देश में दिन-ब-दिन बिजली की लागत महँगी होती जा रही है। इस स्थिति में बिजली की समस्या से निपटने के लिए सौर ऊर्जा का विकल्प तलाशा गया। अब धीरे-धीरे सौर ऊर्जा हमारी प्राथमिकता बनती जा रही है। ऐसे में उत्तरप्रदेश सरकार भी राज्य में सौर ऊर्जा और उसके साधनों को बढ़ावा दे रही है। लेकिन, कहीं-कहीं सौर ऊर्जा के साधनों की स्थति ठीक नहीं नज़र आ रही। ऐसी ही स्थिति नौगढ़ के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में है। इस स्वास्थ्य केंद्र में लगभग दो वर्ष पहले 10 किलोवाट का सोलर सिस्टम लगाया गया था। मगर सोलर सिस्टम में तकनीकी खराबी आया गयी है। इसका नतीजा यह है कि, बिजली कटने से अस्पताल में अँधेरा छा जाता है। यह अँधेरे के हालात अस्पताल में एक माह से बने हुए है। इस अँधेरे से विभिन्न समस्याओं का सामना अस्पताल में भर्ती मरीजों को करना पड़ता है। साथ-साथ मरीजों के परिजनों व स्वास्थ्य कर्मियों को भी अँधेरे से काफी परेशानियाँ होती है।
इस समस्या से निज़ात पाने के लिए चिकित्सा अधीक्षक डॉ अवधेश कुमार सिंह पटेल ने कई बार प्रयास किया है। डॉ अवधेश कुमार ने बार-बार कार्यदायी संस्था को सोलर सिस्टम ठीक कराने हेतु शिकायत भी की है। लेकिन, समस्या ज्यों की त्यों बनी हुयी है।बीते, गुरूवार को समस्या की जानकारी जिला मुख्य चिकित्सा अधिकारी को दी गयी। तब सप्लायर ने चिकित्सा अधीक्षक डॉ अवधेश सिंह पटेल से टेलीफोनिक बातचीत में सीधा कहा कि, ख़राब सोलर सिस्टम को नहीं बनाया जायेगा।
ब्लाक स्तरीय सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र नौगढ़ में बिजली की कटौती पर भी प्रकाश की व्यवस्था रहे, इसलिए पैनल इन्वर्टर बैटरी की सुविधा मुहैया कराई गई थी। लेकिन, जनवरी माह की शुरुआत में ही सोलर सिस्टम में तकनीकी खराबी आ गयी। इस हालात में सुधार के लिए चिकित्सा अधीक्षक डॉ अवधेश कुमार सिंह ने अपना विचार रखा है। डॉ अवधेश का कहना है कि, उपकेन्द्र स्वास्थ्य मझगाई मझगावां व अमदहां में 02-02 किलोवाट का सोलर पैनल लगेगा। सोलर पैनल लगने से होगा ये कि, उपकेंद्रों पर बिजली कटौती के दौरान भी प्रकाश की सुविधा उपलब्ध रहेगी।
ध्यातव्य है कि एक ओर उत्तरप्रदेश के नौगढ़ में सोलर पैनल की बदतर हालात चल रही है, तो वहीँ दूसरी ओर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा थर्मल और हाइड्रो पावर पर निर्भरता कम करने के निर्देश दिए जा चुके हैं। वहीँ, उत्तरप्रदेश सरकार का लक्ष्य अगले पांच वर्षों में बिजली की खपत 53 हजार मेगावाट तक करना है। ऐसे में, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ यह बयान भी आ चुका है कि, प्रदेश को वन ट्रिलियन डॉलर इकोनॉमी बनाने में सबसे अहम भूमिका बिजली की होगी। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, योगी सरकार सोलर एनर्जी में बढोत्तरी करने के लिए प्रदेश में 18 सोलर सिटी का निर्माण करेगी। पहले नोएडा और अयोध्या को सोलर सिटी के रूप में विकसित किया जावेगा। फिर, इसके बाद प्रदेश के 16 नगर निगम सोलर सिटी के रूप में विकसित किये जायेंगे।
यही नहीं, उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा यूपी सोलर रूफटॉप योजना की शुरुआत की गई है। जिसके अंतर्गत उत्तर प्रदेश निवासियों को नि:शुल्क सोलर पैनल लगाने की सुविधा मुहैया करवायी जाएगी। वहीँ, सोलर पैनल लगवाने के लिए राज्य सरकार द्वारा सब्सिडी भी उपलब्ध करवाई जा रही है। सोलर पैनल इसलिए लगाया जा रहा है कि, बिजली की बढ़ती खपत को रोका जा सके। साथ-साथ बढ़ते बिजली खर्च से भी राहत मिल सके।लेकिन, विचारणीय है कि, अगर इन सौर पैनल की दशा यदि नौगढ़ के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र जैसी होगी तब क्या होगा? वहीँ, सौर ऊर्जा और उसके साधनों को लेकर हमारे मगज में यह प्रश्न उठना भी लाज़मी है कि, जब सरकारी सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों में सोलर पैनल की स्थिति बदतर है, तब आम लोगों के सोलर पैनल की क्या हालत होगी? इस सवाल का हल क्या रहेगा।
जब हम उत्तरप्रदेश में सौर ऊर्जा की तरफ निगाहें करते है, तब सरकार के सौर ऊर्जा को बढावा देने बयान सामने आ जाते है। लेकिन, प्रदेश में सौर ऊर्जा के आकड़ें कुछ स्थिति बयां करते हैं। उत्तरप्रदेश सबसे ज्यादा जनसंख्या और बिजली की डिमांड वाला राज्य है। लेकिन, फिर भी सौर ऊर्जा के लक्ष्य प्राप्त करने में उत्तर प्रदेश पीछे है। 75 जिलों वाले बड़े राज्य में ज्यादातर बड़ी सौर परियोजनाएं कुछ ही जिलों तक सीमित हैं। जबकि देश में नेट जीरो यानी शून्य कार्बन उत्सर्जन और अक्षय ऊर्जा लक्ष्यों को प्राप्त करने में उत्तरप्रदेश का अवदान अहम है। उत्तरप्रदेश में मार्च, 2022 तक कुल स्थापित ऊर्जा क्षमता 30,769 मेगावाट रही। वहीँ, राज्य सरकार ने वर्ष 2026-27 तक 22,000 मेगावाट सौर ऊर्जा उत्पादन का लक्ष्य तय किया है। जबकि 31 दिसंबर 2022 तक राज्य में सौर ऊर्जा उत्पादन 2,485.16 मेगावाट किया गया है। ऐसें में अगर, सौर ऊर्जा का उत्पादन कम होगा, तब सौर ऊर्जा उत्पादन के लिए तय लक्ष्य कैसे हासिल किया जा सकेगा।
नवीकरणीय ऊर्जा विकास एजेंसी (यूपीनेडा) की वेबसाइट पर उपलब्ध आकड़ों के मुताबिक, 75 जिलों वाले बड़े राज्य में बड़ी सौर परियोजनाएं 18 जिलों में चल रही हैं। ऐसें में 57 जिलों में उत्पादन नहीं या बहुत कम है। राज्य में 949 मेगावाट की ग्रिड से जुड़ी सौर परियोजनाएं स्थापित हैं। इनमें 553 मेगावाट की परियोजनाएं बुंदेलखंड के 7 जिलों में हैं। वहीँ, केंद्र सरकार की पीएम कुसुम योजना में भी उत्तर प्रदेश हाल निराशाजनक है। एमएनआरई रिपोर्ट के मुताबिक, वर्ष 2022-23 तक पीएम कुसुम योजना-ए (ग्रिड से जुडे सोलर प्लांट) में उत्तर प्रदेश में 225 मेगावाट के प्लांट स्वीकृत थे। मगर, सोचनीय है कि, एक भी प्लांट अस्तित्व में नहीं आया। जबकि, 500 किलोवाट से 2 मेगावाट तक के सोलर प्लांट से जुड़ी कुसुम योजना का टेंडर ही सरकार पिछले दो साल से नहीं करवा पाई। ऐसे में यह ध्यान दिए जाने योग्य है कि, एक ओर नौगढ़ जैसे सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र में सोलर पैनल ख़राब चल रहे हैं। वहीँ, दूसरी ओर सोलर प्लांट से सम्बंधित टेंडर ही पास नहीं करवा पा रही। तब उत्तर प्रदेश में कैसे सौर ऊर्जा के क्षेत्र को विकसित किया जाएगा और कैसे प्रदेश सौर ऊर्जा में इज़ाफा करेगा।