उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में यूं तो भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस जैसी राष्ट्रीय पार्टियों के अतिरिक्त स्थानीय क्षेत्रीय राजनीतिक पार्टियां भी चुनावी मैदान में अपना राजनैतिक भाग्य आजमा रही हैं, लेकिन इसके अतिरिक्त अन्य राज्यों की क्षेत्रीय पार्टियां भी उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में अपना राजनीतिक दम भी दिखा रही हैं, मगर अधिक चर्चा राष्ट्रीय पार्टी भाजपा और कांग्रेस की हो रही है या फिर स्थानीय क्षेत्रीय पार्टियों की। यदि उत्तर प्रदेश से बाहर की पार्टियों की चर्चा की बात करें तो अधिक चर्चा एआईएमए असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी की हो रही है, जबकि आम आदमी पार्टी, जेडीयू और शिवसेना भी उत्तर प्रदेश चुनाव में चुनावी ताल ठोंकते हुए नजर आ रही है मगर इनकी चर्चा कम ही सुनाई दे रही है। आम आदमी पार्टी की दिल्ली में, जेडीयू की बिहार में और शिवसेना की महाराष्ट्र में सरकार है। यह तीनों ही पार्टियां अपने-अपने राज्यों से निकलकर अन्य राज्यों में भी अपनी पार्टी का विस्तार करने के उद्देश्य से उत्तर प्रदेश के चुनावी मैदान में उतरी हैं, ऐसा अनुमान राजनैतिक पंडितों और विश्लेषकों के द्वारा लगाया जा रहा है और चर्चा भी इन पार्टियों के अन्य राज्यों में राजनीतिक विस्तार को लेकर ही हो रही है !
एआईएमए पार्टी को यदि मुस्लिमों से जोड़कर विश्लेषण किया जा रहा है तो शिवसेना को भी हिंदुओं से जोड़कर क्यों नहीं देखा जाए? यदि शिवसेना को हिंदुओं से जोड़कर देखा जाए तो फिर उत्तर प्रदेश चुनाव में इसका किस पार्टी को नुकसान होगा ?
अब सवाल उठता है कि क्या शिवसेना उत्तर प्रदेश चुनाव में अपनी पार्टी के राजनैतिक विस्तार के लिए उतरी है या फिर, भारतीय जनता पार्टी का खेल बिगाड़ने के लिए मैदान में उतरी है ? यदि एआईएमए असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी की बात करें तो राजनीतिक गलियारों में और मीडिया में अक्सर यह चर्चा होती हुई सुनाई देती है कि एआईएमएस पार्टी कांग्रेस’, समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के मुस्लिम वोटों में सेंधमारी करने के लिए मैदान में उतरी है। ओवैसी के उत्तर प्रदेश चुनाव में उतरने से कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी को अधिक नुकसान होगा ? ओवैसी के चुनावी मैदान में उतरने से मुस्लिम वोटों का विभाजन हो जाएगा अक्सर ऐसी बातें राजनैतिक गलियारों और मीडिया में सुनाई देती हैं। यदि राजनीतिक गलियारों और मीडिया की चर्चा को मान भी लें की ओवैसी कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी को चुनाव में नुकसान पहुंचाएगी तो फिर शिवसेना को लेकर भी ऐसी ही चर्चा क्यों नहीं की जा रही है?
एआईएमए पार्टी को यदि मुस्लिमों से जोड़कर विश्लेषण किया जा रहा है तो शिवसेना को भी हिंदुओं से जोड़कर क्यों नहीं देखा जाए? यदि शिवसेना को हिंदुओं से जोड़कर देखा जाए तो फिर उत्तर प्रदेश चुनाव में इसका किस पार्टी को नुकसान होगा ?
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क्या उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से एआईएमए और शिवसेना के बीच राजनीतिक टक्कर होने का शुभारंभ हो गया है क्योंकि शिवसेना ने विधानसभा चुनाव के बाद लोकसभा चुनाव में भी उत्तर प्रदेश से लोकसभा चुनाव लड़ने की भी तैयारी कर ली है, जैसा शिवसेना के नेता संजय राऊत बता रहे हैं कि उत्तर प्रदेश में शिवसेना लोकसभा चुनाव भी लड़ेगी। ऐसे में जहां एआईएमए पार्टी से कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी को वोटों का नुकसान होगा तो वहीं शिवसेना के मैदान में उतरने से क्या भारतीय जनता पार्टी को भी नुकसान होगा?
देवेंद्र यादव कोटा स्थित वरिष्ठ पत्रकार हैं।