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बनारस के कुम्हारों के लिए मज़ाक बनकर रह गया है इलेक्ट्रिक चाक

बनारस के कुछ गाँवों के 60 कुम्हारों को प्रशिक्षित करके प्रधानमंत्री द्वारा चलाई गई 'कुम्हार सशक्तिकरण योजना' के तहत इलेक्ट्रिक चाक दिये गए ताकि मिट्टी के बर्तन बनाने में आसानी हो लेकिन बिजली का ज्यादा दाम उनके लिए भारी पड़ रहा है। इसके साथ ही कई कुम्हार परिवारों ने इलेक्ट्रिक चाक के लिए आवेदन किया लेकिन उन्हें नहीं मिला। इलेक्ट्रिक चाक पानेवाले कुम्हार चाहते हैं कि उन्हें फिक्स रेट पर बिजली मिले या सोलर से चलने वाले चाक दिये जाएँ। पूरी योजना ही किस तरह कुम्हारों के लिए भारी पड़ रही है इसकी पड़ताल करती हुई रिपोर्ट।

केन्द्र की मोदी सरकार ने कुम्हारों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए जिस ‘कुम्हार सशक्तिकरण योजना’ की शुरूआत साल 2018 में की थी वह प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र में ही जमीनी स्तर पर दम तोड़ती नजर आ रही है। इस योजना के तहत कुम्हारों को मिलने वाला इलेक्ट्रिक चाक बिजली बिल को बेतहाशा बढ़ा दे रहा है। घरों में स्मार्ट बिजली का मीटर लगे होने के कारण भारी-भरकम बिजली आ रहा है जिसके बोझ से कुम्हारों की कमर सीधी होने के बजाय और झुकती जा रही है। इस स्थिति से निपटने के लिए कुम्हारों ने सरकार से मांग की है कि उनका बिजली का बिल फिक्स कर दिया जाय, जिससे उन्हें थोड़ी राहत मिल सके।

इस बारे में शिवपुर के पास स्थित हटियां गांव के रहने वाले मुन्नालाल प्रजापति दुखी मन से कहते हैं कि ‘यह इलेक्ट्रिक चाक तो हमें सरकार की ओर से मिल गया लेकिन इलेक्ट्रिक चाक  से हमारी समस्याएं घटने की बजाय बढ़ गई हैं।’ वह आगे बताते हैं ‘आज सरकार ने सभी के घरों में स्मार्ट मीटर लगा दिया है। हम भी उससे अछूते नहीं हैं। प्रति यूनिट के हिसाब से हमें भी बिजली का बिल देना पड़ रहा है। बिजली का बिल इतना अधिक आता है कि हमारी बचत ही नहीं हो पाती है। जो थोड़ी बहुत बचत होती भी है तो वह राशन-पानी जुटाने में ही खर्च हो जाता है। मिट्टी के बर्तन बनाने के काम आनेवाले सामान के भाव आज आसमान छू रहे हैं। एक ट्रैक्टर मिट्टी का दाम 3 हजार रुपए पड़ जाता है। मिट्टी के बर्तन को पकाने के लिए उपला (गोबर का कंडा जिससे मिट्टी का बर्तन पकाया जाता है।) 15 सौ का लाते है तो 100-150 मिट्टी के बर्तन पकते हैं। बर्तन बनाने के काम में मेरे अलावा मेरे परिवार के तीन अन्य लोग लगे रहते हैं। भोर के 4 बजे से उठकर काम पर लग जाता हूं और रात को 8-9 बजे खाली होता हूं। क्या फायदा इतनी मेहनत करने का जब दो पैसा बचे न। बच्चे बड़े हो रहे हैं, उनके शादी-ब्याह के अलावा दवा-दारू का इंतजाम कैसे होगा, इसकी चिंता हमेशा लगी रहती है। ऐसा लगता है जैसे हम लोगों की जिंदगी में कभी बदलाव नहीं आएगा और सारी उम्र करते-खाते ही बीत जाएगी। जीवन भर हम अपनी जरूरतों को दबाते ही रह जाते हैं, लेकिन हमारी आवश्यक जरूरतें भी पूरी नहीं हो पाती हैं।’

मुन्ना प्रजापति इलेक्ट्रिक चाक पर मिट्टी का बर्तन बनाते हुए

इसी गांव के 65 वर्षीय बुजुर्ग कुम्हार राजकुमार कहते हैं ‘हमारे सामने तो समस्याएं बहुत हैं। कौन-कौन सा दुखड़ा सुनाऊं ? मैंने तो कई बार इलेक्ट्रिक चाक प्राप्त करने के लिए फार्म भरा लेकिन अभी तक यह मुझे मिला नहीं। लकड़ी वाले चाक पर बर्तन बनाने में मेहनत अधिक लगती है और समय भी ज्यादा लगता है। चूंकि हमारी अपनी जमीन नहीं है इसलिए मिट्टी बाहर से मंगवानी पड़ती है। तीन हजार में एक ट्रैक्टर मिट्टी इस समय मिल रही है। ऊपर से उपला  भी इतना महंगा है कि हम लोगों की कमर टूट जा रही है।’ मिट्टी के पके बर्तनों की ओर इशारा करते हुए राजकुमार आगे कहते हैं, ‘यह देखिए 100-150 बर्तन पकाने में 20-25 बर्तन फूट गए।’ अपनी दिली इच्छा व्यक्त करते हुए वे आगे कहते हैं ‘इलेक्ट्रिक चाक मिल जाय और सरकार की ओर से फिक्स रेट पर बिजली मिलने लगे तो काफी हद तक हमारी समस्या दूर हो सकती है।’

राजकुमार प्रजापति अपनी कठिनाइयों के बारे में बताते हुए

वहीं थोड़ी दूरी पर बैठी इसी गांव की धर्मनी देवी मिट्टी के बर्तन को बनाने में आने वाली कठिनाइयों के बारे में कहती हैं ‘सारे बर्तन दो प्रकार की मिट्टी – काली और पीली से मिलकर बनते हैं। सबसे पहले मिट्टी को महीन किया जाता है। इसके बाद इसे भिंगोया जाता है और महीन जालीनुमा तार का सहारा लेकर सानते हैं। इसके बाद यह मिट्टी चाक पर चढ़ाने लायक होती है। इस पूरे काम में मेरे घर के आठ लोग लगे रहते हैं। मैंने कई बार इलेक्ट्रिक चाक पाने के लिए फार्म भरा लेकिन आज तक मुझे इलेक्ट्रिक चाक नहीं मिला। अब तो सरकारी चाक पाने की उम्मींद ही छोड़ दी हूं।’

धर्मनी देवी अपनी कठिनाइयों के बारे में बताते हुए

मुन्ना कुम्हार के अनुसार इस कुम्हार बस्ती की आबादी लगभग ढाई सौ से तीन सौ के लगभग है और यहां पर लगभग दो सौ के करीब वोटर हैं। कुम्हारों की इस बस्ती में 15-16 लोगों के पास इलेक्ट्रिक चाक है। बस्ती के लोगों की इच्छा है कि उन्हें जल्द से जल्द इलेक्ट्रिक चाक मिल जाय जिससे उनके काम में तेजी आए।’

मुन्ना अपनी मांग को आगे रखते हुए कहते हैं ‘सरकार से हमारी मांग है कि हम लोगों को एक फिक्स रेट पर बिजली मुहैया करायी जाय। अगर सरकार हमारी भलाई चाहती है तो बिजली पर हमें छूट दे वरना कुम्हारों की जिंदगी यूं ही बद से बदतर होती जाएगी। क्योंकि दिन-ब-दिन महंगाई बढ़ती जा रही है और उस हिसाब से हमारी कमाई में इजाफा नहीं हो रहा है।’

स्मार्ट मीटर लगने से आने वाली दिक्कत के बारे में बताते हुए इसी बस्ती का युवा नौजवान सोमारू लाल प्रजापति कहते हैं ‘स्मार्ट मीटर की वजह से जब कभी समय पर बिजली बिल नहीं जमा हो पाता है तो तुरंत लाइट कट जाती है। ऐसे में सब काम को छोड़कर आदमी पहले बिजली बिल जमा करने के लिए पैसे का इंतजाम करता है। बिजली आने के बाद ही आगे का उसका काम पुनः शुरू होता है।’

सोमारू लाल अपनी समस्याओं के बारे में बताते हैं, ‘पिताजी ने किसी तरह से अपना पेट काटकर हम दो भाइयों को पढ़ाया। पिछले कई सालों से नौकरी का फार्म ही नहीं निकल रहा है। अब तो लगता है बेकार में पढे़ लिखे और घर का पैसा भी बर्बाद हुआ। वही पैसा रहा होता तो आज  किसी काम में आता।’

हटियां गांव का युवा नौजवान सोमारू प्रजापति

कुम्हार समुदाय इलेक्ट्रिक चाक को लेकर जिस जद्दोजहद से गुजर रहा है उस बारे में खादी और ग्रामोद्योग विभाग वाराणसी के मंडलीय कार्यालय के असिस्टेंट डायरेक्टर सुभाषचन्द्र कहते हैं ‘इस समय चुनावी आचार संहिता के चलते किसी को भी इलेक्ट्रिक चाक नहीं दिया जा सकता।’ वह याद करते हुए बताते हैं- ‘2021-22 में गणेशपुर पोखरा के बगल के कई गांवों, जिनमें आयर गांव भी सम्मिलित है, के करीब 60 लोगों को दो हफ्ते का प्रशिक्षण देकर इलक्ट्रिक चाक दिया गया। यह चाक सोलरयुक्त था। विभाग की ओर से जो भी चाक दिया जाता है, वह गरीबी रेखा से नीचे के लोगों को मुफ्त में दिया जाता है और गरीबी रेखा से ऊपर के लोगों को इलेक्ट्रिक चाक की लागत का 25 प्रतिशत दाम लेकर दिया जाता है। इसमें अलग से बिजली का झंझट नहीं रहता।’

सुभाषचन्द्र आगे बताते हैं ‘उत्तर प्रदेश सरकार भी इलेक्ट्रिक चाक देती है लेकिन वह सोलर वाला नहीं होता। कुम्हारों के लिए बिजली के बिल पर विभाग के पास कोई छूट जैसी योजना नहीं है। हां, अगर सरकार की ओर से इस बारे में कोई आदेश आएगा तो उसका पालन किया जाएगा।’

शिवपुर हटिया की कुम्हार बस्ती में बगैर सोलर वाला इलेक्ट्रिक चाक ही लोगों के पास है जो बिजली से चलता है। इस बारे में मुन्नालाल प्रजापति दावे के साथ कहते हैं, ‘इस कुम्हार बस्ती में किसी के भी पास सोलर वाला चाक नहीं है। इसलिए लोग बिजली के भारी-भरकम बिल के बोझ से दबते जा रहे हैं।’

कुम्हारों की इस बस्ती में एक तरफ जहां बहुत सारे लोग ऐसे हैं जो बिजली के भारी-भरकम बिल से निजात चाहते हैं तो वहीं दूसरी ओर बहुत से ऐसे लोग भी हैं जो अभी भी इलेक्ट्रिक चाक पाने की उम्मींदे पाले हुए हैं। मीरा देवी भी ऐसे लोगों में हैं जिनके चेहरे पर इलेक्ट्रिक चाक न मिल पाने का दर्द साफ दिख रहा था। वे कहती हैं- ‘कई बार फार्म भरा लेकिन हर बार निराशा ही हाथ लगी।’ मीरा देवी आगे कहती हैं ‘इलेक्ट्रिक चाक मिलने से तब तक विशेष फायदा नहीं जब तक बिजली का बिल सरकार कम नहीं करेगी।’

क्या कुम्हारों की जिंदगी में आने वाले समय में बदलाव होगा ? इस प्रश्न का जवाब तो आने वाला समय ही देगा।

 

 

 

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