कल एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ। वीडियो कर्नाटक राज्य के एक कॉलेज परिसर का है। इस वीडियो में एक छात्रा अपनी स्कूटी को पार्क करने के बाद आगे बढ़ती है। वह अकेली है। उसके पीछे पहले चार–पांच लड़के, जिनके गले में भगवा गमछा है, आगे बढ़ते हैं। वे जयश्री राम का नारा लगाते हैं। देखते ही देखते लड़कों की संख्या बढ़ती जाती है और वे सभी राम का नारा बोलने लगते हैं। वहीं वह छात्रा पलटकर कहती है– अल्लाह-हू-अकबर। जैसे ही वह यह कहती है उन्मादी लड़के और जोर-जोर से चिल्लाने लगते हैं– जयश्री राम। छात्रा डरती नहीं है और वह वापस भी नहीं मुड़ती है। इस बीच कुछ अन्य लोग सामने आते हैं, जो संभवत: कॉलेज के प्रोफेसर हैं, छात्रा को कॉलेज के अंदर जाने का संकेत देते हैं। वीडियो के अंतिम दृश्य में छात्रा कॉलेज के अंदर चली जाती है और उन्मादी लड़के जयश्री राम का नारा लगाते रहते हैं।
कल ही एक और वीडियो मिला। इस वीडियो में एक साड़ी पहने शिक्षिका दरवाजे से सटकर खड़ी है। उसके चेहरे पर अनहोनी की आशंका है। वह दरवाजे से ऐसे सटकर खड़ी है मानो वह अनहोनी को रोक सकती है। अगले फ्रेम में कुछ हाथ दरवाजे के उपर नजर आते हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि कुछ लोग अंदर हाथ डालकर दरवाजे को खोलना चाहते हैं। बाहर जयश्री राम का नारा गूंज रहा है। कक्षा के अंदर छात्राओं के चेहरे पर डर है। डर शिक्षिका के चेहरे पर भी है। लेकिन वह एक बार अपनी छात्राओं को देखती है, छात्राएं साहस के साथ अनहोनी का सामना करने का निर्णय लेती हैं। शिक्षिका भी साहस बटोरकर दरवाजे को खोल देती है। दरवाजा खुलते ही फिर वही उन्मादी लड़के गले में भगवा गमछा डाले कक्षा में घुस आते हैं। छात्राएं यथावत बैठी हैं।
उत्तर भारत के हिंदी अखबारों व चैनलों में दीख रहा है। वे यह बहस चला रहे हैं कि एक समान पोशाक क्यों जरूरी हैं। दिलचस्प यह कि वे समान शिक्षा प्रणाली की बात नहीं कर रहे हैं। जनसत्ता जैसा अखबार भी भाजपा के द्वारा उठाए जा रहे हिजाब मामले को प्रमुखता से प्रकाशित कर रहा है। जबकि सामान्य तौर पर दक्षिण भारत की खबरों से यह अखबार भी परहेज करता है। अन्य अखबारों का आचरण भी अखबार से अधिक भाजपा के मुखपत्र के मुताबिक ही है।
कल ही कुछ लोगों के विचार पढ़ने को मिला। एक सज्जन ने फेसबुक पोस्ट पर लिखा – जयश्री राम और अल्लाह-हू-अकबर में क्या अंतर है? इस पोस्ट पर कुछ लोगों ने टिप्पणियां भी की हैं। अधिकांश सहमत हैं कि दोनों उद्घोष एक जैसे ही हैं। कुछ के मुताबिक दोनों धार्मिक कट्टरता के प्रतीक हैं। एक अन्य पोस्ट में एक सज्जन उपरोक्त पहले वीडियो में दीख रही छात्रा को सलाह दे रहे हैं कि उसे जयश्री राम का जवाब अल्लाह-हू-अकबर के बजाय भारत माता की जय या फिर संविधान जिंदाबाद के नारे से देना चाहिए था। ऐसे ही अनेक पोस्ट पढ़ने को मिले।
उपरोक्त बातों को दर्ज करने का मकसद यही दर्ज करना है कि भाजपा अपने नापाक मंसूबों में कामयाब होती दीख रही है। उत्तर प्रदेश सहित देश के पांच राज्यों में चुनाव हैं, और भाजपा धर्म के आधार पर ध्रुवीकरण करना चाहती है। सबसे अधिक उसकी नजर यूपी पर है। वह हर हाल में यूपी में जीत हासिल करना चाहती है। वहां भी भाजपा ने हिंदू-मुस्लिम की राजनीति के सारे पैंतरे आजमाए हैं। इसके लिए एक बड़ी घोषणा कल भाजपा ने अपने घोषणापत्र में की है। उसने कहा है कि यदि इस बार भाजपा जीती तो होली और दीवाली के मौके पर लोगों को मुफ्त में गैस सिलिंडर उपलबध कराएगी। इसके अलावा भाजपा ने इस बार यूपी में किसी मुसलमान को अपना उम्मीदवार नहीं बनाया है।
लेकिन इन सबके बावजूद यूपी में भाजपा को अपेक्षित सफलता मिलती नहीं दीख रही है। लिहाजा वह अब दूसरे प्रदेशों, जहां उसकी सरकार है, वहां हिंदू-मुस्लिम राजनीति को हवा दे रही है। कर्नाटक में हिजाब प्रकरण को लेकर जो चल रहा है, वह इसका ही हिस्सा है।
भाजपा कर्नाटक में खेला करके यूपी और पंजाब में चुनावी जीत हासिल करना चाहती है। यह बिल्कुल वैसा ही है जैसे कि कैरम खेलते वक्त खिलाड़ी रिवाइंड का उपयोग करते हैं। मतलब तीर कहीं और निशाना कहीं। और इस बार तो भाजपा ने कमाल ही किया है, छात्राओं के कंधे पर बंदूक रखकर फायरिंग कने का प्रयास किया है।
सबसे महत्वपूर्ण बदलाव उत्तर भारत के हिंदी अखबारों व चैनलों में दिख रहा है। वे यह बहस चला रहे हैं कि एक समान पोशाक क्यों जरूरी हैं। दिलचस्प यह कि वे समान शिक्षा प्रणाली की बात नहीं कर रहे हैं। जनसत्ता जैसा अखबार भी भाजपा के द्वारा उठाए जा रहे हिजाब मामले को प्रमुखता से प्रकाशित कर रहा है। जबकि सामान्य तौर पर दक्षिण भारत की खबरों से यह अखबार भी परहेज करता है। अन्य अखबारों का आचरण भी अखबार से अधिक भाजपा के मुखपत्र के मुताबिक ही है।
दरअसल, भाजपा कर्नाटक में खेला करके यूपी और पंजाब में चुनावी जीत हासिल करना चाहती है। यह बिल्कुल वैसा ही है जैसे कि कैरम खेलते वक्त खिलाड़ी रिवाइंड का उपयोग करते हैं। मतलब तीर कहीं और निशाना कहीं। और इस बार तो भाजपा ने कमाल ही किया है, छात्राओं के कंधे पर बंदूक रखकर फायरिंग कने का प्रयास किया है।
हिजाब और जयश्री राम बनाम अल्लाह-हू-अकबर का नारा
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तो पहला सवाल यही कि यदि छात्रा ने जयश्री राम के बदले भारत माता की या संविधान की जय क्यों नहीं कहा? यह बहुत बचाकाना सवाल है। वीडियो में जो छात्रा हिजाब पहने नजर आ रही है, उसके हिसाब से ऐसा लगता है कि उसकी उम्र अधिकतम 20-22 साल होगी। यह उसके जीवन में पहला मौका है जब अपने ही देश में इस तरह का बेगानेपन का अहसास कराया जा रहा है। वैसे भी पीड़ित छात्रा, जिसने अबतक अपना पूरा जीवन अल्लाह-हू-अकबर के सहारे जीया है। उसे उसके यह बात घर में बतायी गयी होगी। वह राम, कृष्ण, बंदर, भालू को अपना ईश्वर नही मानती है। उनका परमेश्वर खुदा है, जो कमोबेश वही है जो कबीर का ईश्वर है, रैदास का आराध्य है।
अब यदि उसके सामने सकड़ों उन्मादी छात्र एक साथ जयश्री राम का नारा लगाने लगे तो उसने अल्लाह-हू-अकबर कह दिया तो इसका मतलब यह नहीं है कि वह धार्मिक रूप से कट्टर है। यह उसकी सामान्य प्रतिक्रिया है। ऐसे भी जब कभी किसी के पास संकट होता है तो वह उसी को याद करता है, जिसके बारे में उसे बचपन से बताया गया है कि इस देश में पत्ता तक यदि हिलता है , वह इसी के कारण है।
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दूसरी बात यह कि हर महिला अथवा छात्र से यह कैसे उम्मीद की सकती है उसके पास पर्याप्त जानकारी होगी ही। और रही बात हिजाब की तो यह मुस्लिम महिलाओं के पोशाक का हिस्सा है। वे अपना पोशाक स्वयं तय करें, संविधान उन्हें इसकी इजाजत देता ही है
बहरहाल, यह पूरा परिदृश्य दुखी करनेवाला है। सबसे महत्वपूर्ण यह कि आजकल के छात्रगण भी जबदरस्त तीके से राजनीतिक साजिशों का शिकार हो रहे हैं। जबकि उन्हें सवाल पूछाना चाहिए कि यदि हिजाब पहनना किसी तरह से स्कूल की मर्यादा का उल्लंघन है तो उसी स्कूल-कालेज में हिंदू धर्मावलंबी लोग माथे पर टीका लगाकर क्येां कर घुस जाते हैं
खैर, कल की कुछ कविताएं जेहन में आयीं–
1.
शहर में होती हैं
खूब ऊंची इमारतें
और दरवाजे भी इतने बड़े कि
आदमी को झुकना नहीं पड़ता
फिर मैं यह सोचकर हैरान हूं
लोग इस कदर रेंगते क्यों हैं।
2.
वह हुक्मरान है
यह हमको पता है
और तुमको भी।
लेकिन हुक्मरान भूल गया है कि
वह हुक्मरान नहीं
हैवान बन चुका है।
3.
तुम कहो
और खूब तेज आवाज में कहो
और तब तक कहते रहो
जबतक कि हुक्मरान के
कान का परदा न फट जाए
याद रखो
नहीं कहना
किसी भी समस्या को बनाए रखना है
उसका समाधान नहीं।
4.
सच कहो हुक्मरान
तुम्हें बैर किससे हैं?
या फिर है तुम्हें डर कि
हिजाब पहनी बेटियां जब पढ़ जाएंगीं
तब तुम्हारी पितृसत्ता की दीवारें
बालू की भीत के जैसे
भरभराकर गिर जाएंगीं।
नवल किशोर कुमार फॉरवर्ड प्रेस में संपादक हैं।
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