योगेन्द्र यादव और सुहास पाल्शीकर ने केंद्र सरकार को पत्र लिख कर एनसीईआरटी सलाहकार बोर्ड से अपना नाम हटाने की मांग की
कर्नाटक राज्य में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद एक बार फिर से राजनीतिक गतिविधियाँ तेज हो चुकी हैं। कांग्रेस ने अपने चुनावी एजेंडे में बजरंग दल को बैन करने की बात की थी, जिसे लेकर चुनाव में भाजपा ने खूब शोर-शराबा मचाया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस के बजरंग दल को बैन करने के मुद्दे पर बजरंग दल को बजरंग बली से जोड़ते हुए हिन्दू-मुस्लिम ध्रुवीकरण की भरपूर कोशिश की थी, पर जनता ने भाजपा के प्रस्ताव को ख़ारिज करते हुए कांग्रेस को पूर्ण बहुमत से सत्ता देने का काम किया था। अब जबकि कांग्रेस के सिद्धारमैया कर्नाटक के मुख्यमंत्री बन चुके हैं तब उन्होंने कर्नाटक में भाजपा नीति के खिलाफ सामाजिक न्याय के मुद्दे को आगे बढ़ाते हुए भाजपा के भगवा प्रतीकों को हटाने की शुरुआत कर दी है।
[bs-quote quote=”देश के अन्दर गाँधी की विचारधारा को भी भाजपा लगातार ख़ारिज करने और पाठ्यक्रम के माध्यम से गोडसे को भी राष्ट्रभक्त के रूप में आगे बढ़ाने का प्रयास कर रही है। भारत जैसे बहुलता और वैचारिक विविधता वाले देश में भाजपा जिस तरह से अपनी विचारधारा की राजनीति कर रही है, उस पर कर्नाटक ने अब नई बहस छेड़ दी है। कर्नाटक कांग्रेस ने हेडगेवार को पाठ्यपुस्तक से बाहर करने की पहल कर भाजपा की एजेंडावादी सोच और भगवा प्रतीकों को शिक्षा के माध्यम से आगे बढ़ाने की पहल पर पलटवार करने का काम किया है।” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]
इस पहल के तहत पाठ्यक्रम में बदलाव की पहल शुरू की जा चुकी है। सरकार बनाने के बाद कांग्रेस ने स्कूल की किताब का पाठ्यक्रम खंगाला तो उसके निशाने पर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के संस्थापक केशव बलिराम हेडगेवार आ गए। कांग्रेस के नेता और कर्नाटक के बहुत से लेखकों ने पाठ्यक्रम से हेडगेवार के भाषणों को हटाकर स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और समाज सुधारकों को पाठ्यक्रम में शामिल किये जाने की मांग की है। हेडगेवार के भाषणों को लेकर कांग्रेस ने कहा कि हेडगेवार देश की ऐसी शख्सियत नहीं हैं, जिनके बारे में आने वाली पीढ़ी को पढ़ाया जाए। कांग्रेस का कहना है कि हेडगेवार अंग्रेजों को पत्र लिखकर माफ़ी मागते थे और उनसे पेंशन लेते थे। कांग्रेस की इस पहल पर भाजपा ने विरोध की तलवार भले ही खींच ली है, पर यह भी सच है कि पाठ्यक्रम पर सियासत की शुरुआत भी भाजपा ने ही की थी।
भाजपा ने 2014 में केंद्र में अपनी सरकार बनने के बाद इस दिशा में कदम बढ़ाते हुए अपनी राजनीतिक विचारधारा को पाठ्यक्रम पर थोपते हुए विचारधारात्मक स्वतंत्रता के अध्याय को पाठ्यपुस्तकों से हटाना शुरू कर दिया था। पाठ्यक्रम से भाजपा ने मुगलकालीन इतिहास को खत्म करने का उपक्रम शुरू कर दिया। एनसीआरटी की 11वीं और 12वीं की पाठ्यपुस्तक से ‘लोकतंत्र और बहुलतावाद’ का अध्याय हटा दिया गया। भारत विविधिता और बहुलता का देश है, पर भाजपा हर संभव तरीके से देश की बहुलता के खिलाफ अपने संघीय एजेंडे और मनुवादी अवधारणा को पाठ्यक्रम के माध्यम से आगे बढ़ाने का प्रयास किया। देश के अन्दर गाँधी की विचारधारा को भी भाजपा लगातार ख़ारिज करने और पाठ्यक्रम के माध्यम से गोडसे को भी राष्ट्रभक्त के रूप में आगे बढ़ाने का प्रयास कर रही है। भारत जैसे बहुलता और वैचारिक विविधता वाले देश में भाजपा जिस तरह से अपनी विचारधारा की राजनीति कर रही है, उस पर कर्नाटक ने अब नई बहस छेड़ दी है। कर्नाटक कांग्रेस ने हेडगेवार को पाठ्यपुस्तक से बाहर करने की पहल कर भाजपा की एजेंडावादी सोच और भगवा प्रतीकों को शिक्षा के माध्यम से आगे बढ़ाने की पहल पर पलटवार करने का काम किया है।
एनसीईआरटी की पाठ्य में हुए फेरबदल के विरोध में योगेन्द्र यादव और सुहास पाल्शीकर ने 9 जून को केंद्र सरकार को पत्र लिख कर अपना नाम कक्षा 9 से 12 तक तक की राजनीतिशास्त्र की पुस्तकों के सलाहकार बोर्ड में से हटाने की मांग की है। इसे लेकर राजनीतिक गलियारे में एक नई बहस छिड़ गई है। इस बात को लेकर भी आश्चर्य जताया जा रहा है कि 2014 में भाजपा की सरकार बनने के बाद इनके नाम को क्यों कर नहीं हटाया गया था? इसे लेकर एनसीआरटी ने अपना जवाब भी जारी किया कि उसने दोनों लोगों के अकादमिक योगदान का सम्मान करते हुए किताबों में उनका नाम बरकरार रखा।
भाजपा ने पाठ्यक्रम नीति के माध्यम से एनसीईआरटी की किताबों से हिंदी साहित्य के साथ इतिहास और नागरिक शास्त्र के पाठ्यक्रमों में भी बदलाव किया है। ख़ासतौर पर मुगलकाल से संदर्भित हिस्सों को पाठ्यक्रम से हटाया गया है। राजा और इतिहास: द मुगल कोर्ट्स (16वीं और 17वीं सदी) तथा थीम्स ऑफ़ इंडियन हिस्ट्री-पार्ट-2, अकबरनामा और बादशाह नामा जैसे विषयों को हटाया जा रहा है।
यह भी पढ़ें…
इसके साथ नागरिक शास्त्र की किताब से विश्व राजनीति में अमेरिकी आधिपत्य और शीत युद्ध काल जैसे अध्यायों को हटा दिया गया है। पॉलिटिक्स इन इंडिया सिंस इंडिपेंडेंस से राइज ऑफ़ पॉपुलर मूवमेंट्स और एरा ऑफ़ वन पार्टी डोमिनेंस को भी हटा दिया गया है। डेमोक्रेटिक पॉलिटिक्स-2 से लोकतंत्र और विविधता, लोकप्रिय संघर्ष और आंदोलन, लोकतंत्र की चुनौतियाँ जैसे पाठ भी हटा दिए गए हैं।
भाजपा ने पाठ्यपुस्तक से विविधता के पाठ्यक्रम को हटाने के साथ कुछ नई पहल भी की है। जिसमें गोरखपुर विश्वविद्यालय में लोकप्रिय साहित्य जिसे साहित्य की दुनिया लुगदी साहित्य के रूप में भी चिन्हित करती रही हो, को एमए हिंदी के चौथे सेमेस्टर के पाठ्यक्रम में शामिल किया जा रहा है। वैकल्पिक विषय के तौर लागू लोकप्रिय साहित्य के इस पेपर में इब्ने शफी, गुलशन नंदा, वेदप्रकाश शर्मा का वर्दी वाला गुंडा और हरिवंश राय बच्चन की मधुशाला को शामिल किया गया है। भाजपा जिस चाल से अपनी राजनीति को आगे बढ़ाने का प्रयास कर रही थी अब उसी चाल से कांग्रेस ने उस पर हमला करके राजनीति को नई गर्माहट दे दी है।
कुमार विजय गाँव के लोग डॉट कॉम के एसोसिएट एडिटर हैं।
[…] पाठ्यक्रम पर सियासत, कर्नाटक को भाजपा … […]
[…] पाठ्यक्रम पर सियासत, कर्नाटक को भाजपा … […]