Saturday, July 27, 2024
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ऑस्कर की दौड़ में कई बाधाओं के बावजूद विजय की उम्मीद जगाती है ‘जय भीम’

तमिल सुपर स्टार सूर्या और ज्योतिका द्वारा निर्मित और टी जे ज्ञानवेली द्वारा निर्देशित जय भीम करोड़ों भारतीयों को विस्मित करने के बाद अब फिल्मों के नोबेल पुरस्कार माने जाने वाले ऑस्कर अवार्ड के क्वार्टर फाइनल में पहुँच गयी है। ऑस्कर अवार्ड का आयोजन करने वाली एकेडमी ऑफ़ मोशन पिक्चर्स आर्ट्स एंड साइंसेज ने पूरी […]

तमिल सुपर स्टार सूर्या और ज्योतिका द्वारा निर्मित और टी जे ज्ञानवेली द्वारा निर्देशितय भीम करोड़ों भारतीयों को विस्मित करने के बाद अब फिल्मों के नोबेल पुरस्कार माने जाने वाले ऑस्कर अवार्ड के क्वार्टर फाइनल में पहुँच गयी है। ऑस्कर अवार्ड का आयोजन करने वाली एकेडमी ऑफ़ मोशन पिक्चर्स आर्ट्स एंड साइंसेज ने पूरी दुनिया से आयी जिन 276 फिल्मों को अवार्ड के लिए योग्य माना है, उनमें जय भीम भी शामिल है। पुरस्कार के लिए शार्टलिस्ट होने के बाद ऑस्कर अपने आधिकारिक यूट्यूब चैनल पर इसके चुनिन्दा दृश्यों को प्रसारित कर रहा है, जो इसके लिए गर्व का विषय है। इसके पहले शायद किसी और तमिल फिल्म को यह गौरव नहीं मिला था। ऐसा होने पर फिल्म के निर्माता और अभिनेता सूर्या शिवकुमार एक बार फिर बधाइयों के सैलाब में डूब गए हैं और जय भीम सोशल मीडिया में चर्चा का विषय बन गई है। भारतीय फिल्म प्रेमियों के लिए डबल ख़ुशी की बात है कि सूर्या और लिजोमोल जोश अभिनीत जातिगत भेदभाव का घिनौना और वीभत्स रूप प्रदर्शित करने वाली तमिल फिल्म जय भीम के साथ ही पिछले वर्ष राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित मोहल लाल की एक्शन एडवेंचर मलयालम पीरियड फिल्म मरक्कर: अरेबिकदलिनते सिंमहम भी 276 की शार्ट लिस्ट में शामिल हो गयी है।

ऑस्कर नॉमिनेटेड भारतीय फिल्में

दक्षिण भारतीय फिल्मोद्योग की दो फिल्मों का ऑस्कर में यहाँ तक का सफ़र तय करना इस बात का संकेत है कि बाहुबली और पुष्पा जैसी फिल्में देने वाला दक्षिण भारत अब बॉलीवुड को काफी हद तक पीछे ढकेल चुका है। बहरहाल 94 वें ऑस्कर के शॉर्ट लिस्ट में पिछले वर्ष के मुकाबले इस बार 90 फिल्में कम शामिल की गयी हैं। ऐसा इसलिए हुआ है क्योंकि पात्रता की सूची में इस बार 1 जनवरी के बजाय 1 मार्च से लेकर 31 दिसंबर, 2021तक प्रदर्शित फिल्मों को ही शामिल किया गया है। खैर! 94 वें ऑस्कर पुरस्कार के नॉमिनेशन की प्रक्रिया 27 जनवरी से शुरू होकर 1 फ़रवरी तक चलेगी और 8 फ़रवरी को फिल्मों के विभिन्न कैटेगरी के नॉमिनेशन की घोषणा होगी। उसके बाद 27 मार्च को लॉसएंजिल्स के डॉल्बी थियेटर में पुरस्कार वितरण समारोह आयोजित होगा। बहरहाल 2 नवम्बर, 2021 में ओटीटी प्लेटफार्म एमेजॉन प्राइम वीडियो पर रिलीज हुई जय भीम आईएमडीबी में विश्व विख्यात फिल्म द गॉडफादर को पछाड़ते हुए 9.6 की रेटिंग दर्ज कराने सहित गोल्डन ग्लोब्स 2022 के बेस्ट नॉन- इंग्लिश फिल्मों की कटेगरी में शामिल होने बाद ऑस्कर के लिए शार्टलिस्टेड होकर भारतीय फिल्म प्रेमियों की उम्मीदें बढ़ा दी हैं। अब इसे लेकर लोगों के जेहन में सवाल उठ रहा है कि ऑस्कर में जो काम मदर इंडिया, सलाम बॉम्बे, लगान नहीं कर पाई, क्या जय भीम वह कर दिखाएगी? इसे समझने के लिए जरा ऑस्कर में पहुंची भारतीय फिल्मों का सिंहावलोकन कर लिया जाय।

 

[bs-quote quote=”ऑस्कर अवार्ड की शुरुआत 1929 से हुई, किन्तु औसतन 800 फिल्में हर साल बनाने वाले भारत की ओर से इसमें अवार्ड के लिए फ़िल्में भेजने का सिलसिला 1957 में बॉलीवुड की मदर इंडिया से शुरू हुआ और पिछले साल तमिल फिल्म कूड़ांगल को मिलाकर अब तक 55 फ़िल्में भेजी जा चुकी हैं। इन 55 में बॉलीवुड की 33 हिंदी और 11 तमिल फिल्में ऑस्कर के लिए भेजी गई हैं। इसके अलावा मलयालम की तीन, मराठी और बांग्ला की दो-दो तथा तेलुगू, असमी, गुजराती और कोंकणी की भी एक-एक फ़िल्में ऑस्कर के लिए भेजी गई हैं, लेकिन अभी तक एक भी फिल्म ऑस्कर जीतने में समर्थ नहीं हुईं।” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]

ऑस्कर में भारतीय फिल्में

ऑस्कर अवार्ड की शुरुआत 1929 से हुई, किन्तु औसतन 800 फिल्में हर साल बनाने वाले भारत की ओर से इसमें अवार्ड के लिए फ़िल्में भेजने का सिलसिला 1957 में बॉलीवुड की मदर इंडिया से शुरू हुआ और पिछले साल तमिल फिल्म कूड़ांगल को मिलाकर अब तक 55 फ़िल्में भेजी जा चुकी हैं। इन 55 में बॉलीवुड की 33 हिंदी और 11 तमिल फिल्में ऑस्कर के लिए भेजी गई हैं। इसके अलावा मलयालम की तीन, मराठी और बांग्ला की दो-दो तथा तेलुगू, असमी, गुजराती और कोंकणी की भी एक-एक फ़िल्में ऑस्कर के लिए भेजी गई हैं, लेकिन अभी तक एक भी फिल्म ऑस्कर जीतने में समर्थ नहीं हुईं। भारत के लिए सबसे बड़ी उपलब्धि तीन फिल्मों ने विदेशी फिल्मों की 5 बेस्ट कटेगरी में शामिल होकर अर्जित किया है। पहली बार 1958 में महबूब खान की फिल्म मदर इंडिया को बेस्ट फॉरेन फिल्म कैटेगरी में नॉमिनेट किया गया, किन्तु जबरदस्त निर्देशकीय कौशल और तकनीकी भव्यता के बावजूद वह केवल एक वोट से नाइट ऑफ़ कैरेबिया से पीछे रह गयी थी। प्रायः 30 साल बाद ऑस्कर में नॉमिनेट होने का अवसर 1989 में मीरा नायर की सलाम बॉम्बे को मिला, किन्तु भारत की आर्थिक राजधानी मुंबई की अप्रिय सच्चाई को सामने लाने वाली यह फिल्म देश – विदेश में धूम मचाने के बावजूद ऑस्कर जीतने में सफल न हो सकी। भारत की ओर से ऑस्कर जीतने की सर्वाधिक सम्भावना आमिर खान निर्मित और आशुतोष गोवारिकर निर्देशित लगान ने जगाया, लेकिन अंत में यह बोस्निया की फिल्म  नो मैन्स लैंड के हाथों मात खा गयी।

ऑस्कर में नॉमिनेट हुई सलाम बाम्बे फिल्म

 भारतीय  फिल्में ऑस्कर में क्यों होती रही हैं विफल

तो ऑस्कर में भारतीय फिल्मों को अब तक व्यर्थता ही व्यर्थता मिली है। हाँ, निजी तौर पर रिचर्ड एटेनबरो और डैनी बॉयल जैसे ब्रितानी फिल्मकारों के सौजन्य से भानु अथैया, एआर रहमान, गुलज़ार, रसूल पोक्कुटी को ऑस्कर ट्राफी उठाने का अवसर मिला है। महान सत्यजित रे भी अपनी खुद की फिल्म के कारण नहीं बल्कि जीवन भर के कार्यों के कारण ‘ऑनरेरी  लाइफटाइम  एचीवमेंट’ से ऑस्कर में सम्मानित होने का गौरव पाए थे। बहरहाल ऑस्कर में भारतीय फिल्मों की व्यर्थता के कारणों की तफ्तीश करते हुए कई विशेषज्ञों ने कहा है कि भारत से सामान्यतया बॉक्स ऑफिस पर सफल फिल्मों को ही ऑस्कर में भेजा जाता है। इस क्रम में फिल्मों की कहानी और स्क्रीनप्ले की मौलिकता की अनदेखी होती रही हैं। कइयों का मानना है कि भारतीय निर्माता ऑस्कर जीतने के नजरिये से फिल्मों का निर्माण नहीं करते। कइयों का मानना है कि भारतीय फिल्मों की लम्बाई और गाने नॉमिनेट करने वालों को विरक्त कर देते हैं। लेकिन संयोंग से अच्छी फ़िल्में ऑस्कर में पहुँच भी जाती हैं तो आर्थिक कारणों से निर्माता उनका सही तरीके से प्रमोशन नहीं करा पाते। लॉसएंजेलिस में फिल्मों के प्रमोशन पर 10 मिलियन डॉलर के बजट की जरुरत होती है और भारतीय निर्माता उसे पूरा नहीं कर पाते।

[bs-quote quote=”1944 से शुरू हुए गोल्डन ग्लोब्स में आज तक किसी भी भारतीय को गोल्डन ग्लोब्स की ट्राफी नसीब नहीं हुई है। जिस तरह ब्रितानी फिल्मकार-डायरेक्टर डैनी बॉयल के स्लैमडॉग मिलियनेयर से एआर रहमान सहित तीन लोगों को ऑस्कर ट्राफी नसीब हुई थी, उसी तरह एआर रहमान इकलौते भारतीय हैं जिन्हें 11 जनवरी 2009 को कैलिफोर्निया के बेवरली हिल्टन होटल में आयोजित 66 वें गोल्डन ग्लोब्स समारोह में स्लमडॉग मीलिनियेर में  संगीत के लिए सम्मानित किया गया था।” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]

बहरहाल जिन कारणों से भारतीय फ़िल्में ऑस्कर में व्यर्थ होती रही हैं, उन कारणों के आधार पर जय भीम की सम्भावना बेहतर नजर दिख रही है। यह बोझिल लम्बाई और गानों से पूर्णतया मुक्त है। इसकी स्टोरी और स्क्रीनप्ले की मौलिकता काफी हद तक प्रश्नातीत है। आईएमडीबी की रेटिंग में विश्वविख्यात द गॉडफादर को मात देना तथा ऑस्कर के आधिकारिक यूट्यूब पर इसके खास दृश्यों का प्रसारण इस बात का संकेतक है कि यह प्रमोशन की बाधाओं का भी अतिक्रमण कर चुकी है। ऐसे में 27 मार्च को लॉस एंजेलिस के डॉल्बी थियेटर में इससे कुछ चौंकाने वाले परिणाम के प्रति आशावादी हुआ जा सकता है, पर इसके लिए सबसे जरुरी है 8 फ़रवरी को जो नॉमिनेशन की घोषणा होने जा रही है, उसमे यह फॉरेन फिल्मों की कटेगरी के 5 बेस्ट फिल्मों में जगह बनाये। मगर ऑस्कर के लिए आशावादी होने के पहले भारतीय फिल्म प्रेमियों को यह अप्रिय सच्चाई ध्यान में रखनी होगी कि जिस गोल्डन ग्लोब्स को ऑस्कर का सेमी फाइनल कहा जाता है, उसमें यह मात खा चुकी है।

गोल्डन ग्लोब्स में भी व्यर्थ रही हैं भारतीय फ़िल्में

ऑस्कर के सेमीफाइनल माने जाने वाले जिस गोल्डन ग्लोब्स को जीतने में जय भीम विफल हुई है, उसके विषय में एक नयी जानकारी पाठकों के लिए रोचक होगी। हॉलीवुड फॉरेंन प्रेस एसोसिएसन(एचऍफ़पीए) द्वारा आयोजित किये जाने वाले गोल्डन ग्लोब्स में फिल्म और टेलीविजन जगत में विशेष उपलब्धियों के लिए देश- विदेश के कलाकारों को  गोल्डन  ग्लोब्स से सम्मानित किया जाता है। 1944 से शुरू हुए गोल्डन ग्लोब्स में आज तक किसी भी भारतीय को गोल्डन ग्लोब्स की ट्राफी नसीब नहीं हुई है। जिस तरह ब्रितानी फिल्मकार-डायरेक्टर डैनी बॉयल के स्लैमडॉग मिलियनेयर से एआर रहमान सहित तीन लोगों को ऑस्कर ट्राफी नसीब हुई थी, उसी तरह एआर रहमान इकलौते भारतीय हैं जिन्हें 11 जनवरी 2009 को कैलिफोर्निया के बेवरली हिल्टन होटल में आयोजित 66 वें गोल्डन ग्लोब्स समारोह में स्लमडॉग मीलिनियेर में  संगीत के लिए सम्मानित किया गया था। उनके  बाद भारतीय मूल के एक्टर अज़ीज़ अंसारी को म्यूजिकल कॉमेडी कैटेगरी में टेलीविजन सीरिज ‘द मास्टर ऑफ़ नॉन’ में बेस्ट एक्टर की ट्राफी चूमने का अवसर मिला था। 2012  के गोल्डन ग्लोब समारोह में एआर रहमान जहाँ दूसरी बार डैनी बॉयल की ही ‘127 आवर्स’ संगीत के लिए सम्मानित होने से चूक गए, वहीँ 2017 में स्लमडॉग मिलिनियेर फेम देव पटेल ‘लायन’ के लिए बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर की ट्राफी जीतने से चूक गए। एआर रहमान के बाद प्रियंका चोपड़ा दूसरी भारतीय है, जिन्हें मंच पर पहुंचकर ट्राफी जीतने का तो नहीं, किन्तु  विजेता की ट्राफी सुपुर्द करने का अवसर मिला। तो जिस गोल्डन ग्लोब्स में सिर्फ एक भारतीय : एआर रहमान को ट्राफी उठाने का अवसर मिला, वह गोल्डन गोल्बस इस बार भीं एक खास कारण से पूरी दुनिया में चर्चा का खास विषय बना हुआ है।

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79 वें गोल्डन ग्लोब्स में डाइवर्सिटी के अनदेखी की काली छाया 

हर बार जनवरी में हॉलीवुड फॉरेन प्रेस एसोसिएसन (एचऍफ़पीए) ऑस्कर के सेमीफाइनल के रूप में जाने जाने वाला गोल्डन ग्लोब्स अवार्ड 90 अंतर्राष्ट्रीय पत्रकारों की राय से दिया जाता है। ये पत्रकार हॉलीवुड और अमेरिका के बाहर की मीडिया से सम्बंधित होते हैं और उनके चयन में नस्लीय विविधता का ख्याल रखा जाता है। 2021 के अक्तूबर में एचऍफ़पीए ने 21 नए मेम्बर्स जोड़े, जिनमे 6 ब्लैक्स रहे। बावजूद इसके एचऍफ़पीए पर आरोप लग गया कि उसने नए सदस्यों के चयन में रेसियल डाइवर्सिटी (नस्लीय विविधता) का पूरा ख्याल नहीं रखा है। ऐसा आरोप लगते ही इस इवेंट का वर्षों से प्रसारण करने वाली एनबीसी ने 2022 में आयोजित होने वाले 79वें  गोल्डन ग्लोब्स का प्रसारण करने से हाथ खींच लिया। डाइवर्सिटी की अनदेखी की काली छाया से घिरे 79 वें गोल्डन ग्लोब्स अवार्ड वितरण का आयोजन 9 जनवरी को होना था। उसके पहले ही 6 जनवरी को एचऍफ़पीए के तरफ से यह घोषणा कर दी गयी, ’79 वें गोल्डन ग्लोब्स इवेंट में कोई दर्शक नहीं होगा और न ही रेड कारपेट होगा। इस बार का पुरस्कार समारोह प्राइवेट और बिना किसी लाइव स्ट्रीम के किया जायेगा इसके विजेताओं की घोषणा ऑन लाइन होगी।’ और ऐसा ही हुआ भी। 9 जनवरी को देर रात तक ऑन लाइन विजेताओं की घोषणा होती रही।

गोल्डन ग्लोब्स 2022 में ‘किंग रिचर्ड’ के लिए बेस्ट एक्टर के विजेता घोषित हुए अश्वेत महानायक विल स्मिथ; बीइंग द रिकार्डोस के लिए बेस्ट ऐक्ट्रेस चुनी गईं आस्ट्रेलियन ब्यूटी निकोल किडमैन। इस समारोह में दबदबा रहा ‘द पॉवर ऑफ़ गेम’ का, जिसने बेस्ट पिक्चर का ख़िताब जीता। इसी फिल्म के लिए बेस्ट डायरेक्टर का अवार्ड जे कैम्पियन के हिस्से में आया। जिस गोल्डन ग्लोब्स के रेड कारपेट पर चलना बड़े-बड़े सितारों के लिए गौरव की बात होती रही है, उन्हें उससे महरूम होना पड़ा। लॉस एंजेलिस का जो बेवरली हिल्टन होटल गोल्डन ग्लोब्स अवार्ड के दिन दुनिया भर के सेलिब्रेटीज और चुनिदा दर्शकों से भर जाता रहा, उस होटल हिल्टन में 9 जनवरी को सन्नाटा छाया रहा। वजह रही सिर्फ और सिर्फ डाइवर्सिटी की अनदेखी, जिसकी अहमियत का अंदाजा भारत के आम तो आम बहुत से खास लोग भी नहीं लगा सकते। यहाँ तो फिल्म फेयर से लेकर साहित्य अकादमी जैसे बड़े पुरस्कार ही नहीं, छोटे-बड़े तमाम पुरस्कारों की चयन समितियां विविधता रहित होती हैं, जो गुणवत्ता के बजाय स्व-जाति/ वर्ण को अहमियत देती हैं। इससे न तो पुरस्कार देने वालों को शर्म आती है न लेने वालों को।

जय भीम का भी हो सकता है मदर इंडिया- सलाम बॉम्बे- लगान  जैसा हश्र

बहरहाल 79 वें गोल्डन ग्लोब्स में जय भीम की विफलता से कयास लगाया जा सकता है कि इसका भी हश्र मदर इंडिया, सलाम बॉम्बे और लगान जैसा ही हो सकता है। किन्तु विविधता प्रेमियों के लिए गोल्डन ग्लोब्स से एक सुखद सन्देश मिला है। शायद यह पहला अवसर है जबकि ऑस्कर के सेमीफाइनल कहे जाने वाले गोल्डन ग्लोब्स में बेस्ट एक्टर की कैटेगरी के 5 बेस्ट में तीन अश्वेत एक्टरों: डेंजिल वाशिंग्टन, विल स्मिथ और माहेरशाला अली को जगह मिली है। इनमें विल स्मिथ के साथ एरियाना देबोस ने बेस्ट सपोर्टिंग ऐक्ट्रेस और माइकेला जो रोड्रिज ने टीवी ड्रम के लिए बेस्ट एक्ट्रेस का अवार्ड जीत कर संकेत दिया है कि 27 मार्च को लॉस एंजेलिस के डॉल्बी थियेटर में डाइवर्सिटी का रंग उसी तरह जमेगा, जैसे 2002 में डेंजिल वाशिंग्टन और हैलीबेरी के क्रमशः बेस्ट एक्टर और ऐक्ट्रेस का ट्राफी जीतने के साथ ही महान सिडनी पोयटीयर के लाइफटाइम एचीवमेंट अवार्ड पाने से जमा था। मुमकिन है एक बार फिर हम 27 मार्च को डॉल्बी थियेटर निकोल किडमैन की डबडबायी आँखों का साक्षात् करें जिस 2002 हैलेबेरी को सम्मानित होते देख उनकी आँखे ख़ुशी भर आयी थीं।

दुसाध बहुजन डाइवर्सिटी मिशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं और कैसे हो संविधान के उद्देश्यों की पूर्ति जैसी चर्चित पुस्तक के लेखक हैं।

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