Friday, July 5, 2024
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नहीं सुधर रही रेल की चाल, रेलवे मंत्री सफाई में दे रहे हैं सुरक्षा का हवाला

वाराणसी। केंद्रीय रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने बीते शुक्रवार को राज्यसभा में कहा कि देश के विभिन्न स्टेशनों और ‘हॉल्ट’ पर रेलगाड़ियों का ठहराव समाप्त किए जाने का कोविड महामारी से कोई सम्बंध नहीं है। यह फैसला पूरी तरह से रखरखाव एवं सुरक्षा से जुड़ा हुआ है। महामारी कोरोनो के दौरान देश की रेल यातायात […]

वाराणसी। केंद्रीय रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने बीते शुक्रवार को राज्यसभा में कहा कि देश के विभिन्न स्टेशनों और ‘हॉल्ट’ पर रेलगाड़ियों का ठहराव समाप्त किए जाने का कोविड महामारी से कोई सम्बंध नहीं है। यह फैसला पूरी तरह से रखरखाव एवं सुरक्षा से जुड़ा हुआ है।

महामारी कोरोनो के दौरान देश की रेल यातायात व्यवस्था केंद्र सरकार द्वारा ठप कर दी गई थी। रेल संचालन पाँच महीने बाद धीरे-धीरे वापस भले ही शुरू कर दिया गया, पर अब दो साल से ज्यादा समय बीत जाने के बावजूद रेल व्यवस्था पूरी तरह से पटरी पर नहीं आ सकी है।

यह बेवजह नहीं है कि रेल मंत्री को रेलवे यात्रा की अव्यवस्था को लेकर बयान देना पड़ रहा है। रेलवे के वर्तमान स्थिति को लेकर यात्रियों के मन में भी एक आक्रोश भरा हुआ है।

इस वर्ष जनवरी माह में ही खराब मौसम और अलग-अलग जोन में चल रहे पटरियों की मरम्मत एवं निर्माण कार्य के चलते भारतीय रेलवे ने 618 ट्रेनों को को रद्द किया था। कैंसिल होने वाली ट्रेनों में पैसेंजर, मेल और एक्सप्रेस गाड़ियाँ शामिल रहीं।

मार्च माह में होली त्योहार को लेकर लगभग 122 ट्रेनों को रद्द किया गया था।

जून माह में ओडिशा के बालासोर में हुए भीषण रेल हादसे के बाद करीब 90 ट्रेनों को रद्द किया गया जबकि 46 ट्रेन के मार्ग परिवर्तित किये गए। इसके साथ ही 11 ट्रेनों को उनके गंतव्य से पहले ही रोक दिया गया था। चक्रवात बिपरजॉय के कारण 30 ट्रेनों को कैंसिल किया गया।

जुलाई माह में उत्तर रेलवे ने क्षेत्र के विभिन्न हिस्सों में भारी बारिश होने के चलते करीब 17 ट्रेन रद्र कर दी गईं और अन्य 12 के मार्ग परिवर्तित कर दिए गए थे।

अक्टूबर माह में आंध्र प्रदेश में हुए ट्रेन हादसे के कारण 18 ट्रेनें कैंसिल कर दी गई थीं। 22 ट्रेनों का रूट डायवर्ट किया गया और सात ट्रेनें आंशिक रूप से रद्द की गई थी। यात्रियों के लिए रेल प्रशासन ने बस की व्यवस्था की थी।

नवम्बर माह में छठ पूजा के लिए चलाई गई ट्रेनों को अचानक कैंसिल कर दिया गया था। इस बावत यात्रियों का आरोप था कि ट्रेन रद्द करने की अनाउंसमेंट अचानक कर दी गई। पंजाब में जब लोग काउंटर पर पहुँचे तो वहाँ कोई रेल कर्मी मौजूद नहीं था। आरोप लगाया गया था कि टिकट के पैसे भी वापस नहीं किए गए।

रेल यात्रियों की ऐसी ही समस्याओं के बाबत एनबीटी ने भी अपनी रिपोर्ट दी थी। रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय रेलवे में यात्रियों की संख्या में लगातार गिरावट आ रही है। इसके साथ ही रेल में सफर करने वाले यात्रियों की संख्या अब तक प्री-कोविड लेवल (कोरोना काल के पहले) में नहीं पहुँच पाई है। साल 2022-23 में यात्रियों की संख्या ‘प्री-कोविड पीरियड’ से 24 फीसदी कम है।

केंद्रीय मंत्रालय ने पिछले वर्ष की तुलना में रेल यात्री और माल ढुलाई, दोनों के राजस्व में 9% की वृद्धि का अनुमान बताया है। बावजूद इसके समयानुसार ट्रेन का आरक्षित न होना, अचानक कैंसिलेशन, ट्रेन की लेटलतीफी की समस्याओं में गिरावट नहीं दर्ज की गई है।

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रेलवे के आँकड़े बताते हैं कि बीते वित्त वर्ष की पहली छमाही में मंत्रालय ने रेल गति पर तीन गुना स्थायी प्रतिबंध जोड़ दिया था।

भारतीय रेलवे इस समय पूरे देश में हाई-स्पीड और सेमी हाई-स्पीड ट्रेनें चलाने की योजना बना रहा है। बावजूद इसके मंत्रालय की गाड़ियों की स्पीड पर अंकुश बढ़ाता जा रहा है।

वहीं, अमर उजाला की एक रिपोर्ट के अनुसार, बीते वित्त वर्ष की पहली छमाही में ही रेलवे का लक्ष्य था कि स्थाई और अस्थाई गति प्रतिबंधों को कम करे, लेकिन क्षेत्रीय अंचलों ने इसमें 653 नए प्रतिबंध जोड़ दिए जिसमें सिर्फ 184 हटाए हैं। वर्तमान में रेलवे में 7,000 से अधिक प्रतिबंध हैं। स्थाई गति प्रतिबंध आमतौर पर तीखे मोड़ या क्रॉसओवर के निकट आने वाले क्षेत्रों में लगाए जाते हैं। इसके अलावा ऐसे क्षेत्र जहाँ पटरी के पास कोई भवन होते हैं या जहाँ पैदल यात्रियों आवागमन ज्यादा होता है। लेवल क्रॉसिंग भी इन प्रतिबंधों का एक प्रमुख कारण है, हालांकि रेलवे ने अपने ब्रॉड-गेज नेटवर्क पर ऐसे अधिकांश क्रॉसिंग को समाप्त कर दिया है।

यात्रियों की इन समस्याओं से इतर, भारतीय रेल लगातार नई-नई ट्रेनों का विस्तार कर रहा है। वंदे भारत इसी का हिस्सा है। अब तक भारत में 14 वंदे भारत पटरियों पर दौड़ रहे हैं। रेलवे से मिली जानकारी के मुताबिक, वंदे भारत के लिए 160 किमी. प्रति घंटे की गति तब तक सम्भव नहीं होगी, जब तक कि पर्याप्त बुनियादी ढाँचा नहीं होगा।

वहीं, मंत्रालय दिल्ली-मुम्बई और दिल्ली-हावड़ा मार्गों पर संवेदनशील हिस्सों में चारदीवारी लगाने पर विचार कर रहा है। ये मुद्दा रेलवे बोर्ड के शीर्ष अधिकारियों द्वारा उठाया गया था और मंत्रालय ने इस वित्त वर्ष में लगाए गए सभी प्रतिबंधों की समीक्षा शुरू कर दी है। अफसरों को इन प्रतिबंधों को हटाने में तेजी लाने के लिए भी कहा गया है।

रेलवे विस्तारीकरण के दूसरी ओर, एक अलग तस्वीर सामने आ रही है। वित्त वर्ष 2022-23 में रेल यात्रियों की संख्या में लगातार गिरावट आई है। वित्त वर्ष 2022-23 में फरवरी तक ट्रेन से सफर करने वाले यात्रियों की संख्या में आई गिरावट हैरान करने वाली है। वित्त वर्ष 2019-20 के मुकाबले इस वित्त वर्ष में रेल यात्रियों की संख्या में 1815 करोड़ की कमी आई है। रेलवे के अतिरिक्त बजटीय संसाधन 2021 से 2023 में 79% प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है। इन वित्तीय वर्षों में शुद्ध राजस्व भी आठ प्रतिशत घटा है।

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परिचालन अनुपात यातायात आय और कार्यशील व्यय (जैसे ईंधन और वेतन) के अनुपात को दर्शाता है। उच्च अनुपात अधिशेष उत्पन्न करने की अकुशलता को दर्शाता है। बजट दस्तावेज में प्रस्तुत वास्तविक आँकड़ों के अनुसार, 2021-22 में परिचालन अनुपात 107.4% था। इसका तात्पर्य यह है कि 2021-22 में रेलवे ने यातायात संचालन से 100 रुपये कमाने के लिए 107 रुपये खर्च किए।

पीआरएस इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, देश के पूर्व-मध्य, पूर्वी तट, उत्तर-मध्य, दक्षिण-पूर्व मध्य, दक्षिण-पूर्वी, पश्चिम मध्यम भागों में ट्रेनों का परिचालन घटा है।

रेल यात्रियों की संख्या में आ रही इस गिरावट के पीछे कई कारक हैं। रेल किराए में लम्बे समय से कोई कटौती नहीं की गई है। कोरोना के समय वरिष्ठ नागरिकों को किराए में मिलने वाली छूट को भी खत्म कर दिया गया। रेल किराए पर लगने वाले डायनामिक फेयर (इस व्यवस्था के तहत मांग के आधार पर टिकट का बेस फेयर तय किया जाता है) के कारण लोगों को रेल टिकटों पर ऊँची कीमत चुकानी पड़ती है।

कई बार को रेल किराया फ्लाइट टिकट के बराबर हो जाती है। ऐसी स्थिति में लोग रेल के मुकाबले फ्लाइट टिकट का चुनाव करना बेहतर समझते हैं। खासकर प्रीमियम ट्रेनों का किराए को देखते हुए लोग समय को बचाने के लिए फ्लाइट से सफर करना बेहतर मानते हैं। इतना ही नहीं जिस तरह से पिछले दो-तीन सालों से देश में एक्सप्रेसवे और हाईवे का जाल बिछ रहा है, लोग रेल के मुकाबले सड़क यात्रा करना किसी के लिए बेहतर है तो किसी के लिए मजबूरी। रेल की होती कमी और हाईवे का जाल लोगों की जेब काट रहा है।

रेलवे ने कथित तौर पर ‘मिशन रफ्तार’ के तहत निर्धारित लक्ष्यों को पूरा करने की समय सीमा को दो साल के लिए टाल दिया है। योजना के तहत, मंत्रालय का लक्ष्य मेल और एक्सप्रेस ट्रेनों की औसत गति को बढ़ाकर 75 किमी प्रति घंटे और मालगाड़ियों को 50 किमी प्रति घंटे तक करना है। बीते अक्टूबर तक मालगाड़ियों की औसत गति पिछले साल की तुलना में 16 फीसदी अधिक थी।

मंत्रालय के अनुमान के मुताबिक, मालगाड़ियों की औसत गति 19 किमी प्रति घंटे के करीब है, जिसमें यार्डिंग और स्टेबलिंग समय शामिल है। इस बीच, ढुलमुल निगरानी के कारण कई अस्थायी गति प्रतिबंध लगाए गए हैं। एक महीने से अधिक पुराने इस तरह के प्रतिबंधों की एक बड़ी संख्या को रेलवे नेटवर्क पर लंबित छोड़ दिया गया है।

सब अर्बन और नॉन सब अर्बन कैटेगरी में बंटी रेल यात्रियों की संख्या में लगातार कमी आ रही है। सब अर्बन सर्विसेज में छोटी दूरी वाली (150 किमी से कम दूरी) ट्रेनें आती हैं। साल 2022-23 में कोलकाता, चेन्नई, मुम्बई सब अर्बन सेक्शन में यात्रियों की संख्या 858 करोड़ रही, जो साल 2029-20 के मुकाबले 20 फीसदी कम है। वेस्टर्न जोन के सब अर्बन ट्रैफिक में सबसे अधिक गिरावट देखने को मिली। वहीं सेंट्रल जोन के सब अर्बन ट्रैफिक में 127 करोड़ की कमी आई। इसी तरह से साउथ जोन में 85 करोड़ की कमी आई है। नॉन सब अर्बन जोन की बात करें तो नॉर्दन जोन में सबसे ज्यादा की गिरावट आई है। इन जोन में साल 2019-20 के मुकाबले इस वित्त वर्ष में 176 करोड़ कम रेल यात्रियों ने सफर किया।

केंद्रीय रेल मंत्री वैष्णव ने कहा है कि जनसुरक्षा एवं अन्य जरूरतों के मद्देनजर रेल पटरियों के रखरखाव की जरूरत होती है और उसे ध्यान में रखते हुए यह कठिन फैसला लिया गया है। उनके अनुसार, इस फैसले से यात्रियों को असुविधा हुई है लेकिन विभिन्न जरूरतों के मद्देनजर यह फैसला आवश्यक था।

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