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आज़ादी की लड़ाई में जिनका कोई योगदान नहीं वे गांधी की भूमिका कम करना चाहते हैं

आज सांप्रदायिक दक्षिणपंथ को लगता है कि उसकी जडें काफी गहराई तक पहुँच चुकी हैं, इसलिए उसके चिन्तक-विचारक अब गांधीजी की 'कमियों' पर बात करने लगे हैं और भारत के स्वतंत्रता हासिल करने में उनके योगदान को कम करने बताने लगे हैं। इस 30 जनवरी को जब देश राष्ट्रपिता को श्रद्धांजलि दे रहा था तब कुछ पोर्टल ऐसे वीडियो प्रसारित कर रहे थे जिनका केन्द्रीय सन्देश यह था कि गांधीजी केवल उन कई लोगों में से एक थे जिन्होंने भारत की आज़ादी के लिए संघर्ष किया। अलग-अलग पॉडकास्टों और सोशल मीडिया प्लेटफार्मों के जरिये यह प्रचार किया जा रहा था कि अंग्रेजों के भारत छोड़ने के पीछे महात्मा गाँधी के प्रयासों की बहुत मामूली भूमिका थी। 

भगत सिंह की इंकलाबी विचारधारा आज के समय में और ज्यादा प्रासंगिक – डा. सन्तोष कुमार गुप्ता

आज भगत सिंह की 117वीं जयंती मनाई गई। भगत सिंह को पढ़ने-समझने वाले उनके वैचारिकता और लेखन की गंभीरता को बेहतर समझते हैं। 23 वर्ष की छोटी सी उम्र में उन्होंने समाज के लिए बड़ा काम कर दिया।

विघटनकारी नैरेटिव को मजबूती देते हुए, सच को तोड़-मरोड़ कर दिखाती फिल्म स्वातंत्र्यवीर सावरकर 

वर्ष 2014 के बाद, जब से लोगों के दिमाग में राष्ट्रवादी विचारधारा ज्यादा मजबूती से हावी हुई है, तब से समाज के सांस्कृतिक परिदृश्य में इसका प्रभाव भी बढ़ा है। जिसमें एक माध्यम सिनेमा भी है, जिसके माध्यम से जनता सबसे ज्यादा अपने ज्ञान को समृद्ध करने पर विश्वास करती है। अभी हाल में ही रणदीप हुड्डा की फिल्म स्वातंत्र्यवीर सावरकर रिलीज हुई है, जिसमें सावरकर को झूठे तथ्यों के साथ महान बताया गया है। 

शहादत दिवस : अजीत सिंह, भगत सिंह और किसान आंदोलन की राजनीति

आज जब हम पंजाब के किसान आंदोलन की ओर देखते हैं तो पाते हैं कि उसमें एक ओर भगत सिंह के विचारों की अनुगूंज सुनाई पड़ती है तो दूसरी ओर समय-समय पर वे गांधी के जनांदोलन की रणनीति पर भी विचार करते हुए दिखाई देते हैं।

मोदी सरकार का आखिरी पांसा महिला आरक्षण बिल

अंततः वोट बंटोरने और सत्ता में बने रहकर 'अपनों' को रेवड़ियाँ बांटने के लिये आखरी पांसा भी फेंक दिया गया है। मनुस्मृति को देश के...

नारा तब भी इंक़लाब था, नारा आज भी इंक़लाब है…

भगत सिंह की जयंती पर विशेष जो कोई भी कठिन श्रम से कोई चीज़ पैदा करता है, उसे यह बताने के लिए किसी खुदाई पैगाम...

किसानों की समस्या के संदर्भ में भगत सिंह के संघर्षों को कैसे देखा जाए

भगत सिंह की जयंती पर विशेष  भगत सिंह को 23 मार्च, 1931 को फांसी दी गई थी और अपनी शहादत के बाद वे हमारे देश...

साम्प्रदायिकता को बढ़ावा देगा, बंटवारे की विभीषिका को स्मृति दिवस के रूप में याद करना

हम अपना स्वाधीनता दिवस 15 अगस्त को मनाते हैं और हमारा पड़ोसी पाकिस्तान 14 अगस्त को। भारत के लोगों ने आज़ादी हासिल करने के...

मौजूदा फासिस्ट सत्ता के ध्वंस से ही बनेगा भगत सिंह और पाश के सपनों का भारत 

पंजाब की धरती पर पैदा होने वाले अमर सपूतों में गुलाम भारत में शहीदेआज़म भगत सिंह और तथाकथित आज़ाद भारत में नक्सलबाड़ी के खासमखास...

शहीद-ए-आज़म भगत सिंह की 115वीं जयंती मनाई गई

दरभंगा। जनसंस्कृति मंच दरभंगा, आइसा, इनौस के संयुक्त तत्वावधान में शहीद-ए-आज़म भगत सिंह की जयंती जसम जिलाध्यक्ष डॉ. रामबाबू आर्य की अध्यक्षता में प्राक परीक्षा...

अमर शहीद शिवराम राजगुरु की जयंती के उपलक्ष्य में रक्तदान शिविर का आयोजन 

सामाजिक कार्यकर्त्ता वल्लभाचार्य पाण्डेय ने किया 99 वां रक्तदान  सामाजिक संस्था आशा ट्रस्ट के तत्वावधान में  भंदहा कला स्थित संस्थान के प्रशिक्षण केंद्र पर बुधवार...

आज अपने चारों ओर बुने जा रहे झूठ से कैसे लड़ते भगतसिंह

गांधीजी यह कभी नहीं चाहते थे कि भगत सिंह की फांसी की सजा माफ हो। वह केवल भगत सिंह की सजा को कुछ समय के लिए टालना चाहते थे। तथ्य इस बात की ओर इशारा करते हैं कि भगत सिंह की फांसी की सजा के कम्युटेशन के लिए कानूनी पहलुओं को गांधीजी ने बड़ी बारीकी से खंगाला था और उन्हें जब यह अच्छी तरह ज्ञात हो गया कि कानूनी रूप से ब्रिटिश सरकार को भगत सिंह की फांसी की सजा माफ करने हेतु बाध्य करना संभव नहीं है तब उन्होंने फांसी की सजा को निलंबित या स्थगित करने का प्रस्ताव दिया। यह फांसी को टालकर ब्रिटिश सरकार से समय प्राप्त करने की रणनीति का एक भाग था।

कौन देगा भगत सिंह के सवालों के जवाब? (डायरी 10 जनवरी, 2022) 

इतिहास का महत्व इस कारण ही है कि उससे सवाल पूछा जाय और जो इतिहास जवाब न दे सके, वह इतिहास की श्रेणी में...

बीएचयू में काकोरी के शहीदों की स्मृति में बीसीएम ने आयोजित किया संस्कृतिक कार्यक्रम

देश को आजाद कराने में अनेक लोगों ने अपनी कुर्बानी दी है। कुछ नाम ऐसे हैं, जो सबके जुबां पर रहता है। उन्हीं नामों...

साम्राज्यवाद-विरोधी संघर्ष में विश्व-मीडिया की भूमिका निष्पक्ष नहीं है

तेलुगु के क्रांतिकारी कवि वरवर राव के जन्मदिन पर विशेष  वर्तमान समय में खासकर तीसरी दुनिया में जो जनान्दोलन चल रहे हैं, उनके बारे में...

क्या सावरकर आज़ादी की लड़ाई के लिए जेल से बाहर आना चाहते थे?

क्या सावरकर की जीवन यात्रा को दो भागों में मूल्यांकित करना ठीक है? क्या उनके जीवन का गौरवशाली और उदार हिस्सा वह है जब...

उत्तर प्रदेश चुनाव और जम्मू कश्मीर में बढ़ता आतंकवाद (डायरी 16 अक्टूबर, 2021)

बचपन में शब्दों को लेकर तरह-तरह के सवाल होते थे। मैं कोई अजूबा बच्चा नहीं था। ये सवाल मेरे मित्रों के मन में भी...

‘स्वर्णिम युग’ और ‘महानायक’ तलाशती जातियां

बचपन में कहानियों में पढ़ा था कि कबीर के मरने पर हिन्दू और मुसलमानों के बीच उनके धर्म को लेकर झगड़ा हो गया और...

आज़ादी और शहीद-ए-आजम भगत सिंह

इप्टा जमशेदपुर और अन्य जन संगठन के साथियों द्वारा बीते मंगलवार की शाम को भगत सिंह को उनकी जयंती के मौके पर  शिद्दत से...

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