Saturday, July 27, 2024
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वाराणसी: सम्पूर्णानंद विवि में ज़मीन नापने पहुँचे अफसरों का विरोध, छात्र नेता बोले- सरकार की मंशा ठीक नहीं

वाराणसी। सम्पूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में पढ़ाई-लिखाई का माहौल उस समय हंगामा और नारेबाजी में बदल गया जब राजस्व विभाग की टीम परिसर की दो एकड़ जमीन का पैमाइश करने पहुँची। इस ज़मीन पर बिजली विभाग का चौकाघाट उपकेंद्र बनाने की बातचीत चल रही है। छात्रों की नाराजगी देख पैमाइश करने आए बिजली विभाग के अधिकारी […]

वाराणसी। सम्पूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में पढ़ाई-लिखाई का माहौल उस समय हंगामा और नारेबाजी में बदल गया जब राजस्व विभाग की टीम परिसर की दो एकड़ जमीन का पैमाइश करने पहुँची। इस ज़मीन पर बिजली विभाग का चौकाघाट उपकेंद्र बनाने की बातचीत चल रही है। छात्रों की नाराजगी देख पैमाइश करने आए बिजली विभाग के अधिकारी और विश्वविद्यालय के शिक्षक बैरंग लौट गए।

बताया जा रहा है कि पिछले वर्ष विश्वविद्यालय के तत्कालीन कुलपति प्रो. हरेराम त्रिपाठी ने शासन के निर्देश पर बिजली विभाग को यहाँ की दो एकड़ जमीन पट्टे पर दे दिया था। इस पर 220 केवी का विद्युत उपकेंद्र बनाए जाने की योजना है।

इस मामले को लेकर छात्र नेता डॉ. साकेत शुक्ला ने बताया कि वर्तमान सरकार की मंशा ठीक नहीं है। सरकार को यह समझना चाहिए कि समाज में शिक्षा का अलग ही महत्व होता है। राजा-महाराजाओं ने इस विधा के लिए ज़मीनें दान की हैं। लेकिन वर्तमान सरकार और प्रशासन अब इन ज़मीनों को छिनने का काम कर रहे हैं।

डॉ. साकेत ने कहा कि प्रो. हरेराम त्रिपाठी का कोई अधिकार ही नहीं था कि विश्वविद्यालय की ज़मीन को कार्य-परिषद से विमर्श किए बगैर किसी को भी दे दे। विवि का कोई भी एक अधिकारी खुद से कोई भी ठोस निर्णय नहीं ले सकता। इसके लिए उसे बकायदा कार्य-परिषद में विचार-विमर्श करना पड़ेगा।

कार्य-परिषद में मौजूद कुलपति, रजिस्ट्रार, संकायाध्यक्ष, क्षेत्रीय विधायक, छात्र नेता सहित विवि के टॉपर स्टूडेंट्स शामिल होते हैं। बैठक में जब तक यह लोग अपनी रज़ामंदी न दें, तब तक सम्बंधित कार्य अमल में नहीं लाया जा सकता।

बिजली विभाग के अधिकारी और विश्वविद्यालय के शिक्षक, राजस्वकर्मियों के साथ जिस समय जमीन की पैमाइश करने पहुँचे थे, उस समय कुलपति प्रो. बिहारी लाल शर्मा लखनऊ में थे। पैमाइश की जानकारी उन्हें नहीं थी। बनारस आने पर धरनारत छात्रों से उन्होंने मुलाकात कर इस गम्भीर मसले पर विचार-विमर्श किया।

डॉ. साकेत के अनुसार, 1985-90 के बीच चौकाघाट उपकेंद्र को एग्रीमेंट के तहत दो बिस्वा ज़मीन दी गई थी। उसी के अनुसार, विभाग हमें बिजली भी देता रहेगा। अब विभाग अपने उपकेंद्र का दायरा बढ़ाना चाहता है तो वह कहीं और ज़मीन देख ले।

स्वास्थ्य पर पड़ेगा असर

चौकाघाट उपकेंद्र के पीछे का दायरा बढ़ेगा तो इससे परिसर में मौजूद लोगों को दिक्कतें होंगी। परिसर के जिस स्थान पर ज़मीन कब्जा करने अधिकारी पहुँचे थे, वहाँ विश्वविद्यालय के चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी रहते हैं, छात्रावास है। अगर उपकेंद्र बनता भी है तो रहवासियों को तरह-तरह की समस्याएं होंगी। उसमें स्वास्थ्य की समस्याएँ विशेष हैं। विद्युत तरंगों से हर दिन सावधान रहने की जरूरत पड़ती है।

इस मामले को लेकर पिछले वर्ष भी यहाँ के शिक्षकों, छात्रों और कर्मचारियों ने लगभग डेढ़ महीने तक धरना-प्रदर्शन किया था। उसके बाद से मामला शांत था। छात्रों का आरोप है कि राजस्वकर्मी सूचना दिए बगैर पैमाइश करने चले आए थे।

रेलवे विभाग से माँगे ज़मीन

छात्र नेताओं ने कहा कि सरकार अपनी मंशानुरूप जगह-जगह ज़मीन अधिग्रहण कर रही है। कभी योजनाओं के नाम पर तो कभी विकास के नाम पर। किसानों के बाद अब स्कूल-कॉलेजों की ज़मीनों पर सरकार की शह पर प्रशासन अपनी निगाहें टेढ़ी कर रहा है। नियम-कानून को न मानते हुए संस्कृत विश्वविद्यालय में ज़मीन पैमाइश करना सरकार की हठधर्मिता ही है। हम इसका विरोध करते रहेंगे।

छात्र नेताओं ने कहा कि चौकाघाट उपकेंद्र को अगर अपना दायरा बढ़ाना है, तो वह रेलवे विभाग के पास जाए। उनसे ज़मीनें माँगे। संस्कृत विश्वविद्यालय की ज़मीन से छेड़छाड़ ठीक नहीं है।

गाँव के लोग
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