Saturday, April 20, 2024
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मेरी आवाज ही पहचान है गर याद रहे

लता मंगेशकर की मौत के बाद दो प्रकार की प्रतिक्रियाएं सामने आई हैं जो भारत में गहराते सामाजिक विघटन का संकेत देते हैं। एक तरफ भारत का सत्ताधारी तंत्र जो उन्हें ब्राह्मणवादी कुलीन संस्कारों में रखकर ‘सांस्कृतिक’ संदेश देना चाहता था तो दूसरी ओर ‘बहुजन’ ‘दलित’ प्रतिनिधित्व करने वालों ने कहा कि वह घनघोर जातिवादी […]

लता मंगेशकर की मौत के बाद दो प्रकार की प्रतिक्रियाएं सामने आई हैं जो भारत में गहराते सामाजिक विघटन का संकेत देते हैं। एक तरफ भारत का सत्ताधारी तंत्र जो उन्हें ब्राह्मणवादी कुलीन संस्कारों में रखकर ‘सांस्कृतिक’ संदेश देना चाहता था तो दूसरी ओर ‘बहुजन’ ‘दलित’ प्रतिनिधित्व करने वालों ने कहा कि वह घनघोर जातिवादी थीं और बरसों पूर्व उन्होंने डाक्टर अंबेडकर पर लिखे एक गीत को गाने से मना कर दिया था।

हम यहां लता मंगेशकर की राजनीति की चर्चा नहीं कर रहें और न ही उनकी राजनीति ने किसी तरह हमारे देश को ‘प्रभावित’ किया। हां, उनकी उपलब्धियों पर देश को गर्व रहा और उनकी मधुर आवाज के प्रशंसक न केवल भारत में अपितु पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान और मध्य पूर्व में भी थे। लता मंगेशकर वैसे ही ‘सेलिब्रिटी’ थीं जो सत्ता प्रतिष्ठान की नजर में अच्छा रहना चाहती थीं। वो नेहरू के समक्ष खड़े होकर ऐ मेरे वतन के लोगों, जरा आँख में भर लो पानी  गा सकती थीं, बाल ठाकरे को भी अपने पिता तुल्य कह देती थीं तो मोदी जी की ‘उपलब्धियों’ पर भी गर्व कर सकती थीं। और पाकिस्तान में अपने प्रशंसकों से भी हिन्दू-मुस्लिम एकता की बात कर सकती थीं। वे अंबेडकर जयंती पर उनको प्रणाम करतीं और कहतीं कि उन्हे प्रत्यक्ष रूप से मिलने अथवा देखने का उनको सौभाग्य मिला था।

[bs-quote quote=”आज भी कोविड के बावजूद उनका अंतिम संस्कार इतने पड़े पैमाने पर किया गया क्योंकि सत्ताधारी उसका इस्तेमाल कर रहे हैं लेकिन ये सत्ता का मूल चरित्र है।” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]

दक्षिण एशिया में कलाकारों की ‘वैचारिकी’ सत्ता से जुड़ी हुई होती है। लता मंगेशकर की राजनीति के बारे में जितना लिखा जा रहा है उतना था नहीं। वह अमिताभ बच्चन की तरह राजनीति नहीं कर रही थीं। कलाकारों को सत्ता की नजर में अच्छा दिखना होता है और यह उन लोगों की मजबूरी है जिन्हें राजनीति के विषय में कुछ पता नहीं होता। लता मंगेशकर ने सावरकर के विषय में जो कुछ कहा होगा वो महाराष्ट्र की अंदरूनी राजनीति का हिस्सा है। सेक्यलरिज़्म के झंडाबरदार शरद पवार भी इस विषय में कुछ नहीं कहते। महाराष्ट्र के किसी भी दल के नेता उस पर कोई टिप्पणी नहीं करते। इसलिए लता मंगेशकर की राजनीति पर चर्चा ना ही करें तो अच्छा है। दूसरे, हम उनकी कला का सम्मान करते हैं और इसका कतई ये मतलब नहीं कि राजनीति के मंच पर वह जो भी कहती थीं हम उसका समर्थन कर देते हैं। मैंने हमेशा कहा, कृपया राजनीति में अच्छा बुरा लोगों को खुद निर्धारित करनें दें और तथाकथित ‘बड़े नामों’ से प्रभावित नहीं होना चाहिए। ऐसा नहीं है कि महान कलाकारों अथवा खिलाड़ियों को राजनीति का पता नहीं है लेकिन भारत में अभी इस संदर्भ में कुछ मिला नहीं। ऐसे अधिकांश लोग सत्ता प्रतिष्ठान का हिस्सा बनने में ही गर्व महसूस करते हैं। लता जी के यहां इंदिरा जी के साथ खींची फोटो से लेकर दिलीप कुमार या मुकेश को राखी बांधती फोटो भी दिखाई देंगी। जो भी उन्होंने किया हो, ये बात जरूर है कि वह शायद शर्मीली थीं और बहुत कम बोलती थीं।

लता मंगेशकर के पिता दीनानाथ मंगेशकर शास्त्रीय संगीत के जानने वाले थे और उनकी बहिनों, विशेषकर आशा भोसले ने उनकी छाया से दूर हटकर अपने लिए सिनेमा के क्षेत्र में एक बहुत बड़ा मुकाम बनाया। लता और आशा की कहानी हमें यह बताती है कि यहां सबके बढ़ने की बहुत संभावनाए हैं। उनकी अन्य बहने उषा मंगेशकर, मीना मंगेशकर और भाई हृदयनाथ मंगेशकर भी संगीत को समर्पित रहे।

[bs-quote quote=”लता मंगेशकर की राजनीति के बारे में जितना लिखा जा रहा है उतना था नहीं। वह अमिताभ बच्चन की तरह राजनीति नहीं कर रही थीं। कलाकारों को सत्ता की नजर में अच्छा दिखना होता है और यह उन लोगों की मजबूरी है जिन्हें राजनीति के विषय में कुछ पता नहीं होता। ” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]

शुरुआती दिनों में परिवार पर बहुत आर्थिक बोझ था और लता ने गाने गाकर अपने परिवार का भरण-पोषण किया। 28 सितंबर 1929 मे जन्मीं लता ने अपना पहला गाना फिल्म कति हसाल के लिए मराठी में 1942 में गाया जब वह केवल 13 वर्ष की थीं। अपने पिता की मौत के बाद घर में सबसे बड़ी होने के कारण उन्हे बहुत काम ढूँढना पड़ा और बहुत मुश्किलों का सामना करना पड़ा। 1945 से ही उन्होंने हिन्दी के कुछ भजन गाए लेकिन असल ब्रेक संगीतकार गुलाम मोहम्मद के संपर्क में आकर मिला। गुलाम मोहम्मद को ही वह संगीत में अपना ‘गॉडफादर’ कहती थीं जिन्होंने उस समय उन पर भरोसा जताया जब अधिकांश संगीतकारों ने उनकी आवाज को बहुत ही ‘पतली’ करार दे दिया था। वह जमाना था नूरजहां, शमशाद बेगम और सुरैय्या का, जिनकी आवाज बेहद तीखी और ‘दिलकश’ मानी जाती थीं और सभी एक से बढ़कर एक थीं। 1948 में आई फिल्म मजबूर के लिए दिल मेरा तोड़ा, कहीं का मुझे नहीं छोड़ा  गीत गुलाम मोहम्मद ने ही उनसे गवाया और फिर उनकी फॉर्मल शुरुआत हुई। 1949 में संगीतकार खेमचंद प्रकाश की महल,  जिसके हीरो-हीरोइन अशोक कुमार और मधुबाला थे, का आएगा आने वाला  सुपरहिट गीत बना और आज तक इसकी खुशबू देश भर में फैली हुई है।

[bs-quote quote=”सी रामचन्द्र, हेमंत कुमार, नौशाद, सलिल चौधरी, एस डी बर्मन, खय्याम, रोशन, कल्याण जी, आनंद जी, रवि, और अन्य नामी-गिरामी लोगों के लिए उन्होंने बेहतरीन गीत गाए। नौशाद के लिए उन्होंने बैजू बावरा, दीदार, उड़न खटोला और मदर इंडिया के लिए बेहद खूबसूरत गीत गाए। 1949 से फिल्म बरसात के बाद से ही लता मंगेशकर राज कपूर की मशहूर टीम का हिस्सा बन गई थीं, जिसमें शंकर जयकिशन, हसरत जयपुरी, शैलेन्द्र, मुकेश जैसे नामी गिरामी लोग शामिल थे।” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]

लता की आवाज अब प्रसिद्ध हो चुकी थीं। उसके बाद संगीतकारों और निर्माता-निर्देशकों की लाइन उनके यहां लगनी शुरू हो गई थी। सी रामचन्द्र, हेमंत कुमार, नौशाद, सलिल चौधरी, एस डी बर्मन, खय्याम, रोशन, कल्याण जी, आनंद जी, रवि, और अन्य नामी-गिरामी लोगों के लिए उन्होंने बेहतरीन गीत गाए। नौशाद के लिए उन्होंने बैजू बावरा, दीदार, उड़न खटोला और मदर इंडिया के लिए बेहद खूबसूरत गीत गाए। 1949 से फिल्म बरसात के बाद से ही लता मंगेशकर राज कपूर की मशहूर टीम का हिस्सा बन गई थीं, जिसमें शंकर जयकिशन, हसरत जयपुरी, शैलेन्द्र, मुकेश जैसे नामी गिरामी लोग शामिल थे। बरसात में हमसे मिले तुम सजन; जिया बेकरार है छाई बहार है, आजा मोरे बालमा तेरा इंतज़ार है; घर आया मेरा परदेशी; आ जाओ तड़पते हैं अरमाँ, अब रात गुजरने वाली है; ओ बसंती पवन पागल ना जा रे; पंछी बनू उड़ती फिरूं, मस्त गगन में, आज मैं आजाद हूँ, दुनिया में चमन में;  रसिक बलमा; सुन सायबा सुन; आदि गाने बहुत प्रसिद्ध हुए। राज कपूर की फिल्मों में ही उनके मुकेश के साथ युगल गीत जैसे दम भर जो उधर मुंह फेरे –  आवारा; आजा रे, अब मेरा दिल पुकारा – आह; छोड़ गए बालम –  बरसात; मेरे मन की गंगा और तेरे मन की जमुना का;  चाँद खिला, वो तारे हँसे;  ओ शमाँ मुझे फूँक दे, मैं न मैं रहूं, यही इश्क का है दस्तूर;  आदि बहुत पॉपुलर हुए। मन्ना डे के साथ उनके युगल गीत, प्यार हुआ इकरार हुआ है, प्यार से फिर क्यों डरता है दिल; आजा सनम मधुर चाँदनी में हम, तुम मिले तो वीराने में भी आ जाएगी बहार;  ये रात भींगी भींगी ये मस्त फिजाएँ;  जहाँ मैं जाती हूँ वहीं चले आते हो;  या मस्ती भरा है समय,  सभी गाने रोमांस की अप्रतिम अभिव्यक्तियाँ हैं और लता की आवाज ने इन गीतों को अमर किया। किशोर कुमार के साथ भी उनके बेहद खूबसूरत गीत हैं जिनमें एस डी बर्मन के लिए देवानंद की फिल्म गाइड का थीम सॉन्ग : गाता रहे मेरा दिल, तू ही मेरी मंजिल, कहीं बीते न ये रातें, कहीं बीते न ये दिन बेहद खूबसूरत था। राजेश खन्ना की मेरे जीवन साथी में किशोर के साथ उनका ड्यूएट दीवाना करके छोड़ोगे लगता है हमको, सौ बार कहा ऐ जाने-जहां यूँ प्यार से तुम देखा न करो अभी भी बेहतरीन रोमांटिक गानों में शुमार किया जाता है। 

युगल गीतों में लता ने सभी के साथ बेहतरीन परिणाम दिए। जैसे तलत महमूद के साथ उनके गीतों में- ये नई नई प्रीत है,तू ही तो मेरा मीत है; ना जाने कोई साजना, वो तेरी मेरी दास्तान; आहा रिमझिम के ये प्यारे प्यारे गीत लिए, आई रात सुहानी देखो प्रीत लिए  दिल को छूने वाले हैं। हेमंत कुमार के साथ तो उनके बेहद कर्णप्रिय गीत हैं। याद किया दिल ने कहां हो तुम, झूमती बहार है, कहां हो तुम, प्यार से पुकार लो जहां हो तुम; या नैन तो नैन मिलावत नाहिं, अथवा जाग दर्दे इश्क जाग, दिल को बेकरार कर, छेड़ के आँसुओ का राग आज भी हमें गुनगुनाने को मजबूर करते हैं। मोहम्मद रफी के साथ उनके गीत बहुत चले और बाद में यह भी कहा गया कि वह रफी को नहीं चाहती थीं क्योंकि रफी संगीत में उनसे कहीं भी कम नहीं थे और उनकी आवाज की उड़ान में कोई समकक्ष नहीं था लेकिन फिर भी उनके साथ भी लता के गीतों ने लोगों का दिल जीता। झिलमिल सितारों का आँगन होगा, रिमझिम बरसता सावन होगा, धर्मेन्द्र की फिल्म का यह गीत अथवा आज के इंतज़ार में, जाने को है बहार भी ;  या याद न जाए बीते दिनों की अथवा दो सितारों का जमीन पर है मिलन आज की रात हो  या पाकीज़ा का खूबसूरत गीत चलो दिलदार चलो, चाँद के पार चलो, हम है तैय्यार चलो;  इस रेशमी पाजेब की झंकार के सदके- लैला मजनूँ, डफली वाले अथवा कोई और गीत।

लता के गीतों की फ़ेहरिस्त बहुत लंबी है और हम इस समय इतने गीतों को यहां शामिल भी नहीं कर सकते। हर एक की पसंद अलग-अलग होती है। लेकिन कोरा कागज था ये मन मेरा; सावन का महिना पवन करे शोर; इक प्यार का नगमा है, मौजों की रवानी है, जिंदगी और कुछ भी नहीं तेरी मेरी कहानी है; देखा एक ख्वाब तो ये सिलसिले हुए; आज मदहोश हुआ जाए रे, मेरा मन मेरा मन मेरा मन से लेकर एस पी बालासुब्रह्मण्यम के साथ आजा शाम होने आई, मौसम ने ली अंगड़ाई अथवा दिल दीवाना बिन साजन के माने ना तक उनकी आवाज ने संगीत प्रेमियों को सुख दुख सबके दिन दिखाए। वे अंत में भी गाती रहीं लेकिन मेरी दृष्टि में 1990 के बाद उनकी आवाज में उम्र का असर दिखने लगा था हालांकि उन्होंने हिट गीत भी दिए लेकिन उनका स्वर्णिम दौर तो नेहरू काल में ही था जब लेखक, कलाकार, संगीतकार एक नए भारत के निर्माण में थे और यह वह भारत था जब सिनेमा ने पुरातनपंथी सोच को सवाल भी खड़े किए और अपनी सीमाओं के बावजूद हर बात को संस्कृति के नाम पर थोपने की कोशिश नहीं की। यह वह दौर था जब उर्दू सिनेमा की ज़बान थी और हिन्दी से उसका बैर नहीं था और अधिकांश कलाकार जिन्होंने हिन्दुस्तानी को मजबूत किया उनमें से अधिकतर गैर हिन्दी भाषी थे। लताजी की मूल भाषा भी मराठी ही थी लेकिन उर्दू और हिन्दी में अपने को मजबूत करने के लिए उन्होंने बहुत प्रयास किए।

लता मंगेशकर के स्वर्णिम गीतों में मुझे फिल्म अनपढ़ का ‘आपकी नज़रों ने समझा प्यार के काबिल मुझेममता फिल्म का रहें न रहें हम, महका करेंगे, बनके कली, बनके फजा, बागे वफ़ा में, फिल्म दिल अपना और प्रीत पराई का अजीब दास्तां है ये, कहा शुरू कहां खतम, ये मंजिले हैं कौन सी ना वो समझ सके ना हम, फिल्म मधुमती का मैं तो कबसे खड़ी थी इस पार, फिल्म अनारकली का ये जिंदगी उसी की है, जो किसी का हो गया, प्यार ही में खो गया, फिल्म मुगले-आजम का मुहब्बत की झूठी कहानी पे रोए या प्यार किया तो डरना क्या  कोई भूल नहीं सकता। फिल्म पाकीजा में उनकी आवाज के जादू ने हम सबको मदहोश कर दिया था। फिल्म में  मौसम है आशिकाना, ऐ दिल कहीं से उनको, ऐसे मे ढूंढ लाना, फिल्म अर्पण में शीशा हो या दिल हो अथवा जाने क्यों लोग मोहब्बत किया करते हैं, दिल के बदले दर्दे दिल लिया करते हैं आज भी बेहद चाव से सुने जाते हैं।

ऐसा कोई नहीं कहता कि लता मंगेशकर में कोई खामी नहीं रही होगी। हम उनका विश्लेषण एक कलाकार के तौर पर कर रहे हैं जिसने हमारे जनमानस पर 1945 से लेकर आज तक असर डाला है। कोई पल ऐसा नहीं होगा जब पूरे दक्षिण एशिया में कोई लता जी का गीत न सुनता हो। वे हमारे जीवन का हिस्सा बन गईं। जब हम तनाव में होते तब भी उनके गीत सुनते। जैसे दिलीप कुमार हमारे सिनेमा का इतिहास थे वैसे ही लता मंगेशकर भी संगीत की दुनिया में हमारा इतिहास हैं और इसलिए हम उनका विश्लेषण केवल इस नजरिए से करें कि उन्होंने हमें प्रभावित किया या नहीं। जैसे कि मैंने पहले भी कहा उनका राजनीतिक विश्लेषण मेरे लिए कुछ नहीं है और अगर वो कहीं पर भी फासीवाद या जातिवाद की बात कहती नजर आई हों तो उसकी निंदा होनी चाहिए हालांकि मुझे सार्वजनिक तौर पर उनका ऐसा कोई वक्तव्य नजर नहीं आया लेकिन अगर मैं यह कह दूं कि लता मंगेशकर को गाना नहीं आता था या उनको कला की समझ नहीं थी तो निश्चित तौर पर मैं अपने को उस लायक नहीं समझता। ये जरूर हो सकता है कि बहुत से लोगों को उनकी आवाज पसंद न आए या उनकी राजनीतिक विचारधारा पसंद न हो, मुझे नहीं लगता की उनकी कोई राजनीतिक विचारधारा थी हां ये कहा जा सकता है कि वह ब्राह्मणवादी कुलीनतावादी संस्कृति में अपने को गौरवान्वित महसूस करती थीं लेकिन ऐसा क्यों हुआ होगा या वह क्यों ऐसे बनीं, लोगों के लिए शोध का विषय हो सकता है।

मैंने लता मंगेशकर एक साक्षात्कार सुना जिसमें उनसे जब पूछा गया कि क्या वह दोबारा जन्म लेना चाहेंगी तो क्या बनना चाहेंगी तो उन्होंने कहा अगर मेरा दूसरा जन्म हुआ भी तो मैं लता मंगेशकर बनकर नहीं रहना चाहूँगी। उन्होंने अपने व्यक्तिगत जीवन मे बहुत कुछ सहा भी। ये लोग नहीं जानते कि उनके रंग रूप को लेकर पहले बहुत बाते कही जाती थीं। क्या उनके विवाह न होने के पीछे यह भी कोई कारण रहा होगा? जिस प्रकार का भारतीय समाज है, उसमे ऐसे होना संभव है। ये भी संभव हो कि उन्होंने अपने रंग रूप के कारण बहुत कुछ झेला हो, मज़ाक झेले हों और बहुत से लोग उनको मार्क नहीं करते अपितु चुपचाप सहन कर जाते हैं, वे मानसिक तौर पर इतने मजबूत नहीं होते कि सब कर लें क्योंकि जब इन कामों की उम्र होती है तब आप जीवन संघर्ष में होते है।

बाल ठाकरे के साथ लता मंगेशकर

हम आज की लता की आलोचना कर रहे है जब हिंदुत्ववादी उनको आत्मसात करना चाहते हैं। इसमें उनकी गलती नहीं है। उन्होंने अपना जीवन जिया। बंबई में रहने वाले कलाकारों को बाल ठाकरे के पास जाना ही पड़ता था और लता मंगेशकर इसमे कोई अलग नहीं थीं। आज भी कोविड के बावजूद उनका अंतिम संस्कार इतने पड़े पैमाने पर किया गया क्योंकि सत्ताधारी उसका इस्तेमाल कर रहे हैं लेकिन ये सत्ता का मूल चरित्र है। लता मंगेशकर ने हमें बेहद सुरीले, कर्णप्रिय नगमें दिए हैं, वो हमे जीवन के झंझावातों से लड़ने में मदद करते हैं। जब भी तनावग्रस्त हों तो सुन लीजिए गुलजार के इस बेहद मीठे और खूबसूरत गीत को जिसको केवल लता ही गा सकती थीं :

हमने देखी है उन आँखों की महकती खुश्बू,

हाथ से छू के इसे रिश्तों का इल्जाम न दो,

सिर्फ एहसास है ये रूह से महसूस करो,

प्यार को प्यार ही रहने दो कोई नाम ना दो,

प्यार कोई बोल नहीं, प्यार आवाज नहीं,

एक खामोशी है सुनती है, कहा करती है,

ना ये बुझती है, न रुकती है, न ठहरी है कहीं,

नूर की बूंद है, सदियों से बहा करती है,

सिर्फ एहसास है…. 

लता की आवाज ने हमें उनकी खूबसूरती का एहसास कराया जो इसे महसूस कर सके तो अच्छा अन्यथा आलोचना करने के लिए तो सभी स्वतंत्र हैं। मैं तो यह भी कहता हूँ कि मुझे संगीत से प्यार है, मैं केवल लता मंगेशकर को ही सुनके जिंदा नहीं रह सकता क्योंकि मुझे रफी, मुकेश, हेमंत, किशोर, गीता दत्त, आशा भोसले, येशुदास, एसपी बालासुब्रह्मण्यम आदि सभी चाहिए। लता के गीत उनके अकेले नहीं है अपितु उसके पीछे के बोल, संगीत सभी हैं। कोई भी अच्छी चीज कहीं से भी ग्रहण कर लेनी चाहिए। अगर आपको उनकी आवाज में रूह का एहसास न हो तो न सुनें उससे उन्हे कोई फर्क नहीं पड़ता वो अब नहीं है और उनके सुनने वालों की संख्या हमारे देश काल की सीमाओ को लांघ चुकी हैं। हम लता जी की कला का सम्मान करते हैं, वे हमारे सिनेमा का इतिहास हैं। नरगिस, मधुबाला, मीना कुमारी, वहीदा रहमान, आशा पारेख, लीना चंद्रावरकर, शर्मिला टैगोर, तनूजा से लेकर रेखा, श्रीदेवी, माधुरी, रानी मुखर्जी, काजोल तक को अपनी आवाज देकर लता ने बताया उनकी आवाज ही उनकी पहचान है जो वर्षों पूर्व गुलजार ने लिखा।

नाम गुम जाएगा,

चेहरा ये बदल जाएगा

मेरी आवाज ही, पहचान है,

गर याद रहे

विद्याभूषण रावत प्रखर सामाजिक चिंतक और कार्यकर्ता हैं। उन्होंने भारत के सबसे वंचित और बहिष्कृत सामाजिक समूहों के मानवीय और संवैधानिक अधिकारों पर अनवरत काम किया है।

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गाँव के लोग
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3 COMMENTS

  1. आपकी रचना मे बहुत सुन्दर श्रधान्जली व्यक्त किया गया है ।

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