इसी बीच 1942 में महात्मा गांधी द्वारा 'अंग्रेज भारत छोड़ो' का आंदोलन प्रारंभ हो गया। इस आंदोलन में विभिन्न विद्यालयों, महाविद्यालयों एवं विश्वविद्यालयों से तमाम छात्रों ने हिस्सा लिया। कर्पूरी ठाकुर भी इससे अछूते न रहे। उन्होंने पटना के कृष्णा टॉकीज हॉल में छात्रों के बीच एक जोरदार भाषण देते हुए कहा था कि- 'हमारे देश की आबादी इतनी अधिक है कि केवल थूक देने मात्र से अंग्रेजी राज बह जाएगा।'
\कर्पूरी ठाकुर का जन्म 24 जनवरी 1924 को बिहार के समस्तीपुर जिले के पितौझिया (अब कर्पूरीग्राम) नामक गांव में हुआ था। उनके पिता गोकुल नाथ ठाकुर एक निर्धन किसान थे और माता रामदुलारी देवी सामान्य गृहिणी थीं। उनके पिता खेती-बाड़ी के साथ-साथ अपनी जातिगत पेशा नाई का काम करते थे। परिस्थितियां अनुकूल न होने के बावजूद उन्होंने कर्पूरी के भीतर पढ़ने के प्रति रुचि, लगन और लालसा को देखते हुए उनका भरपूर साथ दिया। बचपन से ही कर्पूरी पढ़ने में अत्यंत मेधावी एवं तेजस्वी व्यक्तित्व के बालक थे। प्राथमिक विद्यालय से शिक्षा आरंभ करते हुए उन्होंने 1940 में मैट्रिक की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण कर लिया। प्रथम श्रेणी में परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद उनके पिता उनको गाँव के एक बाबू साहब के घर ले गए उनसे कहा कि ‘यह मेरा बेटा है, पढ़ने में अच्छा है, मैट्रिक प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण किया है। कोई काम-वाम हो तो दिलवा दीजिए, जिससे परिवार का खर्च चल सके।’

नेताजी की ऐतिहासिक विरासत को सांप्रदायिक रंग मे ढालने की कोशिश

1970 में कर्पूरी ठाकुर जब मुख्यमंत्री बने, तब उन्होंने गरीब और पिछड़े तबके की शिक्षा को ध्यान में रखते हुए आठवीं तक की शिक्षा को नि:शुल्क कर दिया और बिहार में उर्दू को दूसरी राजभाषा का दर्जा दे दिया। निःशुल्क शिक्षा प्रणाली लागू होने के बाद स्कूलों में भीड़ लग गई और गरीब एवं निम्न स्तर के बच्चे अधिक संख्या में शिक्षा में आगे आने लगे। उनके इस निर्णय के बाद आम जनता ने कर्पूरी की जमकर सराहना की।
कर्पूरी ठाकुर का महत्व सामाजिक न्याय के पुरोधा के रूप में है। उनके राजनीतिक शिष्य लालू प्रसाद ने उन्हें हशिए के समाजों का मसीहा कहा है। एक पत्रकार ने लिखा है -' 1990 की बात है। बिहार में खगड़िया जिले में पड़ने वाले अलौली में लालू प्रसाद यादव का एक कार्यक्रम था। इस दौरान उन्होंने राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर का जिक्र किया। लालू यादव का कहना था, ‘जब कर्पूरी जी आरक्षण की बात करते थे, तो लोग उन्हें मां-बहन-बेटी की गाली देते थे। और, जब मैं रेजरबेसन (रिजर्वेशन) की बात करता हूं, तो लोग गाली देने के पहले अगल-बगल देख लेते हैं कि कहीं कोई पिछड़ा-दलित-आदिवासी सुन तो नहीं रहा है।
