर है। विकास और सामाजिक भागीदारी के मुद्दे पर सपा को बढ़त मिलती दिखी, जबकि मुफ्त राशन के कारण कुछ मतदाताओं का झुकाव भाजपा की तरफ़ दिखाई दिया। जातीय समीकरण पर ध्यान देने पर ज्ञात हुआ है कि ब्राह्मण, राजपूत तथा कुछ बनिया जातियों का झुकाव इस बार भी भाजपा की तरफ़ है, जबकि गैर-यादव पिछड़ी जातियों में योगी सरकार के प्रति इस बार मोंह भंग हुआ है। अभय कुमार दुबे का मानना है कि ‘इस बार डबल इंजन की सरकार में भाजपा कोडबल ऐंटी इंकम्बेंसी का सामना करना पड़ रहा है। इसमें दो राय नहीं किप्रधानमंत्री मोदी की छवि धीरे-धीरे चंद अडानी-अंबानी जैसे पूँजीपतियों के समर्थकों की हो गई है। अब वह ग़रीबों-पिछड़ों के मसीहा नहीं रहे और न हीगुजरात मॉडल में आकर्षण बचा है।’[i]

सपा का सहयोगी दल सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभरका प्रभाव चौथे चरण की सीटों परदेखा जा सकता हैं। मोटे तौर पर ज्यादातर स्थानीय नेताओं के व्यक्तिगत अनुभव यही बताते हैं कि इस बार चुनाव सपा बनाम भाजपा होता दिखाई दे रहा है। इस बार गौ माता, मुसलमान बनाम हिन्दू, भगवा राष्ट्रवाद, राम मंदिर, गंगा मां जैसे भावात्मक मुद्दे पिछले विधानसभा के चुनाव की भांति स्थानीय लोगों को बहुत कम आकर्षित कर पा रहे हैं। उदाहरण स्वरूप, अब ‘गौ बंश’ की जगह ‘ललका सांड’ ने ले लिया है। संप्रदायिकता की जगह रोजगार तथा किसान की आय दुगना करने का मुद्दा भारी पड़ रहा है।

जहां एक तरफ़, ज्यादातर मुस्लिम और यादव के साथ-साथ कुछ अन्य पिछड़ी जातियों के मतदाता अखिलेश यादव में अपना भविष्य देख रहे हैं। बेरोजगार नौजवानों तथा हिन्दू बनाम मुस्लिम नैरेटिव से उब चुके तटस्थ मतदाताओं का रुझान भी इस बार सपा की तरफ़ है। वहीं दूसरी तरफ़, किसान आंदोलन ने सरकार को झुकने पर मजबूर कर दिया था तथा इस आंदोलन के नेता भाजपा के संप्रदायीकरण को एक तरफ़ से ख़ारिज करते हुए नजर आ रहे हैं। जिसका असर इन विधानसभा सीटों पर देखा जा सकता है।रामदत्त त्रिपाठी कहते हैं कि ‘भाजपा से न केवल पिछड़े वर्ग का मोहभंग हुआ बल्कि भाजपा समर्थक ऊँची जातियों में भी ब्राह्मण समुदाय को शिकायत है कि मुख्यमंत्री योगी राजपूत बिरादरी कोज़्यादा महत्व दे रहे हैं।’[ii] भाजपा ने इस बार 71 सीटें राजपूत जाति के उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है।

सुल्तानपुर जिले के टंडवा गाँव के रहने वाले रामनारायण (उम्र 30 वर्ष) का मानना है कि ‘कोरोना महामारी के दौरान हुई कालाबाजारी से सुशासन की पोल खुल चुकी है। 15-20 रूपये में मिलने वाली बुखार की दवा (पैरासीटामाल) 100 से 150 रूपये में बिक रही थी। एक हजार से दो हजार रूपये में मिलने वाला आक्सीजन का सिलेंडर 20 से 25 हजार रूपये में बेचा जा रहा था। गैस, डीजल, पेट्रोल के आसमान छूते हुए दामों तथा अकूत मंहगाई के साथ बेरोजगारी के आलम से जनमानस का भाजपा के प्रति माया-मोह अब भंग हो चुका है’। कुछ अन्य व्यक्तियों से बातचीत के दौरान यह उभरकर सामने आया कि आज युवा वर्ग, गरीब, मजदूर, व्यापारी तथा किसान भाजपा को टक्कर देने वाले को जिताना चाहता है. हालांकि, इस चरण में बसपाउम्मीदवारों की दावेदारी भी काफ़ी मजबूत दिखाई दे रही है।

[i]https://www.bbc.com/hindi/india-60459059

[ii]https://www.bbc.com/hindi/india-60459059

 

लेखक हैदराबाद विश्वविद्यालय में समाजशास्त्र विभाग में डॉक्टरेट फेलो हैं. इन्हें भारतीय समाजशास्त्रीय परिषद द्वारा प्रतिष्ठित प्रोफ़ेसर एमएन श्रीनिवास पुरस्कार-2021 तथा हैदराबाद विश्वविद्यालयद्वारा “इंस्टीटयूट ऑफ़ एमिनेंस अवार्ड-2021’ से भी नवाजा गया है.

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