Saturday, July 27, 2024
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इस उपन्यास का कल्पनालोक समझने के लिए अपने दौर की समझ जरूरी है

लेख का दूसरा और अंतिम हिस्सा बहुत सारे आलोचक जार्ज ऑरवेल के उपन्यास 1984 में अतीत का वर्णन देखते हैं। बीसवीं शताब्दी के पहले पांच दशकों के ऑरवेल गवाह रहें हैं। उन्होंने अधिनायकवाद का खौफनाक चेहरा देखा है। यातनाओं के बहुत सारे तरीके का वर्णन उन्होंने अपने से जाना और समझा है इसलिए ऐसा होना […]

लेख का दूसरा और अंतिम हिस्सा

बहुत सारे आलोचक जार्ज ऑरवेल के उपन्यास 1984 में अतीत का वर्णन देखते हैं। बीसवीं शताब्दी के पहले पांच दशकों के ऑरवेल गवाह रहें हैं। उन्होंने अधिनायकवाद का खौफनाक चेहरा देखा है। यातनाओं के बहुत सारे तरीके का वर्णन उन्होंने अपने से जाना और समझा है इसलिए ऐसा होना लाजिमी है। पर भविष्य की भयावह परिकल्पना का बोध करवाना भी ऑरवेल की महत्वपूर्ण उपलब्धि है।

एक ऐसे सरकारी तंत्र की संभावना एवं उसे प्राप्त करने का खौफनाक तरीके का विवरण बिग ब्रदर के ओसिनिया में वे क्रम से करते हैं। यह किसी भी अधिनायकवादी सरकार की स्थापना का पैटर्न भी प्रस्तुत करता है। आज के समय में बहुत सारी सरकारें इसका अनुसरण करना चाहती हैं। उसका प्रमुख उद्देश्य विरोध के स्वर को दबाना तथा जनतंत्र के समाप्ति की घोषणा भी है। ऑरवेल के 2050 को आने में अभी तीन दशक बाकी है। नई ज़बान की तैयारी जोर-शोर से बहुत सारे मुल्कों में हो रही है।

Minitrue एवं Miniluv मंत्रालय इस कार्य में दक्षता भी हासिल करता दिखता है। शब्दावली को उसके वर्ण विचार से सरकारी आदेश के आधार पर चुना गया है। इसलिए पुरानी जबान के प्रयोग जैसे बोलने की आज़ादी एवं अभिव्यक्ति धीरे-धीरे नये कानूनों में फुटनोट में लिखे जा रहे हैं।

हाल ही में अपने मुल्क के उच्चतम न्यायालय को यह घोर आश्चर्य हुआ कि जब सूचना तकनीकी कानून की धारा 66A को गैरसंवैधानिक घोषित किया जा चुका हैं तो इसके अधीन संबंधित पुलिस प्रशासन द्वारा केस पंजीकृत कैसे हो रहे हैं? इस प्रश्न के जबाब में अटॉर्नी जनरल ने कहा कि कानून की किताब के नये संस्करण में ये बातें फुटनोट में हैं इसलिए अधिकारी ने देखा नही होगा!

यह दौर चूंकि नई ज़बान एवं पुरानी ज़बान के संक्रमण का है इसलिए फुटनोट की अहमियत बाकी है। पर आने वाले दशकों में वैसे तमाम कानूनी प्रावधान, जो सरकारों को मनमानी करने से रोकते हैं, धीरे-धीरे समाप्त हो जायेंगे, क्योंकि नई शब्दावली में वैसे प्रयोगों की गुंजाइश नहीं होगी। नई ज़बान सिर्फ शब्दावली के हेर-फेर का प्रतीक नहीं, अपितु यह एक विचार का प्रतीक है, जो भाषा विज्ञान के तौर तरीके से ताल्लुकात नहीं रखता है।

जैसा कि साहित्य एवं भाषा विज्ञान के विद्यार्थी (जो अभी बचे हुए हैं) जानते हैं कि शब्दों के ऐतिहासिक संदर्भ होते हैं तथा वे मानवीय संघर्ष की उपज हैं। इसलिए गैरजनतांत्रिक अधिनायकवादी सत्ता मानवीय संघर्ष के इतिहास को मिटाना चाहती है, ताकि नई ज़बान ही एकमात्र भाषा रहे जिस पर सरकारी नियंत्रण हों?

[bs-quote quote=”इस पुस्तक में महिलाएँ हाशिये पर हैं। ऐसे पात्रों का इस्तेमाल बिग ब्रदर अन्य शासकों की तरह नुमाइश एवं जासूसी के लिए करता है। इस दृष्टिकोण से भी आलोचना के कुछ स्वर सामने आने चाहिए ताकि स्त्रीवादी विवेचना की समृद्ध परंपरा में ये बातें ठीक से दर्ज हो सकें। इस पक्ष पर बहस बाकी है।” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]

इसका एक उदाहरण हाल ही में 84 वर्षीय मानवाधिकार कार्यकर्ता स्टेन स्वामी के हिरासत में मौत से संबंधित है। अवकाशप्राप्त पूर्व न्यायाधीश ए.पी.शाह का लेख (हिन्दू एवं वायर, 07 जुलाई 2021) उपरोक्त विवेचना को मजबूती प्रदान करता है। जैसा कि अब सारी दुनिया को मालूम है कि स्टेन स्वामी NIA द्वारा UAPA के तहत  गिरफ्तार किये गये थे।

वे शारिरिक रूप से कठिन दौर से गुजर रहे थे। उन्होंने जमानत की अर्जी दी कि उन्हें जीवन के अंतिम दौर में उन लोगों के बीच रहने की इजाजत दी जाय जिनके संघर्ष के वे साथी रहे हैं। लेकिन उनकी जमानत अर्जी कई बार खारिज की गई। जब वे गुजरे तो भी दूसरे दिन उनके जमानत की अर्जी पर विचार होनी थी।

जैसा बताया गया है कि अपने ओसिनिया में फिलहाल पुरानी ज़बान की इजाजत है। इसलिए ए.पी. शाह लेख लिख भी सकते है और हममें से कुछ लोग उसे समझ भी सकते हैं। पुरानी ज़बान से नई ज़बान का बदलाव धीरे-धीरे सूक्ष्म रूप से किया जा रहा है जिसका प्रयास पिछले 100 साल से चल रहा है।

स्टेन स्वामी को 1984 के चरित्र विंस्टन स्मिथ की तरह अचानक चिल्लाने की जरूरत नहीं है। बिग ब्रदर अपने समय का बिग ब्रदर ओसिनिया की स्थापना अभी तक नहीं कर पाया है। जब तक जनतंत्र के स्तम्भ जीवित हैं तब तक यह संभव भी नहीं है।

ऑरवेल के ओसिनिया में सिर्फ कार्यपालिका ही है। न्यायपालिका का आपको जिक्र तक नहीं मिलेगा! इसलिए कार्यपालिका का प्रमुख (राष्ट्राध्यक्ष) न्यायपालिका एवं विधायिका को गैरप्रासंगिक बनाना चाहता है। चैनलों एवं अखबारों के बारे में कहना ही क्या? ये स्तम्भ अब कार्यपालिका के भरोसे काम करते हैं।

ज्यादातर संस्थायें अपना अस्तित्व को खो चुकी हैं या खोने के कगार पर हैं। पुनः पाठकों को व्हाट्सएप्प की दुनिया की ओर ले चलते हैं। न्यायाधीश ए.पी. शाह अप्रैल 2019 के फैसले का हवाला देते हुए कहते हैं कि UAPA के अभियुक्त को अब तब तक जेल में रहना होगा जब तक मुकदमा पूरा ना हो जाये।

[bs-quote quote=”पाठक 1984 को पढ़ते हुए पायेगा कि यातना सिर्फ दिमाग को ठीक करने के लिए दी जाती है। बिग ब्रदर अपने खौफनाक यातना के यंत्रों के द्वारा बाहर संवाद भेजना चाहता है कि डर के रहो। नहीं तो यह शासन आदमी के रूप में जीने नहीं देगा। इसको इस पुस्तक के संदर्भ में हम सभी एक उदाहरण से समझ सकते हैं।” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]

 

शाह ने इसे अपने देश के आपराधिक कानून एवं कार्रवाई की केन्द्रीय अवधारणा के खिलाफ बताया है। यह सर्वविदित है (2019 के पहले तक) कि अभियुक्त तब तक निर्दोष है जब तक अदालत के द्वारा उसे दोषी करार न किया गया हो। यह अदालती फैसलों में नई ज़बान के आगाज का नमूना है। अब आइये आज के समय के प्राइम टाइम की बहस पर गौर करें।

दो प्रवक्ताओं के बीच में एंकर है। पुरानी ज़बान के प्रवक्ता उपरोक्त बदलाव को कानूनी प्रावधानों को ध्वस्त करना बतायेंगे तो नई ज़बान के हिमायती प्रवक्ता हंसते हुए बोलेंगे स्टैन स्वामी जेल में हैं। कोई जंगल में तो नहीं हैं। पुरानी ज़बान का प्रवक्ता कहना चाहता है कि वे तो ताउम्र, जल, जंगल, जमीन को बचाने के लिए लड़े हैं। नई ज़बान का प्रवक्ता कहता है, बीच में मत टोकिए।

ट्रायल चल रहा है। फैसले का इंतजार करिये! पुरानी ज़बान वाले जब तक शाह साहिब के तर्क को रखेंगे तब तक पर्दे के पीछे से इशारा होगा कि डिबेट समाप्त करो। बिग ब्रदर नाराज होगा तो विज्ञापन नहीं मिलेगा। फिर हम लोगों का चकल्लस कैसे होगा। पार्लर जाना तो दूर साफ कपड़े पहनने के भी लाले पड़ेंगे। एंकर कहेगा समय समाप्त हो गया है। उपसंहार के रूप में वह फैसला देगा। जेल में रहने से किसी को क्या एतराज है? फांसी तो नहीं दिया गया है न? नई ज़बान के बनारसी मित्र कहेंगे जीयो रजा जियो। सिकुलर लोगन के दिमाग ठिकाने लगावे के यही तरीका हौ? भैया!  कबीर का बनारस भी ऑरवेलियन की दुनिया का स्वाद चखना चाहता है?

पाठक 1984 को पढ़ते हुए पायेगा कि यातना सिर्फ दिमाग को ठीक करने के लिए दी जाती है। बिग ब्रदर अपने खौफनाक यातना के यंत्रों के द्वारा बाहर संवाद भेजना चाहता है कि डर के रहो। नहीं तो यह शासन आदमी के रूप में जीने नहीं देगा। इसको इस पुस्तक के संदर्भ में हम सभी एक उदाहरण से समझ सकते हैं।

जैसा कि पहले भी बताया गया है कि Miniluv में कमरा नंबर 101 यातना के तरह-तरह के औजार से भरा पड़ा है। इस कमरे का एक दृश्य ड्रामेटिक्स की दृष्टि से मार्मिक है और गहरे संवाद को भी स्थापित करता है। कमरा नंबर 101 में जब ओब्रॉयन अपने क्रान्तिकारी कामरेड विंस्टन को समझाने के लिए यातना देते हुए यह बताता है कि यह पहला पड़ाव है ताकि तुम बिग ब्रदर के साथ पुनः एकीकृत हो जाओ। ओ ब्रॉयन अंधेरे कमरे में अधमरे पड़े और धंसती हुई कील की यातना से कराहते हुए विंस्टन को बताता है कि बिग ब्रदर की पार्टी के साथ पुनर्मिलन के लिए तुम यातना के तीन स्तरों से गुजरोगे।

ये तीनों क्रमशः शिक्षण, समझ एवं स्वीकारोक्ति कहलाते हैं। अभी पहले स्तर के शारीरिक यातना से तुम्हें नई ज़बान की भाषा सिखाई जा रही है जिसके केन्द्र में ‘भय’ है! अब तुम्हारा मानसिक सुधार और बिग ब्रदर को भगवान के द्वारा बनाए गए सर्वश्रेष्ठ मनुष्य के रूप में स्वीकार करने का दो स्तरीय इलाज अभी बाकी है। विंस्टन को समझाते हुए ओ ब्रॉयन कहता है कि तुमने कैसे समझा कि ओसिनिया के लोग सहज मानवीय प्रवृत्ति को अपनाते हुए बिग ब्रदर के खिलाफ नारे लगायेंगे – ‘बिग ब्रदर मुर्दाबाद’? तुम्हें मालूम नहीं कि बिग ब्रदर अलग है।’

उनके अतिमानवीय गुण के आदेश से ही मानवीय प्रवृत्तियाँ बनती हैं। इसमें कुछ भी सहज नहीं है। तुम्हारा यह सोचना कि प्रश्न पूछना सहज मानवीय गुण है, ओसिनिया ने गलत साबित किया है। इसलिए, समझो और बिग ब्रदर को स्वीकार करो। अगर इस कमरे में विशेष रूप से लगाये गये आईने में तुम अपने आपको देखो तब पता चलेगा कि तुम दया के पात्र हो कि नहीं? अगर इसके बाद भी तुम्हे लगता है कि बिग ब्रदर की पूरी व्यूह-रचना ढह जायेगी तो मुझे तुम पर सिर्फ तरस ही आ सकता है।

[bs-quote quote=”ओब्रॉयन पूछता है ‘क्या तुम भगवान पर विश्वास करते हो?’ अगर तुम्हें भगवान पर विश्वास है ही नहीं तो तुम्हें बिग ब्रदर की नई ज़बान के खिलाफ जाने से कौन प्रेरित करता है? विंस्टन बेहोशी की अवस्था में शायद फुसफुसाता है ‘आदमी के भीतर बैठा आदमियत मुझे प्रेरित करती है।’ ओब्रॉयन कहता है कि ‘अगर यह सही है तो विंस्टन तुम बिग ब्रदर के साम्राज्य  में इस विश्वास के साथ मरने वाले आखिरी आदमी होंगे?’” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]

 

ओब्रॉयन पूछता है ‘क्या तुम भगवान पर विश्वास करते हो?’ अगर तुम्हें भगवान पर विश्वास है ही नहीं तो तुम्हें बिग ब्रदर की नई ज़बान के खिलाफ जाने से कौन प्रेरित करता है? विंस्टन बेहोशी की अवस्था में शायद फुसफुसाता है ‘आदमी के भीतर बैठा आदमियत मुझे प्रेरित करती है।’ ओब्रॉयन कहता है कि ‘अगर यह सही है तो विंस्टन तुम बिग ब्रदर के साम्राज्य  में इस विश्वास के साथ मरने वाले आखिरी आदमी होंगे?’

इतनी घोर यातना के बाद भी विंस्टन कहता दीखता है कि ‘मनुष्यता एवं नैतिकता कभी मर नहीं सकती।’ इस विश्वास से आहत होकर ओब्रॉयन कहता है कि मुझे मालूम है कि तुम एक कठिन Thought Criminal हो। थोड़ा वक्त लगेगा लेकिन रूम नंबर 101 में 2050 तक रहोगे तो बाहर की दुनिया बदली हुई होगी। फिर तुम भी पुरानी ज़बान भूल जाओगे और ओसिनिया के नई ज़बान को ठीक से समझोगे?

भाग एक यहाँ पढ़ें : 

 आज का 1984

विंस्टन के भीतर के विश्वास को हम सभी पुनः फादर स्टेन स्वामी के उस वाक्य में देखते हैं ‘We will still sing in the churches. A caged bird still sing. ऐसा अनेक बार मानवीय मुक्ति संघर्ष में जुटे लोगों की जिन्दगी में दिखाई देता है। अगर याद हो तो फैज को भी गुनगुना लेते हैं मता-ए लौहो-कलम छिन गई तो क्या गम है/ कि खूने-दिल में डूबो ली है उंगलियाँ मैंने।

ऐसे संघर्ष मानवीय सभ्यता के इतिहास के विभिन्न कालखंडों में दिखते हैं। पिछली शताब्दी का वह काल जिसमें ऑरवेल इस उपन्यास की रचना कर रहे थे वैसी अधिनायकवादी शक्तियाँ समाप्त हो गईं थीं पर बराबरी एवं स्वतंत्रता की बातें आज भी होती हैं। इस अर्थ में ओसिनिया का स्वरूप 2050 तक भी नई ज़बान को प्राप्त नहीं कर पायेगा। संग्राम है और आगे भी जारी रहेगा। इसलिए ऑरवेल की दुनिया का भयावह रूप कभी साकार नहीं होगा।

1984 में भय और अविश्वास का भाव आतंकित करता है पर अधिनायवाद के खिलाफ आम लोगों को सचेत भी करता है। हमें याद रखने की जरूरत है कि बिग ब्रदर का साम्राज्य मानवीय संवदेनाओं को कुचलकर ही स्थापित हो सकता है। नई ज़बान और पुरानी ज़बान के बीच का संघर्ष जारी है और रहेगा। पर इस उपन्यास का केन्द्रीय चरित्र विंस्टन यह विश्वास दिलाता है कि पुरानी ज़बान की जड़ें ऐतिहासिक रूप से मजबूत हैं। ठीक वैसे ही जैसे कि धर्मनिरपेक्षता एवं जनतंत्र की बुनियाद बहुत ही गहराई तक हमारी चेतना में हैं। इसलिए UAPA, CAA, कृषि आदि कानूनों के प्रति विरोध के स्वर विभिन्न रूपों में गूंजते हैं।

इस उपन्यास का नायक यातनाओं के बाद भी टूटता नहीं है। इस बात को पाठक विंस्टन एवं बिग ब्रदर के बीच के संवाद से समझ सकते हैं। इन दोनों पात्रों के बीच के संवाद इस उपन्यास में व्याप्त नाटकीयता के तत्व को नई उंचाई प्रदान करते हैं। यहाँ स्पष्ट करना जरूरी है कि जब ऑरवेल वर्णन कर रहे होते हैं तो विषय-वस्तु में पांडित्य दिखता है लेकिन इसके विपरीत पात्रों के बीच के कथोपकथन की संरचना में उनकी दक्षता का चरम दिखता है। यह रचनाकार को साहित्य में एक विशेष स्थान देता है।

[bs-quote quote=”फार्म की दृष्टि से भी यह उपन्यास आलोचकों को नये-नये संदर्भों से रू-ब-रू कराता है। उपन्यास को पढ़ते हुए फंतासी एवं यथार्थवाद के बोध का प्रतिबिम्ब आज पाठक देख सकता है। इसकी यही विशेषता इस पुस्तक को बीसवीं शताब्दी के उत्कृष्ट साहित्य के रूप में स्थापित करती है।” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]

फार्म की दृष्टि से भी यह उपन्यास आलोचकों को नये-नये संदर्भों से रू-ब-रू कराता है। उपन्यास को पढ़ते हुए फंतासी एवं यथार्थवाद के बोध का प्रतिबिम्ब आज पाठक देख सकता है। इसकी यही विशेषता इस पुस्तक को बीसवीं शताब्दी के उत्कृष्ट साहित्य के रूप में स्थापित करती है।

यह उपन्यास आपसे धैर्य की मांग करता है ताकि अपने-अपने समय को सोचें और मानवीय मूल्यों को आगे बढ़ाने का निश्चय करें। आप सचेत रहें। यह पुस्तक कभी-कभी बौद्धिकता की नजर से साहित्य और इतिहास के अंतर्संबध को जानने एवं समझने की चुनौती भी देती है।

इस पुस्तक में महिलाएँ हाशिये पर हैं। ऐसे पात्रों का इस्तेमाल बिग ब्रदर अन्य शासकों की तरह नुमाइश एवं जासूसी के लिए करता है। इस दृष्टिकोण से भी आलोचना के कुछ स्वर सामने आने चाहिए ताकि स्त्रीवादी विवेचना की समृद्ध परंपरा में ये बातें ठीक से दर्ज हो सकें। इस पक्ष पर बहस बाकी है।

यहाँ मैं अंत में पुनः स्पष्ट कर दूं कि यह परंपरागत शास्त्रीय साहित्य की आलोचना नहीं है। इसलिए पाठक इसे एक पाठक की नजर से ही पढ़ें। यह समय की मांग है। केवल तभी आप अपने समय को समझेंगे और फंतासी में यथार्थबोध पाकर आश्चर्यचकित भी होंगे।

साहित्यिक-सांस्कृतिक विषयों के गंभीर अध्येता डॉ¯ राजीव कुमार मंडल जाने-माने वैज्ञानिक और चिंतक हैं। वे समसामयिक विषयों पर लगातार लिखते-बोलते रहते हैं। फिलहाल वे आईआईटी बीएचयू के धातुकीय अभियांत्रिकी विभाग में प्रोफेसर हैं।

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