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इंदौर की घटनाओं के पीछे सांप्रदायिकता फैलाने का सुनियोजित एजेंडा

फिल्म रईस का एक मशहूर डायलॉग है ‘अम्मी जान कहती थीं, कोई धंधा छोटा नहीं होता और धंधे से बड़ा कोई धर्म नहीं होता’ लेकिन पिछले दिनों मध्य प्रदेश के इंदौर शहर में हुई घटना बताती है कि अब हिंदुस्तान में धर्म के नाम पर धंधे का भी बंटवारा किया जा रहा है। अभी तक […]

फिल्म रईस का एक मशहूर डायलॉग है ‘अम्मी जान कहती थीं, कोई धंधा छोटा नहीं होता और धंधे से बड़ा कोई धर्म नहीं होता’ लेकिन पिछले दिनों मध्य प्रदेश के इंदौर शहर में हुई घटना बताती है कि अब हिंदुस्तान में धर्म के नाम पर धंधे का भी बंटवारा किया जा रहा है। अभी तक धर्म के नाम पर हमारे रहने के मोहल्ले अलग बने थे लेकिन अब काम करने की जगह के बंटवारे की कोशिश की जा रही है। इंदौर में एक चूड़ीवाले को हिन्दू मोहल्ले में चूड़ी बेचने की वजह से ना केवल बुरी तरह से पीटा गया है बल्कि उसपर छेड़छाड़ का आरोप लगाते हुये गंभीर धारायें भी लगा दी गयी हैं। सोशल मीडिया और मीडिया के एक वर्ग द्वारा इसे ‘चूड़ी जिहाद’ का नाम देते हुये आग में घी डालने का काम किया गया और इस घटना को पेश करते हुये बताया गया कि चूड़ी वाला हिन्दू नाम रखकर ना केवल चूड़ियां बेच रहा था बल्कि वो छेड़खानी और लव जिहाद करने की कोशिश कर रहा था।

[bs-quote quote=”पिछले पौने दो वर्षों से जिस तरह हमारा देश आपदा से जूझ रहा है और लोगों की ज़िंदगियाँ खतरे में पड़ी हैं वह अभूतपूर्व स्थिति है। करोड़ों लोग इसके शिकार बने और लाखों की असमय मौत हुई। साथ ही घपलों-घोटालों की अंतहीन शृंखला चली है। ऐसी घटनाएँ इन सारी बातों को पर्दे में ढकेल देती हैं और जनसाधारण के बीच नैरेटिव बदल जाता है।” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]

22 अगस्त की दोपहर को इंदौर के बाणगंगा इलाके की गोविंद कॉलोनी में हुई घटना का जो वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था उसमें साफ़ देखा जा सकता है कि कुछ लोग तस्लीम नाम के एक चूड़ी वाले को बुरी तरह पीटते हुये कह रहे हैं कि आगे से अब वो हिंदू इलाके में नहीं आये। जाहिर है तस्लीम को उसके मुस्लिम पहचान की वजह से पीटा गया।

लेकिन इन सबके बीच प्रदेश के गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा का बयान हैरान करने वाला है जो इस घनघोर साम्प्रदायिक घटना को सांप्रदायिक रंग ना दिये जाने की अपील करते हुये इस घटना का एक तरह से बचाव करते हुये नजर आये। उनका बयान था कि ‘अगर एक इंसान अपना नाम, जाति और धर्म छुपाता है तो कड़वाहट तो आ ही जाती है, हमारी बेटियां सावन में चूड़ियां पहनती हैं और मेहंदी लगाती हैं वो एक चूड़ी बेचने वाले की तरह आया। इसे लेकर वहां पर भ्रम की स्थिति बन गई। जब उसका पहचान पत्र देखा गया तब सच्चाई सामने आई।’

घटना के करीब 27 घंटे बाद, जिन आरोपियों ने तस्लीम को मारा था उन्हीं में से एक आरोपी की 13 साल की बेटी द्वारा तस्लीम पर छेड़छाड़ का आरोप लगाते हुये धाराओं के तहत एफ़आईआर दर्ज कराई गई जिसके बाद उस पर पॉक्सो सहित कई अन्य गंभीर धारायें लगाई गयी हैं।

इधर तस्लीम ने छेड़छाड़ और जाली दस्तावेज़ के आरोपों से इनकार किया है।

इंदौर के बाद कुछ इसी तरह का वाकया इंदौर के पास के देवास में पेश आया है जहाँ हाटपिपलिया के ग्राम बारोली में मुस्लिम फेरी वाले के पास आधार नहीं होने पर बुरी तरह से पिटाई की गयी है।

यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि ऐसा क्यों हो रहा है? घटनाएँ बार-बार और अलग-अलग शहरों में हो रही हैं। फेरीवालों से नकद या कभी-कभी उधार सामान लेने का चलन भारत में सदियों से रहा है लेकिन उनकी पहचान को लेकर ऐसी दुर्दांत मानसिकता कभी नहीं रही। उनका आधार देखने वालों की एक नई जमात पैदा हुई है जिसे राजनीतिक संरक्षण दिया गया है। इस बात की ओर अब ध्यान देने की सख्त जरूरत है कि इन गतिविधियों ने न केवल सांप्रदायिक तनाव को बढ़ाया है बल्कि सरकारों की असफलताओं से ध्यान हटाने में भी योगदान किया है। पिछले पौने दो वर्षों से जिस तरह हमारा देश आपदा से जूझ रहा है और लोगों की ज़िंदगियाँ खतरे में पड़ी हैं वह अभूतपूर्व स्थिति है। करोड़ों लोग इसके शिकार बने और लाखों की असमय मौत हुई। साथ ही घपलों-घोटालों की अंतहीन शृंखला चली है। ऐसी घटनाएँ इन सारी बातों को पर्दे में ढकेल देती हैं और जनसाधारण के बीच नैरेटिव बदल जाता है।

[bs-quote quote=”भारत में धार्मिक उन्माद अपने चरम पर है, हर पल हम बांटे जा रहे हैं। हमारी धार्मिक पहचान बाकी सभी पहचानों पर हावी होती जा रही है। अब हम एक दूसरे के लिये महज हिन्दू या मुसलमान बनते जा रहे हैं। एक भारतीय होने की पहचान कहीं पीछे छूट गयी है।” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]

मध्य प्रदेश की घटनाओं की पृष्ठभूमि में जाते हैं तो पता चलता है कि दरअसल मालवा का इलाका साम्प्रदायिक रूप से हमेशा से ही संवेदनशील रहा है, जिसे बीच-बीच में लगातार सुलगाया जाता रहा है। पिछले साल दिसम्बर माह में इंदौर, उज्जैन, मंदसौर और अलीराजपुर जिलों में सिलसिलेवार तरीके से साम्प्रदायिक झड़प की घटनायें सामने आयी थीं। इन घटनाओं में इरादतन मुस्लिम बाहुल्य इलाकों में रैली-जुलूस निकालने और आपत्तिजनक नारे लगाने के बाद साम्प्रदायिक झड़प की घटनायें हुयी थीं। इसी प्रकार से पिछले साल जून महीने में इंदौर शहर में कक्षा 12 की परीक्षा के दौरान एक स्कूल के मुस्लिम छात्रों के साथ भेदभावपूर्ण बर्ताव किये जाने का मामला सामने आया था जिसमें एक स्कूल में परीक्षा के दौरान मुस्लिम छात्राओं को उनके नियत स्थान की जगह खुले बरामदे में बैठ कर परीक्षा देने को विवश किया गया था। बाद में इसको लेकर परीक्षा केंद्र के प्रबंधकों द्वारा यह सफाई दी गयी कि कोविड रेड ज़ोन इलाके से होने के कारण मुस्लिम छात्राओं को अलग से बैठाया गया था। लेकिन वास्तव में रेड ज़ोन से आने वाले दूसरे धर्मों के परीक्षार्थियों के साथ ऐसा व्यवहार नहीं किया गया था।

मध्य प्रदेश में अल्पसंख्यकों की अपेक्षाकृत कम आबादी होने के बावजूद प्रदेश साम्प्रदायिक रूप से संवेदनशील बना रहता है, खासकर मालवा क्षेत्र, यह वह इलाका है जहाँ संघ परिवार की सामाजिक स्तर पर गहरी पैठ है। मध्यप्रदेश में ‘गाय’ और ‘धर्मांतरण’ ऐसे हथियार है जिनके सहारे मुस्लिम और ईसाई अल्पसंख्यकों को निशाना बनाना बहुत आसान और आम हो गया है अब इसमें ‘लव जिहाद’ के शगूफे को भी शामिल कर लिया गया है। अपने पिछले कार्यकालों के दौरान शिवराजसिंह चौहान खुद को विनम्र और सभी वर्गों का सर्वमान्य नेता दिखाने की कोशिश करते रहे हैं लेकिन कांग्रेस की सरकार गिराकर चौथी बार मुख्यमंत्री बनने के बाद शिवराजसिंह चौहान अपने आपको पहले से अलग पेश करने की कोशिश कर रहे हैं और इस बार अधिक खुले तौर पर लगातार आक्रामक हिन्दुतत्व की तरफ बढ़ते हुये दिखाई पड़ रहे हैं। तथाकथित ‘लव जिहाद’ के खिलाफ कानून लाने वाले राज्यों में मध्य प्रदेश अग्रणी राज्य रहा है इधर सिलसिलेवार तरीके से साम्प्रदायिक झड़प की निरंतरता बनी ही हुयी है।

बहरहाल भारत में धार्मिक उन्माद अपने चरम पर है, हर पल हम बांटे जा रहे हैं। हमारी धार्मिक पहचान बाकी सभी पहचानों पर हावी होती जा रही है। अब हम एक दूसरे के लिये महज हिन्दू या मुसलमान बनते जा रहे हैं। एक भारतीय होने की पहचान कहीं पीछे छूट गयी है। एक देश, समाज और व्यवस्था के तौर में हमें इसके लिये चिंतित होना चाहिये. नहीं तो आपसी नफरत और हिंसा के अंधी खाई में जाने से हमें कोई नहीं रोक सकता है।

जावेद अनीस स्वतंत्र पत्रकार हैं और भोपाल में रहते हैं।

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