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बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में जलाई गयी मनुस्मृति की प्रतीकात्मक प्रतियां

वाराणसी। बनारस हिन्दू विश्वविदद्यालय में 25 दिसंबर को मनुस्मृति की प्रतीकात्मक प्रतियाँ जलाई गईं। भगत सिंह छात्र  मोर्चा के  8-10 की संख्या में छात्रों ने सादे कागज पर मनुस्मृति के कुछ श्लोक और उसके कुछ बारे में लिखकर आग के हवाले कर दिया। इस दौरान ब्राह्मणवाद और हिन्दुत्व पर इन छात्रों की तरफ से टिप्पणी […]

वाराणसी। बनारस हिन्दू विश्वविदद्यालय में 25 दिसंबर को मनुस्मृति की प्रतीकात्मक प्रतियाँ जलाई गईं। भगत सिंह छात्र  मोर्चा के  8-10 की संख्या में छात्रों ने सादे कागज पर मनुस्मृति के कुछ श्लोक और उसके कुछ बारे में लिखकर आग के हवाले कर दिया। इस दौरान ब्राह्मणवाद और हिन्दुत्व पर इन छात्रों की तरफ से टिप्पणी भी की गईं। ब्राह्मणवाद मुर्दाबाद, मनुवाद मुर्दाबाद, जातिवाद को खत्म करो के साथ ही ब्राह्मणवाद की छाती पर फुले, आंबेडकर और ज्योतिबा के विचारों वाले राज करेंगे जैसे नारे भी लगाए गए।

कार्यक्रम में उपस्थित भगत सिंह मोर्चा के छात्रों ने अपने सम्बोधन में कहा कि 25 दिसंबर को बाबा साहब आंबेडकर ने सामाजिक बुराइयों के कारण मनुस्मृति का दहन किया था, वे समस्याएँ अभी भी हमारे भारतीय समाज में जस की तस बनी हुई हैं। महिलाओं, और दलित समाज  के साथ आज भी दोयम दर्जे का व्यवहार किया जा रहा है। इस अन्याय के खिलाफ खड़े होते हुए हमने आज मनुस्मृति दिवस मनाया और मनुस्मृति का प्रतीकात्मक दहन किया।

भगत सिंह यूथ मोर्चा की सचिव इप्शिता कहती हैं कि, डॉ भीम राव आंबेडकर ने जिन सामाजिक बुराइयों के खात्मे के लिए मनुस्मृति को 25 दिसंबर 1927 को जलाया था। वे सामाजिक बुराइयाँ आज भी समाज में बनी हुई हैं। हमें इन सामाजिक बुराइयों को दूर करना है, जिसके लिए हमें एक लंबी लड़ाई के लिए तैयार रहना होगा। इप्शिता आगे कहती हैं कि बाबा साहब आंबेडकर ने कहा था कि मनुस्मृति ब्राह्मणवाद का प्रतीक है। मनुस्मृति में  कहा गया है कि शूद्रों को विद्या प्राप्ति का कोई अधिकार नहीं है। धन रखने का अधिकार नहीं है। मेरा कहना है कि मनुस्मृति दलितों को मानसिक गुलामी के लिए लिखी गयी थी ताकि गुलाम बने रहें। मनुस्मृति जलाना एक रेडिकल स्टेप है। आज भी हम देख रहे हैं कि हमारे समाज की पूरी व्यवस्था ब्राह्मणवादी है। आज भी देखा जाय तो दलितों के पास न तो शिक्षा है और ना ही धन है।

इससे पूर्व दिल्ली विश्वविद्यालय में आइसा के ‘उठो मेरे देश’ अभियान के अंतर्गत मार्च निकालकर मनुस्मृति को जलाया गया। जबकि उससे पहले जेएनयू में भी मनुस्मृति को जलाया गया था।

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