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ग्राउंड रिपोर्ट

आये दिन पेपर होते हैं लीक, तो फिर सरकार किन लाखों लोगों को दे रही है नौकरियाँ

अब सवाल यह उठता है कि आए दिन पेपर निरस्त होते हैं, तो प्रदेश सरकार किन बेरोजगार युवाओं को नौकरी देने का दावा करती है। इन दावों के बावजूद, देश की बेरोजगारी दर 7.95 क्यों है? वहीं, आज के युवा पीएचडी व एमबीए करके भी फोर्थ क्लास की नौकरी के लिए अप्लाई कर रहे हैं। ऐसे में योगी सरकार का छह साल में छह लाख लोगों को नौकरी देने का दावा न विपक्ष को हज़म हो रहा है और न ही प्रदेश के युवाओं के गले से नीचे उतर रहा है, जो बीते कई सालों से नौकरी के लिए लेकर सड़क से सोशल मीडिया तक प्रदर्शन करते रहे हैं और कई बार पुलिस की लाठियों का शिकार भी बने हैं।

भारत में बेरोजगारी एक गंभीर मुद्दा है, जो देश की आधी से अधिक जनता को परेशान करती है। उन्हें दो तरह के दिक्कतें झेलनी पड़ती हैं। पहला दुख, उन्हें अपनी जरूरतों को पूरा नहीं कर पाने का होता है। दूसरा दुख, उन्हें शोषित महसूस कराता है। वे ऐसा महसूस करते हैं कि सरकार या समाज उनकी उपेक्षा कर रहे हैं या उनके साथ अन्याय हो रहा है। इस समस्या का समाधान करने के लिए सरकारों ने बहुत सारे योजनाएं बनाई हैं, पर उनमें से कई उन लोगों तक नहीं पहुंच पाती हैं, जिनको इनकी सबसे ज्यादा जरूरत होती है। वहीं, दूसरी तरफ देश में आए दिन पेपर लीक के मामले सामने आते हैं। सरकारी नौकरी के लिए युवा तीन-चार साल तक मेहनत करते हैं। लेकिन जब प्रतियोगी परीक्षाएं किसी कारण निरस्त हो जाती हैं और समय से भर्तियां नहीं निकलती हैं तो वह हताश हो जाते हैं। वहीं, यूपी सरकार बड़ा दावा करते हुए कहती है कि बीते एक महीने में प्रदेश में 11 हजार से अधिक युवाओं को सरकारी नौकरी दी गई है।

बीते जुलाई माह में ओडिशा में पेपर लीक होने के कारण जेई सिविल की मुख्य परीक्षा रद्द कर दी गई थी। ओएसएससी के चेयरमैन ने ट्वीट कर लोगों को इस बात की जानकारी दी। जेई सिविल की मुख्य परीक्षा रद्द होने के बाद 3 सितम्बर को दोबारा परीक्षा आयोजित कराई गई थी। यह पहला मामला नहीं है, जब परीक्षाओं को निरस्त कर युवाओं के भविष्य के साथ खिलवाड़ किया गया है।

पिछले कुछ सालों में भारत में प्रतियोगी परीक्षाओं की दुनिया में कई चिंताजनक घटनाएं हुई हैं। कोरोना महामारी के कारण कई परीक्षाओं को स्थगित या रद्द कर दिया गया। UPSC (सिविल सेवा परीक्षा) और NEET-PG जैसी परीक्षाओं में कई महीनों की देरी हुई। मीडिया रिपोर्ट्स के मानें तो योगी सरकार के साढ़े छह साल के कार्यकाल के दौरान आधा दर्जन से ज्यादा परीक्षाओं के प्रश्न-पत्र लीक हुए हैं। इनमें इंस्पेक्टर भर्ती से लेकर SSC के पेपर्स तक लीक होने का आरोप है। प्रदेश में मार्च 2017 में योगी सरकार बनने के चार माह बाद पहला प्रश्न-पत्र लीक हुआ था।

2017 की जुलाई में नहीं हो पाई थी दरोगा भर्ती परीक्षा

25 और 26 जुलाई 2017 को उत्तर प्रदेश पुलिस भर्ती एवं प्रोन्नति बोर्ड ने ऑनलाइन दारोगा भर्ती परीक्षा (सीबीटी) आयोजित की, लेकिन उससे पहले ही इसे स्थगित कर दिया गया। कारण था, वॉट्सऐप पर पेपर लीक होना। इसके बाद यूपी के उन तमाम अभ्यर्थियों ने मीडिया और सोशल मीडिया पर अपनी नाराजगी व्यक्त की थी। उत्तर प्रदेश पुलिस में दारोगा पद पर सीधी भर्ती के लिए रिक्त 3307 पदों पर 2017 में उत्तर प्रदेश पुलिस भर्ती एवं प्रोन्नति बोर्ड ने ऑनलाइन परीक्षा का फैसला किया था। ऑनलाइन परीक्षा 13 जुलाई से शुरू हुई थी, जो 31 जुलाई तक होनी थी। 3307 पदों में पुरुषों के लिए 2400 पद, महिलाओं के लिए 600 पद, पीएसी के प्लाटून कमांडर के लिए 210 पद और अग्निश्मन अधिकारी के 97 पद थे। इन 3307 पदों के लिए बीस लाख से ज्यादा युवाओं ने आवेदन किया था, जिनमें बोर्ड ने करीब नौ लाख आवेदकों को ऑनलाइन परीक्षा के लिए आमंत्रित किया था। दारोगा पद के लिए होने वाली ऑनलाइन परीक्षा के लिए प्रदेश के 22 जिलों में परीक्षा केंद्र बनाए गए थे। एक दिन में करीब साठ हजार आवेदक परीक्षा दे रहे थे। 25 और 26 जुलाई को 1.20 लाख आवेदकों को परीक्षा देनी थी, लेकिन यह निरस्त कर दी गई थी।

 

2018 की फरवरी में UPPCL पेपर हुआ था लीक

उत्तर प्रदेश पावर कॉर्पोरेशन लिमिटेड की ऑनलाइन भर्ती परीक्षा का पेपर फरवरी 2018 में लीक हुआ था। इस मामले में जौनपुर के रहने परमिंदर नाम के शख्स को गिरफ्तार भी  किया गया था। योगी सरकार ने इस मामले की जांच कराई थी। एसटीएफ की जांच रिपोर्ट में भर्ती परीक्षाओं में अनियमितता की बात सामने आने के बाद परीक्षाओं को रद्द किया गया था और इसके अलावा लापरवाही के आरोप में प्रमुख सचिव (ऊर्जा) आलोक कुमार ने विद्युत सेवा आयोग के अध्यक्ष एके सक्सेना और सचिव जीसी द्विवेदी को भी उनके पदों से निलंबित कर दिया गया था।

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जुलाई 2018 अधीनस्थ सेवा चयन बोर्ड का पेपर लीक

अधीनस्थ सेवा चयन आयोग ने 15 जुलाई 2018 को लोअर सबऑर्डिनेट के 641 पदों के लिए करवाई गई परीक्षा का पेपर भी लीक हुआ था। एसटीएफ की जांच में इसकी पुष्टि की थी। 14 विभागों में लोअर सबऑर्डिनेट के पदों के लिए 67,000 से ज्यादा अभ्यर्थियों ने आवेदन किया था।

सितंबर 2018 को नलकूप चालक परीक्षा लीक

उत्तर प्रदेश अधीनस्थ सेवा चयन आयोग द्वारा 2 सितंबर, 2018 को कराई गई नलकूप चालक (सामान्य चयन) परीक्षा-2016 की परीक्षा पेपर लीक हो गया था। इस मामले में मेरठ में एसटीएफ ने कुछ लोगों को गिरफ्तार किया था। इस परीक्षा में करीब 20,05,376 छात्रों ने इसके लिए आवेदन किया था। राज्य भर के 349 परीक्षा केंद्रों पर परीक्षा होनी थी।

अगस्त 2021 में PET परीक्षा का पेपर हुआ था लीक

अधीनस्थ सेवा चयन बोर्ड की ओर से कराई जा रही PET (Preliminary Eligibility Test) की प्रारंभिक परीक्षा का प्रश्न पत्र लीक हो गया था। पूरे प्रदेश के 75 जिलों में 70,000 सीसीटीवी कैमरों की निगरानी में परीक्षा कराई जा रही थी। लेकिन परीक्षा का प्रश्न पत्र आउट होने के बाद अधिकारियों के होश उड़ गए।

अगस्त 2021 बीएड प्रवेश परीक्षा पेपर लीक

उत्तर प्रदेश के 75 जिलों में 6 अगस्त 2021 को संयुक्त प्रवेश परीक्षा बीएड 2021-23 की परीक्षा आयोजित की गई। इस परीक्षा के की पहली शिफ्ट का पेपर होने के बाद चर्चा तेज हुई कि परीक्षाका पेपर लीक हो गया है। कुछ वॉट्सऐप ग्रुप पर पेपर वायरल होने लगा। हालांकि सरकार ने जांच कराई तो यह पेपर लीक का मामला फर्जी मिला।

11 सितंबर 2021 NEET 

मेडिकल की पढ़ाई के लिए होने वाली प्रवेश परीक्षा नेशनल एलिजिबिलिटी कम एन्ट्रेंस टेस्ट यानी NEET (UG) की परीक्षा से एक दिन पहले ही पेपर लीक के दावे किए जा रहे थे। पेपर 12 सितंबर को होना था। 11 सितंबर को कई ट्विटर यूजर दावा कर रहे थे कि NEET का क्वेश्चन पेपर लीक हो गया है। हालांकि, अधिकारियों ने पेपर लीक का खंडन करते हुए इसे फेक न्यूज बताया था। जांच में यह फर्जी पाया गया था।

बार-बार पेपर निरस्त होने से निराश होते हैं युवा

युवाओं को अपने लक्ष्य तक पहुँचने के लिए या अपने सपनों को पूरा करने का पहला पड़ाव परीक्षा होता है। जिसके आधार पर ही युवा बेहतर भविष्य के लिए अपनी आधारशिला रखता है। देश में बेरोजगारी की मार झेल रहे युवा सरकारी व प्राइवेट नौकरी की परीक्षा के लिए आवेदन करते हैं। उनके शहरों में परीक्षा केंद्र रहने के बावजूद उन्हें दूसरे शहरों में परीक्षा देने के लिए जाना पड़ता है। जिसके कारण परीक्षा देने वालों अभ्यर्थी को परीक्षा केंद्र दूर होने के चलते उनको कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है। छात्रों को परीक्षा के लिए एक दिन पहले घर से निकलना पड़ता है। छात्र बस और ट्रेन के द्वारा परीक्षा केंद्र पहुँचते हैं। कभी-कभार तो इन छात्रों को ट्रेन और बस की सुविधा भी नहीं मिल पाती है जिस कारण इनका एग्जाम भी छूट जाता है।

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कोई प्रतियोगी परीक्षा अगर किसी और शहर में होती है, तो सरकार इन छात्रों के लिए आने-जाने और खाने-पीने की सुविधा दे, ताकि ये अपने परीक्षा केंद्र पहुंचने में परेशानी न हो। परीक्षा सेंटर दूर होने की वजह से छात्र स्टेशनों पर ही रात गुजारने को मजबूर होते हैं। उनके पास खाने-पीने और रहने की सुविधा नहीं होती है। तमाम दिक्कतों को झेलने के बाद छात्र जब परीक्षा केंद पहुंचते हैं तो उनको पता चलता है कि पेपर लीक या निरस्त हो गया है, यह उनकी निराशा का कारण बनती है। वहीं, निरस्त हुआ पेपर जब दोबारा देना होता है तो उनके अंदर पहले जैसा उत्साह नहीं होता है। फार्म और परीक्षा फीस की भी दोबारा व्यवस्था करनी पड़ती है, जो एक मध्यवर्गीय परिवार के लिए बहुत मुश्किल होता है।

इन दिक्कतों के बीच बड़ा सवाल यह उठता है कि फॉर्म के नाम पर विभागों के पास जो लाखों-करोड़ों रुपये गए, उस धनराशी का क्या होता हैं? पेपर लीक होने के बाद आज तक यह धनराशी किसी भी अभ्यर्थी के अकाउंट में वापस आई? पेपर लीक हो या परीक्षा दी गई हो, दोनों स्थितियों में फायदा तो सरकारों और विभागों का ही होता है।

पेपर लीक होने का मामला एक बार का नहीं है, यह लगातार सामने आते रहते हैं। प्रतियोगी परीक्षाओं के पेपर लीक करने वाले कई गिरोह ऐसे हैं, जो हर बार यह अपराध करते हैं। उनकी गिरफ़्तारी भी होती है लेकिन पुलिस अंतिम कड़ी तक नहीं पहुंच पाती। अखबारों और मीडिया में पुलिस अफसरों के साथ आरोपियों की खबरें और बड़ी-बड़ी फोटो छपटी हैं। सम्बंधित आरोपियों के जेल में जाने के बाद यह मामला कहाँ चला जाता है? किसी को पता नहीं चलता है। पेपर लीक करने वाले मुख्य आरोपियों तक पुलिस नहीं पहुंच पाती और जो पकड़ में आते हैं, उन पर भी सख्त कार्रवाई नहीं होती। जब भी इस तरह की घटनाएं होती हैं तो बड़े स्तर पर विरोध-प्रदर्शन होते हैं। ऐसी घटनाओं को होने से रोकने के लिए कड़े सुरक्षा उपायों की मांग भी की जाती है लेकिन कुछ दिन बाद सब ठंडे बस्ते में चला जाता है।

योगी सरकार का छह लाख लोगों को नौकरी देने का दावा

केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने साल 2023 की शुरुआती में साल के अंत तक 10 लाख लोगों को सरकारी नौकरी देने का लक्ष्य रखा था। बेरोजगारी की समस्या से निपटने के लिए मोदी सरकार ने जून 2022 में सेंट्रल गवर्नमेंट के अधीन आने वाले विभागों में रिक्त पड़े 10 लाख पदों को भरने की घोषणा की थी। सरकार ने इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए पांच प्‍वाइंट का प्‍लान भी बनाया है। लक्ष्य को पूरा करने के लिए सरकार ने अक्‍टूबर में पहला वृहद रोजगार मेला आयोजित किया था। तब प्रधानमंत्री मोदी ने 75,000 युवाओं को नियुक्ति पत्र दिया था। दिसंबर 2022 में कार्मिक, लोक शिकायत एवं पेंशन राज्यमंत्री जितेंद्र सिंह ने राज्यसभा में बताया था कि रिक्तियों को मिशन मोड में भरा जा रहा है। रोजगार मेला के तहत अभी तक केंद्र सरकार ने विभिन्न मंत्रालयों, विभागों, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों, बैंकों आदि में लगभग 1,47 लाख नई नियुक्तियां की हैं। वहीं, सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) के आंकड़ों के अनुसार, जुलाई 2023 तक भारत में कुल बेरोजगारी दर 7.95 प्रतिशत है।

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वहीं, उत्तर प्रदेश की सरकार और उसे चलाने वाली पार्टी का दावा है कि मिशन रोजगार के तहत छह वर्ष में छह लाख बेरोजगार युवाओं को सरकारी नौकरी दी गई है।

अब सवाल यह उठता है कि आए दिन पेपर निरस्त होते हैं, तो प्रदेश सरकार किन बेरोजगार युवाओं को नौकरी देने का दावा करती है। इन दावों के बावजूद, देश की बेरोजगारी दर 7.95 क्यों है? वहीं, आज के युवा पीएचडी व एमबीए करके भी फोर्थ क्लास की नौकरी के लिए अप्लाई कर रहे हैं। ऐसे में योगी सरकार का छह साल में छह लाख लोगों को नौकरी देने का दावा न विपक्ष को हज़म हो रहा है और न ही प्रदेश के युवाओं के गले से नीचे उतर रहा है, जो बीते कई सालों से नौकरी के लिए लेकर सड़क से सोशल मीडिया तक प्रदर्शन करते रहे हैं और कई बार पुलिस की लाठियों का शिकार भी बने हैं।

सरकारी नौकरी आज के समय में युवाओं के द्वारा एक बेहतर करियर माना जाता है। वहीं, सरकारी नौकरी के सपने को पूरा करने के लिए लोग अपनी मेहनत और काबिलियत पर प्रतियोगी परीक्षा पास करते हैं और अपॉइंटमेंट लेटर का इंतजार करने लगते हैं, लेकिन भाजपा सरकार ने अब इस प्रक्रिया को भी अपने राजनीतिक हित में बनाने का प्रयास शुरू कर दिया है। सरकारी नौकरी ज्वाइन कर रहे युवाओं को सीएम योगी खुद अपने मंच पर बुलाकर नियुक्ति पत्र का वितरण कर रहे है। मानों वह युवाओं पर एहसान कर रहे हों और वह खुद सबको बुलाकर नौकरी दे रहे हों।

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अखबारों और सोशल मीडिया पर विज्ञापनों के माध्यम से एक दिन पहले से ही प्रचार करवाया जाता है, ऐसे जैसे सरकार जनता की भलाई के जी-जान एक कर रही हो, लेकिन वास्तविकता सभी को मालूम है कि नौकरी उनको अपनी काबिलियत से मिल रही है।

युवाओं को अच्छे दिन और नए रोज़गार के अवसर का सपना दिखाने वाली सूबे की योगी सरकार अब प्रदेश की सबसे बड़ी समस्या को अपनी उपलब्धि के तौर पर पेश कर रही है। पूरे उत्तर प्रदेश और इसके बाहर दिल्ली तक में लाखों युवाओं को नौकरी देने के बड़े-बड़े विज्ञापन, पोस्टर लगवाकर युवाओं के अच्छे दिन की बात करती है, लेकिन सच तो यह कि रोजगार के नाम पर पकौड़े तलने की बात करती है, जो युवाओं के भविष्य के साथ खिलवाड़ है।

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