यह सवाल इसलिए भी कि पंजाब कांग्रेस के एक मंझोले स्तर के नेता से कल देर रात बात हो रही थी। तो उनका कहना था कि कांग्रेस को एक सिक्ख को ही सीएम बनाना चाहिए था। मैंने उनसे पूछा कि क्या रामदसिया सिक्ख, सिक्ख नहीं होते? मेरे सवाल पर वे चौंके। उन्होंने संभलते हुए कहा कि नहीं, ऐसी बात नहीं है कि रामदसिया सिक्ख सिक्ख नहीं होते। वे भी सिक्ख ही होते हैं। लेकिन सामान्य वाले सिक्ख नहीं होते जैसे कि कैप्टन साहब थे। वे खांटी सिक्ख थे। शिरोमणि अकाली दल के सिक्ख जैसे पक्के वाले सिक्ख हैं।
उन दिनों एक बूढ़े बाबा आया करते थे। कंधे पर कनस्तर टांगे हुए। उन कनस्तरों में बिस्कुट हुआ करते थे। चार आना से लेकर दो रुपए तक के बिस्कुट होते थे। उनकी सफेद दाढ़ी थी और माथे पर पगड़ी बांधकर रखते थे। उनके पास कौड़िया बिस्कुट होता था। वह काजू के आकार का होता था। मैं तो उसी का दीवाना था। एक रुपैया में चार मिल जाता था। अब भी मिलता है शायद। कीमत अधिक हो गई है। एक रुपए की एक।

बढ़िया। विचारणीय और पठनीय। कविता भी अच्छी लगी। बधाई।