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निजी दुखों को सामाजिक संघर्ष में बदलते हुए संगीता कुशवाहा लिख रही हैं नई इबारत

मूलरूप से कुशीनगर की रहनेवाली संगीता कुशवाहा अब देवरिया जिले के मलवाबर गाँव की एक अपरिहार्य उपस्थिति हैं। मुसहर टोली के नजदीक और खनवा नदी के तट पर स्थित प्रेरणा केंद्र का संचालन पूरी तरह संगीता जी के जिम्मे है और उन्होंने इसे किस खूबसूरती से चलाया है इसे आस-पास के सभी निवासियों के मन […]

मूलरूप से कुशीनगर की रहनेवाली संगीता कुशवाहा अब देवरिया जिले के मलवाबर गाँव की एक अपरिहार्य उपस्थिति हैं। मुसहर टोली के नजदीक और खनवा नदी के तट पर स्थित प्रेरणा केंद्र का संचालन पूरी तरह संगीता जी के जिम्मे है और उन्होंने इसे किस खूबसूरती से चलाया है इसे आस-पास के सभी निवासियों के मन में उनके प्रति मौजूद सम्मान भाव से देखा और आँका जा सकता है। बेशक उन्होंने इसके लिए जीवन एक दशक यहाँ खर्च किए। उनका निजी जीवन त्रासदीपूर्ण है जब पति दो बेटियों के जन्म के बाद घर से भाग खड़ा हुआ लेकिन इसके बावजूद संगीता जी ने अपने असहाय सास-ससुर की आजीवन देखभाल की। एक यात्रा के दौरान वे विद्या भूषण रावत के संपर्क में आईं और उन्होंने प्रेरणा केंद्र की ज़िम्मेदारी संभाल ली। अपने निजी दुखों को भूलकर उन्होंने समाज के सर्वाधिक वंचित समुदाय के संघर्षों के साथ अपने जीवन को जोड़ दिया। स्त्रियॉं को स्वावलंबी बनाने के लिए उन्होंने बहुत काम किया। प्रेरणा केंद्र में उनके साथ उनकी दोनों बेटियाँ रिया और सिमरन भी रहती हैं। दोनों अपनी माँ की ही तरह कर्मठ और निर्भीक हैं। देखिये एक ऐसी स्त्री की कहानी उसी की ज़बानी जिसने किसी भी बुरे हालात में स्वयं को टूटने नहीं दिया और अपनी भूमिका को बहुत विस्तार दिया।

 

गाँव के लोग
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