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सिनेमा का सांप मनोरंजन और मुनाफे के लिए फुफकारता है

बॉलीवुड ही नहीं हॉलीवुड फिल्मों में भी सांपों का प्रस्तुतिकरण पसंदीदा विषय रहा है। गाँव से लेकर शहर तक सांप हर जगह मौजूद भी हैं और उनसे जुड़ी तमाम कहानियां और मान्यताएं लोक में व्याप्त हैं। सिनेमा में इन साँपों को इतना चमत्कारिक दिखाया जाता है कि आम जनता इसे सच मानटी है। नागमणि, इच्छाधारी नाग ये ऐसे विषय है जिन पर हमारे देश में सैकड़ों फिल्मे और टीवी सीरियल बने। कहा जा सकता है कि साँपों से सामना करती जिंदगी डर रोमांच, मनोरंजन, किस्से कहानियों को रोज ही कहती-सुनती और बुनती रहती है।

सांप संपेरे की झपोली में हो या फिल्म के परदे पर लेकिन जनता का मनोरंजन करने की ज़िम्मेदारी सदियों से उनके ऊपर है। भूत, चुड़ैल से लेकर खतरनाक डरावने साँपों तक ने फ़िल्मी परदे पर आकर दर्शकों का न केवल डरावना मनोरंजन किया बल्कि खूब पैसा भी कमाया है। इन सुपरनेचुरल शक्तियों को लेकर समाज में पहले से तमाम दंतकथाएं और भ्रांतियां मौजूद थीं फिल्मों ने जनता को और भी कंफ्यूज करने के साथ ही उनकी कल्पना की उड़ान को नए आसमान दे दिए। बॉलीवुड ही नहीं हॉलीवुड फिल्मों में भी सांपों का प्रस्तुतिकरण पसंदीदा विषय रहा है। गाँव से लेकर शहर तक सांप हर जगह मौजूद भी हैं और उनसे जुड़ी तमाम कहानियां और मान्यताएं लोक में व्याप्त हैं।

अभी मैं नाइजीरिया के प्रख्यात साहित्यकार चिनुआ अचेबे का क्लासिक उपन्यास थिंग्स फाल अपार्ट पढ़ रहा हूँ। इस पुस्तक में साँपों के बारे में एक ऐसी मान्यता का ज़िक्र उन्होंने किया है जो उत्तर भारत के गांवों में हू-ब-हू उसी रूप में पायी जाती है। रात के समय किसी के घर में सांप निकल आये तो लोग उसे सांप के नाम से नहीं बुलाते बल्कि बोलते हैं कि ‘फलाने के घर में कीड़ा निकल आया है, डंडा या भाला लाओ’। मान्यता यह है कि सांप को सांप कहा तो वह सुन लेगा और मौके से भाग जाएगा। नाइजीरिया से लेकर इण्डिया तक सांप और उससे जुड़ी मान्यताएं और मानव जाति से उनके मुठभेड़ भी यूनिवर्सल हैं, शायद इसी व्यापकता के कारण उन्हें दुनिया भर के फिल्मों में जगह मिली है।

सिनेमा ने सांपों को मुनाफे के माध्यम में बदल दिया 

हिंदी फिल्म हनीमून ट्रेवल प्राइवेट लिमिटेड के गाने सजना दी वारी वारी जाऊ जी मैं को एक बार फिर से देख लीजिए। इसमें हनीमून पर गए शबाना आज़मी से लेकर के. के. मेनन तक सभी नवविवाहित जोड़े डांस कर रहे हैं। मेनन जमीन पर लेटकर नागिन डांस कर रहा है। भारत देश के सुदूर देहात की किसी शादी से लेकर घोर शहरी लोग बैंड बाजे के साथ नागिन डांस करते देखे जाते हैं। इधर डांस करने वालों के लिए एक और गाना आ गया है ‘नागिन-नागिन डांस नचना’ (बजाते रहो-2013)जिस पर खूब नागिन डांस हो रहा है।

सांप एक सरीसृप है जमीन पर रेंगकर चलता है। अपनी लम्बाई की वजह से अपने शरीर और पूँछ को लहराते हुए चलता है जिसको लोगों ने डांस समझ रखा है जिसमे सांप की कोई गलती नहीं है। भारत देश में अनेक प्रजातियों के सांप पाए जाते हैं लेकिन उन में सबसे ज्यादा पॉपुलर कोबरा सांप है क्योंकि उसकी कुछ अलहदा खासियत हैं जैसे कि उसका चौड़ा फन और उसके फन के ऊपर गाय के खुर जैसा एक अलग निशान जो इस मान्यता को भी पुष्ट करता है कि हिंदू देवता शिव जी के गले  में जो सांप लिपटा रहता है वह कोबरा ही होता है क्योंकि उसके सिर के उपर शिव के नंदी बैल का खुर छपा रहता है। कोबरा के अलावा अन्य सांप आदमी के साथ बीन, बांस, डंडा कुछ भी देखकर सरक लेते हैं। कोबरा फन उठाकर सामना करता है। हमारे गाँव का आदमी बोलेगा ‘देखो ये है मर्द सांप कभी मैदान छोड़कर नहीं भागता’। सन 1954 में आई हिंदी फिल्म नागिन का गाना है ‘मेरा मन डोले मेरा तन डोले मेरे दिल का गया करार रे’ जिसमें बीन की धुन पर वैजयन्ती माला जी और कोबरा सांप डांस करते दिखते हैं।

कुछ लोगों का मानना है कि उत्तर प्रदेश के बिजनौर जिले की नगीना तहसील में बसने वाले संपेरो के समुदाय में बीन की धुनों का इस्तेमाल बॉलीवुड के संगीतकारों ने किया। नागिन फिल्म के बनने के बाद इच्छाधारी और मणि वाले नाग की एंट्री बॉलीवुड के साथ-साथ सामान्य जनजीवन में हो गया। सच यह है किसी नाग के पास कोई मणि नहीं होती लेकिन ज्यादातर बॉलीवुड फिल्मों के सांप मणिधारी-इच्छाधारी हैं।

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हिंदी सिनेमा में सांप वाली फिल्मों को अगर देखा जाए तो उनमें से ज्यादातर नागिन के ऊपर फोकस करते हैं। नागिन रूप बदलकर जब औरत बनेगी तो एक जादुई खूबसूरती रुपहले परदे पर बिखर जायेगी जो दर्शकों की आँखों को चुंधियाते हुए उनके दिल-दिमाग को सम्मोहित कर लेगी। यही कारण है कि इन फिल्मों में जादू, संगीत और नृत्य का भरपूर प्रयोग होता है। वैजयंती माला, रीना रॉय, रेखा, श्रीदेवी, मीनाक्षी शेषाद्री, मंदाकिनी, मनीषा कोइराला, जूही चावला और मल्लिका शेरावत जैसी खूबसूरत और कुशल नर्तकियों ने नागिन का रोल किया और पसंद की गयीं। माधुरी दीक्षित जैसी खूबसूरत अभिनेत्री और नृत्यांगना को लेकर कोई साँपों वाली फिल्म नहीं बनी यह एक आश्चर्य ही है। भारतीय सिनेमा में एक दौर अस्सी और नब्बे के दशक में चला जहाँ रेप, अन्याय और अत्याचार की शिकार महिलाओं ने अपने शोषकों से बदला लेना शुरू किया। पराशक्तियों से सम्पन्न नागिन और चुड़ैल भी फिल्मी परदे पर अपने साथ हुए अन्याय का बदला लेते हुए दिखी।

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भारतीय समाज में सांप के मिथक और नागों से संबन्धित इतिहास

भारतीय मिथकों में साँपों का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। कद्रू बहुत सारे नागों की माता मानी जाती हैं। वासुकी प्रसिद्ध नाग हैं जो महर्षि कश्यप और माता कद्रू के पुत्र थे । नाग धन्वातीर्थ में देवताओं ने इन्हें नागराज के पद से सम्मानित किया था। शिव जी के गले में हमेशा वासुकी नाग लिपटा रहता है। समुद्र मंथन के समय वासुकी नाग की रस्सी बनाकर ही मंथन किया गया था। वासुकी के बड़े भाई शेषनाग है जो विष्णु का परम भक्त है उन्हें शैय्या के रूप में आराम देता है। जब बासुदेव बालकृष्ण को यमुना नदी पार करा रहे थे तो शेषनाग ने ही उनकी रक्षा की थी। ऐसी मान्यता है कि शेषनाग पर लेटकर विष्णु जी अपनी ऊर्जा को एकत्र कर पाते हैं तथा ग्रह-नक्षत्रों पर नियन्त्रण कर पाते हैं।

तक्षक नाग पाताल में निवास करने वाले आठ नागों में से एक है। ऐसा माना जाता है कि तक्षक का राज तक्षशिला में था। तक्षक नाग के डंसने से राजा परीक्षित की मृत्यु हो गयी थी। कुछ पाश्चात्य विद्वानों के अनुसार भारत में तक्षक जाति थी, जिसका जातीय चिह्न सर्प था। इसका युद्ध राजा परीक्षित से हुआ था, जिसमे परीक्षित मारे गये थे। परीक्षित के पुत्र जनमेजय ने तक्षशिला के समीप इन तक्षकों से युद्ध किया और इन्हें परास्त किया था। गोविन्द निहलानी ने अजय देवगन, तब्बू और राहुल बोस को लेकर तक्षक (1999) नाम से फिल्म बनाई थी। कालिया नाग का भी मिथकों में महत्वपूर्ण स्थान है। कृष्ण नन्द-यशोदा के गोकुल गाँव में रहते थे जिसके पास बहने वाली यमुना नदी में कालिया नाग रहने लगा था जिसके कारण नदी का पानी जहरीला हो गया था। नदी के पानी को पीकर जब पशु-पक्षी मरने लगे तो कृष्ण ने कालिया नाग से युद्ध कर उसे वापस अपने मूल स्थान पर भेज दिया और लोगों की रक्षा की।

ऐसा माना जाता है कि नागवंशी राजाओं ने पूरे देश में बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार करने का काम किया। कुशीनारा के मल्ल राजा खुद को नागवंश का सदस्य मानते थे। आज भी कई लोग अपने नाम के साथ नागवंशी लगाते हैं। बौद्ध धर्म में कमल पुष्प और नागों को विशेष महत्ता प्राप्त है। इतिहासकार डॉ रमाकांत कुशवाहा ने वर्ष 2020 में अंगकोरवाट मन्दिर का भ्रमण करने के व मंदिर में बनी मूर्तियों और नागों के भित्ति चित्र देखने के बाद उस मंदिर को प्राचीन बौद्ध मंदिर होने का दावा किया था। बुद्ध की कई मूर्तियों में उनके सिर के उपर कई मुख वाले साँपों की आकृति प्रदर्शित की गयी है। मुकालिंदा नागराजा को बुद्ध का संरक्षक कहा गया है।

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प्रख्यात कथाकार फणीश्वर नाथ रेणु के उपन्यास में साँपों का कई बार ज़िक्र आता है जिसे आलोचकगण कामुकता का प्रतीक बताते हैं। भारत के साथ ही मिथक दुनिया के सभी समाजों में विद्यमान है। प्रसिद्ध मानवशास्त्री लेवी स्ट्रास ने 1964 में प्रकाशित अपनी चार खंडीय पुस्तक में दुनिया भर के मिथकों का अध्ययन करने के उपरांत यह निष्कर्ष प्रतिपादित किया कि विश्व के समाजों में जो विभिन्न तरह के मिथक और उनके वृत्तांत प्रचलित हैं, उनके मूल में एक ही तरह की प्रतीकात्मक संरचना पाई जाती है और इन प्रतीकों और कहानियों में मानव जीवन के लिए संदेश  छिपे रहते हैं, जिनका उपयोग समाजीकरण की प्रक्रिया में किया जाता है।

लेवी स्ट्रास ने बताया कि मिथक निर्माण की प्रक्रिया सामाजिक उपयोगिता के कारण नहीं चलती अपितु मुख्यत: यह अपने स्वयं के सहज नियमों और सिद्धांतों के द्वारा नियंत्रित होती है। हॉलीवुड से लेकर बॉलीवुड तक और दुनिया भर की फिल्मों में सांपों की वास्तविक, काल्पनिक और जादुई दुनिया को आधार बनाकर फ़िल्में बनाई जाती रही है। भारत को तो संपेरों का देश तक कहा जाता रहा है और सांपो को लेकर तमाम लोक कहावते और मान्यताएँ आज भी समाज में विद्यमान हैं। इसी कारण साँपों और उनसे जुड़ी कहानियों, टोन-टोटके, मन्त्रों और मान्यताओं से कथानक तैयार कर बॉलीवुड में फिल्में बनती रही हैं।

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सिनेमाई सांप और भारतीय समाज

सन् 1990 का वर्ष उदारीकरण, निजीकरण व वैश्वीकरण की प्रक्रियाओं के भारत में लागू होने के कारण युगान्तकारी वर्ष रहा है। हम जब भी परिवर्तन के बारे में बात करते है तो वर्ष 1990 एक सन्दर्भ बिन्दु की तरह सामने आता है। भारत व दुनिया की अर्थव्यवस्थाएं विभिन्न कारणों से आर्थिक संकट के दौर से गुजर रही थी और उसको संकट से उबारने के लिए विश्व स्तर पर अनेक प्रयास भी चल रहे थे।

संयुक्त राज्य अमेरिका व सोवियत संघ के खेमों में बंटी द्विध्रुवीय दुनिया अब और आगे जाने को तैयार न थी। मण्डल-कमण्डल और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण से राष्ट्रीय माहौल विषाक्त हो रहा था। ऐसे ही समय में जब हमारी अर्थव्यवस्था हिन्दू दर से वृद्धि करती हुई हॉफ रही थी साँप सपेरा और उनको नियंत्रित करने के जादुई उपायों के साथ दैवीय शक्तियों से सम्पन्न इच्छाधारी नागिन रूपहले पर्दे पर अपने मोहक अंदाज में अवतरित हुई। प्रेमिका, नायिका व बहू के रूप में आकर इच्छाधारी नागिन ने हिन्दी फिल्म के दर्शकों को दीवाना बना दिया और उनकी फैंटेसी को नये आयाम दिये।

सन् 1986 में जब नगीना फिल्म आयी तो हम मात्र पांच साल के थे लेकिन मेंढक और सांप रोज के जीवन में शामिल थे। रंगीन टेलीविजन वीसीआर/डीवीडी और जनरेटर ने बारहगजे-सोलहगजे शामियानों के नीचे सजने वाली नौटंकी की परम्परागत मनोरंजन वाली विधा को बाहर धकियाना शुरू कर एक नया जादुई माध्यम उपलब्ध कराया था। और ये सारे परिवर्तन स्मृति के खजाने को समृद्ध कर रहे थे।

विदेशियों ने भारत देश में गरीबी का मजाक उड़ाते हुए इसे ‘सपेरों का देश’ कहा। यहाँ सांपों की अनेक प्रजातियाँ पायी जाती हैं और ग्रामीण लोग उनके बारे में बखूबी परिचित भी होते हैं। सन 1986 में जब श्रीदेवी और ऋषिकपूर अभिनीत फिल्म नगीना आयी तो ग्रामीण जीवन के मनोरंजन के परिदृश्य में संक्रमणकाल चल रहा था। पूर्वी उत्तर प्रदेश के शादी विवाह, जन्मदिन के उत्सवों में बिरहा, नौटंकी के स्थान पर बॉलीबुड की फिल्में वीडियोसेट पर दिखायी जाने लगी थीं। टेलीविजन की भी पहुंच गाँवों तक होने लगी थी।

रामायण और महाभारत धारावाहिक भी भारी लोकप्रिय हो रहे थे। मनोरंजन के इस इलेक्ट्रानिक माध्यम ने ग्रामीणों पर जादुई असर छोड़ा और परम्परागत लोक कलाकर बेरोजगार होकर शहरों की तरफ पलायन करने लगे। ऐसी ही दौर में नगीना ने अपनी सफलता से इतना व्यापक प्रभाव पैदा किया कि साँपों और दैवीय शक्ति सम्पन्न इच्छाधारी नागिन के विषयवस्तु पर आधारित फिल्मों की झड़ी लग गयी। इच्छाधारी नागिन आधारित फिल्मों पर नजर डाले तो बालीवुड की कुछ प्रमुख फिल्में इस प्रकार हैं : नागपंचमी(1972), नागिन (1976), नगीना (1986), निगाहें (1989), नाग-नागिन (1989), तुम मेरे हो (1990), शेषनाग (1990), दूध का कर्ज (1990), विषकन्या (1991) नाचे नागिन गली गली (1991), आई मिलन की रात (1991), जानी दुश्मन: एक अनोखी कहानी (2002), हिस्स (2010)।

टेलीविज़न ने भी इस प्रवृत्ति को भुनाया

टेलीविजन के कलर्स चैनेल पर प्रसारित नागिन सीरियल एक इच्छाधारी नागिन की कहानी है जिसे इक्कीसवी सदी के इक्कीसवें साल में भी लोग बड़े चाव से देखते हैं जिसका कारण है फैंटेसी और खूबसूरत इच्छाधारी नागिन जो अपनी सहूलियत के हिसाब से भेष बदलकर दर्शकों का मनोरंजन करती रहती है। यहाँ भी पवित्रा पुनिया, मधुरा नायक, करिश्मा तन्ना, अनीता हंसनंदानी, अदा खान, सुरभि ज्योति, दृष्टि धामी, मौनी रॉय, सुरभि चन्दना जैसी कई खूबसूरत महिलाओं ने नागिन टीवी सीरियल के अलग-अलग सीजन में काम किया। नब्बे के दशक के लोकप्रिय धारावाहिक चन्द्रकान्ता में वर्षा उसगांवकर ने नागिन का रोल किया था।

हॉलीवुड के फिल्ममेकर कम बवाली नहीं हैं। वे भी अपने दर्शकों को बहुत बहलाते हैं। जुरासिक पार्क (1993) और अनाकोंडा (1997) फिल्मों के हिट होने के बाद कई सारी फिल्मों में उन्होंने जबरदस्ती डायनासोर और अनाकोंडा सांप घुसाकर भागदौड़ मचाने का काम किया था। इसके पहले साँपों पर आधारित हॉलीवुड की कुछ प्रमुख फ़िल्में ‘द जंगल बुक’ (1967), द स्नेक वूमेन (1961), क्लैश ऑफ़ टाईटनस (1981), वेनम (1981), द हार्ड टारगेट (1993), हैरी पॉटर एंड द चैम्बर ऑफ़ सीक्रेट्स (2002), स्नेक्स ऑन अ प्लेन (2006), पिरान्हकोंडा (2012)।

लेकिन जो भी कहो, सांप कभी दूध नहीं पीते

कुल मिलाकर वास्तविक जीवन से लेकर सिनेमा के परदे तक मनुष्य और साँपों के बीच मुठभेड़ होती रहती है। कभी वे हमारे जानी दुश्मन होते हैं तो कभी सगे भाई की तरह प्यारे पारिवारिक सदस्य। दूध का कर्ज फिल्म में तो नायक की माँ (अरुणा ईरानी) अपने स्तनों से जो दूध अपने बेटे को पिलाती है वही दूध सांप को भी पीने को कटोरी में देती है। दर्शक जब सिनेमा के परदे पर सांप को दूध पीते हुए देखता है तो उसे अखंड विश्वास हो जाता है कि सांप दूध पीते हैं। जबकि वैज्ञानिक सच यह है कि सांप दूध नहीं पीते।

मेहिली सेन ने अपनी पुस्तक ‘Haunting Bollywood Gender, Genre and the Supernatural in Hindi Commercial Cinema’ (2017) में साँपों के बारे में भारतीय समाज में प्रचलित मिथको, जनश्रुतियों, किवंदतियों की विस्तृत चर्चा करते हुए लिखा है कि साँपों पर आधारित फिल्मों के इतिहास के बारे में ठीक-ठीक बता पाना थोड़ा मुश्किल है। अपने शुरूआती दौर में भारतीय फिल्में (मूक सिनेमा) धार्मिक मिथको व फैंटेसी पर आधारित कहानियों पर ही बनायी जाती रही। नागों पर आधारित फिल्मों के लिए 1970 का दशक काफी महत्वपूर्ण रहा है। सन 1976 में बनी ब्लॉक बस्टर नागिन ने ऐसी विषयवस्तु वाली फिल्मों की तरफ जनता और फिल्म इंडस्ट्री का ध्यान आकर्षित किया।

नगीना (1986) हरमेश मल्होत्रा निर्देशित सुपरहिट फिल्म थी, जिसमें इच्छाधारी नागिन औरत का रूप धारण कर जमींदार परिवार की बहू बन जाती है। कल्पना की उड़ान की महत्तम उंचाई को छूती यह फिल्म साँपों के जीवन का ऐसा जादुई संसार रचती है कि फिल्म के नायक की तरह दर्शक भी नागिन के मोहपाश में फंसकर गाने लगते हैं ‘आजकल कुछ और याद रहता नहीं, एक तेरे सिवा याद आने के बाद। बॉलीवुड फिल्मों के मसाले में लपेटकर परिवार, नातेदार और नाच-गाने का ऐसा वातावरण तैयार किया गया है कि हम सहजता से स्वीकार कर लेते हैं कि इच्छाधारी नागिन न केवल पायी जाती है बल्कि सुंदर रूप धरकर वह किसी घर की बहु भी बन सकती है।

अस्सी के दशक को उतरार्द्व में गॉवो में मनोरंजन के साधन के रूप में वीडीओ/वीसीआर का अवतरण हुआ, जिसमें नाच गाना बिरहा नौटंकी जैसे परम्परागत लोक कलाओं का तेजी से नुकसान किया। गाँव में कुछ लड़के जो उस वक्त तक दिल्ली पंजाब हो आए थे, वीडीओ की मांग को देखते हुये जनरेटर व रंगीन टेलीविजन व वीडीओ प्लेयर खरीद लाए और किराए सट्टे पर चलाने, शादी ब्याह जन्मदिन, कथा पूजा सभी में सिर्फ वीडीओ की मांग होने लगी। उसी दौर में नगीना, दूध का कर्ज और मर्द जेसी फिल्में हमारे गॉव में खूब दिखायी गयी। 1986 से 2017 तक कम से कम 20 बार मैंने नगीना फिल्म देखी होगी। नगीना के प्रभाव में ही बारात के बैड बाजे की धुन पर मुंह में नोट दबाके लोगो ने नागिन डांस करना शुरू कर दिया था।

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नगीना फिल्म का इतना प्रभाव लोगों के जेहन पर पड़ा कि साँपों के सम्बन्ध में सुनी सुनायी बातें हकीकत सी बन गईं। जहाँ-तहाँ लोग साँपों के सम्बन्ध में कहानियाँ सुनाते रहते। गाँव के बूढे लोग वीडियो जैसी नयी चीज से बहुत खफा थे, दूसरे नगीना फिल्म में बीन की आवाज से डरते थे कि सीवान से सॉप निकलकर गाँव में आयेगें  और काटेगें सबको। बच्चे और औरतें जमीन पर बहुत सजग होकर बैठते और वीडियो में बीन का लहरा बजने पर चारों तरफ देखते कि कहीं कोई सॉप न आ जाए। ऐसी कई घटनाएं हैं जिनका जिक्र करना जरूरी हो जाता है जिनसे सॉप वाली फिल्मों के असर का पता चलता है। उसी दौर की बात है सामने वाले घर में एक औरत को करैत सांप ने काट लिया। बड़े टोले से सोखा आया सारी रात झाड़-फूक चलती रही। पूरा गाँव तमाशा देख रहा था। बारह बजें आस-पास  घर के पिछवाडे़ से एक सांप दीवाल के किनारे-किनारे द्वार के सामने आ पहुंचा। लोग दूसरी तरफ भागे और सोखा की मन्त्र शक्ति से प्रभावित हुए कि ये सॉप उन्होने ही बुलाया है जो विष वापस खीचेगा। मतलब मामला पूरी तरह फिल्मी हो जाता था। पूरे क्षेत्र में एकदम पापुलर था कि किसी कोबरा नाग को मारोगें तो तुम्हारी फोटो उसकी ऑख में खिंच जाएगी और उसका जोड़ा उसकी कॉपी अपनी ऑख में उतारकर तुम्हें ढूढता रहेगा और मौका मिलते ही डंसकर बदला लेगा।

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उत्री महतो ने एक दिन जेठ की दुपहरी में मास्टर चाचा की बंसवारी में दोपहरी काट रहे लोगों को अपने बतरस का आनन्द देते हुए सुनाया कि जंगल उस पार पिपरा गॉव में एक महिन्द्रा ट्रैक्टर ने सांप को कुचल के मार दिया। सॉप (नाग) के जोड़े ने ड्राइवर को एक दिन ट्रैक्टर पर चढकर खेत जोतते समय काट लिया। अब वह नया ट्रैक्टर खड़ा सड़ रहा है। कोई हिम्मत नही कर रहा है उस पर चढ़ने व चलाने का। एक आदमी कुछ दिन बाद उस ट्रैक्टर को खरीदकर ले गया रास्ते में ड्राइवर पेशाब करने उतरा तो साँप ने काटकर अपना बदला ले लिया। लोग सांस रोककर कहानी सुनते और साँप से खूब डरते। इसे ही हम नगीना फिल्म का जादुई इफेक्ट कहते हैं।  उसी समय एक और घटना घटी। नूरलैन मास्टरसाब की साईकिल एक दिन स्कूल आते वक्त  खराब हो गयी। वे मेड़ पकडकर पैदल ही स्कूल की ओर चल दिए। बीच में अरहर के खेत के पास नागराज कोबरा ने रास्ता घेर लिया।

मास्टर साहब ने बगल के खेत में काम कर रहे किसान से कुदाल मांगी और नागराज को काट डाला। उनकी फोटो भी नागराज की आंखों में प्रिन्ट हो गयी थी उसका जोड़ा आकर  मारने वाले मास्टर साहब की फोटोकापी न कर ले इस डर से नूरलैन जी ने साँप का सिर मिट्टी में गाड़ दिया और स्कूल से विज्ञान के मास्टर केदारनाथ मिश्रा जी को संड़सी, चिमटी के साथ लिवाकर गए। साँप का सिर मिटटी से बाहर निकालकर चिमटी से आँखें निकाली गईं और स्कूल में लाकर सूक्ष्मदर्शी से देखी गईं। उनमें नूरलैन मास्टर साहब की फोटो साफ दिख रही थी। यह अलग की बात है कि उसे केवल मिश्रा जी ने ही देखा था।

मणि वाले सांप के नाम पर  धनागम

हमारे पड़ोस के गाँव में एक धनी यादव परिवार रहता था जो अपनी मेहनत और बुद्धि से आगे बढ रहा था। उसके बारे में कहा जाने लगा कि एक इच्छाधारी मणिधारी नाग ने अपनी मणि उनके घर में छोड दिया जिससे उनकी समृद्धि बढती जा रही है। इसके विपरीत एक बार गाँव के एक घर में घुस आए अजगर को लोगों ने बड़ी बेरहमी से मारा तो कुछ दिन बाद उस घर के एक नौजवान की मृत्यु हो गयी और उसी साल गाँव में आए हैजा से कई लोगों के मरने को सांप के प्रकोप के रूप में देखा व बताया गया। नगीना इफेक्ट के कारण अनहोनी से बचने के लिए लोग गाँव के बाहर तालाब किनारे स्थित सपही माई के स्थान को लीप पोतकर हर सोमवार दीया-बाती करने लगे। पहले गाँव वाले यह काम साल में एक बार नागपंचमी पर करते थे। सपही माई पहले एक परिवार की देवता थी और उस घर के एक कमरे में देवखुर बनी थी। अब नागराज के डर से सपही माई पूरे गाँव की देवी बन गई।

नागपंचमी के दिन कोबरा सांप को दूध लावा चढाकर पूजा करना संपेरों का उन्हें लेकर गाँव में घर-घर जाकर शुभदर्शन कराना और भिक्षा लेना ग्रामीण जीवन में साँप के महत्व को दर्शाता है। हिन्दू धर्म के प्रसिद्ध देवता शिवशंकर के गले में लिपटा नाग जिसके सिर पर नंदी गाय का खुर अंकित है श्रद्धा का प्रतीक है। धार्मिकता से जुडा होने के कारण नाग, नागिन और उससे जुडी हर गलत सही मान्यताओं को पर्याप्त महत्व मिला है। गाँव में संपेरे/मदारी जब नागों का खेल दिखाने आते तो खेल समाप्ति के बाद लोगो से कहते जाओ घर से कुछ अनाज पैसा लाओ नहीं तो नागराज सपने में आकर डराएगें। रास्ते में घेर लेंगे। लोग डर के मारे दान/भिक्षा देते थे।

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बालीवुड ने नाग खासकर इच्छाधारी नाग पर केन्द्रित फिल्में बनाकर भारी मुनाफा कमाया। सांप सिनेमा और समाज सभी एक दूसरे से बहुत गहरे जुड़े हैं। फिल्मों ने सांपों के प्रभाव को व्यापकता प्रदान की लेकिन अब ऐसी फिल्में कम बन रही है। विषैले साँपों के काटने पर आज भी डाक्टर के पास जाने के पहले लोग जादू मन्त्र करने वाले शोखा-ओझा व संपेरों के पास जाते है। कथा सम्राट प्रेमचन्द ने भी अपनी कहानी मंत्र के माध्यम से सांप के विष को झाड़ने का वर्णन किया था। ग्रामीण लोग ये जानते है कि जब किलहट पक्षी किसी खेत के उपर शोर मचाति हुए गोल-गोल घूमे तो नीचे जमीन पर सांप रेंग रहा होगा। जब किसी पेड़ से मेढ़क केक रोने की आवाज आए तो समझ लो सॉप ने उसे अपना शिकार बना लिया है। धान के खेतों में मछलियों को पकड़ते साँप, चूहो के शिकार में उनके बिलों में घुसते साँप, पक्षियों के अण्डों की चाह में पेड़ों पर चढ़ते सांप घास काटते किसानों के हँसिए में फँसते साँप खेत में राह घेर खड़े कोबरा सॉप, उनको मारने वाले विशेषज्ञ रामबदन काका यह सब कुछ गाँवों में बहुत समय से था और आज भी है।

और अंत में

सांपों पर केन्द्रित फिल्मों ने मनोरंजन और अंधविश्वास का ऐसा मिश्रण पेश किया कि सर्पों का एकदम नया पहलू सामने आया। दृश्य श्रव्य माध्यम के प्रभाव के कारण सांपों से जुड़ी मान्यताएं बडे़ ग्रामीण जनसमुदाय के मन-मस्तिष्क में व्यापकता में अंकित हो गयी। साँपों से हर वक्त सामना करती ग्रामीण जिंदगी उनके डर रोमांच, मनोरंजन, किस्से कहानियों को रोज ही कहती-सुनती और बुनती रहती हैं।

संदर्भ

सेन, मेहिली (2017) हौन्टिंग बॉलीवुड: जेंडर, जेनर, एंड द सुपरनेचुरल इन हिंदी कामार्सिअल सिनेमा, यूनिवर्सिटी ऑफ़ टेक्सास प्रेस, अमेरिका.
खूबचंदानी के (2016) स्नेक्स ऑन द डांस फ्लोर: बॉलीवुड, जेस्चर एंड जेंडर, इन द वेलवेट लाइट, डब्लूडब्लूडब्लू.यूटेक्सासप्रेसजर्नल्स.ओआरजी
राकेश कबीर जाने-माने कवि-कथाकार और सिनेमा के गंभीर अध्येता हैं।
3 COMMENTS
  1. बहुत ही सुंदर लेख आदरणीय , सांपों का वास्तविक जीवन और फिल्मी दुनिया में जिस प्रकार दर्शकों के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है बहुत ही अच्छे ढंग से उद्धृत किया है ।

  2. राकेश कबीर जी का यह आलेग केई मामलों में बेजोड़ है। नागों, सांपों से जुड़े कई मिथक, इतिहास के उन पृष्ठों की तरफ़ संकेत करते हैं जो भुला दिए गए हैं या जिन्हें मिसरीप्रजेंट किया गया है।
    राकेश कबीर जी ने इतिहास ,मिथक, सिनेमा और लोक मान्यता में नाग नागिनों से जुड़े क़िस्सों को अपनी तर्कशील और वैज्ञानिक दृष्टि से भी तोला है तथा कई तरह के मिथकों पर से झूठ के पर्दे को हटाया है । इस आलेख में नागवंशीय राजाओं के पराक्रम तथा उनका बौद्ध धर्म के प्रति लगाव भी रेखांकित किया गया है जो मानव के सर्पीकरण किये जाने के कई सचेत एवंजानबूझकर किए गए दुराग्रही प्रयासों पर भी समग्र चिन्तन की मांग भी करता है। ऐसे आलेखों की ज़रिए लोगों की आंख खोलने का जो प्रयास किया गया है उसके लिए गांव के लोग टीम को शत शत बधाइयां। राकेश कबीर जी को बहुत ही परीश्रम पूर्वक तैयार किए गए इस शोध पूर्ण आलेख के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद और बधाई तथा भविष्य के लिए मंगलकामनाएं!!! भवत्तु सब्ब मंगलङ!!!

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