उत्तर प्रदेश के बाहुबली नेता एवं पूर्व विधायक मुख्तार अंसारी की संदिग्ध मौत का मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंच गया है। अधिवक्ता विशाल तिवारी ने रिट याचिका में अर्जी देते हुए उत्तर प्रदेश में 2017 से अभी तक पुलिस हिरासत/न्यायिक हिरासत में मारे गए अभियुक्तों, कैदियों एवं आरोपियों की मौतों, हत्याओं और मुठभेड़ों की सीबीआई से जांच कराने की मांग की है।
अधिवक्ता विशाल तिवारी ने अपनी अर्जी में 28 मार्च को मुख्तार अंसारी की मौत के बारे में भी संदेह जताया है और इसकी जांच कराने की मांग की है। उम्रकैद की सजा काट रहे पूर्व विधायक मुख्तार अंसारी की बांदा जेल में मौत हो गई थी। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मौत का कारण हृदय गति का रुकना बताया गया है।
वहीं मुख्तार अंसारी के परिवार का आरोप है कि अंसारी को जेल में धीमा जहर दिया जा रहा था, जिस कारण उनकी मौत हुई है।
यूपी पुलिस की कार्रवाइयां रही हैं सवालों के घेरे में
2020 में रिहाई मंच ने ऑपरेशन मुख्तार के नाम पर हुए एनकाउन्टर और पुलिस कार्रवाइयों पर सवाल उठाते हुए एक रिपोर्ट जारी की थी। जिसमें उत्तर प्रदेश सरकार पर बदले के तहत कार्रवाई करने का आरोप लगाया गया था। रिपोर्ट के अनुसार, ‘2005 में मऊ सांप्रदायिक हिंसा के बाद से ही मऊ का मुस्लिम समाज हिंदू युवा वाहिनी और योगी के निशाने पर रहा है।’
आपको बता दें उत्तर प्रदेश सरकार के आदेश पर चलाए गए ऑपरेशन मुख्तार के तहत मुख्तार अंसारी के शार्प शूटर राकेश पांडे और हरिकेश यादव को पुलिस ने मुठभेड़ में मार दिया था। इसके अलावा CAA के खिलाफ प्रदर्शन करने वाले लोगों पर भी गैंगेस्टर के तहत कार्रवाई की गई और उनका संबंध मुख्तार से जोड़कर बताया गया।
अधिवक्ता विशाल तिवारी ने मीडिया रिपोर्ट्स के हवाले से सुप्रीम कोर्ट में कहा है, ‘पिछले सात सालों में उत्तर प्रदेश पुलिस की हिरासत में 10 गैंगस्टर की मौत हुई है। इन 10 में से भी 7 की मौत तब हुई जब उन्हें अदालत की सुनवाई या स्वास्थ्य जांच के लिए ले जाया जा रहा था।’
इसके अलावा अधिवक्ता विशाल तिवारी ने पिछले साल सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी। उन्होंने बाहुबली नेता अतीक अहमद और उनके भाई अशरफ अहमद की पुलिस हिरासत में 3 लोगों द्वारा गोली मारकर हत्या कर दिए जाने की घटना की जांच की मांग सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त जज की अध्यक्षता में किए जाने की मांग की थी। याचिका में 2017 के बाद से हुई 183 मुठभेड़ों की जांच की मांग की गई।
इस मामले पर रिहाई मंच के महासचिव राजीव यादव बताते हैं, ‘मुख्तार अंसारी की मृत्यु का मामला आपराधिक षडयंत्र के साथ ही राजनीतिक षडयंत्र भी है। इसको समझने के लिए हमें अतीत में जाना होगा। 2005 में मऊ में सांप्रदायिक दंगे हुए थे जिसमें हिंदू युवा वाहिनी की बड़ी भूमिका थी उस दौरान मुख्तार अंसारी ने उस दंगे को रोकने की कोशिश की थी। इस दौरान मुख्तार अंसारी पर झूठे केस बनाकर उन्हें जबरन इस मामले में घसीटा गया।’
आगे वे कहते हैं, ‘2 मार्च को अधिकारियों द्वारा बांदा जेल का निरीक्षण किया जाना, 13 मार्च को मुख्तार को आजीवन कारावास की सजा होना, 14 मार्च को एक बार फिर अधिकारियों द्वारा जिला जेल का निरीक्षण किया जाना, 19 मार्च को मुख्तार को जहर दिए जाने की बात का सामने आना, 21 मार्च को मुख्तार अंसारी द्वारा जेल में जहर दिए जाने का आरोप लगाना और 24 मार्च को जेलर व डिप्टी जेलर को सस्पेन्ड किया जाना, 29 मार्च को मुख्तार की मौत होना, यह पूरा घटनाक्रम नाटकीय और षड्यंत्रपूर्ण प्रतीत होता है। पूरे मामले में यह सामने आया है कि जेल एवं चिकित्सा विभाग के अधिकारी एक राजनीतिक दबाव के तहत कार्य कर रहे थे। ‘
आगे राजीव यादव मांग करते हैं, ‘इस तरह की घटनाओं के माध्यम से अल्पसंख्यक मुस्लिम समुदाय के मनोबल को गिराने के प्रयास किए जा रहे हैं। न्यायिक प्रक्रिया को दर किनार करते हुए ठोंक दो की नीति बिल्कुल गलत है। इन सभी मामलों की जांच होनी चाहिए।’
उत्तर प्रदेश के पूर्व डीजीपी सुलखान सिंह ने भी मुख्तार अंसारी की मौत की घटना की CBI जांच की मांग की है।