Tuesday, December 3, 2024
Tuesday, December 3, 2024




Basic Horizontal Scrolling



पूर्वांचल का चेहरा - पूर्वांचल की आवाज़

होमविचारशराबबंदी से अधिक जरूरी है दहेजबंदी (डायरी 17 नवंबर, 2021) 

इधर बीच

ग्राउंड रिपोर्ट

शराबबंदी से अधिक जरूरी है दहेजबंदी (डायरी 17 नवंबर, 2021) 

बचपन अलहदा था। अनेकानेक विचार उमड़ते-घुमड़ते रहते थे। हिंदी से बहुत अधिक लगाव नहीं था। लेकिन बिहार के मगध के पटना के एक गांव में एक मवेशी पालक के घर में जन्मने का मतलब ही था कि हिंदी अनिवार्य भाषा थी। स्कूल में भी हिंदी पर बहुत अधिक ध्यान दिया जाता था। हैंडराइटिंग इतनी खराब […]

बचपन अलहदा था। अनेकानेक विचार उमड़ते-घुमड़ते रहते थे। हिंदी से बहुत अधिक लगाव नहीं था। लेकिन बिहार के मगध के पटना के एक गांव में एक मवेशी पालक के घर में जन्मने का मतलब ही था कि हिंदी अनिवार्य भाषा थी। स्कूल में भी हिंदी पर बहुत अधिक ध्यान दिया जाता था। हैंडराइटिंग इतनी खराब कि अपनी ही लिखावट समझ में नहीं आती थी। मार भी पड़ती थी, इसके लिये। लेकिन पढ़ना तो था ही। तो होता यह था कि हिंदी की कक्षा में जब लोकोक्तियां पढ़ायी जातीं तब दिमाग की घंटी बजने लगती। एक लोकोक्ति थी– खेत खाए गदहा, मार खाए जोलहा। इस लोकोक्ति में गदहा शब्द तो समझ में आता था, लेकिन जोलहा का मतलब समझ के बाहर था। ऐसी ही लोकोक्ति थी कि धोबी का गदहा, न घर का न घाट का। ये दो लोकोक्तियां सवाल बहुत पूछती थीं उन दिनों। जोलहा और धोबी कौन होते हैं? यही पूछा था अपने शिक्षक से। शिक्षक थे अजीत श्रीवास्तव। वैसे तो वे गणित के शिक्षक थे, लेकिन ऑलराउंडर थे। हिंदी और संस्कृत भी पढ़ा दिया करते थे। उन्होंने कहा कि जोलहा, वह जो कपड़े बुनता है और धोबी, वह जो कपड़े धोता है।

लेकिन दोनों के साथ गदहे का उपयोग क्यों? जवाब मिला कि गदहा एक वजन ढोनेवाला पशु है और इसी कारण इसका उपयोग किया जाता है।

[bs-quote quote=”मेरा अनुमान ही है कि बिहार में इन दिनों करीब 5 लाख लोग शराबबंदी कानून के कारण जेलों में बंद हैं और इनमें 80 फीसदी दलित और 10 फीसदी पिछड़े समाज के लोग हैं। शेष दस फीसदी में सवर्ण होंगे या वे नहीं भी होंगे। वजह यह कि सवर्ण दारू पीते हैं, बनाते और बेचते नहीं। अलबत्ता कुछेक सवर्णों को जानता हूं जो दारू नहीं पीते, लेकिन दारू बनवाते और बेचते जरूर हैं।” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]

खैर, पहली लोकोक्ति खेत खाए गदहा, मार खाए जोलहा पर विचार करते हैं। मैं आज इसे बदल देना चाहता हूं। इस वजह से भी कि जुलाहा एक श्रमिक जाति है, जिसके पास स्वाभिमान है। अभी कल की बात है कि उत्तरी दिल्ली के जिस इलाके में मैं रहता हूं, एक ब्राह्मण – जिसने भगवा चोला पहन रखा था – हर घर-दुकान के आगे जाकर ‘जयश्री राम’ का उच्चारण कर रहा था। मेरे साथ मेरा बेटा जगलाल दुर्गापति भी था। उस भिखमंगे ब्राह्मण को देख मेरे बेटे ने कहा – जयश्री राम, भले भीख मांग के खाम।

कहां मैं भीख मांगनेवाले ब्राह्मणों की बात करने लगा। मैं तो खेत खाए गदहा, मार खाए जोलहा लोकोक्ति को बदलने की बात कर रहा था। दरअसल, कल बिहार के तथाकथित राजा नीतीश कुमार शराबबंदी को लेकर समीक्षा बैठक की। बैठक के बाद राजा ने कहा किा शराब की बिक्री होने के मामले के सामने आने के बाद गांव के चौकीदारों और थाने के थानेदारों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। मतलब यह कि शराब की बिक्री होने का दोष इनके उपर मढ़ा जाएगा। लेकिन राजा के दामन पर दाग नहीं लगेगा, फिर चाहे जहरीली शराब से लाखों लोग मर क्यों नहीं जाएं। तो इस हिसाब से खेत खाए गदहा, मार खाए जोलहा को बदलकर दारू बेचवावे सीएम, मार खाए डीएम या माल चाभे राजा, बाकी सबको मिले सजा कर देना चाहिए।

यह भी पढ़ें :

गुजरात के नरेंद्र मोदी और बिहार के कामेश्वर यादव (डायरी,14 नवंबर, 2021)

खैर, यह मेरा अनुमान ही है कि बिहार में इन दिनों करीब 5 लाख लोग शराबबंदी कानून के कारण जेलों में बंद हैं और इनमें 80 फीसदी दलित और 10 फीसदी पिछड़े समाज के लोग हैं। शेष दस फीसदी में सवर्ण होंगे या वे नहीं भी होंगे। वजह यह कि सवर्ण दारू पीते हैं, बनाते और बेचते नहीं। अलबत्ता कुछेक सवर्णों को जानता हूं जो दारू नहीं पीते, लेकिन दारू बनवाते और बेचते जरूर हैं। मुझे धूमिल की रोटियां और संसद कविता की याद आ रही है। धूमिल के शब्दों में कहें तो–

एक आदमी

दारू चुआता है

एक आदमी बेचता है

एक आदमी दारू पीता है

एक आदमी न दारू पीता है और न बेचता है

लेकिन जमकर माल चाभता है

यह चौथा आदमी कौन है

बिहार का राजा मौन है।

खैर, आज मैं शराबबंदी पर और बात नहीं करना चाहता। मैं तो दहेज को लेकर बात करना चाहता हूं। वजह यह कि इन दिनों मेरे साथ मेरे एक रिश्तेदार रह रहे हैं, जिन्हें भारत सरकार में तृतीय श्रेणी की नौकरी मिली है। उनकी शादी की बात चल रही है। जो कुछ भी जाने-अनजाने मेरे संज्ञान में आ रहा है, उसके मुताबिक मेरे रिश्तेदार को शादी में कम से कम 25 लाख रुपए दहेज में मिलेंगे। यह तो केवल नकद की बात है। कुछ सामान वगैरह भी मिलेगा ही। मेरे अपने घर में अभी दो शादियां अगले ही महीने होनी हैं। इनमें मेरी एक भतीजी और एक भतीजा है। इन दोनों की शादी में भी दहेज लिया और दिया जा रहा है। मैं यदि अपनी शादी की बात करूं तो मेरी शादी में भी दहेज लिया गया था। हालांकि तब मेरी समझ कहां थी। मैं तो इतना नासमझ था कि शादी का मतलब केवल सेक्स समझता था।

[bs-quote quote=”राजा ने कहा किा शराब की बिक्री होने के मामले के सामने आने के बाद गांव के चौकीदारों और थाने के थानेदारों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। मतलब यह कि शराब की बिक्री होने का दोष इनके उपर मढ़ा जाएगा। लेकिन राजा के दामन पर दाग नहीं लगेगा, फिर चाहे जहरीली शराब से लाखों लोग मर क्यों नहीं जाएं। तो इस हिसाब से खेत खाए गदहा, मार खाए जोलहा को बदलकर दारू बेचवावे सीएम, मार खाए डीएम या माल चाभे राजा, बाकी सबको मिले सजा कर देना चाहिए।” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]

बहरहाल, मैं बिहार पुलिस का आधिकारिक वेबसाइट देख रहा हूं। सरकार ने अपराध से जुड़े आंकड़ों के प्रस्तुतिकरण में अहम बदलाव किया है। सरकार पहले दहेज से जुड़े मामलों के बारे में भी बताती थी, परंतु अब उसने इसे छिपा लिया है। एनसीआरबी द्वारा जारी क्राइम इन इंडिया-2020 में भी दहेज से जुड़े मामले के बो तफसील से जानकारी नहीं दी गई है। लेकिन मेरा अनुमान है कि बिहार में रोजाना कम से कम 5 महिलाओं की हत्या दहेज को लेकर कर दी जाती है। जबकि दहेज पर लगाम के लिए दहेज प्रतिषेध अधिनियम, 1961 के तहत व सीआरपीसी की धारा 498ए के तहत कड़ी सजा का प्रावधान है। लेकिन इसकी हालत शराबबंदी के कानून से भी बदतर है और राजा है कि उद्घोषणाओं में लगा है।

नवल किशोर कुमार फारवर्ड प्रेस में संपादक हैं

 

गाँव के लोग
गाँव के लोग
पत्रकारिता में जनसरोकारों और सामाजिक न्याय के विज़न के साथ काम कर रही वेबसाइट। इसकी ग्राउंड रिपोर्टिंग और कहानियाँ देश की सच्ची तस्वीर दिखाती हैं। प्रतिदिन पढ़ें देश की हलचलों के बारे में । वेबसाइट को सब्सक्राइब और फॉरवर्ड करें।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here