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आधे से अधिक ग्लेशियर सदी के अंत तक पिघल जाएंगे

नई दिल्ली(भाषा)। वैज्ञानिकों का कहना है कि बढ़ता तापमान, बर्फ के पहाड़ों  का पिघलना, भारी वर्षा और अनियंत्रित निर्माण के साथ बढ़ते प्रदूषण के कारण जलवायु परिवर्तन सिक्किम में तबाही का कारण बना है। वैज्ञानिकों ने चेताया है कि हिमनदों की संख्या में वृद्धि के कारण हिमालय में ऐसी और आपदाएं आ सकती हैं। इस […]

नई दिल्ली(भाषा)। वैज्ञानिकों का कहना है कि बढ़ता तापमान, बर्फ के पहाड़ों  का पिघलना, भारी वर्षा और अनियंत्रित निर्माण के साथ बढ़ते प्रदूषण के कारण जलवायु परिवर्तन सिक्किम में तबाही का कारण बना है। वैज्ञानिकों ने चेताया है कि हिमनदों की संख्या में वृद्धि के कारण हिमालय में ऐसी और आपदाएं आ सकती हैं।

इस महीने की शुरुआत में सिक्किम में अचानक आई बाढ़ से हजारों लोग विस्थापित हुए, प्रमुख बुनियादी ढांचा परियोजनाएं नष्ट हो गईं और बड़ी संख्या में लोग मारे गए।

विशेषज्ञों का कहना है कि हिमाचल प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर सहित अन्य हिमालयी राज्य भी हिमनद झील विस्फोट बाढ़ (जीएलओएफ) जैसे खतरे में हैं।

जीएलओएफ, एक प्रकार की विनाशकारी बाढ़ है, जो तब होती है जब हिमनद झील वाला बांध विफल हो जाता है, जिससे बड़ी मात्रा में पानी का बहाव होता है।

पर्यावरण विशेषज्ञ अंजल प्रकाश ने ‘भाषा’ से कहा, ‘जोखिम वाले क्षेत्रों में हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, उत्तराखंड और अरुणाचल प्रदेश शामिल हैं, जहां जलवायु परिवर्तन के कारण कई हिमनद झीलें तेजी से बढ़ रही हैं।’

विशेषज्ञ जीएलओएफ के लिए पिघलते ग्लेशियर को जिम्मेदार मानते हैं, जो क्षेत्र में प्रदूषण और अनियंत्रित निर्माण के कारण बढ़ते तापमान का परिणाम है। साथ ही भूकंप और कार्बन उत्सर्जन जैसे कारक भी इसमें भूमिका निभाते हैं।

पर्यावरण इंजीनियर मोहम्मद फारूक आजम के मुताबिक, जलवायु परिवर्तन दो तरह से प्रभावित कर रहा है।

उन्होंने कहा, ‘सबसे पहले, ग्लोबल वार्मिंग के परिणामस्वरूप ग्लेशियर प्रभावित हो रहे हैं, जो हिमालय क्षेत्र में 2000 के बाद से अधिक स्पष्ट है। ग्लेशियर के पिघलने के कारण हिमनद झीलों का निर्माण होता है, जो अक्सर नाजुक प्राकृतिक बांधों द्वारा नियंत्रित की जाती हैं। लगातार ग्लोबल वार्मिंग के कारण हिमनद झीलों का आकार और संख्या दोनों बढ़ रही हैं।’

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, इंदौर के एसोसिएट प्रोफेसर आजम ने कहा, ‘इसके अलावा, जलवायु परिवर्तन के कारण भी मौसम की चरम स्थिति पैदा हो रही है।’

आजम ने कहा कि अत्यधिक वर्षा और गर्मी की आवृत्ति बढ़ रही है, जिससे जीएलओएफ का जोखिम भी बढ़ रहा है। उन्होंने कहा कि 2013 की केदारनाथ आपदा में भी यही स्थिति थी, जहां चोराबरी हिमनद झील उफान पर आ गई और तबाही मची, और शायद सिक्किम में भी यही हुआ था।

‘इंडियन स्कूल ऑफ बिजनेस’ (आईएसबी), हैदराबाद के अनुसंधान निदेशक प्रकाश ने इस बात पर जोर दिया कि जलवायु परिवर्तन जीएलओएफ के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। उन्होंने कहा कि हिमालयी क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे, वनों की कटाई और मानव बस्तियों के बसने से जोखिम बढ़ रहा है।

शोधकर्ता रीना शाह ने ‘भाषा’ को बताया कि हालांकि अध्ययनों ने वर्षा और भूकंप को जीएलओएफ के संभावित कारणों के रूप में सुझाया है, लेकिन यह निश्चित रूप से निर्धारित करना एक चुनौती बनी हुई है कि किस कारक का इस पर अधिक महत्वपूर्ण प्रभाव है।

पत्रिका ‘नेचर’ में प्रकाशित एक अध्ययन से पता चला है कि सदी के अंत तक पृथ्वी के 2,15,000 ग्लेशियर में से आधे के पिघलने की आशंका है, भले ही ग्लोबल वार्मिंग 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित हो। यह स्थिति की गंभीरता को रेखांकित करता है।

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