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भारत माता बनीं डेमोक्रेसी की मम्मी!

अब तो मोदीजी के विरोधियों को भी मानना पड़ेगा कि उन्होंने भारत को विश्व गुरु बना दिया है। धर्म-वर्म के मामले में ही नहीं, डेमोक्रेसी के मामले में भी। नहीं-नहीं, बात सिर्फ इंडिया के डेमोक्रेसी की मम्मी होने की ही नहीं है। बेशक, डेमोक्रेसी की मम्मी वाली बात भी गलत नहीं है। अब तो नये […]

अब तो मोदीजी के विरोधियों को भी मानना पड़ेगा कि उन्होंने भारत को विश्व गुरु बना दिया है। धर्म-वर्म के मामले में ही नहीं, डेमोक्रेसी के मामले में भी। नहीं-नहीं, बात सिर्फ इंडिया के डेमोक्रेसी की मम्मी होने की ही नहीं है। बेशक, डेमोक्रेसी की मम्मी वाली बात भी गलत नहीं है। अब तो नये भारत की नयी भारतीय अनुसंधान परिषद ने बाकायदा खोजकर भी छाप दिया है कि दुनिया भर में डेमोक्रेसी की मम्मी है, तो भारत है। भला अब किस में हिम्मत है कि भारत को डेमोक्रेसी की मम्मी मानने से इंकार कर दे। देश में तो किसी को करने नहीं देंगे। और बाहर वाला कोई कर भी देगा, तो उसे अव्वल तो पीआइबी ही फेक घोषित कर देगी और इससे भी काम नहीं चला, तो डेमोक्रेसी की मम्मी अपनी सरकार से उसे सभी प्लेटफार्मों पर ब्लाक करा देगी, उसको देखने, शेयर करने, वगैरह पर रोक लगाने के साथ- बीबीसी की मोदी प्रश्न वाली डाक्यूमेंट्री की तरह। फिर भी भारत में प्रेस की स्वतंत्रता से लेकर, नागरिकों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता तक पूरी तरह से सुरक्षित बनी रहेगी- ऐसे दुर्लभ गुर साध लेती है, तभी तो मोदीजी की नयी इंडिया, डेमोक्रेसी की मम्मी है।

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पर इससे कोई यह नहीं समझे कि नयी इंडिया, डेमोक्रेसी की मम्मी होने का दावा सिर्फ इसीलिए कर रही है, क्योंकि उसके पुरखों ने सबसे पहले डेमोक्रेसी खोजी थी। प्राचीनता का दावा लाख मजबूत हो, पर मोदीजी सिर्फ प्राचीनता के दावे से कभी संतुष्ट नहीं हो सकते। आखिरकार, प्राचीनता अपनी जगह, पर इंडिया को डेमोक्रेसी की मम्मी की मान्यता दिलाने में, उनका भी तो कुछ योगदान दिखाई देना चाहिए। इंडिया को डेमोक्रेसी की मम्मी अब और सिर्फ अब इसीलिए तो मनवाया जा रहा है, क्योंकि मोदीजी ने इंडिया को विश्व गुरु बना दिया है, डेमोक्रेसी में भी। कहने को इंग्लैंड में भी डेमोक्रेसी बहुत पुरानी है, पर पीएम का हाल देख लीजिए। और यह तो तब है जब खून इंडियन है। बीबीसी सार्वजनिक पैसे से चलती है। तब भी उसने मोदीजी पर सवाल उठाने वाली डाक्यूमेंट्री बना भी दी और दिखा भी दी और पीएम होकर भी सुनाक भाई, अपनी असहमति ही दर्ज कराते रह गए! अचरज नहीं कि मोदीजी की नयी इंडिया को ही दुनिया भर की सरकारों को इसका गुर सिखाना पड़ रहा है कि कैसे स्वतंत्रताओं का ढोल पीटते-पीटते, चाहे बैन ही क्यों न करना पड़े, अपनी हरेक आलोचना से पब्लिक को बचाना जरूरी है। वहां सुनाक भाई सीट बेल्ट न लगाने के लिए जुर्माना लगवा रहे हैं और यहां मोदीजी, पूरे दिन दिल्ली का ट्रैफिक जाम करके, राजधानी में छ: सौ मीटर के रोड शो में, मोदी-मोदी करा रहे हैं।

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लेकिन, सुनाक के मामले से कोई यह नहीं समझे कि मोदीजी के विश्व गुरु वाले डेमोक्रेसी चलाने के गुर सिर्फ भारतीयों या भारतीय मूल वालों के लिए हैं। डेमोक्रेसी चलाने के हमारे गुर की दुनिया भर में भारी डिमांड में हैं। अब अमरीका ही को देख लो। राष्ट्रपति कौन, बाइडेन! पब्लिक का चुना हुआ राष्ट्रपति कौन, बाइडेन! राष्ट्रपति बाइडेन की सरकार, राष्ट्रपति बाइडेन के खिलाफ जांच कर रही है, गोपनीय सरकारी दस्तावजों को संभालने में असावधानी के लिए! वहां राष्ट्रपति की जांच और यहां, सपने में भी मोदीजी नाखुश दिखाई दे जाएं तो, किसी भी संस्था के प्राण सूख जाएं। अब अगर मोदीजी के नये इंडिया के डेमोक्रेसी चलाने के गुरों के बिना, अमरीका-इंग्लैंड में डेमोक्रेसी का गुजारा चलना मुश्किल है, तो बाकी दुनिया का तो पूछना ही क्या?

थैंक यू मोदीजी, भारत माता को डेमोक्रेसी की मम्मी मनवाने के लिए। और हां! खुद भारत माता की संतानों को 2002 के गुजरात के घावों को कुरेदे जाने से बचाने के लिए। जब 2002 के लिए न्याय नहीं दिला सकते, तो बाहर वाले पुराने घावों को कुरेदें ही क्यों? फिर डेमोक्रेसी अगर बीस-तीस साल पुराने अन्यायों पर ही अटकी रहेगी, तो सैकड़ों-हजारों साल पुराने अन्यायों का निपटारा कैसे होगा और कब!

व्यंग्यकार वरिष्ठ पत्रकार और ‘लोकलहर’ के संपादक हैं।

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