Thursday, November 7, 2024
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पूर्वांचल का चेहरा - पूर्वांचल की आवाज़

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बनारस

बिश्वनाथ की कविताओं में बनारस

इस शहर में धूल धीरे-धीरे उड़ती है धीरे-धीरे चलते हैं लोग धीरे-धीरे बजते हैं घंटे शाम धीरे-धीरे होती है। ...कभी आरती के आलोक में इसे अचानक देखो अद्भुत है इसकी बनावट यह...

ओ गौरैय्या ओ बया तुम सब कहाँ हो…

  https://www.youtube.com/watch?v=64GDlXj07zc&t=582s   बनारस के सामाजिक और सांस्कृतिक परिवेश में अशोक आनंद एक अनिवार्य उपस्थिति हैं। उनके व्यक्तित्व के अनेक आयाम हैं। वे बनारस के एक वरिष्ठ...

नज़ीर बनारसी सामाजिक सद्भाव के लिए कोई भी क़ीमत चुका सकते थे

गर स्वर्ग में जाना हो तो जी खोल के ख़रचो मुक्ति का है व्योपार बनारस की गली में ऐसी चुटीली और मारक शायरी के...

संगीत जितना चित्त में उतरेगा उतना वजनदार होता जायेगा

बनारस की सुप्रसिद्ध गायिका सरोज वर्मा अब किसी परिचय का मुहताज नहीं हैं। उन्होंने लोक और उपशास्त्रीय दोनों में उल्लेखनीय प्रस्तुतियाँ दी हैं। देश...

तीनों काले कृषि कानून वापस के साथ-साथ प्रधानमंत्री मोदी ने किसानों से माफी मांगी

किसान आंदोलन को शुरू हुए साल भर पूरा हो गया। किसानों ने अपनी मांगों को स्पष्ट रूप से सरकार के सामने रखा, लेकिन सरकार...

इस उपन्यास का कल्पनालोक समझने के लिए अपने दौर की समझ जरूरी है

लेख का दूसरा और अंतिम हिस्सा बहुत सारे आलोचक जार्ज ऑरवेल के उपन्यास 1984 में अतीत का वर्णन देखते हैं। बीसवीं शताब्दी के पहले...

बिरहा के बेजोड़ कवि-गायक लक्ष्मी नारायण यादव

बिरहा लोकगायकी की एक विशिष्ट विधा है। भोजपुरी बोलने वाले इलाक़ों में इसकी लोकप्रियता ज़बरदस्त रही है। कुछ दशक पहले तक बिरहा गायन की...

जैसी घटनाएँ हो रही हैं वैसे में संगीत सुनकर लगता है जैसे कोई मुझे गालियां दे रहा हैं

आपकी ग़ज़लें एक दिन मैं पढ़ रही थी। उनमें घर को लेकर और शहर को लेकर आपकी तकलीफ दिखती है। क्या यह तकलीफ इन...

क्या महत्वपूर्ण मुद्दों पर बैठकें दिशाहीन हो चुकी हैं

पूर्वांचल में किसानों की समस्याएं पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों की समस्याओं से कहीं ज्यादा हैं लेकिन उनका कोई मुकम्मल संगठन नहीं होने की वजह से उनका गुस्सा और उनकी तकलीफें उनके और उनके परिवार तक सीमित हो गई हैं। पूर्वांचल में किसान संगठनों के नाम पर राजनीतिक पार्टियों के आनुषांगिक संगठन ही केवल काम कर रहे हैं, इसलिए किसानों का झुकाव भी इन संगठनों के प्रति अपनापन का नहीं है। संयुक्त किसान मोर्चा की पूर्वांचल इकाई की संरचना भी कुछ ऐसी ही दिखाई दे रही है। शायद इस वजह से पूर्वांचल में कोई बड़ा किसान आंदोलन खड़ा नहीं हो पा रहा है। 

इंदौर की घटनाओं के पीछे सांप्रदायिकता फैलाने का सुनियोजित एजेंडा

फिल्म रईस का एक मशहूर डायलॉग है ‘अम्मी जान कहती थीं, कोई धंधा छोटा नहीं होता और धंधे से बड़ा कोई धर्म नहीं होता’...

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