पश्चिम बंगाल में पिछले एक हफ्ते से कुछ लोगों के आधार कार्ड निष्क्रिय कर दिये गए हैं। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने आरोप लगाते हुए कहा कि लोगों के आधार कार्ड निष्क्रिय कर दिये हैं। उन्होने कहा कि एनआरसी की साजिश के तहत एससी, एसटी, ओबीसी और अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों के आधार कार्ड को निष्क्रिय कर दिया गया है। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार इस बात का जवाब दे कि किन कारणों से आधार कार्ड निष्क्रिय कर दिये गए हैं।
लोकसभा चुनाव से ठीक पहले आधार कार्ड बंद कर दिये जाने के बारे में ममता मुखर्जी ने प्रधानमंत्री को पत्र लिख भेजकर चिंता ज़ाहिर की है। इस तरह से आधार कार्ड निष्क्रिय हो जाने से नागरिक परेशान हैं। उन्होंने आरोप लगाते हुए उन्होंने कहा कि गैर बीजेपी शासन वाले राज्यों में इस तरह का कदम क्यों उठाया जा रहा। खासकर अल्पसंख्यक समुदाय के आधार कार्ड ही क्यों निष्क्रिय हो रहे हैं? वह भी तब जब केंद्र सरकार एनआरसी लागू करने की बात कर रही है।
पश्चिम बंगाल के कुछ जिलों में रहने वाले लोगों को एक पंजीकृत डाक से यूनिक आइडेंटिफिकेशन अथॉरिटी ऑफ इंडिया (यूआईडीएआई) के कार्यालय का पत्र मिला, जिसमें उनके आधार कार्ड के निरस्त किए जाने की सूचना थी। उसमें लिखा गया था वे लोग भारत में रहने की तय योग्यता को पूरा नहीं करते हैं इसलिए सुरक्षा को देखते हुए उनके आधार कार्ड को निष्क्रिय किया जा रहा है। इस बात से पश्चिम बंगाल में रह रहे लोगों के मन में आधार कार्ड की निष्क्रियता को लेकर भय पैदा हो गया है।
मुख्यमंत्री ने लोगों से कहा कि जिन लोगों का आधार कार्ड बंद हो गया है उन्हें राज्य सरकार कार्ड उपलब्ध कराएगी। जिनके आधार कार्ड निष्क्रिय कर दिये गए हैं उन लोगों के लिए पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा आधार शिकायत पोर्टल बनाया गया है। जिनके आधार निष्क्रिय हुए हैं वे ऑनलाइन शिकायत कर वैकल्पिक आधार कार्ड प्राप्त कर सकते हैं।
इस मुद्दे को लेकर ममता बनर्जी ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में बीजेपी को घेरते हुए कहा कि केंद्र में बैठी मोदी सरकार नागरिकता संशोधन कानून के तहत ऐसी साजिश कर रही है, लेकिन हमारी सरकार किसी भी स्थिति में यह कानून लागू होने नहीं देगी।
इस मुद्दे पर डॉ. गोपाल कृष्ण, (वकील और सिविल लिबर्टीज़ के लिए नागरिक मंच) ने पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री को पत्र लिखा
दिनांक: 20/02/2024
विषय-आधार निष्क्रिय क्यों हो रहा है
प्रिय मैडम,
उपरोक्त विषय के सन्दर्भ में मैं आपको अवगत कराना चाहता हूँ कि आधार अधिनियम, 2016 (2019 में संशोधित), माननीय सर्वोच्च न्यायालय के 26 सितंबर, 2018 और 13 नवंबर, 2019 के फैसले के बाद, राज्यों के लिए यूआईडीएआई के साथ अपने समझौता ज्ञापनों को रद्द करना एक तार्किक और कानूनी बाध्यता है।
मैं बताना चाहता हूं कि इन समझौता ज्ञापनों पर आधार अधिनियम से पहले के युग में हस्ताक्षर किए गए थे और ये उस युग में भी काम करते रहे जब हमारे द्वारा असंवैधानिक और नाजायज आधार अधिनियम की धारा 57 जैसी असंवैधानिक धाराओं को मान्यता दी गई थी।
माननीय सर्वोच्च न्यायालय के 26 सितंबर 2018 के फैसले और आधार अधिनियम में 2019 के संशोधन द्वारा धारा 57 को हटा दिया गया। 13 नवंबर, 2019 के फैसले ने माना कि पूरा अधिनियम असंवैधानिक है।
मेरा निवेदन है कि लिए 7-न्यायाधीशों की संविधान पीठ द्वारा न्यायिक अनुशासन का पालन करते हुये इसे घोषित किया गया है। सच तो यह है कि कोई भी समझदार व्यक्ति जहर पीने से परहेज करने के लिए जहर की औपचारिक घोषणा का इंतजार नहीं करेगा। आधार एक्ट एक खतरनाक कानून है। यह औपनिवेशिक कानून के समान एक काला कानून है जिसका महात्मा गांधी के पहले सत्याग्रह द्वारा कड़ा विरोध किया गया था। भारत के मुख्य न्यायाधीश ने 26 सितंबर, 2018 के अपने आदेश में इस कानून को भारत के संविधान के साथ धोखाधड़ी करार दिया है। उन्होंने इसे कम से कम दो और अवसरों पर दोहराया है। इस पृष्ठभूमि में, संवैधानिक, कानूनी, न्यायिक और राजनीतिक कल्पना इस कानून का विरोध करने के लिए एक तार्किक मजबूरी पैदा करती है जो 360 डिग्री निगरानी के आधार पर असीमित सरकार की वास्तुकला तैयार करती है। यह संवैधानिक रूप से राज्यों की अनिवार्य स्वायत्तता को नष्ट कर रहा है जिसे वापस नहीं पाया जा सकता।
मैं बताना चाहता हूं कि पश्चिम बंगाल के गृह विभाग ने 1 जुलाई, 2010 को यूआईडीएआई के साथ संलग्न समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए। गृह विभाग, पश्चिम बंगाल सरकार की ओर से श्री एजी घोष, ओएसडी और पदेन विशेष सचिव और श्री निर्मल कुमार सिन्हा, उप महानिदेशक ने इस पर हस्ताक्षर किए। यूआईडीएआई, योजना आयोग ने यूआईडीएआई की ओर से इस पर हस्ताक्षर किए। यह समझौता ज्ञापन पुराना है एवं यह राज्य और नागरिकों की स्वायत्तता को ख़तरे में डालता है। आपका सुविचारित हस्तक्षेप अन्य राज्यों के लिए इस एमओयू पर कार्रवाई करने का मार्ग प्रशस्त करेगा जो 2010 से विश्व बैंक के ई ट्रांसफॉर्म इनिशिएटिव और इसके भागीदारों के आदेश पर असीमित और अंधाधुंध निगरानी और बड़े पैमाने पर जासूसी की सुविधा प्रदान कर रहा है।
सिटीजन्स फोरम फॉर सिविल लिबर्टीज (CFCL) साथी नागरिकों के प्राकृतिक और मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए “आधार निष्क्रिय होता जा रहा है” विषय पर माननीय प्रधानमंत्री को लिखे आपके पत्र का स्वागत करता है।
2010 से इस विषय पर काम करने के बाद, मुझे आधार अधिनियम की अवैधता के बारे में अधिक जानकारी साझा करने में खुशी होगी।
धन्यवाद।
डॉ. गोपाल कृष्ण, एम.ए., एलएलएम., पीएच.डी, पोस्ट डॉक्टर(बर्लिन), यूजीसी-नेट(कानून)
वकील, सिविल लिबर्टीज़ के लिए नागरिक मंच (सीएफसीएल)
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